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Updated: 06 अक्टूबर, 2017 10:12 PM
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मैदान भी मेरा, हथियार भी मेरा, पहला वार भी मेरा और विजय भी मेरी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने हिसाब से मुद्दे चुनते हैं. अपने हिसाब से समय का चुनाव करते हैं और अपने मुद्दों पर ही टिके रहते हैं. मंच चुनावी हो या सरकारी, मोदी भटकते नहीं. उन्हें दूसरे किसी मुद्दे की तरफ खींचा जाए, तब भी वे उस मुद्दे पर लौट आते हैं जहां वे होना चाहते हैं.

आक्रामकता और अप्रत्याशितता प्रधानमंत्री की खासियत है. वे विरोधियों को चौंका देते हैं. अपनी आक्रामकता से उन्हें पराजित कर देते हैं. विरोधी यदि उन पर वार करें तो भी पलटवार करते हुए आक्रामक हो जाने में मोदी को महारत हासिल है. वे घोर राजनीतिक प्रधानमंत्री हैं. उनकी इस खूबी के सभी कायल हैं. लेकिन पहली बार सरकार के माथे पर पसीना है. एक हफ्ते पहले तक जोर-शोर से जिस न्यू इंडिया का दावा किया जा रहा था, वह कपूर की तरह हवा हो चुका है.

आंकड़े प्रधानमंत्री के साथ हैं!

कड़क चाय की तरह कड़वी गोली देने वाले प्रधानमंत्री को सफाई देनी पड़ रही है कि सब ठीक-ठाक है. पीएम मोदी ने आंकड़े दिखाकर बताया है कि हालात उतने बुरे नहीं, जितने कि निराशावादी लोग बताने की कोशिश कर रहे हैं. सरकार नई सड़कें बना रही है. नई रेलवे लाइन बिछा रही है. कारें पहले से ज्यादा बिक रही हैं. ट्रैक्टर की बिक्री भी बढ़ी है. पहले से कहीं ज्यादा लोग हवाई जहाजों में सफर कर रहे हैं. निर्यात भी बढ़ रहा है. कीमतें काबू में हैं. सबसे बड़ी उपलब्धि ये कि सरकार का राजकोषीय घाटा नियंत्रण में है, जिससे शेयर बाजार के निवेशक बम-बम हैं.

नरेंद्र मोदी, भाजपा, नोटबंदी, जीएसटी   मोदी के बारे में मशहूर है कि एक बार फैसला लेने के बाद वो उसे बदलते नहीं

पीएम ने आंकड़े दिखाकर बताया है कि देश की जीडीपी विकास दर कोई पहली बार गिरी हो, ऐसा भी नहीं है. यूपीए की पिछली सरकार के दौरान विकास दर कम से कम 8 बार 5.7 फीसदी से नीचे आई थी और ऐतिहासिक रूप से देखें तो भारत की विकास दर 0.2 फीसदी के स्तर पर भी आ चुकी है. यानी अभी जो हो रहा है, वह अनोखा नहीं है और ऐसा होता रहा है. शायद आगे भी होगा. इतने आंकड़े गिनाने के बाद भी प्रधानमंत्री के लिए सब कुछ ठीक नहीं है.

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में पहली बार ऐसा हो रहा है कि मोदी अपनी मनपंसद जमीन पर नहीं लड़ रहे. अब जो लड़ाई लड़ी जा रही है उसका मैदान नरेंद्र मोदी ने नहीं, बल्कि उनके उन विरोधियों ने तय किया है, जिन्हें मोदी महाभारत के पात्र शल्य की उपाधि देकर खारिज कर रहे हैं. हालांकि मोदी प्रधानमंत्री ने अब भी यही कहा है कि ‘मैं वर्तमान की चिंता में भविष्य नहीं बिगड़ने दूंगा’, लेकिन पीएम को अब वर्तमान के बारे में भी सोचना पड़ रहा है. पहली बार सरकार जनता को राहत देने के उपायों पर चर्चा कर रही है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर 11 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई. तब सरकार की ओर से कहा गया था कि कमजोर अर्थव्यवस्था को टॉनिक देने के लिए यह उपाय जरूरी है. इसी तर्क के आधार पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती की मांग कई बार खारिज कर दी गई. अब पहली बार उसमें 2 रुपये की कटौती की गई है. राज्य सरकारों से भी कहा जा रहा है कि वे पेट्रोल-डीजल पर वैट कम करें, जिससे तेल के बढ़ते दाम से लोगों को राहत मिल सके.

नरेंद्र मोदी, भाजपा, नोटबंदी, जीएसटी इस समय की सबसे अच्छी बात ये है कि अब सरकार देश की जनता के हित के विषय में सोचने लग गयी है

जीएसटी काउंसिल मीटिंग में जीएसटी की लंबी और थकाऊ प्रक्रिया में ढील देने के उपाय सुझाए गए. छोटे कारोबारियों को राहत देने के लिए हर महीने रिटर्न भरने की जगह तीन महीने में एक बार रिटर्न भरने की छूट दी गई. दो लाख रुपये तक की खरीद पर पैन की अनिवार्यता खत्म कर दी गई. सर्राफा व्यापारियों को मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट से बाहर कर दिया गया. खास बात यह रही कि पहल खुद केंद्र सरकार की ओर से हुई. लब्बोलुआब यह कि सरकार ने माना कि जनता परेशान है और उसे कुछ राहत देने की जरूरत है.

संघ में भी चिंता है!

सरकार के समर्थक यह दावे कर रहे हैं कि यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जैसे इक्के-दुक्के लोग पद न मिलने की खुन्नस में अनर्गल बातें कर रहे हैं. अरुण शौरी के बारे में कहा जा रहा है कि वे वित्त मंत्री बनना चाहते थे, जबकि यशवंत सिन्हा ब्रिक्स बैंक के चेयरमैन न बनाए जाने से नाराज़ है. दोनों ही नेताओं ने इससे इंकार किया है. मगर अर्थव्यवस्था के हालात पर सिर्फ यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी मोदी विरोध में नहीं खड़े हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके साथी संगठन, जैसे किसान संघ और भारतीय मजदूर संघ भी सरकार से नाराज़ हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी, दोनों में एक समान प्रभाव रखने वाले अर्थशास्त्री एस. गुरुमूर्ति ने यशवंत सिन्हा से भी पहले सरकार को चेता दिया था। गुरुमूर्ति ने 23 सितंबर को चेन्नई में कहा था कि अर्थव्यवस्था की गेंद धरातल के पत्थर से टकराकर बस ऊपर उछलने ही वाली है.

गुरुमूर्ति के इस बयान में सरकार के लिए उम्मीद है, लेकिन यह चेतावनी भी है कि अर्थव्यवस्था की हालत पहले से पतली हुई है. अर्थव्यवस्था की गेंद धरातल के पत्थर से टकराकर उछले, यह सरकार की जिम्मेदारी है. अगर गेंद नहीं उछली तो भविष्य अंधकारमय है, देश के लिए भी और व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री के लिए भी.

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लेखक

वेंकटेश वेंकटेश @venkatesh.singh.33

लेखक टीवीटुडे नेटवर्क में सीनियर प्रोड्यूसर हैं

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