Modi economic package किसके पास पहुंचेगा? असली सवाल यही है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने लॉकडाउन के दौरान हुए नुकसान के लिए 20 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज (Economic Package) दिया है जिसमें से करीब एक तिहाई पहले ही मिल चुका है - फिर भी गरीब मजदूर (Migrant Workers) दर दर भटक रहे हैं.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में फिर से जोर देकर कहा कि आर्थिक पैकेज (Economic Package) सभी के लिए है - और पूरा पहुंचेगा. ये नहीं दोहराया कि पहले पूरा नहीं पहुंच पाता था. हाल ही में सरपंचों से बातचीत में मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का बयान याद दिलाते हुए कांग्रेस पर तंज कसा था कि पहले लोगों तक दिल्ली से भेजी गयी रकम का दसवां हिस्सा ही पहुंच पाता था - अब ऐसा नहीं होता.
लेकिन मुद्दा ये नहीं है कि 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज लोगों तक पहुंचेगा या नहीं, बल्कि असल मसला ये है कि ये किस तबके तक पहुंचेगा? किसे इस पैकेज का फायदा मिलेगा? सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या इस पैकेज का लाभ उस गरीब मजदूर (Migrant Workers) तक भी पहुंच पाएगा जो कोरोना वायरस के लिए लगे लॉकडाउन की अवधि में सबसे ज्यादा बेहाल और परेशान है?
सड़क पर भटक रहे लोगों के लिए भी कुछ है क्या?
वित्त मंत्रालय के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल का कहना है कि समाज के हर वर्ग को आर्थिक पैकेज का लाभ मिलेगा. सवाल भी तो यही है कि हर वर्ग में कौन कौन आता है? बात शाब्दिक अर्थ की नहीं है, व्यावहारिक और व्यवस्थागत है. महात्मा गांधी लाइन में खड़े आखिरी व्यक्ति की तरफ ध्यान दिलाते थे. अगर आखिरी व्यक्ति तक फायदा पहुंच रहा है तभी माना जा सकता है कि आर्थिक पैकेज का लाभार्थी वो गरीब, दिहाड़ी मजदूर भी हो सकता है जिसे अपने देश के ही एक हिस्से से दूसरे हिस्से में प्रवासी नाम दे दिया जाता है.
संजीव सान्याल कहते हैं कि ये कोई छोटा पैकेज नहीं है, 20 लाख करोड़ रुपये है. बिलकुल सही बात है. और फिलहाल सवाल ये भी नहीं है कि इस रकम में 2 के बाद कितने जीरो लगते हैं?
प्रधान आर्थिक सलाहकार सान्याल की यही समझाने की कोशिश है कि इसमें समाज के हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ होगा. हर स्तर के लिए कुछ न कुछ होगा - और बड़ी बात, बताते हैं, उद्योग सेक्टर की जो मांग थी ये उससे कहीं अधिक है.
औद्योगिक क्षेत्र के लिए आर्थिक मदद के तौर पर FICCI ने सरकार से 9-10 लाख करोड़ का पैकेज मांगा था जो जीडीपी का 4-5 फीसदी हो. फिक्की अध्यक्ष संगीता रेड्डी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिख कर कहा था कि अगर उद्योगों की मदद नहीं की गयी तो बड़ी तादाद में नौकरियां जाएंगी और आखिरकार उसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. फिक्की की ही तरह CII यानी कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री ने भी आर्थिक पैकेज की मांग की थी, लेकिन उससे करीब डेढ़ गुना ज्यादा - जो जीडीपी का 7.5 फीसदी हो. CII की डिमांड रही कि उद्योगों के लिए कम से कम 15 लाख करोड़ का पैकेज दिया जाये.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज साल 2020 में देश की विकास यात्रा को 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' को नई गति देगा - और भारतीय उद्योग जगत को नई ताकत देगा.
प्रधानमंत्री मोदी ने ध्यान भी दिलाया कि ये पैकेज देश की जीडीपी का 10 फीसदी है. यानी उद्योग जगत ने तो महज 4 फीसदी से 7.5 फीसदी तक की ही डिमांड की थी ये उससे कहीं बहुत ज्यादा है. कोलंबिया यूनिवर्सिटी की तरफ से एक लिस्ट बनायी गयी है जिसमें तमाम देशों के पैकेज के बारे में बताया गया है कि वो उनके जीडीपी का कितना है. इस सूची की खासियत ये है कि दुनिया के 10 मुल्कों की सूची में पहले स्थान पर जापान और आखिरी पर चीन है - भारत ठीक बीच में यानी पांचवे स्थान पर.
जो मांगा वो दे डाला अब क्या चाहिये?
जापान ने सबसे ज्यादा जीडीपी का 21.1 फीसदी आर्थिक पैकेज दिला है और उसके बाद दूसरे नंबर पर 13 फीसदी के साथ अमेरिका ने जगह बनायी है. 12 फीसदी के साथ तीसरे नंबर पर स्वीडन और 10.7 फीसदी के साथ चौथे नंबर पर जर्मनी है.
भारत 10 फीसदी के साथ पांचवे स्थान पर है. 9.3 फीसदी के साथ फ्रांस छठे, 7.3 के साथ स्पेन सातवें, 5.7 के साथ इटली आठवें, 5 फीसदी के साथ ब्रिटेन नौवें और मात्र 3.8 फीसदी के साथ चीन दसवें स्थान पर आ रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी ने साफ किया है कि इस आर्थिक पैकेज से कुटीर उद्योग, लघु और मझोले उद्योग, श्रमिक, किसान और मध्यम वर्ग को भी फायदा मिलेगा. ये भी साफ किया कि ये आर्थिक पैकेज उन लोगों के लिए है जो कोरोना के चक्र में बुरी तरह फंस गये हैं और ये भी कि ये अब से 20 लाख करोड़ नहीं है क्योंकि करीब एक तिहाई से कुछ कम का पैकेज तो पहले ही दिया जा चुका है.
अब तक कोई असर तो दिखा नहीं
अब ये समझने की जरूरत है कि कितना मिल चुका है - और कितना मिलने वाला है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी बता चुके हैं कि 20 लाख करोड़ अलग से नहीं है, बल्कि पहले दिये गये पैकेज को मिला कर है. याद रहे इसलिए प्रधानमंत्री ने दोहराया भी कि 2020 में 20 लाख करोड़ रुपये. ऐसे समझाने का फायदा ये होता है कि लोग लंबे समय तक याद रख पाते हैं. लंबे समय से आशय राजनीति के हिसाब से अगला चुनाव भी हो सकता है.
25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के बाद से अब तक केंद्र सरकार और रिजर्व की तरफ से करीब 6.44 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया जा चुका है. अगर ये रकम प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक पैकेज 20 लाख करोड़ रुपये में से घटा दें तो बचते हैं - मजह 13.56 लाख करोड़ रुपये. ध्यान रहे ये भी कोई एक साथ नहीं बल्कि धीरे धीरे टुकड़ों में दिया जाएगा. समस्या ये नहीं है कि आर्थिक पैकेज एक साथ दिया जा रहा है या थोड़ा-थोड़ा करके. अगर जरूरत के हिसाब से ऐसा होता है तो कोई दिक्कत वाली बात नहीं है. दिक्कत ये भी नहीं है कि उद्योगों ने जो मांगा था उससे भी ज्यादा दे दिया गया है - समस्या सिर्फ ये है कि लाइन के आखिरी छोर पर खड़े गरीब को इससे कोई फायदा मिलता है भी या नहीं?
देखा जाये तो आर्थिक पैकेज का करीब एक तिहाई हिस्सा पहले ही मिल चुका है. जब जब ऐसी घोषणाएं होती हैं बातें एक जैसी ही होती हैं और फायदा गरीब तक पहुंचने को लेकर ही समझाया जाता है - लेकिन व्यवहार में भी ऐसा ही होता है क्या?
अगर ऐसा ही है तो अब तक एक भी मजदूर ये कहते क्यों नहीं सुना गया कि घर लौटने के लिए उसे रेल के टिकट के पैसे नहीं देने पड़े? रेलवे को किराया चाहिये ही किसी भी कीमत पर. मजदूरों को भेजने वाली राज्य सरकारें चाहें जहां से लाकर दें. किराये के पैसे उस मजदूर से चाहिये जिसके पास खाने को कुछ भी नहीं बचा है.
ऐसा भी नहीं है कि सारे दिहाड़ी रोजी-रोटी वाले लॉकडाउन होते ही घर के लिए निकल पड़े. दिल्ली के लाजपत नगर में मेकैनिक का काम करने वाले गोविंद मंडल महीना भर डटे रहे. लगा होगा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है तो कुछ न कुछ चमत्कार भी होगा ही, लेकिन जब नहीं हुआ तो रिक्शे पर साढ़े तीन साल के बच्चे और पत्नी को बिठा कर पश्चिम बंगाल के मालदा निकल पड़े. पांच हजार रुपये बचे थे जिससे पुराना रिक्शा खरीदा. रिक्शेवाले से मिन्नतें की तो दो सौ रुपये छोड़ दिया जिससे खाने का सामान लिया और चल पड़े.
महाराष्ट्र के सतारा की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों ने भी साइकिल से घर निकलने का फैसला किया. दुकानदार तीन हजार वाली साइकिल छह हजार से कम में देने को राजी नहीं था और पैसे पास में थे नहीं, लिहाजा घरवालों से जैसे तैसे पैसे का इंतजाम किया और मध्य प्रदेश के रीवा में अपने घर चल पड़े.
प्रधानमंत्री मोदी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बताया था कि 13 लाख से भी ज्यादा लोग ऐसे हैं जो श्रमिक स्पेशल ट्रेन से अपने घर लौटना चाहते हैं. पंजाब को बाहरी कामगारों की काफी जरूरत होती है, लेकिन उनके पास कोई काम नहीं होने से सरकार भी रोक पाने की स्थिति में नहीं है. अमरिंदर सिंह का सवाल था कि जरूरत के बावजूद उन लोगों को रोकें भी तो कैसे? मजदूरों में अगर कोई बेहतर स्थिति में है तो वे यूपी के ही हैं लेकिन वो भी इसलिए क्योंकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी तरफ से पहल कर रहे हैं और सक्रिय हैं. अमरिंदर सिंह तो योगी आदित्यनाथ से भी मजदूरों को लेकर मदद मांग चुके हैं. अब योगी अपने राज्य में तो मजदूरों के रोजगार का इंतजाम कर सकते हैं वो भी तमाम आलोचनाएं झेल कर, लेकिन पंजाब के लिए तो अमरिंदर सिंह को ही उपाय खोजने होंगे.
क्या पैकेज के एक तिहाई में ऐसा कुछ भी नहीं था और नहीं था तो आगे कितनी उम्मीद की जानी चाहिये?
जब दिल्ली से दसवां हिस्सा पहुंचता था तब भी वही हाल था - और जब पूरा का पूरा पहुंच रहा है तब भी वही हाल है - फिर बदला क्या है? महज मंशा बदल जाने से क्या होता है जब तक कि सिस्टम न बदले?
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