कांग्रेस नेताओं की हरकत बता रही है - एक स्थायी अध्यक्ष की जरूरत क्यों है?
सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ के दौरान जिस तरह की गैरजिम्मेदाराना बयानबाजी अधीर रंजन चौधरी (Adhir Ranjan Chowdhury) और रणदीप सिंह सुरजेवाला (Randeep Singh Surjewala) कर रहे हैं - कांग्रेस को कुछ भी हासिल हो पाएगा ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता.
-
Total Shares
सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की प्रवर्तन निदेशालय के सामने पेशी के दौरान कांग्रेस नेताओं के अलग अलग कई रूप देखने को मिले हैं. कोई ED को इडियट बता रहा है तो कोई पिट्ठू - और ऐसे बयानों का सिलसिला सिर्फ दिल्ली में ही नहीं सुनने को मिला है, कर्नाटक से गुजरात तक एक जैसी स्थिति नजर आ रही है.
ये कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए बेहद मुश्किल वक्त है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों से ही प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ चल रही है - और फील्ड में नेताओं को कंट्रोल करने वाला कोई कमांडर नहीं है, लिहाजा जिसके मन में जो आ रहा है बस बोले चले जा रहे हैं.
बोले कोई भी, अगर किसी नेता के साथ कांग्रेस का ठप्पा लगा है तो उसके हिस्से की गलतियों की भरपाई तो पार्टी को ही करनी पड़ेगी. ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस नेताओं की तरफ से ऐसी हरकतें कोई पहली बार हो रही हैं. मणिशंकर अय्यर से लेकर सीपी जोशी जैसे सीनियर कांग्रेस नेताओं के बयानों पर बवाल मच चुका है - और कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से एक्शन भी लिया गया है.
बीती चर्चाओं को याद करें तो सोनिया गांधी से पूछताछ के बाद राहुल गांधी की गिरफ्तारी की भी आशंका जतायी जा चुकी है. मतलब ये कि कांग्रेस बेहद नाजुक दौर से गुजर रही है और अनावश्यक चीजों से बचने की कोशिश नहीं हुई तो नये सिरे से मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
कांग्रेस को ऐसी ही मुश्किलों से बचाने और नये सिरे से खड़ा करने के लिए अरसे से एक स्थायी अध्यक्ष की मांग चल रही है. कांग्रेस में G-23 का जन्म भी इसी डिमांड के साथ हुआ था, जिसमें एक ऐसे अध्यक्ष की जरूरत बतायी गयी थी जो काम करता हुआ भी दिखे. असल में ये राहुल गांधी के अध्यक्ष की कुर्सी पर रहते उनके कामकाज की शैली पर कटाक्ष था.
यहां तक कि कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर में भी ये मुद्दा अलग तरीके से उठाया गया. यूपी कांग्रेस के नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन की सलाह रही कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस की कमान संभालने के लिए तैयार नहीं हो पा रहे तो प्रियंका गांधी वाड्रा को ही कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जाये.
सुनने में तो यही आ रहा था कि संगठन चुनाव की प्रक्रिया जारी है और सितंबर, 2022 तक काम पूरा हो जाएगा. काम पूरा होने पर मान कर चलना चाहिये कि कांग्रेस को एक स्थायी अध्यक्ष भी मिल जाएगा - लेकिन तब ED के नोटिस की कोई आशंका नहीं रही होगी.
लेकिन अब वो वक्त आ गया है जब लगता है कि मैदान में कोई एक ऐसा तो होता जो तमाम गतिविधियों पर नजर रख रहा होता और एक केंद्रीय कमान के तौर पर काम कर रहा होता. सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ के दौरान या आगे पीछे अधीर रंजन चौधरी (Adhir Ranjan Chowdhury) और रणदीप सिंह सुरजेवाला (Randeep Singh Surjewala) जैसे कांग्रेस नेताओं की तरफ से जैसी बयानबाजी हुई है - एक स्थायी कांग्रेस अध्यक्ष की सख्त जरूरत लग रही है जो ऊलजुलूल बातों पर लगाम कस सके.
सोनिया की पेशी और जयराम रमेश का दावा
प्रवर्तन निदेशालय की पांच दिन की पूछताछ के बाद जैसे राहुल गांधी डींग हांक रहे थे, कांग्रेस नेता जयराम रमेश भी सोनिया गांधी से एक दिन की पूछताछ के बाद दावा कर रहे थे. राहुल गांधी तो बता रहे थे कि ईडी के अधिकारी उनके धैर्यपूर्वक लगातार बैठे रहने से आश्चर्यचकित थे - उनके सामने वो विपश्यना को क्रेडिट दे दिये.
सोनिया गांधी के बचाव में कांग्रेस नेताओं के बयान मुश्किलें बढ़ा सकते हैं
सोनिया गांधी की सेहत को देखते हुए ईडी ने दफ्तर में डॉक्टर और एंबुलेंस का इंतजाम तो किया ही था. पास में ही एक कमरे में प्रियंका गांधी वाड्रा के भी बैठने का इंतजाम किया था, ताकि इमरजेंसी की स्थिति में वो उनके पास तत्काल पहुंच सकें. सोनिया गांधी को ये भी पहले से बता दिया गया था कि अगर उनको दिक्कत महसूस हुई तो पूछताछ होल्ड कर ली जाएगी.
जब न्यूज एजेंसी पीटीआई ने खबर दी कि सोनिया गांधी की रिक्वेस्ट पर ईडी अधिकारियों ने पूछताछ को आगे के लिए टाल दिया है, तो कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश खबर को ही झुठलाने लगे.
सोनिया गांधी कोविड संक्रमण का शिकार हो गयी थीं और फिलहाल रिकवर कर रही हैं - और ये हवाला देने पर अधिकारियों ने रिक्वेस्ट मंजूर कर ली. सोनिया गांधी को फिर से पूछताछ के लिए 25 जुलाई को बुलाया गया है.
ED questions Sonia Gandhi for 2 hours, ends session on her request as she is recovering from Covid: Officials
— Press Trust of India (@PTI_News) July 21, 2022
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ईडी की पूछताछ को लेकर अपना अलग ही दावा पेश कर दिया, 'सोनिया गांधी ईडी दफ्तर गयी थीं... दो-तीन घंटे तक उनसे पूछताछ की गयी... उसके बाद अधिकारियों ने उनको जाने दिया - क्योंकि उनके पास पूछने के लिए कुछ भी बचा नहीं था.'
जयराम रमेश का ये भी दावा रहा कि अधिकारियों के सवाल खत्म हो जाने के बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि वे जितना चाहें उतने सवाल पूछ सकते हैं - और रात के नौ बजे तक रुकने को तैयार थीं. बता दें की सोनिया गांधी से दो घंटे की पूछताछ के बाद वापस घर जाने दिया गया था.
ED ने कहा हमारे पास कोई सवाल नहीं, आप जा सकती हैं, मगर सोनिया जी ने कहा कि आपके जितने सवाल हैं, पूछिए, मैं रात 8-9 बजे तक रुकने को तैयार हूं।मैं साफ कर दूं कि सोनिया जी ने पूछताछ खत्म करने का कोई निवेदन नहीं किया : श्री @Jairam_Ramesh#सत्य_साहस_सोनिया_गांधी pic.twitter.com/vgb9XaO76C
— Congress (@INCIndia) July 21, 2022
ED, CBI को भला बुरा कहने से क्या मिलेगा?
जयराम रमेश ने जो कुछ भी कहा है वो सब तो चलता है. भई कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई के लिए ऐसी बातें तो करनी ही होगी. कार्यकर्ता मजबूत नेतृत्व में ही विश्वास करते हैं. नेतृत्व मजबूत न होने पर कार्यकर्ताओं का भरोसा खत्म हो जाता है और वे इधर उधर भटकने लगते हैं - यहां तक कि कांग्रेस नेता पंखुड़ी पाठक का कटाक्ष भी चलेगा. पंखुड़ी पाठक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध के दौरान पंजाब में दिये गये बयान पर तंज कसा था.
चौकीदार से कह देना, इंदिरा की बहू आई है ।
— Pankhuri Pathak पंखुड़ी पाठक پنکھڑی (@pankhuripathak) July 21, 2022
लेकिन लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी और कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने जो बयान दिया है, उन सबसे तो कभी कुछ भी नहीं हासिल होने वाला है - नुकसान ये भी हो सकता है कि अगर जनता के मन में थोड़ी बहुत सहानुभूति कहीं बची हो तो वो भी खत्म हो सकती है.
अधीर रंजन चौधरी का ये कहना कि सोनिया गांधी के साथ कुछ भी हुआ तो देश के लोग केंद्र सरकार को माफ नहीं करेंगे, ये भी चलेगा - लेकिन जोश में होश गवां कर ईडी को 'इडियट' बता देने से भला क्या हासिल हो सकता है.
कांग्रेस नेता का कहना है कि मोदी सरकार ने केंद्रीय एजेंसी को इडियट बना कर रख दिया है - और वो भी कांग्रेस के किसी कार्यकर्ता सम्मेलन में नहीं बल्कि लोक सभा में. कांग्रेस नेता का ये बयान आखिर क्या मैसेज देता है?
अधीर रंजन चौधरी के बयान पर बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी की तरफ से रिएक्शन आया है, जिसमें कांग्रेस नेता को वो सुपर-इडियट करार देते हैं. सुब्रह्मण्यन स्वामी का कहना रहा, ED के निदेशक का चुनाव जो कमेटी करती है उसमें प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के साथ साथ देश के मुख्य न्यायाधीश भी होते हैं - इसलिए अधीर रंजन सुपर इडियट हुए.
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला को अक्सर मीडिया के सामने लच्छेदार भाषा में अच्छे अच्छे विशेषणों केसाथ पार्टी का पक्ष रखते हुए देखा जाता है - सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ से खफा होकर सुरजेवाला ने सारी विद्वता केंद्रीय जांच एजेंसियों के खिलाफ झोंक दी है.
रणदीप सुरजेवाला बड़े शान से कहते हैं, 'पिठ्ठू ED, डरपोक CBI और IT ही अब मोदी सरकार की चाल, चेहरा और चरित्र बन गयें हैं... प्रतिशोध की राजनीति में धधकते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार न कांग्रेस को न प्रजातंत्र को डरा पाई है ना डरा पाएगी.'
अगर ऐसी बयानबाजी नेताओं के फ्रस्ट्रेशन का नतीजा नहीं है तो भला ये सब करके वो क्या हासिल करना चाहते हैं?
राजनीतिक लड़ाई अपनी जगह है - और पराकाष्ठा तो तभी नजर आने लगती है जब दिल्ली की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर राहुल गांधी कहने लगते हैं, '... युवा डंडे मारेंगे.' चुनावी रैलियों में 'चौकीदार चोर है' जैसे नारे भी चलते हैं - क्योंकि फैसला जनता को सुनाना होता है और वो वक्त आने पर सुनाती भी है.
केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप भी पूरी तरह राजनीतिक हैं और सिवाय निशाने पर आ रहे नेताओं के शायद ही किसी को बुरा लगे. राफेल डील को लेकर ही राहुल गांधी 2019 के चुनाव में मोदी सरकार को घेर रहे थे, लेकिन तभी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी - और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना से बचने के लिए माफी मांगनी पड़ी थी.
आखिर अधीर रंजन और सुरजेवाला ये क्यों भूल जाते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय अदालत के आदेश पर नेशनल हेराल्ड केस में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रहा है - ये ठीक है कि ये सब बीजेपी के ही एक नेता की पहल पर हो रहा है, लेकिन जब अदालत ने कोई मजबूत आधार पाया होगा तभी तो जांच की जरूरत समझी होगी.
ऐसा भी तो नहीं कि जांच से पहले कोर्ट की तरफ से सोनिया गांधी और राहुल गांधी को समन नहीं मिला होगा - और कोर्ट में उनके वकीलों की तरफ से दलील नहीं पेश की गयी होगी. अब अगर जांच को टाला नहीं जा सका तो जांच में सहयोग करना चाहिये. भला प्रवर्तन निदेशालय या उसके अफसरों को लेकर उल्टी सीधी बातें करने का क्या मतलब है?
तभी तो ये लगता है कि अगर कांग्रेस के पास कोई स्थायी अध्यक्ष होता तो ऐसी चीजों पर नजर रखता और पार्टी का स्टैंड साफ करता कि ये सब नेताओं के निजी विचार हैं या कांग्रेस पार्टी के?
इन्हें भी पढ़ें :
मोदी से ज्यादा राहुल गांधी को लेना चाहिए श्रीलंका के हालातों से सबक!
गुजरात में कांग्रेस ने अभी से अपने लिए गड्ढा खोदना शुरू कर दिया है!
उदयपुर टेरर अटैक के बाद सचिन पायलट किसे चुनेंगे- हिंदुत्व या कांग्रेस?
आपकी राय