चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग के बहाने भी विपक्ष का एकजुट होना मुश्किल है
विपक्षी खेमे की अगुवाई सोनिया करती रही हैं. अब इस मिशन में ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव और शरद पवार जैसे नेता भी जुट गये हैं. वैसे चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की तैयारी वैसी ही लगती है जैसे EVM के नाम पर हो चुकी है.
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विपक्षी एकता का नया नवेला टूल भी सामने आ गया है - चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की तैयारी. विपक्षी नेता इस मसले पर भी वैसे ही साथ होने की तैयारी कर रहे हैं जैसे कभी नोटबंदी, जीएसटी या फिर ईवीएम के नाम पर हुआ करती रही. अब तक तो यही देखने को मिला है कि ये सब विपक्ष को कुछ दिनों के लिए करीब तो ला देते हैं, मगर आगे चल कर किसी न किसी मुद्दे पर आपसे में ठन ही जाती है. पुरानी और नयी कोशिश में फर्क सिर्फ इतना है कि अगले चुनाव में मोदी को चुनौती देने के लिए वक्त काफी कम बचा है.
विपक्षी एकता को लेकर हाल तक सिर्फ सोनिया गांधी सक्रिय देखी जाती रही हैं, लेकिन अब इस फेहरिस्त में ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव और शरद पवार जैसे नेता भी शुमार हो चुके हैं. अब तक ममता बनर्जी के कांग्रेस से दूरी बनाये रखने की चर्चा रही, लेकिन दोनों नेताओं की मुलाकात का वक्त तय होने के बाद चर्चा भी खत्म हो जाती है.
ममता का दिल्ली दौरा
ममता को चार दिन के दिल्ली दौरे में किस किस से मिलना है, पहले से ही तय हो चुका था - सिवा कांग्रेस नेताओं के साथ मीटिंग के. यही वजह रही कि बात यहां तक शुरू हो गयी कि ममता किसी खास वजह से कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रही हैं.
ममता को ये साथ पसंद है!
सोनिया के साथ साथ अखिलेश यादव और मायावती से संभावित मुलाकात को लेकर ममता बनर्जी ने कहा भी था, ''सोनिया जी की तबीयत ठीक नहीं है, लेकिन उनकी सेहत में सुधार हो रहा है. जब वो अच्छी हो जाएंगी तो एक बार उनसे भी मिलूंगी." मायावती ने ये भी बताया अगर मायावती और अखिलेश यादव बुलाते हैं तो उनसे मिलने लखनऊ भी जाएंगी.
इन मुलाकातों को लेकर ममता बनर्जी की साफगोई भी देखने को मिली तो विपक्षी दलों की अपनी अपनी दलील भी सुनी गयी. ममता बनर्जी का कहना रहा कि जब राजनीति के लोग मिलेंगे को चर्चा तो राजनीति पर होगी ही. सवाल जब शिवसेना नेता संजय राउत के सामने उठा तो पूछ लिया - जब प्रधानमंत्री पाकिस्तान जाकर नवाज शरीफ से मिल सकते हैं, फिर ममता तो भारतीय हैं और एक राज्य की मुख्यमंत्री भी.
ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे से पहले ही मिल चुकी हैं - और अभी अभी संजय राउत से मिली हैं. एनडीए खेमे से आने वालों में शिवसेना के अलावा टीडीपी नेता भी हैं जिनसे ममता की मुलाकात हुई है. इतना ही नहीं ममता बीजेपी के बागी नेताओं से भी मिल रही हैं. शत्रुघ्न सिन्हा, यशवन्त सिन्हा और अरूण शौरी की बातें और हाल की गतिविधियां ममता को सूट भी करती हैं.
वैसे इन मुलाकातों में सबसे महत्वपूर्ण ममता और अरविंद केजरीवाल की मीटिंग लग रही है. ममता एक तरफ शरद पवार से भी मिल रही हैं तो दूसरी तरफ केजरीवाल से भी. मगर, क्या केजरीवाल को शरद पवार का साथ मंजूर होगा? क्या केजरीवाल और शरद पवार एक दूसरे के प्रति उस थ्योरी पर आगे बढ़ेंगे जो कहती है कि राजनीति में स्थाई दोस्त और दुश्मन नहीं होते.
केजरीवाल की अकेली पैरोकार
ममता बनर्जी को विपक्षी कुनबे में केजरीवाल फैक्टर की अकेले एडवोकेट के तौर पर देखा गया है. कांग्रेस नेतृत्व से तो वो कई बार इस बारे में बात भी कर चुकी हैं. 2019 के हिसाब से हो रही मोर्चेबंदी में केजरीवाल भी ऐसी अहम कड़ी हैं जिनकी मर्जी या फिर जिनके नाम पर सहमति ही ये तय करेगी कि विपक्षी एकता का ऊंट किस करवट बैठेगा?
विपक्षी एकता की कोशिशों के दरम्यान ही एक और भी मुलाकात हुई है - ममता बनर्जी और प्रशांत भूषण की. ये मीटिंग मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने की कोशिश के संदर्भ में बतायी गयी है. देखा जाये तो महाभियोग तो बहाना है, असल में तो ये विपक्षी दलों को करीब लाने का नुस्खा साबित हो रहा है.
महाभियोग का मकसद क्या है?
पहला सवाल तो इस बारे में यही है कि महाभियोग का मकसद क्या है? 11 जनवरी को पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जज मीडिया के जरिये देश के लोगों से लाइव मुखातिब हुए और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के कामकाज पर सवाल उठाया. ये चार जज थे - जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसफ. चारों जजों ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच को केस अलॉट करने में भेदभाव बरतने के आरोप लगाये और लोकतंत्र के खतरे में होने की आशंका भी जतायी.
प्रेस कांफ्रेंस के बाद डी. राजा का जस्टिस चेलमेश्वर से मिलने उनके घर जाना खासा चर्चित रहा. सीनियर वकील प्रशांत भूषण की भी जजों की प्रेस कांफ्रेंस पर टिप्पणी आयी थी.
Truly unprecedented! Kudos to 4 seniormost judges of SC who addressed a Press Conf today to apprise the people about the extraordinary abuse of 'master of roster' powers by CJI in selectively assigning politically sensitive cases to hand picked junior judges for desired outcome
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) January 12, 2018
चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लाने की चल रही तैयारी में मुख्य तौर पर दो बातें मालूम हुई हैं. एक, प्रशांत भूषण और ममता बनर्जी की मुलाकात और दूसरी, एनसीपी नेताओं के हवाले से आई खबर कि कांग्रेस इससे जुड़ा एक हस्ताक्षर अभियान चला रही है. हालांकि, कांग्रेस की ओर से अभी तक ऐसा कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है. बातचीत में एनसीपी नेताओं ने बताया है कि हस्ताक्षर करने वालों में वे खुद तो हैं ही, वाम दल, टीएमसी और कांग्रेस नेता भी शामिल हो सकते हैं.
महाभियोग की राजनीति...
नियम के मुताबिक सीजेआई के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है. कांग्रेस, टीएमसी, एनसीपी, आरजेडी, शिवसेना, टीडीपी, बीजेडी, सीपीएम, वाईएसआर कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी और AIMIM के कुल 172 सांसद हो रहे हैं. मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तो विपक्ष साथ नजर आ रहा है, लेकिन इस मामले में तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है. ऐसे में अगर शिवसेना, टीडीपी या फिर बीजेपी जैसे दल साथ नहीं आते तब भी संख्या 100 से कम नहीं होने वाली.
अब सवाल ये है कि महाभियोग किस नतीजे पर पहुंचेगा? ऐसे मामलों में कई बार देखने को मिला है कि जजों ने महाभियोग शुरू होने की स्थिति आने से पहले ही नैतिकता के नाते इस्तीफा दे दिया है. कुछ मामलों में ऐसा प्रस्ताव मंजूर भी न हो सका है. 90 के दशक में पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस वी रामास्वामी पर महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी. लोकसभा में जस्टिस रामास्वामी के खिलाफ लाया गया महाभियोग के प्रस्ताव के समर्थन में दो तिहाई बहुमत जुट ही नहीं पाया और गिर गया.
महाभियोग के किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले विपक्ष के लिए ये महज एक टूल है. वैसे ही जैसे कभी EVM के नाम पर तो कभी GST या नोटबंदी के नाम पर लामबंदी होती रही है. मुमकिन है विपक्षी दल ऐसे मामलों के चलते करीब आ भी जाते हैं, लेकिन फायदा तो तब हो जब बात आगे बढ़े - नेतृत्व के मुद्दे पर.
कौन होगा नेता?
फिलहाल कुल तीन मुद्दे सामने हैं जिनके नाम पर विपक्ष एकजुट हो सकता है. एक - चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की तैयारी, दो - मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की कोशिश और तीन - जैसे भी मुमकिन हो 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज कैसे किया जाये.
नेता होने का पेंच...
विपक्षी मोर्चे की हर कवायद में बात उसी मोड़ पर अटक जाती है जहां तय करना होता है कि नेता कौन होगा? वो चेहरा कौन होगा जो पांच साल सरकार चलाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी को भरे मैदान में चैलेंज करेगा? मुश्किल ये है कि अभी तक ऐसा कोई भी एक चेहरा नहीं है जिसके नाम पर पूरी तरह सहमति बनती हो. विपक्षी खेमे में ममता की एक्टिविटी देख कर लगता है कि लोग उनकी अगुवाई पर मन बनाने की तैयारी कर रहे हैं.
बड़ी मुश्किल ये है कि ये कांग्रेस को मंजूर नहीं होगा. कांग्रेस की ओर से तो पहले से ही राहुल गांधी विपक्ष को चैलेंज करने के लिए रियाज कर रहे हैं. कांग्रेस भले ही इस बात पर अड़ी रहे कि नेता तो राहुल गांधी ही बनेंगे, विपक्ष के नेताओं मान जाना कतई आसान नहीं है.
ममता में जो जोश देखने को मिल रहा है उसकी वजह भी साफ है. ममता को एनडीए से अलग हो चुके या होने की हालत में वाले दलों का भी सपोर्ट मिल रहा है.
ममता उस समीकरण में फिट हो सकती हैं, जिसके लिए राहुल गांधी अनफिट समझे जा रहे हैं. ममता के लिए भी सौदा अच्छा ही है, अगर खड़े होने लायक सीटें मिल गयी तो - कांग्रेस का सपोर्ट तो मिल ही सकता है, बशर्ते, कांग्रेस विपक्ष में बैठे रहने की जिद पर न अड़ जाये.
चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग सीधे तौर पर राजनीतिक पहल तो नहीं लगती. नेताओं के दिलचस्पी लेने की वजह मिल कर मोदी सरकार को घेरने का मौका मिलना है. खास बात ये है कि मिशन महाभियोग में ममता की भी दिलचस्पी दिख रही है और पर्दे के पीछे मजबूती से कांग्रेस भी खड़ी लग रही है. ये सारी बातें 2019 में मोदी को चैलेंज करने की दिशा में तो बढ़ रही हैं, लेकिन जितने पेंच हैं उनसे लगता नहीं कि विपक्ष एकजुट हो पाएगा. विपक्षी एकता की ऐसी कोशिश तो EVM के नाम पर भी देखी जा चुकी है जो शुरू तो बड़े ही जोर शोर से हुआ, लेकिन आखिर में टांय टांय फिस्स हो गया. एकजुटता के नाम पर विपक्ष के 'मन बहलाने का गालिब ये ख्याल' तो अच्छा है, लेकिन बात नहीं बनी तो जल्द ही कुछ ठोस ढूंढना होगा.
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