क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाकर उनका कद छोटा तो नहीं किया गया !
अगर बात 2017 के विधानसभा चुनाव परिणाम की करें तो पश्चिमी यूपी क्या पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस को मात्र 7 सीटें ही मिली थीं ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए कांग्रेस को जीवनदान प्रदान करना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है.
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जब से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी यूपी का तथा प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव और प्रभारी बनाया गया है तब से न्यूज़ चैनलों में ये चर्चा का विषय बना हुआ है. अखबारों में भी सुर्खियां बन रही हैं. लेकिन फर्क केवल एक ही है. चर्चा केवल प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके जिम्मे दिए गए पूर्वी यूपी की है. ज्योतिरादित्य सिंधिया तो नेपथ्य में चले गए.
अब ये सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गए थे, उनका कद छोटा कर दिया गया है? आखिर उन्हें पश्चिमी यूपी का प्रभारी क्यों बनाया गया? पश्चिमी यूपी में कांग्रेस का कोई जनाधार नहीं बचा है. इस क्षेत्र में इमरान मसूद के अलावा कांग्रेस का कोई बड़ा नेता भी नहीं है. यहां की कुछ सीटें बीएसपी और आरएलडी का मजबूत गढ़ हैं जो समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस यहां के अधिकतर सीटों पर तीसरे और चौथे नंबर पर थी. हालत तो ये हुए थे कि मेरठ से सिने तारिका नगमा तक अपनी जमानत नहीं बचा पाई थीं. केवल सहारनपुर लोकसभा सीट ही ऐसी थी जहां कांग्रेस दुसरे स्थान पर थी. यहां इमरान मसूद को 34.14 प्रतिशत वोट मिले थे. वहीं भाजपा 39.59 प्रतिशत वोटों के साथ विजयी हुई थी. अगर बात 2017 के विधानसभा चुनाव परिणाम की करें तो पश्चिमी यूपी क्या पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस को मात्र 7 सीटें ही मिली थीं ऐसे में सिंधिया के लिए कांग्रेस को जीवनदान प्रदान करना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया
भाजपा का इस क्षेत्र में 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों में जबरदस्त प्रदर्शन रहा था. इन दोनों ही चुनावों में भाजपा ने क्लीन स्वीप की थी. ऐसे में मध्यप्रदेश के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा के इस प्रदर्शन को रोकने के भी उपाय सोचने होंगे.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए दूसरी सबसे बड़ी चुनौती जातीय समीकरण को साधने की होगी. पश्चिमी यूपी में दलित करीब 21 प्रतिशत, मुस्लिम 17 प्रतिशत और ब्राह्मण और ठाकुर करीब 28 प्रतिशत हैं. कभी कांग्रेस का वोट बैंक रहे- दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण दूसरे दलों की तरफ चले गए हैं जिन्हें अपने पाले में लाना सिंधिया के लिए आसान नहीं होगा. मसलन दलित बसपा के साथ तो ब्राह्मण भाजपा की तरफ तो मुस्लिम बसपा और सपा का रूख कर चुके हैं. इस क्षेत्र में जाटों की आबादी भी करीब 18 प्रतिशत है जो अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल को वोट करते हैं जो इस बार सपा-बसपा के साथ गठबंधन में शामिल हैं. चूंकि कांग्रेस इस क्षेत्र में अकेले दम पर चुनाव मैदान में है ऐसे में सिंधिया के लिए उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में कांग्रेस के लिए जान फूंकना काफी कठिन जान पड़ता है.
हालांकि कांग्रेस को शायद ज्योतिरादित्य सिंधिया पर यकीन है कि वो मध्यप्रदेश की तरह उत्तरप्रदेश में भी कुछ करिश्मा कर पाएंगे. वो साफ़ छवि वाले युवा नेता के साथ ही साथ अच्छी हिंदी भी बोलते हैं और उनका ग्वालियर क्षेत्र पश्चिमी यूपी की सीमा के साथ लगता है जिससे वो इस क्षेत्र से वाकिफ भी हैं. लेकिन इन सबके बावजूद इस महाराजा के लिए पश्चिमी यूपी में कांग्रेस के लिए कुछ करना किसी मुर्दे में जान फूंकने से कम नहीं होगा.
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