उपचुनाव को 'ड्रेस रिहर्सल' कहकर फंस गए हैं योगी जी
सपा प्रमुख अखिलेश यादव का मानना है कि उपचुनावों में भाजपा की हार में नोटबंदी और जीएसटी का भी योगदान है. इस चुनाव में योगी की प्रतिष्ठा ही दांव पर नहीं थी, बल्कि गोरखनाथ मंदिर की भी थी.
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गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों के लिए प्रचार करते समय यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके गुरु महंत अद्वैतनाथ ने सपने में भी नहीं सोचा कि अपने ही गढ़ में इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ेगा. उस पर भी ये झटका अपनी सरकार के एक साल के पूरे होने के जश्न के ठीक पांच दिन पहले लगेगा इसकी तो कल्पना भी नहीं की होगी.
गोरखपुर हार की आग में घी का काम किया प्रदेशक के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के चुनाव क्षेत्र फूलपुर में हार ने. योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य के इस्तीफे के बाद गोरखपुर और फूलपुर में उपचुनाव अवश्यंभावी हो गया था. दोनों ने राज्य विधानपरिषद की सदस्यता ग्रहण कर ली है.
#WATCH UP CM Yogi Adityanath says 'Yeh BSP-SP ka jo rajnitik saudebaazi, desh ke vikas ko baadhit karne ke liye bani hai, iske baare mein hum apni rann neeti tayaar karenge' #UPByPoll pic.twitter.com/DtyHvLeJqH
— ANI UP (@ANINewsUP) March 14, 2018
We accept the verdict of the people, this result is unexpected, we will review the shortcomings. I congratulate the winning candidates: UP CM Yogi Adityanath #UPByPoll pic.twitter.com/L3hCZmJs6O
— ANI UP (@ANINewsUP) March 14, 2018
Main Gorakhpur aur Phulpur ki janta ko dhanyawaad dena chahta hoon. Aur Mayawati ji ka bahot aabhaar prakat karna chahta hoon: Akhilesh Yadav, SP. #UPByPoll pic.twitter.com/3Aln7UrXq8
— ANI UP (@ANINewsUP) March 14, 2018
Behenji ka bhi bahot aashirwad tha. Ek hi vichaardhara ke sabhi parties ek huyin aur humaari jeet huyi. Jeet ka shrey Akhilesh ji, Behenji Mayawati ji aur Phulpur ki janta ko deta hoon: Nagendra Singh Patel, Samajwadi Party's winning candidate. pic.twitter.com/kqjqGSvmen
— ANI UP (@ANINewsUP) March 14, 2018
चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) के हुए गठबंधन ने भाजपा के लिए ये चुनाव मुश्किल कर दिया था. भगवा ब्रिगेड की उम्मीदों को धराशायी करने में बसपा प्रमुख मायावती ने मुख्य भूमिका निभाई. मायावती अपने दल को उपचुनावों से बाहर रखना पसंद करती हैं. लेकिन आठ दिनों के अंदर ही पार्टी ने एसपी उम्मीदवार को वोट देने का फैसला कर सबको चौंका दिया और भाजपा के हाथ से जीत छिनने की राह प्रशस्त कर दी.
हालांकि सपा-बसपा गठबंधन के अलावा भी कई और कारक थे, जिन्होंने भाजपा की हार में भूमिका निभाई. इसमें योगी सरकार का कामकाज और उससे भी ज्यादा सरकार द्वारा बार बार और लगातार किए जाने वाले 'विकास' के खोखले दावे मुख्य हैं. गौरतलब है कि गोरखपुर और फूलपुर को विकास के नाम पर बातों के अलावा कुछ खास नहीं मिला. इन दोनों ही क्षेत्रों में सरकार द्वारा लोगों के जनजीवन में बदलाव लाने के लिए जमीनी तौर पर कुछ खास नहीं किया गया. इस कारण पार्टी से लोगों का मोहभंग हो गया और यही कारण है कि वोटिंग के दौरान लोगों ने बूथ पर जाने के बजाए घर में रहना पसंद किया.
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख अखिलेश यादव का मानना है कि उपचुनावों में भाजपा की हार में नोटबंदी और जीएसटी का भी योगदान है. इस चुनाव में योगी की प्रतिष्ठा ही दांव पर नहीं थी, बल्कि गोरखनाथ मंदिर की भी थी. गोरखनाथ मंदिर के ही लाखों श्रद्धालुओं ने ही लगातार पांच बार योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से लोकसभा भेजा था. इसके पहले उनके गुरु महंत अद्वैतनाथ ने तीन बार इस सीट से चुनाव जीता था. 2014 में तो योगी आदित्यनाथ ने 3 लाख वोटों से जीतने का रिकॉर्ड भी बनाया था.
अपने ही घर में इतनी बुरी हार का सोचा नहीं होगा इन्होंने
खेल को पलटने में चिरप्रतिद्वंदियों बसपा-सपा के बीच का समझौता प्रमुख था, जिसके लिए खुद भाजपा भी तैयार नहीं थी. सपा, बसपा के बीच की खाई किसी से छुपी नहीं है. यहां तक की बसपा प्रमुख मायावती खुलेआम इस बात को स्वीकार करती थी कि किसी भी कीमत पर मुलायम सिंह से यादव से हाथ नहीं मिलाएंगी. ये मतभेद 1995 के राज्य गेस्टहाउस हमले के बाद से शुरु हुआ था, जब यूपी के तात्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने हमले के पीछे मायावती का हाथ बताया था.
हालांकि राजनीतिक जरुरतों ने वर्तमान के सपा प्रमुख अखिलेश यादव को दोनों पार्टियों के बीच की खाई को पाटने पर मजबूर कर दिया और उनकी मेहनत अंत समय में ही सही पूरी भी हुई. भाजपा इस कदम के बारे में सोच भी नहीं रही थी. लेकिन जब सपा-बसपा ने समझौते की घोषणा की उसके बाद भी भाजपा का रवैया ढीलाढाला ही रहा और ये लोग गठबंधन का मजाक बनाने में ही व्यस्त रहे.
हालांकि पिछले महीने दोनों सीटों पर उपचुनावों की घोषणा होने के बाद से ही फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा की जीत पर संशय बना हुआ था. लेकिन विपक्ष की तरह ही पार्टी से जुड़े अंदरूनी लोग भी कहीं न कहीं इस बात से सहमत थे कि गोरखपुर में पार्टी हार का स्वाद चखेगी. शायद ये आदित्यनाथ और केशव मौर्य के अति आत्मविश्वास और अंहकार का ही नतीजा था कि दोनों के ही उम्मीदवारों उपेंद्र दत्त शुक्ला (गोरखपुर) और कौशलेन्द्र नाथ पटे (फूलपुर) को हार का सामना करना पड़ा.
आखिरी समय के गठबंधन ने भाजपा की राह मश्किल कर दी
केशव मौर्य ने भाजपा के साथ अपनी पारी 2012 में शुरु की थी और 2014 के चुनावों में मोदी लहर से लोकसभा की नैया भी लगा गए. लेकिन इतने कम ही समय में वो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का विश्वास हासिल करने में कामयाब रहे जिसके ईनाम में पार्टी अध्यक्ष ने उन्हें यूपी का भाजपा अध्यक्ष बना दिया था. और जब 2017 के राज्य विधानसभा चुनावों में पार्टी को 403 सदस्यीय विधानसभा में 324 सीटों की बंपर जीत मिली, तो उन्होंने पार्टी की जीत का सेहरा अपने सिर बांधना शुरु कर दिया. उनका दावा था कि ये भारी जीत पिछड़ी जाति के वोटों के बड़े हिस्से को पार्टी के तरफ मोड़ने के उनके प्रयासों का परिणाम था. इतने के बाद उनका बड़े पद की मांग करना तो बनता ही था.
लंबी खींचतान के बाद प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बनने के लिए वो तैयार हुए. लेकिन अपनी स्थिति से वो समझौता नहीं कर सकते थे और मुख्यमंत्री के साथ उनके मनमुटाव की लगातार आ रही खबरें इसकी तस्दीक करती हैं. अब सपा-बसपा गठबंधन ने प्रदेश में जातिगत राजनीति को फिर से हवा दे दी है. 2014 में मोदी लहर ने इस हवा को दबा दिया था और लोगों ने जाति से ऊपर उठकर सिर्फ मोदी को ही वोट करना चुना था. ये तो तय है कि इस गठबंधन का जारी रहना भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. 2014 के चुनावों में दोनों ने यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 73 पर कब्जा जमाया था. (भाजपा- 71; अपना दल-2).
हालांकि कांग्रेस ने इस गठबंधन से बाहर रहना ही बेहतर समझा था. लेकिन राजनीतिक जरुरतों के कारण 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए 2015 के नीतीश-लालू के गठजोड़ की तर्ज पर अंतत: राहुल गांधी को भी एक बड़े "महागठबंधन" के लिए राजी होना ही पड़ेगा. ये योगी आदित्यनाथ का अति आत्मविश्वास ही था जिसके कारण वो इन उपचुनावों को बार बार 2019 के पहले के लोकसभा चुनाव का "ड्रेस रिहर्सल" की संज्ञा देते रहे. यही नहीं वो इस बात की घोषणा करने में भी व्यस्त थे कि इस चुनाव में उनके उम्मीदवार को उनसे भी ज्यादा मार्जिन से जीत हासिल होगी.
हालांकि, 2019 के चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक भविष्य को निर्धारित करेगा, इसे देखते हुए क्या योगी अब भी इसे "ड्रेस रिहर्सल" कहेंगे?
इसके अलावा, क्या भगवाधारी मुख्यमंत्री, पार्टी के स्टार प्रचारक बने रहेंगे? और उन्हें कर्नाटक, केरल और पूर्वोत्तर के लिए प्रचार करने के लिए भेजा जाता था अब सबसे बड़ा सवाल यही है.
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