मोदी-विरोधी धुरी बनने की कतार में, दिन रात पसीना बहा रहे हैं ये बेचारे नेता
जैसे-जैसे पीएम मोदी सफलता के नए नए पायदान चढ़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे उनके आलोचकों और विरोधियों की फ़ौज तौयार होती जा रही है. तो इसी क्रम में जानिये पीएम मोदी के चुनिन्दा आलोचकों और विरोधियों को और समझिये क्या है उनकी प्लानिंग.
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देश की राजनीति में पीएम मोदी एक तरफ हैं, बाक़ी सब कुछ एक तरफ है. पार्टी चाहे कोई भी हो, नेता कैसा भी हो समीकरण बस यही बनाए जा रहे हैं कि कैसे भाजपा और भाजपा में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मात दे दी जाए. शह और मात के इस खेल में तमाम राजनेता अपनी तरफ से साम-दाम, दंड-भेद लगाकर इसी फ़िक्र में हैं कि कैसे एक बार वो कुछ ऐसा कर जाएं जिससे प्रधानमंत्री की राजनीति प्रभावित हो. 2019 के चुनाव नजदीक हैं. और जो हालात हैं और जिस तरह भाजपा लगातार जीतती जा रही है उसके आधार पर ये कहना गलत नहीं है कि आने वाले वक़्त में भाजपा दोबारा सत्ता संभालेगी और मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे.
आज हमारे सामने कई ऐसे नेता है जिनका सिर्फ एक ही काम है और वो है मोदी विरोध
आज जिस तरह तमाम देशों से भारत के सम्बन्ध बन रहे हैं उसको देखकर जहां एक तरफ पीएम मोदी के आलोचकों के माथे पर चिंता के बल पड़ गए हैं तो वहीं इससे एक आम भारतीय बेहद खुश है. कह सकते हैं कि अपने प्रयासों से पीएम मोदी ने देश के नागरिकों में एक नई उर्जा का संचार किया है और शायद ये वो नई उर्जा ही है जिसके चलते एक आम भारतीय के दिल में ये उम्मीद बन गयी है कि जल्द ही देश शीर्ष पर होगा. एक आम भारतीय ये बात भली प्रकार जानता है कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में उसकी इस उम्मीद को अगर कोई पूरा कर सकता है तो वो केवल और केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं.
किसी भी सूरत में पीएम के विरोध को देश हित में नहीं माना जा सकता
कभी-कभी लोकप्रियता घातक होती है और इसके चलते विरोध का सामना करना पड़ता है. ऐसा ही कुछ आज पीएम मोदी के साथ हो रहा है. आज मोदी-विरोधी धुरी बनने की कतार में कई नेता एक साथ आकर खड़े हो गए हैं. तो आइये जानें वो कौन-कौन से नेता है जो पीएम मोदी की लोकप्रियता को पचा नहीं पा रहे और उन्हें परास्त करने के लिए दिन दूनी रात चौगुनी मेहनत कर रहे हैं.
अविश्वास प्रस्ताव का मुद्दा उठाते हुए चंद्रबाबू एनडीए से अलग जा चुके हैं
चंद्रबाबू नायडू
पीएम मोदी को घेरने के चलते टीडीपी सुप्रीमो चंद्र बाबू नायडू ने एनडीए से अलग होने का फैसला किया है. अब टीडीपी, एनडीए का हिस्सा नहीं है. बताया जा रहा है कि टीडीपी ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न दिये जाने की वजह से लिया है. इतना ही नहीं, एनडीए से अलग होने के बाद मोदी सरकार के खिलाफ टीडीपी अविश्वास प्रस्ताव लाने की भी तैयारी कर चुकी है.
गौरतलब है कि चंद्रबाबू नायडू काफी समय से आंध्र प्रदेश के लिए मोदी सरकार से विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे थे. इस वजह से नायडू मोदी सरकार ने नाराज थे. आपको बताते चलें कि TDP की मांग थी कि आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जे के तहत केंद्रीय सहायता उपलब्ध करवाई जाए, जिसका वादा केंद्र सरकार द्वारा बहुत पहले किया गया था.
कई ऐसे मौके आए हैं जब केसीआर ने पीएम की आलोचना की है
केसीआर
केसीआर या के चंद्रशेखर राव का मोदी विरोध किसी से छुपा नहीं है. अभी कुछ दिन पहले की ही बात है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने एक जनसभा के दौरान प्रधानमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था और उन्हें भला बुरा कहा था. उस जनसभा में भाषण देते हुए केसीआर मोदी सरकार की नीतियों की खुले तौर पर आलोचना करते हुए भी नजर आए थे.
उस जनसभा में केसीआर ने कहा था कि.'यदि लोग नरेंद्र मोदी से गुस्सा हो गए तो राहुल गांधी या कोई और गांधी नया प्रधानमंत्री बन जाएगा. इससे क्या फर्क पड़ेगा. हमने पहले भी दशकों तक उनकी सरकार को देखा है. बीजेपी आती है तो दीनदयाल उपाध्याय या श्यामा प्रसाद मुखर्जी की चर्चा करती है. कांग्रेस की सत्ता हो तो वे राजीव गांधी और इंदिरा गांधी की चर्चा करते हैं. दोनों पार्टियां बड़बोलेपन की शिकार हैं. इसके अलावा अपनी जनसभा में केसीआर ने खुले तौर पर स्वीकार किया था कि पीएम मोदी को हटाने के लिए, तीसरा मोर्चा आज वक़्त की जरूरत है.
गोरखपुर-फूलपुर जीतने के बाद अखिलेश का मोदी बिरोध और जोरों पर है
अखिलेश यादव
बात मोदी विरोध की चल रही है तो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का नाम आना स्वाभाविक है. वैसे तो पीएम मोदी के खिलाफ अखिलेश ने बगावत का बिगुल बहुत पहले से बजा रखा था मगर जब हम गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव के बाद आए परिणामों को देखें तो मिलता है कि इसके लिए अखिलेश वाकई बेहद गंभीर हैं.
ये मोदी विरोध ही है जिसके चलते अखिलेश ने बसपा से करीब 25 साल बाद हाथ मिलाया और उन सीटों को जीता जिसपर भाजपा का बोलबाला था. जीत के बाद अखिलेश यादव ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में इस बात का इशारा साफ तौर से कर दिया है कि भाजपा विशेषकर पीएम को परस्त करने के लिए वो हर कीमत चुकाने को तैयार हैं.
चंडीगढ़ में मायावती ने एक बार फिर पीएमके खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका है
मायावती
खाली पड़ी गोरखपुर सीट पर सपा जीत चुकी है. सपा की इस जीत के लिए वहां मौजूद निषाद समुदाय की जम कर सराहना हो रही है. निषाद समुदाय किसका वोटर रहा है ये बात किसी से छुपी नहीं है. मायावती का अपना कार्यकाल खत्म होने से कुछ पहले सदन से इस्तीफ़ा देना फिर त्याग और बलिदान की मूर्ति बन जाना और अब अपने स्वामित्व वाली सीटों को सपा को दे देना. ये साफ जाहिर कर देता है कि ये और कुछ नहीं बस मायावती के दिल में छुपा मोदी विरोध है.
गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के बाद जिस तरह बीते दिनों मायावती ने चंडीगढ़ में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विषय में बयान दिया उसको देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि मायावती देश के सामने अपना खोया हुआ जनाधार तलाश रही हैं. मायावती इस बात को भली प्रकार जानती हैं कि अगर उन्हें अपने लोगों के बीच सियासत करनी है तो उन्हें ऐसे हथकंडे अपनाने होंगे जिससे उन्हें अपने लोगों और समर्थकों से सहानुभूति मिल सके.
अपने मंच से लगातार पीएम मोदी के खिलाफ आक्रामक होती मायावती को देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि 2019 का चुनाव न सिर्फ दिलचस्प होने वाला है बल्कि इसमें ऐसा गुणा गणित रचा जाएगा जो देश की राजनीति में न देखा गया है, न सुना गया है.
ममता बनर्जी को बस मोदी विरोध का मौका चाहिए
ममता बनर्जी
जब बात पीएम मोदी के सबसे बड़े आलोचकों में होती है तो उस लिस्ट में जो नाम सबसे पहले आएगा वो होगा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का. पीएम मोदी के लिए ममता की नफरत किसी से छुपी नहीं है. ममता उन नेताओं में हैं जो बेख़ौफ़ होकर अपने मंचों से पीएम और उनकी नीतियों का खुला विरोध करती हैं.
बात अगर पीएम मोदी के प्रति ममता के हालिया विरोध की हो तो अभी कुछ दिनों पूर्व जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने एक जनसभा के दौरान प्रधानमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था और तीसरे मोर्चे की बात की थी तब केसीआर के इस प्रस्ताव के बाद ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चंद्रशेखर राव का समर्थन करने का वादा किया था.
बात जब मोदी विरोध की हो तो सोनिया को नजरंदाज करना एक भारी भूल है
सोनिया गांधी
भले ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष का पद त्याग दिया हो मगर उन्होंने देश की सत्ता में कांग्रेस पार्टी की वापसी और राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाए जाने का सपना नहीं त्यागा है. पीएम मोदी के लिए सोनिया का विरोध किसी से छुपा नहीं है. ये शायद मोदी विरोध ही है जिसके चलते अभी हाल में ही सोनिया गांधी ने अपने घर पर डिनर का आयोजन किया और उन नेताओं को आमंत्रित किया जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने मोदी विरोध के लिए जाने जाते हैं.
सोनिया इस डिनर के जरिये एक सेक्युलर फ्रंट बनाना चाहती हैं. इसके अलावा इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के 17वें संस्करण में सोनिया ने बड़ी ही मजबूती के साथ इस बात का दावा दिया कि, बीजेपी को दोबारा सत्ता में कांग्रेस लौटने नहीं देगी.
सोनिया का मत था कि, आज भाजपा सरकार द्वारा चुनाव के लिए लोगों को बांटने की कोशिश की जा रही है, सोशल डीएनए में बदलाव करने का प्रयास किया जा रहा है, आरटीआई कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है, इतिहास दोबारा लिखने की कोशिश हो रही है. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में सोनिया को देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि यदि भाजपा कांग्रेस को हल्के में ले रही है तो अब वो समय आ गया है जब उसे सतर्क हो जाना चाहिए.
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