New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 09 अक्टूबर, 2017 06:38 PM
आशिका सिंह
आशिका सिंह
 
  • Total Shares

शारदा, नारदा, दशहरे पर मुहर्रम की राजनीति के बीच अब तक 'गोरखालैंड' की जमीन पर राजनीतिक फसल उगाने वाली बीजेपी के पश्चिम बंगाल अध्यक्ष दिलीप घोष जब उस फसल की छोटी सी खेंप काटने दार्जिलिंग पहुंचे तो बगावत की हवा ने उनकी भी टोपी उड़ा दी. दार्जिलिंग एक तरफ जहां दुर्गा पूजा और मुहर्रम की खींचतान से दूर 'गोरखालैंड' पर सियासत का त्योहार मना रहा था, वहां विजयदशमी पर विजया सम्मेलनी मनाने पहुंचे दिलीप घोष और उनके साथियों के साथ धक्का मुक्की हुई और किसी विरोधी ने दिलीप घोष के सिर पर से पहाड़ी टोपी उतार दी.

ममता बनर्जी, टीएमसी, पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी की सम्पूर्ण राजनीति का आधार अल्पसंख्यकों को रिझाना है

पश्चिम बंगाल की पुलिस और प्रशासन अब तक घोष पर हमला करने वालों का पता नहीं लगा पायी है और इधर दार्जीलिंग से बैरंग लौटे भाजपाई कोलकाता के कोने-कोने में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. चाहे पश्चिम बंगाल में वाम शासन रहा हो या दशकों की लाल सरकार को कुचलते हुए सत्ता में आयी ममता सरकार, दार्जीलिंग की जनता ने कई सालों से भाजपा के ही सांसद को चुना है. अब केन्द्र में भाजपा की सरकार से आस लगाने वाले गोरखा जनमुक्तिमोर्चा को भी समझ आ गया है कि 'लेफ्ट' हो या 'राइट' या फिर कांग्रेस और तृणमूल सियासत के सभी दल गोरखालैंड के सपनों के चूल्हे पर अपनी-अपनी रोटी सेंक कर निकल जाते हैं.

पिछले कार्यकाल में गोरखालैंड की आग को ठंडे बस्ते में डालने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का स्वागत भी कुछ महीने पहले दार्जीलिंग में बम के धमाकों से ही किया गया था. हालात ऐसे बेकाबू हुए कि दो महीने दार्जीलिंग बंद रहा. इधर, माकपा, चिट फंड और हिंदू मुसलमान के बीच जूझ रही ममता बनर्जी के लिए वह बीजेपी चुनौती बनकर उभरी है जिसे वो कभी विरोधियों में गिनती तक नहीं थीं. विगत दिनों में निकाय चुनावों और उपचुनावों में बीजेपी के बढ़ते वोट शेयर ने दीदी की नींद ऐसी उड़ायी कि रमज़ान पर सिर पर दुपट्टा ओढ़कर नमाज पढ़ने वाली ममता को पहली बार राम की याद आयी.

ममता बनर्जी, टीएमसी, पश्चिम बंगाल कई मौकें आए हैं जब दिखा है कि ममता केवल समुदाय विशेष को रिझाने का काम कर रही हैं

रामनवमी पर राम नाम की ऐसी होड़ लगी कि भाजपा और तृणमूल दोनों ही राम भरोसे हो गए. राज्य भर में दीदी ने रामनवमी की बधाई देते हुए 'राम का नाम बदनाम न करो' के पोस्टर लगवा डाले. हालांकि दशहरे के अगले दिन मुहर्रम पड़ते ही दुर्गा पूजा के ढ़ाक पर मुहर्रम का मातम भारी पड़ गया. अल्पसंख्यकों की मसीहा ममता सरकार ने नोटिस जारी कर मुहर्रम के मौके पर दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर रक लगा दी. मामला कोर्ट तक पहुंचा और कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सरकार को दोनों के लिए ही सुरक्षा मुहैया करवानी चाहिए.

इसके बाद भी मुहर्रम को दिन घाट किसी अकथित कानून के तहत खाली ही पड़े रहे और सज संवरकर गंगा का तट प्रतिमाओं की प्रतीक्षा ही करता रह गया. उसी दिन भर शहर के अलग-अलग हिस्सों में ताजिये के लिए रास्ते बुहार कर अल्पसंख्यकों को देने वाले ममता सरकार के आला मंत्रियों के सामने ही कई जगह हिंदू विरोधी नारे भी लगे.

2011 की जनगढ़ना के अनुसार पश्चिम बंगाल में 27 प्रतिशत मुसलमान हैं. यही कारण है कि ममता सरकार के लिए दशहरे पर मुहर्रम भारी पड़ गया और राज्य सरकार की इन्हीं कि नीतियों के चलते राज्य में भाजपा उफान पर है. कभी ममता के सबसे करीबी रहे मुकुल रॉय पर जब चिट फंड की गाज गिरी तो तृणमूल से दूरियां बनाने के बाद अब उनकी निगाहें भी भाजपा पर टिकी हैं. हाल ही में राज्य का दौरा करने वाले अमित शाह की नजर भी पश्चिम बंगाल पर बराबर टिकी है. अब देखना ये है कि उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा से नेता जुटाकर जीतने वाली भाजपा बंगाल में कहां-कहां से तोड़-फोड़कर अपना कुनबा तैयार करती है.

ये भी पढ़ें -

विपश्यना के बाद कमल को तौल रहे हैं या तराजू पर खुद ही बैठे हैं केजरीवाल?'

दौरे के दम पर खिलाएंगे कमल, अमित शाह का मिशन बंगाल !

ममता बनर्जी के फैसले कहीं उनकी ही मुसीबत न बन जाएं

लेखक

आशिका सिंह आशिका सिंह

लेखिका 10 साल से अधिक समय पत्रकारिता में बिताने के बाद, एक निजी कंपनी में जनसंपर्क सलाहकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय