Modi को बनारस में 'मृत्यु' और पंजाब में 'जिंदा' बचने जैसी बातों की जरूरत क्यों है?
जब हेमामालिनी (Hema Malini) बता रही हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध (Ukraine Russia War) के बीच पूरी दुनिया भारत के प्रधानमंत्री की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रही है - ताज्जुब होता है जब नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) बनारस पहुंच कर जान की दुहाई देने लगते हैं.
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रूस और यूक्रेन युद्ध (Ukraine Russia War) की यूपी चुनाव में एंट्री अकेले हेमामालिनी (Hema Malini) ने नहीं दिलायी है. जो हाल है, यूपी चुनाव में राजनीतिक दलों के आईटी वॉर रूम ज्यादा अलग नहीं लगते. और ये तो शुरू से ही हर कोई मानता है कि बीजेपी के आईटी सेल और सोशल मीडिया टीम से बाकी किसी भी राजनीतिक दल का मुकाबला नहीं है.
पांच चरण की वोटिंग के बाद पूरा जोर पूर्वांचल पर है - और बीजेपी के लिए वाराणसी वॉर जोन का मुख्य केंद्र है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के गुलाब बाग में बने वॉर रूम से हर रोज कम से कम 6 अपडेट फायर किये जाते हैं - और महज एक क्लिक में काशी क्षेत्र के 16 जिलों के करीब 30 हजार बूथों तक ये सारी चीजें पहुंचा दी जाती हैं.
और बूथ लेवल पर पहुंचने बाद ये सब कार्यकर्ताओं और बीजेपी समर्थकों तक पहुंचाने की कोशिश होती है - और इस मिशन में सबसे ज्यादा कारगर 1.5 लाख से ज्यादा बनाये गये व्हाट्सऐप ग्रुप की भूमिका होती है. जहां देखते ही देखते कोई भी मैसेज, स्लोगन या विडियो क्लिप वायरल हो जाती है.
वाराणसी पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने बूथ विजय सम्मेलन में बीजेपी कार्यकर्ताओं को चुनाव जीतने का नुस्खा समझाया. 2019 के आम चुनाव में भी मोदी ने ऐसे ही बीजेपी कार्यकर्ताओं से अपील की थी कि वे बूथ जीतने पर फोकस करें, चुनाव तो हम यूं ही जीत लेंगे.
प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं से कहा कि 'हम चुनाव जीतते हैं लेकिन साथ ही लोगों का दिल भी जीतते हैं', और समझाया भी, 'हम सेवा करने के लिए ही राजनीति में आये हैं... ये एक-दो दिन का रिहर्सल नहीं... एक दो साल का कोर्स नहीं है... बल्कि सेवा एक महायज्ञ है जो जीवन की आखिरी सांस तक अनवरत चलते रहना चाहिये.'
पहले मतदान, फिर जलपान का ध्यान दिलाते हुए मोदी ने कहा कि उनके लिए हर घर तक पहुंचना तो संभव नहीं है, लेकिन कोई ऐसा दरवाजा नहीं बचना चाहिये जिसे बीजेपी के कार्यकर्ता की तरफ से खटखटाया न गया हो, 'आप लोग काशी के एक-एक घर जाकर मेरा प्रणाम पहुंचाइये... उन सबको कहिये कि मोदी जी तो नहीं आ पाये, लेकिन उनका प्रणाम पहुंचाने आया हूं.'
बूथ कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई करते करते प्रधानमंत्री ने एक ऐसी बात भी बोली जिसका कोई तात्कालिक तुक समझ में नहीं आया. बल्कि ऐसा लगा जैसे पंजाब दौरे में जान बची लाखों पाये वाले अंदाज में ही फिर से मोदी का नया बयान सुनने को मिल रहा हो. बातों बातों में ही प्रधानमंत्री मोदी ने याद दिलाया कि कैसे अखिलेश यादव ने वाराणसी दौरे के वक्त ही उनकी 'मृत्यु की कामना' कर डाली थी - और बोले कि अगर ऐसा हुआ भी तो वो अपना सौभाग्य समझेंगे.
पंजाब का मामला तो बिलकुल अलग रहा, लेकिन बनारस और आसपास के इलाकों में बीजेपी को लेकर किस बात का डर है कि प्रधानमंत्री मोदी को अपनी जान की दुहाई देने की जरूरत आ पड़ी है - बीजेपी को असली डर तो किसानों की नाराजगी के चलते पश्चिम यूपी में था, पूर्वांचल में तो बीजेपी के रणनीतिकार वैसे ही 'योगी-योगी' माहौल मानते हैं जैसे देश के अन्य हिस्सों में 'मोदी-मोदी' चलता है.
यूपी जीतने के लिए ब्रह्मास्त्र क्यों चलाना?
बलिया में बीजेपी सांसद हेमामालिनी चुनावी रैली में युद्ध का किस्सा सुना रही थीं. हेमामालिनी ने दावा किया कि रूस और यूक्रेन में जो युद्ध चल रहा है, उसमें भी हमारे प्रधानमंत्री बीच में जाकर युद्ध को रोकने की कोशिश कर रहे हैं - पूरे विश्व के नेता चाहते हैं कि मोदी जी आगे जाकर कहें कि इस युद्ध को रोको और खत्म करो... पूरा विश्व हमारे प्रधानमंत्री को सम्मान दे रहा है.
क्या बीजेपी के भीतर पूर्वांचल को लेकर 2017 जैसी ही आशंका है?
बलिया के ही बैरिया विधानसभा पहुंचे राजनाथ सिंह भी भी हेमामालिनी की ही बात को आगे बढ़ाते देखे गये. राजनाथ सिंह कहने लगे, 'आज हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो भूमिका निभा रहे हैं उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये वो कम है.
फिर राजनाथ सिंह समझाते हैं कि मोदी सरकार के आने के बाद कैसे भारत के प्रति लोगों का नजरिया बदला है, 'पहले भारत जब दुनिया के मंचों पर कुछ बोलता था तो दुनिया हमारी बातों को गंभीरतापूर्वक सुनती नहीं थी... भारत कमजोर है ये क्या कर लेगा... बोलने ही नहीं दिया... कोई हमारी बात सुनता ही नहीं था लेकिन आज भारत दुनिया के मंचों पर कुछ बोलता है तो लोग कान खोलकर सुनते हैं कि भारत बोल क्या रहा है.'
जिस मोदी को लेकर हेमामालिनी का दावा है कि दुनिया युद्ध रोकने के लिए उम्मीदों भरी नजर से देख रही है, जिस मोदी सरकार की बदौल राजनाथ सिंह समझाते हैं कि कैसे दुनिया की राय बदल चुकी है. हो सकता है राजनाथ सिंह यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलादिमिर जेलेंस्की के फोन करके प्रधानमंत्री मोदी से बात करने की तरफ इशारा कर रहे हों - क्या अब भी प्रधानमंत्री मोदी को अपनी जान का हवाला देकर सहानुभूति बटोरने की जरूरत लगती है.
अब तो यूपी में दिखाने के लिए बीजेपी के पास मुख्यमंत्री का एक कट्टर हिंदू चेहरा भी है, लेकिन पांच साल पहले तो ऐसा कुछ भी नहीं था. अकेले मोदी ने अपने दम पर यूपी में बीजेपी को बहुमत दिला कर सरकार बनवा दी थी.
अमित शाह तो इस बार भी योगी आदित्यनाथ को किनारे कर मोदी के नाम पर ही यूपी के लोगों से वोट मांग रहे हैं. पश्चिम यूपी में तो अमित शाह ने साफ साफ बोल दिया कि वे नेता, विधायक और मंत्री - यहां तक कि मुख्यमंत्री को भी भूल जायें और सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा देख कर बीजेपी को वोट दें.
2017 में भी जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को महसूस हुआ कि पूर्वांचल में टिकट बंटवारे को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं का असंतोष भारी पड़ सकता है, तो बीजेपी नेतृत्व को मोदी की ही मदद लेने की सलाह दी थी. तब तो श्यामदेव रॉय चौधरी दादा जैसों के टिकट भी काटे गये थे, लेकिन जब मोदी मोर्चे पर पहुंचे तो उनका हाथ पकड़ कर काशी विश्वनाथ मंदिर के भीतर खींच कर लेते गये - चौतरफा संदेश चला गया. श्यामदेव रॉय चौधरी को राज्यपाल तक बनाये जाने की चर्चा होने लगी और धीरे धीरे सब शांत हो गया.
मोदी ने बनारस में डेरा डाला और शहर में रोड शो भी किया - और सब कुछ सही हो गया. अब तो ऐसी कोई बात भी नहीं है. अब तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी गोरखपुर सदर से चुनाव मैदान में हैं और सिराथू से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी - यहां तक कि करहल में अखिलेश यादव को घेरने के लिए मोदी के मंत्री एसपी सिंह बघेल भी चुनाव मैदान में उतार दिये गये.
जब बीजेपी की तरफ से चौतरफा बल्ले बल्ले बंदोबस्त हो रखा हो तो डर किस बात की?
टारगेट करने के और भी तरीके हैं: पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के दो बयानों ने समाजवादी पार्टी की हवा निकाल कर रख दी थी. एक तो वो जिसमें अखिलेश यादव के चुनावी 'स्लोगन काम बोलता है' को प्रधानमंत्री मोदी ने 'कारनामा' समझा दिया था, 'अरे काम नहीं आपका कारनामा बोलता है.' - और दूसरा श्मशान और कब्रिस्तान की बहस में लोगों को उलझा देने में सफल रहे.
बूथ विजय सम्मेलन में मोदी ने बनारस में जिस 'मृत्यु की कामना' का जिक्र किया, दरअसल, वो अखिलेश यादव के ही पिछले साल के एक बयान को लेकर था. प्रधानमंत्री मोदी ने नाम तो नहीं लिया, लेकिन किस्सा ऐसे समझाया हर किसी को लगे की बात अखिलेश यादव की ही हो रही है.
प्रधानमंत्री मोदी बोले, 'भारत की राजनीति में कुछ लोग किस हद तक नीचे गिर गये हैं... मैं किसी की व्यक्तिगत आलोचना करना पसंद नहीं करता लेकिन जब सार्वजनिक रूप से काशी में मेरी मृत्यु की कामना की गई तो वाकई मुझे बहुत आनंद आया... उन लोगों ने तो मेरे मन की मुराद पूरी कर दी... मतलब, ये कि मेरी मृत्यु तक न काशी के लोग मुझे छोड़ेंगे और न ही काशी मुझे छोड़ेगी.'
जब प्रधानमंत्री मोदी ये सब बीजेपी के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं से कह रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे बठिंडा एयरपोर्ट पर पंजाब से अफसरों से उनकी कही हुई बातों की खबर आ रही हो. रैली के रास्ते से ही लौट कर एयरपोर्ट पर मोदी ने कहा था, 'मैं एयरपोर्ट जिंदा लौट पाया, अपने मुख्यमंत्री को थैंकयू कह देना.'
प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध की बात से तो किसी को भी इनकार नहीं रहा, कांग्रेस नेताओं को छोड़ कर, लेकिन वे अफसर कौन थे जिनके जरिये न्यूज एजेंसी एएनआई ने खबर दी, कभी सामने नहीं आये - और ये रहस्य बना रहा. बाद में एएनआई के साथ ही एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने ये कह कर कुछ और बताने से मना कर दिया कि मामला अदालत में है और वो उनकी बातों से उस पर असर पड़ सकता है.
बहाने से ही ही सही, मोदी ने बनारस की महत्ता पर भी अपनी ओर से प्रकाश डाला, 'मुझे विश्वास है कि काशी की सेवा करते करते अगर मेरे मृत्यु लिखी होगी तो इससे बड़ा जीवन का सौभाग्य क्या होगा... उन घोर परिवारवादियों को मालूम नहीं है कि ये जिंदा शहर बनारस है... ये बनारस मुक्ति के रास्ते खोलता है और बनारस विकास के जिस रास्ते पर चल पड़ा है वो देश के लिए गरीबी और अपराध से मुक्ति के रास्ते भी खोलेगा - यही मार्ग परिवारवाद में जकड़े भारत के लोकतंत्र को भी मुक्ति का रास्ता दिखाएगा.'
दिसंबर, 2021 में प्रधानमंत्री मोदी वाराणसी के तीन दिन के दौरे पर थे और उसी दौरान यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का बयान आया, 'बहुत अच्छी बात है... एक महीना नहीं, दो महीना, तीन महीना वहीं रहें... वो जगह रहने वाली है... आखिरी समय पर वहीं रहा जाता है... बनारस में.'
हाल ही में अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस में सजा पाने वाले आजमगढ़ के एक आतंकवादी के पिता के साथ अखिलेश यादव की तस्वीर आने पर बीजेपी नेताओं ने खूब शोर मचाया था. हालांकि, वो मामला देखा जाये तो लखीमपुर खीरी केस में फंसे बेटे की वजह से केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी से मिलता जुलता ही रहा, लेकिन अनुराग ठाकुर से लेकर योगी आदित्यनाथ तक अखिलेश यादव को लगातार कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते रहे.
वैसी बातों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भी अखिलेश यादव को निशाना बनाया, 'काशी में घाटों पर... मंदिरों पर बम विस्फोट होते थे... आतंकवादी बेखौफ थे... क्योंकि तब की समाजवादी सरकार उनके साथ थी... सरकार आतंकियों से खुलेआम मुकदमे वापस ले रही थी, लेकिन काशी कोतवाल बाबा कालभैरव के आगे इनकी चलने वाली थी क्या? त्रिशूल के आगे कोई माफिया, कोई आतंकी कभी टिक सकता है क्या? आज सब अपने ठिकाने पर है और कालजयी काशी देश को दिशा दिखा रही है.'
अब अगर मोदी की नजर में अंत भला है तो सबको भला ही मान लेना चाहिये - फिर यूपी का चुनाव जीतने के लिए 'मृत्यु की कामना' वाला ब्रह्मास्त्र चलाने की कोई जरूरत थी क्या?
अगले आम चुनाव में ये हथियार ज्यादा काम आएंगे
पंजाब में बीजेपी को जैसी शिकस्त झेलनी पड़ी है - और जिस हिसाब से ओडिशा से पंचायत चुनाव के नतीजों के रुझान बीजेपी की खस्ता हालत की तरफ इशारा कर रहे हैं, 2024 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी अगली पारी सुनिश्चित करने के लिए ऐसे बड़े हथियारों की ज्यादा जरूरत पड़ सकती है, इसलिए बचा कर रखना चाहिये.
फर्ज कीजिये यूपी सहित पांच राज्यों के चुनाव नतीजे बीजेपी के मनमाफिक नहीं रहे - और जिस हिसाब से राहुल गांधी अभी से गुजरात की चुनावी तैयारियों में जुट गये हैं, बीजेपी को 2017 के मुकाबले ज्यादा मेहनत करनी पड़ सकती है. गुजरात में मुख्यमंत्री बदल कर मोदी ने स्थिति की गंभीरता का संकेत पहले ही दे दिया है.
प्रधानमंत्री मोदी को भी नहीं भूलना चाहिये कि आखिरी वक्त में उनको ही मोर्चा संभालना पड़ा था. अमित शाह पूरी मोदी कैबिनेट के साथ अहमदाबाद से लेकर गुजरात के तमाम शहरों के गली मोहल्लों तक लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कोई उपाय काम नहीं आ रहा था.
तब राहुल गांधी के विदेश दौरे से लौटने से पहले ही उनकी सोशल मीडिया टीम ने जो 'विकास पागल हो गया है' कैंपेन चलाया कि बीजेपी को उपाय नहीं सूझ रहे थे - लेकिन मोदी ने जैसे ही पहुंच कर खुद को ही गुजरात और विकास बता दिया, कांग्रेस बैकफुट पर आ गयी. तब तो मोदी को पंजाब या बनारस जैसा खेल करने की भी जरूरत नहीं पड़ी थी.
महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक की गिरफ्तारी के बाद विपक्षी खेमे में जो मंथन चल रहा है, अगर विपक्ष और मजबूत हो गया तो आम चुनाव में ब्रह्मास्त्र की ज्यादा जरूरत पड़ेगी. प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी की मौजूदा ताकत की एक बड़ी वजह बिखरा विपक्ष है, फर्ज कीजिये शरद पवार को भी कोई रास्ता नहीं सूझा और वो सोनिया गांधी को राहुल गांधी का नाम वापस लेने के लिए मना लिये. फिर ममता बनर्जी या कोई एक ही नेता विपक्ष का नेतृत्व करने लगा तो कितनी मुश्किल हो सकती है, अंदाजा लगाना मुश्किल है - मोदी को चाहिये कि आगे भी बीजेपी के लिए सब कुछ 'मुमकिन है' माहौल कायम रखना है तो ब्रह्मास्त्र को बचा कर रखें.
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