हाथरस गैंगरेप केस में क्या एनकाउंटर वाली सख्ती दिखाएंगे योगी आदित्यनाथ?
हाथरस गैंग रेप (Hathras Gang-Rape) को लेकर देश निर्भया केस की तरह ही उबल रहा है. निर्भया के मामले में तो अपराधियों की ही करतूत हैवानियत भरी रही, हाथरस केस में तो पुलिसवालों (UP Police) ने भी सारी हदें पार कर डाली हैं - क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) पुलिसवालों पर भी एक्शन लेंगे?
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हाथरस गैंग रेप (Hathras Gang-Rape) के मामले को उत्तर प्रदेश पुलिस (UP Police) ने जिस तरीके से हैंडल किया है, लगता है यही उसका असली चेहरा और वो अब पूरी तरह सामने आ गया है. यूपी पुलिस के लिए बलात्कार पीड़ित का दर्द कोई अहमियत नहीं रखता. वो तो बस बलात्कारी को भी 'माननीय' कह कर बुलाती है जब तक उसका वश चलता है. उन्नाव गैंग रेप का मामला एक बार याद कर लीजिये.
हाथरस गैंग रेप के 9 दिन बाद यौन हमले का केस दर्ज होता है. थाने पहुंच कर पीड़िता बेहोश हो जाती है तो पुलिसवाले कहते हैं कि बहाने बना रही है - आखिर कोई इतना बेरहम कैसे हो सकता है? बलात्कार पीड़ित के पिता को घर में बंद कर दिया जाता है और पीड़ित के शव का अंतिम संस्कार जबरन कर दिया जाता है - ये सब देखने वाला कोई है भी या नहीं?
बेशक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) से बात की है और उसके बाद ही वो एक्टिव भी हुए हैं - एसआईटी बना दी है, फास्ट ट्रैक कोर्ट की बात भी कही है, लेकिन पुलिस वालों का जो बर्ताव पीड़ित परिवार के साथ हुआ है उस पर किसी को अफसोस भी क्यों नहीं है?
ये सब यूपी के अफसर और पुलिसकर्मी अपने मन से कर रहे हैं या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से एनकाउंटर की तरह ये सब भी छूट मिली हुई है - कोई बताएगा भी या नहीं? सवाल तो विकास दुबे एनकाउंटर पर भी उठे थे, इसलिए कम कि बगैर कोर्ट की ट्रायल के फटाफट न्याय का फॉर्मूला अपनाया गया, बल्कि इसलिए कि यूपी के तमाम नेताओं और अफसरों के चेहरे से कहीं विकास दुबे के बयान से नकाब न उतर जाये, इसलिए भी - लेकिन हाथरस गैंग रेप में यूपी पुलिस की जो हरकतें सामने आ रही हैं. ऐसा लगता है जैसे सारी हदें पार की जा चुकी हैं.
बलात्कार के मामलों में एनकाउंटर जैसी सख्ती क्यों नहीं दिखाते योगी आदित्यनाथ?
हाथरस गैंग रेप कि शिकार पीड़ित परिवार को ये भी नहीं मालूम कि गांव में रात के 2 बज कर 20 मिनट पर जो चिता जलायी गयी थी उसमें आग किसने लगायी? देश का संविधान और कानून एक अपराधी का भी शव परिवार वालों को देने को कहता है ताकि वे अंतिम संस्कार कर सकें. विकास दुबे एनकाउंटर में भी ऐसा किया गया था.
हाथरस गैंग रेप केस की पीड़ित के अंतिम संस्कार को लेकर स्थानीय पुलिस और प्रशासन का दावा है कि अंतिम संस्कार परिवार वालों की सहमति से किया गया है - लेकिन चिता में आग किसने लगायी ये लगता है न तो पुलिस वाले देख पाये और न ही वहां के प्रशासनिक अधिकारी - क्योंकि कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं है.
जब इंडिया टुडे की रिपोर्टर ने चिता से कुछ दूरी पर घेरा बनाकर खड़ी पुलिस के इंसपेक्टर से पूछा कि चल क्या रहा है? तो जवाब मिलता है - मुझे नहीं मालूम. पुलिस इंसपेक्टर कहता है कि उसकी ड्यूटी कानून व्यवस्था लागू करने के लिए लगायी गयी है. वो कहता है कि वो कुछ भी बोलने के लिए अधिकृत नहीं है. ये भी बताता है कि चिता तक किसी को भी पहुंचने से रोकने देने के लिए उसकी ड्यूटी लगायी गयी है.
पीड़ित परिवार कह रहा है कि उसे तो ये भी नहीं मालूम कि चिता में उसकी बच्ची का शव भी था या नहीं? किसी के पास भी इस सवाल का जवाब नहीं है कि घर वालों को शव क्यों नहीं दिखाया गया? अधिकारी ये तो बता रहे हैं कि जब शव लेकर गांव में एंबुलेंस पहुंची तो उसके आगे महिलाएं लेट गयी थीं. महिलाओं को जबरन हटा कर उसे घर से कुछ दूर ले जाया गया और वहां पर एक जलती हुई चिता की तस्वीर मिली है वो भी काफी दूर से जिसमें कुछ भी साफ देख पाना मुश्किल है.
बलात्कार पीड़ित की मां का कहना है कि वो बच्ची की शादी कर विदायी का सपना संजोये हुए थी. जब शव पहुंचा तो परिवार चाह रहा था कि रीति रिवाजों के तहत सुबह अंतिम संस्कार किया जाये. मां चाहती थी कि शादी न सही, कम से कम शव को ही हल्दी लगाकर आखिरी विदायी दे दे, लेकिन उसे ये मौका भी नहीं दिया गया - आखिर क्यों?
पुलिस को क्या लगा कि शव सौंप देंगे तो लोग बवाल करने लगेंगे. वो तो अब भी कर रहे हैं. लोग धरना दे रहे हैं. हाथरस के सफाईकर्मी हड़ताल पर चले गये हैं. हर तरफ हड़कंप मचा हुआ है.
अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यूपी पुलिस के लिए नयी गाइडलाइन जारी करना जरूरी हो गया है
अंतिम संस्कार से पहले भी कदम कदम पर यूपी पुलिस का रवैया घोर लापरवाही भरा और शक के दायरे में नजर आ रहा है. घटना 14 सितंबर की है. घटना खेत की है. पीड़ति लड़की को लेकर परिवार के लोग थाने पहुंचते हैं तो पुलिस जैसे तैसे भगाने की कोशिश करती है. वे पीड़िता की हालत दिखा कर कार्रवाई की मांग करते हैं तो पुलिसवाले कहते हैं कि इसे ले जाओ. लड़की जमीन पर पड़ी हुई होती है, तो पुलिस वाले कहते हैं बहाने बना रही है.
22 सितंबर को रेप का केस दर्ज होता है. चार आरोपी पकड़े भी जाते हैं. मालूम होता है कि लड़की की रीढ़ और गर्दन की हट्टी टूटी हुई है. जीभ कटी हुई है - आखिर ये सब तो तभी हो चुका होगा जब वो थाने पहुंची थी. अगर उसी वक्त पुलिस एंबुलेंस बुलाती. मेडिकल कराती और फिर तत्काल इलाज मिलता तो क्या बच्ची को बचाया नहीं जा सकता था?
लेकिन कहा क्या भी क्या जाये? पहले पुलिस वाले बलात्कार की शिकार लड़की को कहते हैं बहाने बना रही है. फिर फेक न्यूज बताकर पूरे मामले को भी झुठलाने की कोशिश की जाती है - ये चल क्या रहा है?
एक मीडिया रिपोर्ट में रिटायर्ड आईपीएस एनसी अस्थाना कहते हैं, 'पुलिस ने गिरफ्तारी कर ली थी, ठीक है, लेकिन लाश जबरन जला दिया, ये सरासर बदमाशी है... सफदरजंग में पोस्टमॉर्टम हुआ या उसमें भी धांधली करवा दी? परिवार का दूसरे पोस्टमॉर्टम की मांग करने का अधिकार भी छीन लिया?'
कहीं ऐसा तो नहीं कि यूपी पुलिस बलात्कार के आरोपियों को बचाने की कोई कोशिश कर रही है? रिटायर्ट पुलिस अफसर को भी इसी बात का शक है - 'संवेदनहीनता एक चीज है, केस को जानबूझ कर कमजोर करना अलग चीज!'
ज्यादा दिन नहीं हुए. खबर आयी थी कि बलात्कार और छेड़खानी करने वालों के पोस्टर चौराहों पर लगाये जाएंगे. यूपी सरकार का ये प्रस्तावित कदम लगा तो ऐसे ही जैसे CAA प्रदर्शनकारियों के नाम पदे लखनऊ में जगह जगह प्रदर्शित किये गये थे. मामला महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़ा रहा इसलिए और कुछ हो न हो, लगा जो भी हो जाये ठीक ही है. ऐसा लगा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कानून व्यवस्था के साथ साथ महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की भी फिक्र हो रही है और ये अच्छी बात है. वरना, कुलदीप सेंगर और स्वामी चिन्मयानंद को बलात्कार और यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद भी जिस तरह से पुलिस का रवैया देखने को मिला था, यकीन करना मुश्किल हो रहा था.
ताबड़तोड़ पुलिस एनकाउंटर के बाद यूपी के बड़े अपराधियों के घर और जहां तहां बनवायी गयी इमारतें जेसीबी से गिरायी जा रही है. ऐसा ही विकास दुबे के केस में हुआ था. तरीका भले ही न्यायसंगत न हो, लेकिन एक्शन किसी गरीब, बेकसूर या पीड़ित के खिलाफ तो नहीं हो रहा है.
जिस तरह कुख्यात अपराधियों के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस को खुली छूट दे रखी है. बलात्कार के मामलों में न तो कोई हैदराबाद पुलिस जैसे एनकाउंटर चाहेगा और न ही सड़क के रास्ते आरोपियों को लाये जाने के वक्त गाड़ियों के पलट जाने या हादसे के शिकार होने की ही अपेक्षा रखेगा - लेकिन कम से कम पीड़ित की शिकायत तो सुनी जानी चाहिये. घटना के बाद जरूरी हो तो एंबुलेंस और मेडिकल सुविधा का इंतजाम किया जाना चाहिये - और परिवार को अंतिम संस्कार से रोकने का क्या मतलब है?
क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हाथरस गैंप रेप केस में पुलिसवालों और अफसरों के खिलाफ लावरवाही को लेकर एक्शन लेंगे?
बेहयायी की हदें पार करने के उदाहरण और भी हैं. जब हाथरस में चिता जल रही थी, तब पुलिस के कई अधिकारी थोड़ी दूर खड़े होकर आपस में बातचीत कर रहे थे - और इस दौरान ठहाके भी लगाये जा रहे थे.
क्या वाकई यूपी पुलिस इतनी संवेदनहीन हो चुकी है? क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ये बातें संज्ञान में नहीं लेनी चाहिये? क्या अफसरों के ऐसे व्यवहार के लिए कोई एक्शन नहीं होना चाहिये?
राजनीति नहीं ठोस एक्शन जरूरी है
उत्तर प्रदेश के महिलाओं के खिलाफ अपराध के कई मामले सामने आये हैं. उन्नाव में ऐसे अपराधों के मामले तो कई दर्ज हुए हैं, लेकिन कम से कम दो मामले झकझोर देने वाले रहे हैं. एक केस में तो बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर को उम्रकैद की सजा भी हो चुकी है. उन्नाव के ही एक और मामले में पीड़ित को जला दिये जाने के बाद सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गयी थी. हाथरस की बलात्कार पीड़ित ने भी 29 मार्च की रात में दम तोड़ दिया था.
हाथरस की घटना को लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर हमलावर हैं. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी तो योगी आदित्यनाथ से इस्तीफा भी मांग चुकी है. योगी आदित्यनाथ ने अपनी तरफ से सख्त एक्शन का भरोसा दिलाया है. विशेष जांच टीम का गठन कर दिया है. रिपोर्ट मिलने के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस चलाने का भी भरोसा दिलाया है.
मुख्यमंत्री श्री @myogiadityanath जी द्वारा हाथरस की घटना पर जांच हेतु तीन सदस्यीय SIT गठित की गई है जिसमें अध्यक्ष सचिव गृह श्री भगवान स्वरूप एवं श्री चंद्रप्रकाश, पुलिस उपमहानिरीक्षक व श्रीमती पूनम, सेनानायक पीएसी आगरा सदस्य होंगे।
SIT अपनी रिपोर्ट 7 दिन में प्रस्तुत करेगी।
— CM Office, GoUP (@CMOfficeUP) September 30, 2020
हाथरस की घटना की पूरे देश में भर्त्सना हो रही है. सभी विपक्षी दलों के नेता योगी सरकार पर हमलावर हैं. बॉलीवुड हस्थियों ने भी घटना पर आक्रोश जताया है. जावेद अख्तर ने भी बड़े ही सख्त लहजे में रिएक्ट किया है.
हाथरस के घिनौने, दिल को दहला देने वाले सामूहिक बलात्कार की पीड़िता.. एक और निर्भया ने आज सुबह दम तोड़ दिया.. हमारी हैवानियत का कोई अंत नहीं है। हम एक बीमार अमानवीय समाज बन चुके हैं।। शर्मनाक. दुःखद???????????????? #JusticeForHathrasVictim
— Swara Bhasker (@ReallySwara) September 29, 2020
The UP police cremated the body of the rape victim of Hathras at 2.,30 in the night without the permission or even the presence of the family . It leaves us with a question . What makes them confident that they will get away with this audacity . Who has given them this assurance
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) September 30, 2020
The culprits of this brutality & horrific crime should be hanged in public. #Hathras https://t.co/KHCnLqtGOh
— Riteish Deshmukh (@Riteishd) September 29, 2020
उन्नाव की घटना को लेकर मायावती यूपी पुलिस को हैदराबाद पुलिस से सबक लेने की नसीहत दे रही थीं. हाथरस की घटना का शिकार दलित परिवार है. मायावती पुलिस के रवैये की कड़े शब्दों में निंदा कर रही हैं - सुप्रीम कोर्ट से मामले को संज्ञान में लेने की गुजारिश कर रही हैं.
2. अगर माननीय सुप्रीम कोर्ट इस संगीन प्रकरण का स्वयं ही संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई करे तो यह बेहतर होगा, वरना इस जघन्य मामले में यूपी सरकार व पुलिस के रवैये से ऐसा कतई नहीं लगता है कि गैंगरेप पीड़िता की मौत के बाद भी उसके परिवार को न्याय व दोषियों को कड़ी सजा मिल पाएगी। 2/2
— Mayawati (@Mayawati) September 30, 2020
क्या मायावती के ट्विटर पर बयान जारी कर देने भर से पीड़ित परिवार को इंसाफ मिल जाएगा. क्या मायावती के ट्विटर पर अपील कर लेने भर से सुप्रीम कोर्ट मामले पर संज्ञान ले लेगा. ये तो लगता है जैसे मायावती रस्म अदायगी कर रही हों.
अगर मायावती को इतनी ही फिक्र है तो सुप्रीम कोर्ट में किसी को भेज कर एक याचिका क्यों नहीं दायर कर देतीं. स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले में एक्शन तो तभी हुआ था जब सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने अदालत में अर्जी दाखिली की थी. उन्नाव केस में भी तो कुलदीप सेंगर की गिरफ्तारी तभी संभव हो पायी जब अदालत ने सख्ती दिखायी - वरना, पुलिस वाले तो विधायक को माननीय बताते हुए बेकसूर ही मान रहे थे.
अब तो ऐसे मामलों में अपराधियों के लिए फांसी की सजा भी कम लगती है - जब तक अपराधी के मन में उस तकलीफ का एहसास और डर न हो, ऐसे अपराध रोकना काफी मुश्किल लगने लगा है, जबकि दिल्ली के निर्भया गैंग रेप के बाद बलात्कार से जुड़े कानून को काफी सख्त किया गया है.
ये तो हुई अपराध की बात. वर्दीधारी पुलिस भी उसी छोर पर थोड़ा इधर उधर खड़ी नजर आ रही है जहां हाथरस के अपराधी खड़े हैं - और जरूरी हो जाता है कि सभी पुलिसवालों को भी उनके अपराध के हिसाब से मुकदमा चलाया जाये. किसी अफसर के लिए लापरवाही भी अपराध ही है - अगर लापरवाही के लिए किसी एसएचओ को लाइन हाजिर किया जाता है तो उस पर इस बात के लिए मुकदमा भी क्यों न चलाया जाना चाहिये - भले ही उसके लिए एक दिन जेल की सजा या एक रुपये जुर्माने की सजा क्यों न बनती हो - उसके कैरेक्टर सर्टिफिकेट में उसका अपराध तो जुड़ना ही चाहिये.
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