महुआ मोइत्रा की पॉलिटिकल एक्टिविज्म ममता से दूर और राहुल गांधी के करीब क्यों?
अदानी के मुद्दे पर कांग्रेस के स्टैंड से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की पार्टी ने साफ साफ दूरी बना ली है, लेकिन महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) अब भी आक्रामक बनी हुई हैं - आखिर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की कांग्रेस से टीएमसी सांसद की करीबी का राज क्या है?
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महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) को भारत जोड़ो यात्रा में तो नहीं देखा गया था, लेकिन राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को उनका भावनात्मक सपोर्ट जरूर रहा होगा. ये बात अलग है कि अखिलेश यादव की तरह कभी कहा तो नहीं. एक अन्य प्रसंग में कांग्रेस नेता को लेकर अखिलेश यादव का ताजा बयान है, 'राहुल गांधी जी कभी कभी तो ठीक कहते हैं.'
राहुल गांधी ने लोक सभा में अदानी के कारोबार का मुद्दा जोर शोर से उठाया है. राहुल गांधी के संसद के भाषण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जवाब भी आ चुका है. राहुल गांधी ने गौतम अदानी के कारोबार में 2014 के बाद जादुई उछाल पर सवाल खड़ा किया है. राहुल गांधी ने ये भी पूछा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश दौरों के बाद गौतम अदानी वहां क्यों गये - और उनको वहां काम के ठेके कैसे मिले? प्रधानमंत्री के जवाब के बाद राहुल गांधी का रिएक्शन रहा कि सवाल पर वो कुछ नहीं बोले.
शुरू में तो पूरा विपक्ष कांग्रेस के साथ मोदी सरकार को संसद में घेरने की रणनीति पर काम कर रहा था, लेकिन कांग्रेस की एक जिद के कारण कइयों ने रास्ते अलग कर लिये - और ऐसा करने वालों में जो पहली पार्टी सामने आयी है, वो है ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की पार्टी तृणमूल कांग्रेस. क्षेत्रीय दलों की विचारधारा को लेकर राहुल गांधी के अलग स्टैंड के बावजूद अदानी के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ 16 दलों के नेता नजर आये थे. संसद में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के चेंबर में हुई विपक्षी दलों की मीटिंग इस बात का सबूत है.
अब तो ये कोई छिपी हुई बात नहीं है कि अदानी के मुद्दे पर राहुल गांधी के विरोध के तरीके से ममता बनर्जी ने अपने को अलग कर लिया है. सीधे सीधे तो नहीं लेकिन एक ट्वीट में टीएमसी नेता डेरेक ओ'ब्रायन ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा से पहले ही अपना रुख जाहिर कर दिया था.
लेकिन ऐसी बातों का टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा पर कोई असर नहीं नजर आ रहा है. संसद में अदानी के मुद्दे पर महुआ मोइत्रा और ममता बनर्जी का रुख एक जैसा तो कतई नहीं लगता. अदानी के मुद्दे पर महुआ बनर्जी पहले की तरह ही डटी हुई हैं - और ये हाल तब भी है जब अदानी के मुद्दे पर ही कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, ममता बनर्जी पर खामोशी अख्तियार कर लेने के आरोप लगा रहे हैं. वो पश्चिम बंगाल में अदानी ग्रुप के निवेशों का हवाला देते हुए ममता बनर्जी को टारगेट कर रहे हैं.
ऊपर से महुआ मोइत्रा के मुंह से भी वैसी ही बातें सुनने को मिल रही हैं जैसी बातें राहुल गांधी करते रहे हैं. लोक सभा में महुआ मोइत्रा भी आरोप लगा रही थीं, 'अगर विपक्ष का कोई नेता सदन में बोलता है तो सत्ता पक्ष वाले लोग उसे बोलने नहीं देते... हम न चीन बोल सकते हैं, न बीबीसी, न मोरबी, न राफेल - यहां तक कि मोदी जी का भी नाम नहीं ले सकते.'
महुआ मोइत्रा ने केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी पर ये भी आरोप लगाया कि विपक्षी दलों के सांसदों को हमेशा सदन से वॉक आउट करने के लिए मजबूर किया जाता है. राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण शुरू होने से पहले ही केसीआर की पार्टी बीआरएस ने सदन का बहिष्कार किया था. हालांकि, राहुल गांधी भाषण शुरू होने के कुछ ही देर बाद पहुंच गये थे.
जिस तरह से अदानी के मुद्दे पर संसद में और बाहर महुआ मोइत्रा की सक्रियता नजर आ रही है, कहीं टीएमसी नेता राहुल गांधी के साथ 'मोहब्बत की दुकान' खोलने की तैयारी को नहीं कर रही हैं?
अदानी पर ममता बनर्जी का रुख अलग क्यों?
अदानी के मुद्दे पर संसद में अगर कोई आवाज गूंजती सुनायी दी है तो वो तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ही हैं. जिस तरीके से महुआ मोइत्रा संसद में मुद्दों को पेश करती हैं, और जिस तेवर के साथ भाषण देती हैं, उसमें एक खास अदा भी देखने को मिलती है. वो पूरा अटेंशन लेती हैं, और उसमें कहीं व्यवधान होता है तो आपे से बाहर भी हो जाती हैं.
महुआ मोइत्रा की राजनीति किधर जा रही है?
अदानी के मुद्दे पर अपना भाषण शुरू करने से पहले ही महुआ मोइत्रा ने साफ कर दिया था कि वो उनका नाम नहीं लेंगी. और फिर शुरू हो गयीं, 'मैं देश में फिलहाल सबसे मशहूर व्यक्ति की बात करूंगी... ये प्रधानमंत्री मोदी नहीं हैं... उस मशहूर व्यक्ति का नाम ए से शुरू होता है और आई पर खत्म होता है, लेकिन ये आडवाणी भी नहीं हैं... मैं अपने भाषण के दौरान उनको ए कहूंगी और उनके ग्रुप को ए-कंपनी.
फिर महुआ मोइत्रा बोलीं, 'हमें बेवकूफ बनाया जाता है... मैं अपने साथ ये टोपी लेकर आई हूं - क्योंकि, पूरे देश को इस व्यक्ति ने टोपी पहनाई है.'
और फिर ये सवाल भी पूछा कि अदानी ग्रुप के एफपीओ को जांच रिपोर्ट पूरी किये बिना मंजूरी क्यों दी गई?
बीजेपी का विरोध तो डेरेक ओ'ब्रायन भी कर रहे हैं, लेकिन उनका फोकस थोड़ा अलग लगता है, और हां, अदानी से तो कुछ अलग ही लगता है. टीएमसी सांसद ने इस बात पर भी आपत्ति जतायी है कि राज्य सभा में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के दौरान विपक्षी सदस्यों के विरोध के अधिकार पर सेंसर लगाने की कोशिश हुई है. डेरेक ने संसद टीवी को टैग करते हुए लिखा है, शर्म आनी चाहिये.
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी तो अब ममता बनर्जी और मोदी सरकार के बीच अदानी के मुद्दे पर मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन डेरेक ओ ब्रायन ने तो पहले ही धावा बोल दिया था. कहने को तो डेरेक ओ ब्रायन ने ट्विटर पर ये भी लिखा था कि बीजेपी डरी हुई है, लेकिन लगे हाथ एक राजनीतिक चाल भी चल दी थी. टीएमसी सांसद ने लिखा था, 'मोदी सरकार पर हमले का शानदार मौका है... जब दोनों सदन राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस करेंगे... कड़ी नजर रखें - अगर कोई विपक्षी दल व्यवधान डालता है, तो वो बीजेपी के साथ है... तृणमूल कांग्रेस व्यवधान नहीं चर्चा चाहती है.’
BJP scared. Trying to RUN AWAY FROM DEBATE in #Parliament Great chance to skewer Modi Govt from Mon Feb 6 when both Houses debate President’s Address Keep a close watch. If any Oppn party disrupts, they are in CAHOOTS WITH BJPWe @AITCofficial TMC want debate not disruption
— Derek O'Brien | ডেরেক ও'ব্রায়েন (@derekobrienmp) February 5, 2023
दरअसल, डेरेक ओ ब्रायन का ये ट्वीट कांग्रेस को लेकर था. ये मतभेद तभी उभर गया था जब अदानी के कारोबार की जांच की मांग को लेकर कांग्रेस और टीएमसी में सहमति नहीं बन पायी. टीएमसी ही नहीं, बल्कि लेफ्ट का भी मानना था कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग होनी चाहिये, जबकि कांग्रेस जेपीसी की मांग पर अड़ी रही.
डेरेक ओ ब्रायन के ट्वीट से ये भी साफ है कि कांग्रेस टीएमसी संसद में अदानी के मुद्दे पर बहस चाहती थी, जबकि कांग्रेस की मंशा हंगामे की रही - कांग्रेस की तरफ से अधीर रंजन चौधीर ही एक नेता हैं जो ममता बनर्जी पर कुछ भी बोलने के लिए तैयार रहते हैं.
कभी कभी तो लगता है जैसे अधीर रंजन चौधरी के ममता बनर्जी पर ज्यादातर बयान राहुल गांधी के मन की बात ही होती है. हां, कुछ बातें जरूर वो अपने मन से ही करते होंगे. संसद में उनके तमाम बयानों को देख कर तो ऐसा ही लगता है.
अब अधीर रंजन चौधरी का दावा है कि ममता बनर्जी ऐसा कुछ भी नहीं करेंगी जिससे अदानी ग्रुप के हितों को नुकसान पहुंचे. थोड़े आशंका भरे लहजे में अधीर रंजन चौधरी कहते हैं, हो सकता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी नजदीकियों के चलते ही ताजपुर बंदरगाह प्रोजेक्ट का ठेका अदानी ग्रुप के पास हो और इसीलिए ममता बनर्जी चुप हैं.
महुआ मोइत्रा की राजनीति किधर जा रही है
सिर्फ संसद ही नहीं, राजनीति में बवाल काटने की बात होगी तो महुआ मोइत्रा अपनी नेता ममता बनर्जी से एक कदम भी पीछे नजर नहीं आएंगी. अंतर की बात की जाये तो अभी ममता बनर्जी जैसा महुआ मोइत्रा का लंबा राजनीतिक करियर भी नहीं है. और हर कोई ममता बनर्जी हो भी तो नहीं सकता.
फिलहाल ममता बनर्जी संसद में बीजेपी सांसद को लेकर कहे गये अपने असंसदीय शब्द के लिए निशाने पर हैं. ये वाकया तब का है जब टीडीपी के एक सांसद बोल रहे थे. उनसे पहले जब महुआ मोइत्रा बोल रही थीं, तब भी बीजेपी के सांसद शोर मचा रहे थे - और बाद में महुआ मोइत्रा का वही गुस्सा फूट पड़ा.
स्पीकर के कहने पर संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने महुआ मोइत्रा से अपने बयान के लिए माफी मांगने की सलाह दी, लेकिन वो तैयार नहीं हैं. महुआ मोइत्रा का कहना है कि अगर ये मामला विशेषाधिकार समिति के पास गया तो वो अपना जवाब दाखिल करेंगी - लेकिन माफी मांगने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. महुआ मोइत्रा की दलील है कि वो सेब को सेब ही कहेंगी, संतरा तो कतई नहीं कहेंगी.
बहरहाल, समझने वाली बात ये है कि महुआ मोइत्रा पूरी तरह ममता बनर्जी से अलग स्टैंड लेकर आगे बढ़ती नजर आ रही हैं. ममता बनर्जी एक बार महुआ मोइत्रा को सार्वजनिक मंच पर डांट भी पिला चुकी हैं - और अपनी हदों को समझने और उसी में रहने की नसीहत भी दे चुकी हैं.
बीच में भी कुछ ऐसे वाकये देखे गये जिनसे लगा कि ममता बनर्जी को महुआ मोइत्रा का स्टैंड पसंद नहीं आ रहा है. कुछ दिनों से ये भी देखा जा रहा है कि ममता बनर्जी मोदी सरकार के प्रति सॉफ्ट स्टैंड लेकर चल रही हैं.
ममता बनर्जी के मुंह से एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो एक बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तारीफ भी सुनी जा चुकी है - और पश्चिम बंगाल के नये राज्यपाल सीवी आनंद बोस की तो ममता बनर्जी तारीफ करते नहीं थक रही हैं. और बदले में राज्यपाल आनंद बोस भी दिल खोल कर तारीफ कर रहे हैं, जो विपक्षी दलों को फूटी आंख नहीं सुहा रहा है.
कोलकाता में वंदे भारत एक्सप्रेस के उद्धाटन के मौके पर तो राज्यपाल और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के नाराज ममता बनर्जी को मनाने की भी खबरें आयी थीं. उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी कर रहे थे, और ममता बनर्जी जय श्रीराम के नारे लगाये जाने से चिढ़ गयी थीं.
और काफी दिनों से ममता बनर्जी को कांग्रेस से काफी दूर और बीजेपी के कुछ कुछ करीब होता भी समझा जा रहा है, ऐसे में महुआ मोइत्रा जो कुछ कर रही हैं वो ममता बनर्जी की शह पर हो रहा है, या उनकी हिदायतों की अनदेखी करके.
अगर महुआ मोइत्रा को ममता बनर्जी का सपोर्ट नहीं हासिल है, तब तो साफ है कि वो किसी नयी राजनीतिक राह की तलाश में हैं - खास बात ये है कि महुआ मोइत्रा ने जो राजनीतिक राह अपनायी है, वो राहुल गांधी को बहुत पसंद भी है.
देश की राजनीति में जो भी नेता सीधे सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करने की हिम्मत रखता है, राहुल गांधी उसे निडर नेता मानते हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं से कहा भी था कि जहां भी ऐसे नेता हैं उनको पार्टी में लाओ. और ऐसे जो भी नेता कांग्रेस में बने हुए हैं, चले जायें.
राहुल गांधी के लिए तो महुआ मोइत्रा में वरुण गांधी जैसी विचारधारा की कंडीशन भी नहीं दिखती. मतलब, वो बड़े आराम से कांग्रेस का रुख कर सकती हैं - और अगर ऐसा हुआ तो राहुल गांधी एक तरीके से सुष्मिता देव और लुईजिन्हो फैलेरियो जैसे नेताओं को कांग्रेस से झटक लेने का ममता बनर्जी से बदला भी ले सकते हैं.
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