राहुल गांधी ने सिद्धू को खामोश कर दिया या वो खुद दर्शानी घोड़ा बन गये?
नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) न तो कांग्रेस के कैंपेन में नजर आ रहे हैं, न मंच से भाषण देने को तैयार हैं. ऐसा ही हाल प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) की रैली में भी देखने को मिला - क्या राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने सिद्धू को खामोश कर दिया है?
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नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) का बिलकुल नया अवतार देखने को मिल रहा है. जो सिद्धू कांग्रेस आलाकमान को बात बात पर ललकारते रहे. 'ईंट से ईंट खड़का' देने जैसी धमकी सरेआम देते रहे वो तो लगता है जैसे 'दर्शानी घोड़ा' बन कर रह गये हैं.
संगरूर में कांग्रेस की रैली में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नवजोत सिद्धू के नये नवेले अंदाज को देख कर हर कोई हैरान रह गया - और ये तब की बात है जब मंच पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी मौजूद थीं. प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) संगरूर जिले के धुरी विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार दलबीर सिंह गोल्डी के समर्थन में रैली करने पहुंची थीं.
पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके सुनील जाखड़ के भाषण के बाद संचालन कर रहीं उम्मीदवार गोल्डी की पत्नी सिमरन खंगूड़ा ने सिद्धू का नाम लेकर डाएस पर आने का आग्रह किया, लेकिन सिद्धू मंच पर ही अपनी जगह उठ कर खड़े हुए और हाथ जोड़ कर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रियंका गांधी वाड्रा की तरफ इशारा किया - और इशारों में ही खुद बोलने से मना कर दिया.
सिद्धू के इशारों को शब्द देते हुए सिमरन ने लोगों को समझाया कि सिद्धू साहब कह रहे हैं कि वो तो आपके बीच के ही हैं, चन्नी साहब से बुलवाओ. फिर चन्नी भाषण देने लगे.
प्रियंका गांधी भी 11 मिनट तक बोलीं और उनके निशाने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह और अरविंद केजरीवाल रहे. प्रियंका ने गांधी परिवार की तरफ से आगे बढ़ कर पंजाब के लोगों से कनेक्ट होने की कोशिश की. बोलीं, 'मेरी शादी पंजाबी परिवार में हुई है... मुझे पंजाबियत की समझ है... मैं पंजाब के बारे में बात करना चाहती हूं... मैंने किसानों के विरोध में इसे देखा... कई लोगों की जानें गईं, लेकिन आपने कभी अपनी जमीन नहीं छोड़ी - ये पंजाबियत है.'
सिद्धू में ये अलग किस्म का बदलाव तभी से महसूस किया जा रहा है - जब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने लुधियाना रैली में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस का सीएम कैंडीडेट घोषित किया था.
ये सिद्धू को क्या हो गया है?
सिद्धू का ये नया रंग रूप ज्यादा पुराना नहीं है. बस हफ्ता भर हुआ होगा. 6 फरवरी को राहुल गांधी ने लुधियाना रैली में कांग्रेस का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया था - ठीक एक दिन पहले तक सिद्धू अपने नैसर्गिक तेवर में देखे गये थे.
सिद्धू की खामोशी किस तूफान का इशारा है: राहुल गांधी की रैली से ठीक एक दिन पहले ही सिद्धू ने अपनी तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर गाइडलाइन भी जारी कर दी थी. अपने हिसाब से हर तरह से आलाकमान को आगाह करने की कोशिश की - वरना, नतीजे भुगतने पड़ेंगे ये भी इशारा कर दिया है.
सिद्धू को कांग्रेस नेतृत्व ने खामोश कर दिया है या ये किसी नये तूफान का संकेत है?
भरी सभा में सिद्धू कह रहे थे, मुख्यमंत्री का चेहरा तो कोई ईमानदार और नैतिकता से भरा बंदा ही होना चाहिये. सिद्धू के मंच से ये सब बोलते ही भीड़ नारेबाजी करने लगती है - 'हमारा CM कैसा हो, नवजोत सिद्धू जैसा हो.'
अगले दिन राहुल गांधी पहुंचे और करीब दो घंटे तक चन्नी और सिद्धू को होटल में बारी बारी समझाते रहे. पहले से ही पहुंच गये थे, लेकिन रैली करीब डेढ़ घंटे बात शुरू हो सकी थी. रैली में राहुल गांधी ने पंजाब कांग्रेस के नेताओं को खुश रखने की काफी कोशिशें भी की. सबको हीरा बताया. सिद्धू के बारे तो बताया कि वो 40 साल से उनको जानते हैं, लेकिन वो बात सिद्धू को भी नहीं मालूम. ये बताने के लिए क्रिकेट का पुराना किस्सा भी सुनाया था.
चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किये जाने के बाद से ही नवजोत सिंह सिद्धू काफी बदले बदले से नजर आ रहे हैं - न तो कांग्रेस के कैंपेन में नजर आ रहे हैं, न मंच से भाषण देने को तैयार हैं - ऐसे तो वो कभी नहीं देखे गये थे.
जरा सोचिये - सिद्धू बोलना ही छोड़ दें तो कांग्रेस का क्या होगा?
सिद्धू के जिस क्रिकेट का फैन राहुल गांधी खुद को बता रहे हैं, वो तो कब का छोड़ चुके - अब तो सिद्धू को या तो बोलने की वजह से जाना जाता है या फिर हंसने के लिए. जब वो ठहाका लगाते हुए कहते हैं - ठोको ताली.
आखिर सिद्धू की चुप्पी का राज क्या है?
कुछ दिन पहले की ही बात है. सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर ने एक इंटरव्यू में राजनीति में आने को लेकर अफसोस जाहिर किया था. बता रही थीं कि राजनीति में आने से कितना घाटा हो गया.
राजनीति में कामयाबी को लेकर सिद्धू परिवार का नजरिया: नवजोत कौर ने बताया कि कैसे सिद्धू मुंबई में शो करके हर घंटे 25 लाख रुपये कमा लेते रहे - और वो भी अपने स्तर पर 5-10 लाख रुपये कमा लेती रहीं.
नवजोत कौर ने यहां तक कह डाला कि अगर राजनीति में कामयाबी नहीं मिलती तो वे अपने प्रोफेशन में लौट जाएंगे. अपने काम पर फोकस करेंगे और दुनिया घूमेंगे. इंटरव्यू के बाद नवजोत कौर सोशल मीडिया पर ट्रोल होने लगी थीं. दरअसल, लोग राजनीति में कामयाबी की उनकी परिभाषा से हैरान थे.
नवजोत कौर की बातें सुनने के बाद लोगों का सवाल भी यही था कि क्या राजनीति में मुख्यमंत्री बनना ही कामयाबी का पैमाना होता है?
ये इंटरव्यू चन्नी को सीएम कैंडीडेट घोषित किये जाने से पहले हुआ था - क्या सिद्धू परिवार को पंजाब को लेकर गांधी परिवार के रुख का एहसास पहले से ही हो गया था?
सिद्धू की बेटी भी चन्नी पर फायर हो गयीं: राबिया सिद्धू ने फैशन डिजाइनर की पढ़ाई की है और वो सिद्धू की छोटी बेटी हैं. इन दिनों वो सिद्धू के विधानसभा क्षेत्र अमृतसर ईस्ट में चुनाव प्रचार कर रही हैं - और बताती हैं कि अपने पिता की जीत को लेकर उन्होंने एक प्रण भी कर रखा है.
राबिया सिद्धू का कहना है कि जब तक उनके पापा यानी सिद्धू जीत नहीं जाते तब तक वो शादी नहीं करेंगी. अगर राबिया सिद्धू के प्रण का वास्ता मौजूदा चुनाव से है तो नतीजे आने में महीने भर से कम का भी वक्त बचा है.
हालांकि, सिद्धू को अकाली दल के बिक्रम सिंह मजीठिया से कड़ी टक्कर मिल रही है. वैसे ये मुसीबत भी सिद्धू की खुद की मोल ली हुई है. ये सिद्धू ही हैं जिन्होंने मजीठिया को अमृतसर से चुनाव लड़ने के लिए ललकारा था - और उन्होंने चुनौती स्वीकार कर ली और अपनी पारंपरिक सीट मजीठा छोड़ दी. मजीठा सीट से बिक्रम मजीठिया की पत्नी गुनीव कौर अकाली दल के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं.
कहीं राबिया सिद्धू के मन में भी कहीं अपनी मां की तरह ही कोई आशंका तो नहीं है - और जीत को लेकर भी कोई और मानदंड? वैसे सुनने में तो यहां तक आ रहा है कि मजीठिया को परदे के पीछे से दूसरे राजनीतिक दलों का भी सपोर्ट मिल रहा है, ताकि सिद्धू को हराया जा सके.
राबिया सिद्धू के पिता की जीत से आशय कहीं उनके मुख्यमंत्री बनने से तो नहीं है?
रैली में चन्नी को सीएम कैंडीडेट घोषित करने से पहले राहुल गांधी ने कहा था, 'हमें गरीब घर का मुख्यमंत्री चाहिये... हमें वो व्यक्ति चाहिये जो गरीबी को समझे... भूख को समझे... जो गरीब व्यक्तियों के दिल की घबराहट को समझे - क्योंकि पंजाब को उस व्यक्ति की जरूरत है...'
सिद्धू की बेटी चुनाव प्रचार के दौरान सवाल खड़े कर रही हैं - चन्नी कहां गरीब हैं? और फिर गुस्से में कहती हैं, 'उनका बैंक अकाउंट खोलकर देख लो... 133 करोड़ मिल जाएंगे... मैं कुछ बोलने वाली नहीं होती - लेकिन कोई करोड़पति गरीब नहीं होता.'
राबिया सिद्धू कांग्रेस आलाकमान को भी बख्शने को तैयार नहीं लगतीं. चन्नी के चयन पर कहती हैं, 'हाई कमान तो हाई कमान है... उन्होंने जो किया... उनकी कुछ मजबूरियां रही होंगी... लेकिन ठीक है कोई ईमानदार बंदे को काफी देर तक रोक नहीं सकता - और जो बेईमान होता है उसे रुकना ही होता है.'
सिद्धू की बेटी का गुस्सा रुकने का नाम नहीं लेता, यहां तक बोल जाती हैं कि चन्नी तो उनके पिता के पास खड़े होने के लायक भी नहीं हैं.
कहीं सिद्धू की चुप्पी का राज बेटी के ऐसे बयान और पत्ती के इंटरव्यू की बातें तो नहीं हैं?
ये बातें ऐसी तो हैं ही कि हाईकमान को दखल देनी पड़े - और सिद्धू के लिए भी गाइडलाइन जारी करने को बाध्य हो जाये. ये प्रियंका गांधी ही हैं जिन्होंने सिद्धू से मुलाकात की और फिर राहुल गांधी और सोनिया गांधी तक उनके पक्ष में पैरवी की थी - क्या यही सब सोच कर सिद्धू ने प्रियंका गांधी की रैली में भाषण न देने का फैसला किया होगा.
क्या फिर से सिमट कर रह जाएंगे?
चन्नी के नाम के ऐलान से पहले सिद्धू पंजाब के 54 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार कर चुके थे. अंदाज भी ऐसा कि मंच से ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मंत्री पद और विधानसभा का टिकट बांटते नजर आते थे - लेकिन पहली बार देखा जा रहा है कि अपने इलाके अमृतसर ईस्ट के दायरे में बंध कर रह गये हैं - और डोर-टू-डोर प्रचार कर रहे हैं.
सिद्धू अब चुनाव प्रचार के लिए न तो अपने विधानसभा क्षेत्र की सीमा लांघ रहे हैं, न कहीं पंजाब मॉडल का ही नाम ले रहे हैं. नयी दलील ये है कि पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा ही चुनाव कैंपेन की अगुवाई करता है. जैसे पिछली बार कैप्टन अमरिंदर सिंह थे, इस बार ये चन्नी की जिम्मेदारी बनती है. ये जरूर कहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते जो जिम्मेदारी है वो जरूर पूरी करेंगे और जब तक पार्टी नहीं कहेगी, दूसरे इलाकों में प्रचार के लिए भी नहीं जाएंगे.
सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर के एक बयान से तस्वीर कुछ हद तक साफ लगती है - मुख्यमंत्री पद के चेहरे के ऐलान के बाद अगर चन्नी कुछ कहें और सिद्धू कुछ और कहें तो विवाद हो जाएगा. ऐसे में मुख्यमंत्री उम्मीदवार को भी अपने एजेंडे पर चुनाव प्रचार करना चाहिये. सबके लिए ठीक रहेगा.
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