India-China Face Off: चीन के खिलाफ चंगेज खान वाली रणनीति जरूरी
गलवान घाटी (Galwan Valley) में चीन (China) के सैनिकों ने भारतीय जवानों को खूब नुकसान पहुंचाया है. जिस तरह गलवान में 20 भारतीय सैनिक (Indian Army) शहीद हुए अब वो वक़्त आ गया है जब भारत और भारतीय प्रधानमंत्री को चंगेज खान (Genghis Khan) से प्रेरणा लेनी चाहिए जिसने अपने वक़्त में चीन को धूल चटा दी थी.
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चीन (China) की अति का अंत अब जरूरी है. मगर कैसे? ठीक वैसे ही जैसे चंगेज खान (Genghis Khan) ने किया था. चीन के दी ग्रेट जिन वंश के आततायी और धोखेबाज रवैये से सालों से परेशान होकर एक दिन जब मंगोलों के एक सरदार ने तय किया कि चीनियों के रोज-रोज की गद्दारी और षड़यंत्र से मुक्ति का एक ही रास्ता है कि चीन को हमेशा- हमेशा के लिए अपने अधीन कर लो तो उसने ऐसा कर दिया. चंगेज खान ने इसके लिए अपने दिलो-दिमाग में चीनियों के खिलाफ जल रही ज्वाला को 25 सालों तक अपनी रणनिति के ठंडे छींटे दिए. आखिरकार 29 साल बाद चीन के दोनों महान सम्राज्य कहे जानेवाले जिन और शुंग वंश का अंत कर चीनियों को अपना गुलाम बना लिया. आगे हम आपको बताएंगे कि कैसे चंगेज खान की एक छोटी सी सेना ने दी ग्रेट वाल आफ चाइना को तोड़ते हुए जिन वंश की विशाल सेना को रौंदा और वहां पहुंची जहां आज का बीजिंग है.
अगर चीन को मात देनी है तो हमें चंगेज खान वाला रुख अपनाना पड़ेगा
मगर इससे पहले यह जानना जरूरी है कि चंगेज खान एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राज्य का मुखिया होते हुए लुटेरा क्यों और कैसे बना? दरअसल इसके पीछे चीनियों के षड़यंत्रकारी बर्ताव और धोखेबाजी का एक लंबा इतिहास था. इन चीनियों को सबक सिखाना ही चंगेज खान की जिंदगी का आखिरी ध्येय बन गया था. 9वीं, 10वीं सदी का वह दौर था जब चीन ने बड़ी मात्रा में चावल उपजाना शुरू किया था. अनाज के भारी भंडार की वजह से चीन की जनसंख्या में इतना विस्फोट हुआ कि आबादी इस दौरान तीन गुनी हो गई. उस वक्त चीन पर शुंग वंश का शासन था.
चीनी समुदाय में एक वर्ग था जो चीन की तीसरी और चौथी सदी के महान जिन वंश का गौरव फिर से स्थापित करने के लिए बेचैन था. इन लोगों ने 1115 में लियो वंश को भगाकर फिर से जिन वंश की स्थापना मंचूरिया में की जिसकी राजधानी अभी के बीजिंग को बनाया. चीनियों ने यहां से एक बार फिर से अपनी कुटिल इतिहास को दोहराना शुरू कर दिया और पड़ोस में अशांति फैलाना शुरु कर दिया.
तब मंगोल राजा काबुल खान जिन वंश का एक सामंत भर था मगर लोकतांत्रिक सुधारों की वजह से वह पूरे मंगोलों में भारी लोकप्रिय बन गया. सम्राज्यवादी चीनी सम्राज्य को यह रास नही आया और काबुल खान पर हमला बोल दिया. चीनी जीत नही पाए तो मंगोल और तातार वंश के तुर्क समुदाय में एक दूसरे के खिलाफ नफरत बोना शुरु कर दिया. मंगोलों से सामंत की पदबी लेकर तातार तुर्कों को दे दी.
इसके बाद काबुल खान के बेटे अंबाघाई के साथ चीनियों ने जो किया उसने चीन के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया. अंबाघाई अपने बेटे कादान को लेकर उसकी शादी के लिए जा रहा था तब चीनी जिनियों ने तातार कबाईलियों को आगे कर रास्ते में उसे और उसके बेटे को बंधक बना लिया. इन्हे ये झोंगडू यानी बीजिंग ले आए. जिनी राजा ने मंगोल सरदार को काठ के गदहे में कील से ठोंक दिया और फिर 1936 में तड़पा-तड़पा कर मार डाला.
मंगोलों ने तब अपना सरदार होतुल खान को चुना मगर फिर तातारों के साथ युद्ध में चीनी जिन सैनिकों ने धोखे के घात लगाकर 1161 में मार डाला. इसके बाद चंगेज खान के पिता येसुगेई मंगोलों के सरदार बने मगर बेरहम और मक्कार चीनियों को मंगोलों की खुशी रास नही आ रही थी. येसिगेई जब अपने बेटे तेमुजिन जो बड़ा होकर चंगेज खान बना उसे 9 साल की उम्र में शादी के लिए उसके ससुराल में छोड़कर लौट रहा था तो तातार तुर्कों ने दावत के नाम पर रात को खाने में जहर देकर येसिगेई को मार डाला और फिर मंगोल अपनी जिंदगी जंगलों में हीं भटक कर काटते रहे.
चंगेज खान की जिंदगी का अब एक हीं मकसद बच गया था. चीन पर कब्जा. वो हर रोज अपने परादादा अंबाघाई पर हुए जुल्मों का हिसाब लेने की कसमें खाता था. इसके लिए चंगेज खान ने सबसे पहले मंगोलों के अंदर एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की. इस वजह से सभी मंगोल ट्राइब एक साथ चंगेज खान के साथ आए. चंगेज ने इसके लिए चीन के लंबे समय से मंगोलों को बांटों और राज करो की नीति को खत्म किया.
1205 में इसने चीनी जिनों पर पहला हमला बोला था. मगर चंगेज खान जानता था कि विशाल चीनी सेना के सामने जीत के लिए उसे ताकत के साथ-साथ रणनीति की जरूरत होगी. चंगेज खान के पास एक लाख की घुड़सवार सेना थी जबकि चीनी जिन सम्राज्य के पास 25 लाख से ज्यादा बड़ी सेना थी. मंगोल एक पठार पर बसा हुआ था मगर चंगेज को जीत के लिए पहाड़ों के बीच से होकर गुजरना था. जिन सम्राज्य 300 किमी तक द ग्रेट वाल से सुरक्षित था जिसकी हिफाजत में 15 लाख चीनी सैनिक लगे थे.
चंगेज खान ने पहाड़ के दुर्गम इलाके में अपनी लड़ाई की कमजोरी को ताकत बनाया. चीन जिस फूट डालो साशन करो की नीति पर चल रहा था, चंगेज अब उसी रास्ते पर चलने लगा. इस बीच चीनी अपनी सैन्य बल की ताकत के मद में चूर थे. चंगेज खान इसके लिए सबसे पहले ओंगुद ट्राइब के ईसाई लोगों को अपने साथ मिलाया जिन्होने जिन सम्राज्य के अंदर घुसने के लिए सुरक्षित रास्ता देना तय किया.
1209 में चंगेज अपनी एक लाख सेना के साथ चीन के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ. तब जिन सेनापति ने शीमो मिगान नामके अपने सैनिक को चंगेज खान को समझाने के लिए भेजा. चतुर चंगेज खान ने शीमो मिगान को कब्जे में लेकर जिन सम्राज्य के तमाम सामरिक जानकारी ले ली. अब चंगेज खान को पता चल गया था कि येहूलिंग में 4 लाख चीनी सैनिक हैं. बुशा के किले पर 50,000 सैनिक हैं, द ग्रेट वाल के किनारे-किनारे सुरक्षा में 8 लाख पैदल सैनिक और 15 लाख समान्य सैनिक हैं.
द ग्रेट वाल आफ चाईना कहां -कहां से आपस में जुड़ी नही है इसकी भी पूरी जानकारी चंगेज ने इकट्ठा कर ली. इस बीच चंगेज खान ने हुण चीनियों और शुंग चीनियों को यह कहकर अपनी सेना में मिला लिया कि जीतने के बाद मौजूदा बीजिंग उन्हें सौंप देगा. अब 1209 में चंगेज खान मंगोलिया में महज 2000 बुढ़े-बच्चों को छोड़कर सभी लोगों के साथ चीन के जिन वंश पर निर्णायक हमला बोला.सबसे पहले बुशा के किले पर अपने घुड़सवार सैनिकों के साथ हमला बोला. चीन की सेना विशाल सेना थी मगर बिखरी हुई थी. चंगेज खान की जीत की सबसे बड़ी रणनीति थी उसने एक साथ जिन वंश की सीमा पर हर तरफ से हमला बोला.
ऐसा हमला बोला कि चीनी समझ नही पा रहे थे कि कहां पर ज्यादा सेना भेजने की जरूरत है. चंगेज खान ने पहाड़ों पर चीन की बड़ी घुड़सवार सेना से मुकाबले के लिए पैदल टुकड़ियां भेजी क्योंकि वह जानता था कि घोड़े पर पहाड़ों पर युद्ध नही लड़ सकते हैं. चीन की सबसे बड़ी असफलता यही रही. 1213 आते-आते चंगेज की सेना ने छपामार पैदल युद्ध में विशाल चीनी घुड़सवार सैनिकों को मौत के घाट उतार डाला. चंगेज अपनी घोड़ों को बचा रखा था.
चंगेज खान ने अपनी घुड़सवार सेना से द ग्रेट वाल आफ चाइना के सहारे मोर्चे पर तैनात 19 लाख सैनिकों पर हमवा बोला और उन्हें मौक के घाट उतार दिया. इस बीच उसका बेटा ओंगतआई खान झोंगडू यानी बीजिंग और बार्डर के बीच सेना लेकर खड़ा हो गया ताकि चीनी सैनिकों को बार्डर पर रसद नही पहुंचे. चंगेज खान जिन वंश के शासन का अंत कर उन्हें अपने शासन के अंदर एक सामंत नियुक्त कर दिया जो उसके परदादा काबुल खान जिन वंश के अंदर हुआ करते थे.
मगर चीनियों को खून में धोखा है. उन्होने झोंगडू से अपनी राजधानी काईफेंग ले जाने का फैसला किया और रास्ते में लौटते हुए घात लगाकर चंगेज खान को मारने का फैसला किया. चंगेज खान की गुप्तचर व्यवस्था उसकी सबसे बड़ी ताकत थी. चंगेज को चीनियों के प्लान के बारे में जानकारी मिल गई और वह वापस लौटकर 1227 में चीन के गोल्डन किंग माने जानेवाले जिन वंश को खत्म कर दिया. इसके बाद चंगेज खान के बेटे ने शूंगं वंश को भी खत्म कर दक्षिणी चीन पर कब्जा कर पूरे चीन पर अपना राज स्थापित कर लिया.
इतिहास गवाह है चीनी सेना तबतक हावी रहती है जबतक आप बचाव की मुद्रा में रहते हैं. चीनियों की बड़ी सेना को धूल में मिटाने का इतिहास हमारे पास है. इसलिए चीन की बड़ी सेना से घबराने की जरूरत नही है. पहाड़ों पर लड़ने की क्षमता हमारी सबसे बड़ी ताकत है. यहां माउंटेन वारफेयर में साजो समान नहीं इंसानी दिमाग काम करता है. हमें चीन के अंदर के असंतोष को अपनी ताकत बनाना होगा. तिब्बत और उईगिर लोग भारत की मदद के लिए पूरी तरह से तैयार मिलेंगे. मगर उसके लिए हमें जल्दी करने की जरूरत नही है. हमें चंगेज खान की तरह 25 साल तक की रणनीति पर काम करने की जरूरत है.
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