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Updated: 19 दिसम्बर, 2022 10:03 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi) का एक वीडियो खूब देखा जा रहा है. वायरल तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के भी कई वीडियो हुए हैं. नेपाल वाले से लेकर तेलंगाना दौरे तक, जिसमें वो पूछते हैं - बोलना क्या है?

राजस्थान की सड़कों पर दौड़ रहीं प्रियंका गांधी वाड्रा का वायरल वीडियो उनकी फिटनेस का सबूत है. भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी को कई बार दौड़ते देखा गया है. और ये बाकी कांग्रेस नेताओं को मुश्किल में डाल देता है.

केरल विधानसभा चुनाव के दौरान तो नाव से नदी और पानी से नाव पर उछलते कूदते राहुल गांधी की तस्वीरें शेयर करने की तो कांग्रेस नेताओं में होड़ ही मची हुई थी. पुशअप चैलेंज लेते तो राहुल गांधी को पहले भी देखा गया था, केरल चुनाव के दौरान कांग्रेस नेताओं के दिखाने पर लोगों ने उनके सिक्स पैक्स भी देख लिये - और प्रियंका गांधी भी जताने लगी हैं कि वो भी किसी से कम नहीं हैं.

वैसे भी हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनवा देने के बाद प्रियंका गांधी का कद भी तो बढ़ ही गया है. जैसे 2018 में राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी के हाथ से सत्ता छीन कर कांग्रेस की झोली में डाल दी थी - प्रियंका गांधी ने भी तो हिमाचल प्रदेश में वैसा ही काम किया है. स्कोर की बात करें तो प्रियंका गांधी का स्ट्राइक रेट राहुल गांधी से थोड़ा ही कम लगता है. राहुल गांधी ने पांच विधानसभा चुनावों में से तीन जीते थे, प्रियंका गांधी के केस में 50-50 का मामला दिखाई पड़ता है.

बाकी बातों का नंबर तो बाद में आएगा, हिमाचल प्रदेश की जीत से प्रियंका गांधी ने नाकामी के दाग तो धो ही डाले हैं. अमेठी लोक सभा से लेकर यूपी विधानसभा चुनाव 2022 तक, हार का सिलसिला तो जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रहा था.

कहां प्रियंका गांधी में उनकी दादी इंदिरा गांधी की छवि देखी जाती रही, और कहां वो हर मामले में फेल होने लगीं. चुनाव जीतने की कौन कहे, जिन मामलों में उनको संकटमोचक के तौर पर तारीफ मिलती - आगे चल कर वे और भी उलझ जाते और बड़ी मुसीबत बन कर सामने आते. मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्री विवाद को प्रियंका गांधी ने ही सुलझाया था - कमलनाथ तो सत्ता से ही हाथ धो बैठे, राजस्थान का हाल सब देख ही रहे हैं.

धीरे धीरे राहुल गांधी को आउटडेटेड और प्रियंका गांधी वाड्रा को लोग ओवररेटेड बताने लगे थे - और ज्यादा दिन नहीं हुए, ये तो भारत जोड़ो यात्रा के ठीक पहले की ही बात है. लेकिन लगता है यात्रा ने भाई-बहन दोनों के अच्छे दिनों की तरफ इशारे करने लगा है.

राहुल गांधी को पहले के मुकाबले काफी मैच्योर माना जाने लगा है. और मीडिया के सवाल को टालते हुए वो खुद को समझदार बताने भी लगे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान प्रेस कांफ्रेंस में जब सीनियर पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने 2024 के आम चुनाव को लेकर सवाल पूछा तो राहुल गांदी का ऐसा ही रिएक्शन था.

भारत जोड़ो यात्रा और हिमाचल प्रदेश चुनाव का आपस में कोई लेना देना नहीं है. हिमाचल प्रदेश चुनाव तो अपने तय समय पर होना ही था, और भारत जोड़ो यात्रा के रूट में तो हिमाचल प्रदेश है भी नहीं - लेकिन ये भी है कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी प्रियंका गांधी के हाथ हिमाचल प्रदेश की सफलता लगी है.

ऐसा भी कहा जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश की जीत से कांग्रेस को प्रियंका गांधी वापस का गुम हुआ टैलेंड वापस मिल गया है - और प्रियंका गांधी के लिए कांग्रेस में हिस्सेदारी की संभावना काफी बढ़ गयी है. ऐसे भी समझ सकते हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) के कामकाज संभाल लेने के बाद प्रियंका गांधी ने नये सिरे से राहत भरी दस्तक दी है.

सबसे बड़ी बात प्रियंका गांधी को हिमाचल प्रदेश चुनाव के जरिये एक बेहतरीन टीम भी मिल गयी है - और उनकी टीम में सचिन पायलट का होना कांग्रेस में नये समीकरणों के बनने और बिगड़ने की तरफ इशारे भी कर रहा है.

प्रियंका गांधी की नयी टीम क्या करने वाली है

प्रियंका गांधी की टीम तो पहले से ही बन चुकी थी. लेकिन 2019 में जैसे उनको औपचारिक तौर पर कांग्रेस में जिम्मेदारी मिली, प्रियंका गांधी वाड्रा को भी बाकायदा काम करने के लिए एक टीम मिल गयी. 2019 के बाद काफी लोग हटाये भी गये, और बहुतों को मौका भी दिया गया - और फिर 2022 का यूपी विधानसभा लड़ने के लिए प्रियंका गांधी ने काफी ठोक बजा कर अपनी एक टीम बनायी. कई पुराने नेताओं में उनकी चयन प्रक्रिया को लेकर नाराजगी भी देखी गयी.

rahul gandhi, priyanka gandhi vadra, sachin pilotक्या सचिन पायलट के अच्छे दिन आने वाले हैं

उत्तर प्रदेश की तो प्रियंका गांधी खुद प्रभारी रहीं, लेकिन हिमाचल प्रदेश में तो लगता है जैसे बस भेज दिया गया. चुनावों के दौरान प्रियंका गांधी के गुजरात में भी गरबा से लेकर रोड शो तक के प्रोग्राम बताये गये थे, लेकिन वो गयी नहीं. ऐसा इसलिए भी हो सकता है, क्योंकि एक दिन के लिए राहुल गांधी का कार्यक्रम तय हो गया था.

प्रियंका गांधी के हिमाचल जाने और वहां जमे रहने में मशोबरा में बना उनका डेरा भी रहा. मशोबरा शिमला के पास ही है और चुनावों के दौरान ज्यादातर वक्त प्रियंका गांधी ने वहीं से पूरे कैंपेन की निगरानी की थी.

प्रियंका गांधी ने बहुत रैलियां तो नहीं की, लेकिन कांग्रेस की तरफ से जो बातें कही जानी थी, मौका निकाल कर कहा जरूर. खास तौर पर बीजेपी के खिलाफ. अपनी रैलियों में प्रियंका गांधी ने बेरोजगारी और नौकरियों से लेकर पेंशन तक के मामले उठाये - और असर तो सबने देखा ही.

प्रियंका गांधी के हिमाचल पहुंचने के काफी पहले से ही चुनाव प्रभारी बनाये गये राजीव शुक्ला ग्राउंड लेवल पर काफी काम कर चुके थे.

क्रिकेट पॉलिटिक्स और चुनावी राजनीति में बहुत फर्क होता है, ये बात राजीव शुक्ला पहले से ही जानते थे, लेकिन वीरभद्र सिंह के दबदबे वाले हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस के सामने वैसी ही चुनौतियां रहीं जैसी बाकी राज्यों में होती हैं, लिहाजा राजीव शुक्ला ने सबसे पहले गुटबाजी पर ही कैंची चलायी.

राजीव शुक्ला की सलाह पर कुलदीप सिंह राठौर की जगह हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की कमान प्रतिभा सिंह को दे दी गयी - और दूसरे गुट को बैलेंस करने के लिए सुखविंदर सिंह सुक्खू को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बना दिया गया. जो बाकी बचे नेता थे, राजीव शुक्ला ने उनको भी किसी न किसी काम में उलझाये रखा.

2021 में मंडी लोक सभा उपचुनाव और तीन विधानसभा सीटों पर कांग्रेस की जीत उत्साह बढ़ाने वाली तो थी ही, प्रियंका गांधी के पहुंच जाने से राजीव शुक्ला के लिए काम करना सुविधाजनक हो गया.

अब तो राजीव शुक्ला को भी इनाम मिलने की संभावना जतायी जा रही है. ये भी हो सकता है उनको किसी और महत्वपूर्ण राज्य की चुनावी जिम्मेदारी दी जाये - सबसे अहम बात ये है कि राजीव शुक्ला के रूप में प्रियंका गांधी को जंग जीतने के लिए एक बढ़िया जनरल मिल गया है. आने वाले दिनों में एक को तरक्की मिलती है, तो दूसरे की अपनेआप होनी है.

राजीव शुक्ला के साथ ही सचिन पायलट की हिमाचल में महत्वपूर्ण भूमिका रही. सचिन पायलट तो प्रियंका गांधी के साथ यूपी विधानसभा चुनाव में भी लगे रहे, लेकिन हिमाचल प्रदेश का मामला ऐसे वक्त का है जब एक छोटी सी कामयाबी भी उनकी सीवी मजबूत करने वाली है.

दोनों के अलावा दो और भी कांग्रेस नेता रहे जो प्रियंका गांधी के साथ मोर्चे पर डटे रहे - छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा. मान कर चल सकते हैं कि आने वाले दिनों में सुखविंदर सिंह सुक्खू भी प्रियंका गांधी की टीम का मजबूत खंभा होंगे.

पहले संकटमोचक, अब फाइनल अथॉरिटी

पहले तो प्रियंका गांधी की भूमिका सिर्फ संकटमोचक तक सिमटी रहती थी, लेकिन हिमाचल प्रदेश चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद वो भी फाइनल अथॉरिटी की ही तरह नजर आने लगी हैं - हिमाचल प्रदेश में सुखविंद सिंह सुक्खू का मुख्यमंत्री बनना भी इसी बात की मिसाल है.

अव्वल तो बतौर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को ही तमाम फैसलों के लिए अथॉरिटी लेटर मिला हुआ है, लेकिन फाइनल अथॉरिटी तो राहुल गांधी और सोनिया गांधी ही होते हैं - अब तो लगता है प्रियंका गांधी का नाम भी इस लिस्ट में जुड़ गया है.

सीनियर पत्रकार कूमी कपूर अपने कॉलम इनसाइड ट्रैक में सुखविंदर सिंह सुक्खू के अपने दो प्रतिद्वंद्वियों पर भारी पड़ने की वजह प्रियंका गांधी के साथ उनका पुराना संबंध मानती हैं. चुनाव नतीजे आने के बाद प्रतिभा सिंह के अलावा मुकेश अग्निहोत्री भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे, लेकिन सुक्खू बाजी मार ले गये.

बताते हैं कि सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रियंका गांधी के मशोबरा में घर बनाने के दौरान उनकी काफी मदद की थी. ऐसे समझ सकते हैं कि रास्ते में आने वाली हर अड़चन को खत्म ही कर दिया था - भला वो मुख्यमंत्री नहीं बनते तो कौन बनता.

हो सकता है राहुल गांधी की पसंद कोई और हो. हो सकता है सोनिया गांधी भी प्रतिभा सिंह को ही तरजीह देतीं, लेकिन प्रियंका गांधी की पुतली फिरते ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने सुखविंदर सुक्खू के नाम पर मुहर तो लगायी ही, दस्तखत भी कर डाली होगी.

सुखविंदर सिंह सुक्खू की तो लॉटरी लग ही गयी, सचिन पायलट और भूपेश बघेल की भी बहार आने वाली है. अब तो चाह कर भी राहुल गांधी के लिए छत्तीसगढ़ में टीएस सिंह देव से किया गया वादा निभाना मुश्किल होगा, क्योंकि प्रियंका गांधी तो अपनी टीम के भूपेश बघेल का ही पक्ष लेंगी - और इंतजार तो टेक ऑफ के लिए सचिन पायलट को भी होगा ही ग्रीन सिग्नल का. वैसे दौसा में नारे तो लगने ही लगे हैं - हमारा सीएम कैसा हो, सचिन पायलट जैसा हो!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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