Mayawati की सियासत उत्तर प्रदेश से निकलकर ट्विटर पर पहुंच गई है!
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति (Politics) में इन दिनों योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi ) छाए हुए हैं, मुख्य विपक्षी चेहरा सपा (SP) और बसपा (BSP) सुर्खियों से गायब हैं जिसका असर चुनाव में भी देखने को ज़रूर मिलेगा.
-
Total Shares
सियासत की दुनिया में बहनजी के नाम से जाने जानी वाली बसपा (BSP) सुप्रीमो मायावती (Mayawati ) की सियासत सबसे जुदा मानी जाती हैं. कभी भाजपा (BJP) तो कभी कांग्रेस (Congress) के खेमें से सियासी खेल खेलने वाली मायावती के दिन पिछले कई वर्षों से अंधियारे की ओर हैं. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मुख्य विपक्षी दलों में सपा (Samajwadi) और बसपा का नाम एक साथ ही आता है और यह दोनों एक लंबे अंतराल के बाद एक साथ आए थे 2019 के लोकसभा चुनाव में, लेकिन बुआ-बबुआ के इस खेल में पूरा फायदा बुआ को हासिल हुआ और 2014 में खाता तक न खोल पाने वाली बहनजी की पार्टी के हिस्से 10 सीटें चली गई. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मायावती और अखिलेश यादव के गठबंधन में अखिलेश (Akhilesh Yadav) का वोटबैंक तो मायावती के साथ रहा मगर मायावती का वोटबैंक बिखर कर भाजपा के खैमे में चला गया जिसका पूरा खामियाजा अखिलेश यादव को भुगतना पड़ा.
बसपा सुप्रीमो मायावती भी ऐसी राजनेता बन रही हैं जो धीरे धीरे ट्विटर पर खूब एक्टिव हो रही हैं
मायावती सियासत की वह खिलाड़ी हैं. जिनको समझ पाने में बड़े बड़े दिग्गज फेल साबित हुए हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट तेज़ थी जिसमें प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर मायावती का नाम भी खूब उछला था. 2014 के लोकसभा चुनाव में 0 सीट पर रहने वाली बसपा का प्रर्दशन उत्तर प्रदेश में हुए 2017 के विधानसभा चुनावों में भी निराश कर देने वाला ही रहा, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी पर चर्चा यह बतलाने के लिए काफी है कि बहनजी की सियासी ताकत में कोई भी कमी नहीं आयी है.
उत्तर प्रदेश में लगभग सभी पार्टियों की रैलियों में भीड़ जुटती है या तो जुटाई जाती है लेकिन मायावती की रैलियों का आलम यह है कि दलित आबादी की एक बड़ी संख्या दूर दूर तक सफर करके चिलचिलाती धूप में भी उनको सुनने को जाया करती है. दलित वोटबैंक पर पूरा कब्ज़ा जमाने वाली मायावती के हाथ से अब यह वोटबैंक खिसकता नज़र आता है लेकिन मायावती की सियासत इन दिनों किस मोड़ पर है यह कोई भी नहीं समझ पा रहा है.
उत्तर प्रदेश में ऐसे कई मौके आए जिनपर प्रदेश की भाजपा सरकार को जमकर घेरा जा सकता था. लेकिन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के अलावा बसपा सुप्रीमो समेत उनके कार्यकर्ता सड़कों से दूर ही रहे. बहुत होहल्ला हो जाने पर मायावती ट्वीटर पर एक ट्वीट के सहारे विरोध ज़रूर दर्ज करा देती हैं. मगर वह सामने आकर विरोध करने से बचती हुयी दिखाई देती हैं.
कुछ यूं दिखती है मायावती की ट्विटर प्रोफाइल
देश में कोरोना महामारी एक बहुत बड़े संकट के रूप में आया है जिसने लगभग सभी पार्टियों को जनता से जुड़ाव का एक अच्छा मौका मिला है. ऐसी कई तस्वीर भी सामने आई है जिसमें पार्टी विशेष या पार्टी के मुख्य नेताओं की तस्वीरों वाले झोले से ज़रूरतमंदों तक राशन पहुंचाया गया हो लेकिन मायावती का न ही कोई बयान सामने आया और न ही उनका कोई कार्यकर्ता ज़मीन पर दिखा.
उत्तर प्रदेश में विपक्ष का चेहरा यूं तो सपा, बसपा ही है लेकिन पूरी सुर्खियां प्रियंका गांधी ने बटोर रखी हैं. अपने 1000 बसों के सहारे प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की सियासत को नई हवा तो ज़रूर दी है. उनकी बस चली हो या न चली हो लेकिन वह अपने मकसद में कुछ हद तक कामयाब ज़रूर हो चली हैं. जिसको वह चुनाव के दौरान भुनाने की कोशिश तो ज़रूर करेंगी.
समाजवादी पार्टी भी इस लाकडाउन के दौरान राशन वितरण कर अपनी पैठ बना रही है लेकिन बसपा का कोई भी चेहरा सामने न आना उनकी राजनीति पर सवाल ज़रूर खड़े करता है. मायावती को ट्वीटर का नेता भी माना जा सकता है. वह कोई भी मुददा हो अपने ट्वीट के जरिए वह अपनी बात सबके सामने रख देती हैं.
लेकिन मायावती को समझना होगा देश की एक बहुत बड़ी आबादी ट्वीटर से कोसों दूर हैं. वह ट्वीट में राहुल गांधी पर वार करें या सत्ता के घेरने का कार्य करें देश और खासकर उत्तर प्रदेश की जनता को रिझाने के लिए सड़कों पर आऩा होगा और ज़मीनी कार्य दिखाना होगा वरना ट्वीटर की जंग का नुकसान उनके वोटबैंक पर पड़ना तय है.
ये भी पढ़ें -
Lockdown के कारण मायावती बीजेपी के साथ और अखिलेश यादव-कांग्रेस का गठबंधन!
Sonu Sood का बरकत अली को जवाब ही ईद का तोहफा है
Rahul Gandhi के गरीबी हटाओ कार्यक्रम का डायरेक्ट बेनिफिट भी पॉलिटिकल ही है
आपकी राय