2015 रहा विरोध वर्ष: किसी को कुछ भी बर्दाश्त नहीं
शाहरुख खान और आमिर खान जैसे लोगों को असहिष्णुता पर दिए अपने बयान के लिए खूब आलोचना झेलनी पड़ी. लेकिन बाबा रामदेव को जेएनयू के कार्यक्रम के लिए निमंत्रण देने पर जो छात्र समूह बवाल मचा रहा है, क्या वो भी असहिष्णुता नहीं है.
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जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में एक कार्यक्रम के लिए बाबा रामदेव को निमंत्रण देने पर बवाल मच गया है. छात्रों के एक समूह ने आयोजकों से 'इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ वेदांता' में शामिल होने के लिए योग गुरू को दिया गया आमंत्रण वापस लेने के लिए कहा है. यह पहला मौका नहीं है जब इस तरह किसी का विरोध हो रहा है. पिछले साल बीजेपी के सत्ता में आने बाद याद कीजिए तो गजेंद्र चौहान से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ऐसे विरोध झेल चुके हैं.
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विरोध झेलने वालों की इस गिनती में शाहरुख खान और आमिर खान जैसे लोग भी हैं. जिन्होंने असहिष्णुता पर अपनी कोई बात रखी लेकिन उसे हद से ज्यादा प्रचारित किया गया. लेकिन जिस प्रकार जेएनयू में बाबा रामदेव को निमंत्रण देने पर एक खास विचारधारा का समूह विरोध कर रहा है, क्या वो भी असहिष्णुता नहीं है.
ये भी असहिष्णुता..
1. AMU में मोदी को निमंत्रण पर विरोध: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किए जाने की खबरों पर खूब बवाल मचा. प्रधानमंत्री ने निमंत्रण स्वीकार किया है या नहीं, इसकी पुष्टि अभी नहीं हो सकी है. लेकिन क्या देश का प्रधानमंत्री किसी शिक्षण संस्थान के कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकता. ये किस प्रकार की 'सहिष्णुता' है.
2. FTII विवाद: जब गजेंद्र चौहान की नियुक्ति की बात आई, तो भी ऐसा ही माहौल खड़ा किया गया. पुणे से लेकर दिल्ली तक में हलचल मची, और उसे बेवजह तूल देने की कोशिश हुई. गजेंद्र चौहान और लोगों के मुकाबले योग्य हैं या नहीं, बहस इस पर हो सकती थी. लेकिन इसे ऐसे प्रोजेक्ट किया गया कि सरकार इस संस्थान के भगवाकरण की तैयारी में जुटी है. जबकि पहले की कांग्रेस सरकारें भी अपने पसंद के हिसाब से FTII में डायेरेक्टर की नियुक्तियां करती आई हैं.
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3. हिंदी को महत्व देने पर विवाद: पिछले साल ही सरकार बनने के ठीक बाद गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक सर्कूलर भी चर्चा में रहा. इसमें सभी मंत्रालयों और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों और बैंकों से अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंदी को तवज्जो देने की बात कही गई थी. इस पर भी हंगामा पैदा किया गया. जबकि सरकार ने साफ भी किया कि ये केवल हिंदी भाषी राज्यों के लिए है.
4. प्रधानमंत्री को आमंत्रण लेकिन मुख्यमंत्री को नहीं: केरल के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्योता देने मुख्यमंत्री ओमन चांडी को नहीं बुलाए जाने पर भी खूब राजनीति हुई. चांडी ने ट्वीट कर अपनी नाराजगी जताई.
It is not a personal insult. #Kerala was insulted when its CM was denied the right to participate in an event where the PM is attending.
— Oommen Chandy (@Oommen_Chandy) December 14, 2015
The statue unveiling is not a #BJP function, it is the Ist public event of #PM in #Kerala, denying #CM from attending is protocol violation.
— Oommen Chandy (@Oommen_Chandy) December 14, 2015
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विपक्षी पार्टियों ने इसे सीधे-सीधे मुख्यमंत्री के अपमान से जोड़ा. बाद में सरकार ने इस मामले में ससंद में सफाई देते हुए बताया कि मुख्यमंत्री ने स्वयं समारोह में शामिल होने में असमर्थता जताई थी. इसका केंद्र सरकार से कोई लेना-देना नहीं है. अब सच्चाई जो हो, लेकिन यहां से भी यही संदेश गया कि किसी को कुछ भी बर्दाश्त नहीं.
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