प्रियंका ने कांग्रेस को फलक पर भले न बिठाया हो, खाक से उठा तो दिया ही है
10 मार्च को प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) के पास रिपोर्ट कार्ड में दिखाने के लिए सीटों का नंबर भले ज्यादा न हो, लेकिन कांग्रेस (Congress) कार्यकर्ताओं का जोश इस हद तक तो बढ़ा ही दिया है कि यूपी चुनाव (UP Election 2022) के बाद वे भविष्य को उम्मीद भरी नजरों से देख सकें.
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यूपी चुनाव का आखिरी दौर आते आते कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) बड़ी राहत महसूस कर रही होंगी. जो दर्द 2019 में अमेठी में मिला था और रह रह कर परेशान कर रहा होगा, वो पूरी तरह खत्म न सही, कुछ न कुछ कम तो हुआ ही होगा.
हो सकता है प्रियंका गांधी की मेहनत का कांग्रेस (Congress) को यूपी से बाहर कोई खास फायदा अभी न मिल पाये, लेकिन अगले आम चुनाव के वक्त 2024 में अमेठी और रायबरेली के लोग कोई भी फैसला लेने से पहले एक बार विचार तो कर ही सकते हैं. ये प्रियंका गांधी की सक्रियता का ही असर रहा जो राहुल गांधी भी कुछ ही दिनों के अंतराल पर दो-दो बार अमेठी का दौरा कर आये - और लोगों के साथ पारिवारिक रिश्ते की याद दिला सके.
कांग्रेस के हिस्से में तो प्रियंका गांधी खुद भी बहुत कुछ पहले भी उम्मीद नहीं कर रही होंगी, लेकिन नये आइडिया, नये तेवर और खुद पहल करते हुए फील्ड में संघर्ष का जो जज्बा प्रियंका गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मन में भरी है वो ध्यान खींचने वाला तो है ही - ऐसे में यूपी चुनाव के नतीजे न सही, लेकिन प्रियंका गांधी को ये कैंपेन लंबे समय तक याद जरूर रहेगा.
अगर 2014 के बाद से कांग्रेस के प्रदर्शन को ध्यान से देखें तो प्रियंका गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को वो आवाज दी है, जो राहुल गांधी लाख कोशिशों के बावजूद नहीं दे पा रहे थे - और ऐसा भी नहीं कि वो खामोश रहते थे या बाहर नजर नहीं आते थे, ये बात अलग है कि उनकी छुट्टियां अचानक बहुत कुछ बर्बाद कर देती रहीं.
पूरे यूपी चुनाव (UP Election 2022) के दौरान कांग्रेस के कैंपेन के दौरान देखने को तो यही मिला कि राहुल गांधी दूर ही रहे. अब ये उनका निजी फैसला रहा या उनको वक्त नहीं मिल पाया या फिर प्रियंका गांधी को किसी तरह की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी, सवाल जरूर खड़ा कर रहा है, खासकर प्रेस कांफ्रेंस में प्रियंका गांधी का वो सवालिया जवाब सुनने के बाद - 'कांग्रेस में कोई और चेहरा है क्या?'
प्रियंका से कांग्रेस को क्या मिला
उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के आखिर में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कुछ बातों का अलग से जिक्र किया है - अपने पिता से जुड़े कुछ संस्मरणों के अलावा प्रियंका गांधी ने बताया है कि यूपी की जिम्मेदारी देते वक्त उनके भाई ने क्या कहा था और उन नेताओं ने भी जो अब कांग्रेस छोड़ कर जा चुके हैं.
कांग्रेस का एक चेहरा जो विरोधियों से भी ज्यादा राहुल गांधी के लिए खतरनाक हो सकता है
अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का जिक्र कर प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है, जबकि राहुल गांधी की यूपी चुनाव को लेकर सीख और कांग्रेस छोड़ कर चले गये नेताओं के मन में अफसोस पैदा करने का प्रयास.
1. मोदी और राजीव गांधी का फर्क समझाने की कोशिश:प्रियंका गांधी ने किसान आंदोलन को लेकर राजीव गांधी के व्यक्तित्व की झलक दिखाने की कोशिश की है. ये बताने के लिए कि कांग्रेस के प्रधानमंत्री और बीजेपी के प्रधानमंत्री कैसे अलग अलग होते हैं - यहां तक कि राजीव गांधी को उनके इलाके के लोग डांट भी दिया करते थे और हड़काते भी खूब थे.
किसानों को लेकर प्रियंका गांधी पहले हमेशा लखीमपुर खीरी की घटना का जिक्र किया करती थीं. विस्तार से समझाया करती थीं कि कैसे एक मंत्री के बेटे ने किसानों को अपनी गाड़ी के नीचे कुचल कर मार डाला - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजय मिश्रा टेनी को हटाया तक नहीं. प्रियंका गांधी ने तो केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा को हटा कर इंसाफ दिलाने के लिए बनारस जाकर रैली भी कर आयीं - और राष्ट्रपति को ज्ञापन भी दिया था.
लेकिन गाजीपुर की रैली में प्रियंका गांधी ने आंदोलन के दौरान किसानों की मौत का मुद्दा उठाया. प्रियंका गांधी ने कहा, 'इस सरकार में 700 किसान शहीद हुए और इस सरकार ने कोई हमदर्दी नहीं दिखाई... प्रधानमंत्री मोदी उनसे बात करने के लिए बाहर तक नहीं निकले... जबकि वो पूरी दुनिया घूम आये.
प्रधानमंत्री मोदी और राजीव गांधी की तुलना करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा, 'मेरे पिताजी प्रधानमंत्री थे और अमेठी के सांसद थे... मैं उनके साथ जीप में बैठकर जाती थी... खुद जीप चलाकर वो गांव-गांव जाते थे... गांव का गरीब से गरीब व्यक्ति भी उनको अपने घर ले जाता था... बैठाता था... खाने को देता था... लोग उन्हें राजीव भैया कहते थे, लेकिन कोई उन्हें छोड़ता नहीं था.'
मोदी की तुलना में राजीव के लोगों से ज्यादा कनेक्ट होने का दावा करते हुए प्रियंका गांधी बताती हैं, 'कभी-कभी तो लोग उन्हें डांट भी देते थे... ऐ भैया अगर यह काम नहीं करोगे तो वोट मांगने मत आना... हम वोट नहीं देंगे तुम्हें... ये थी आपके प्रदेश की परंपरा.'
2. जो मंत्र राहुल गांधी ने दिये: बड़े दिनों बाद अमेठी पहुंचने पर राहुल गांधी ने बहन की बात सुनायी थी. कैसे प्रियंका गांधी ने जब राहुल गांधी को लखनऊ बुलाया तो वो बोले थे कि पहले अमेठी ले चलो तब आएंगे. जब राहुल गांधी ये किस्सा सुना रहे थे तब उनकी ही पुरानी बातें याद आ रही थीं. एक बार राहुल गांधी के लिखे हुए नोट्स लेकर संसद में सवाल पूछने की खासी चर्चा हुई थी. उसी के बाद राहुल गांधी ने बताया था कि कैसे उनके ऑफिस में एक लड़का है जो उनके भाषण के लिए नोट्स देता और वही कहानियां भी सुनाता है, लेकिन लोगों को सुनाने के लिए.
प्रियंका गांधी जब राहुल गांधी की नसीहत का जिक्र कर रही थीं तो वो भी राहुल गांधी से अलग लग रहा था. प्रियंका गांधी ने बताया, 'मेरे भाई ने मुझे उत्तर प्रदेश जाने के लिए कहा... एक बात कही कि तुम उत्तर प्रदेश जाओ... कितना भी संघर्ष हो काम करना शुरू करो और ये याद रखो कि जहां दुःख और पीड़ा है... वहां कंधे से कंधा मिलाकर जनता के लिए लड़ो.'
3. जो चले गये उनको भी संदेश: प्रियंका गांधी की बातों से लगने लगा है कि पूरे चुनाव कैंपेन के बाद वो कैसा महसूस कर रही हैं. यूपी की जिम्मेदारी लेते वक्त कांग्रेस नेताओं के जिक्र के बहाने प्रियंका गांधी ये समझाने की कोशिश कर रही हैं कि कांग्रेस की स्थिति पहले के मुकाबले काफी बदल चुकी है.
प्रियंका गांधी वाड्रा को 2019 में पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था. तब राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में ही थे. राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में कमलनाथ के साथ झगड़ा खत्म करने के लिए सिंधिया को पश्चिम यूपी का प्रभारी बनाया था.
अमेठी और रायबरेली में प्रियंका गांधी बरसों से चुनाव प्रचार करती आ रही थीं, लेकिन 2019 में वो औपचारिक तौर पर कांग्रेस महासचिव बन कर कामकाज संभाली थीं, लेकिन अफसोस की बात ये रही कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गये और कांग्रेस अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, विधानसभा चुनावों के बाद सितंबर, 2022 तक कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाने की संभावना जतायी जा रही है.
प्रियंका गांधी के मुताबिक, जब वो यूपी में कांग्रेस की प्रभारी बनीं तो पार्टी के ही कई नेता उनके पास आये और बोले कि यूपी में कांग्रेस पार्टी तो है ही नहीं. उन नेताओं का मानना था कि यूपी में तो कांग्रेस के लिए कुछ भी करना संभव नहीं है.
ये बताने के बाद प्रियंका गांधी ने ये भी बताया है कि ऐसा बोलने वाले बड़े नेता अब कांग्रेस छोड़ कर जा चुके हैं. प्रियंका गांधी बताती हैं कि जब ये बातें वो राहुल गांधी को बतायीं तो वो बोले कि जाओ और लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनके लिए संघर्ष करो.
प्रियंका गांधी ने जिन नेताओं की तरफ इशारा किया है उनमें दो नाम हैं - जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह. जितिन प्रसाद यूपी कांग्रेस में ब्राह्मण चेहरा हुआ करते थे और आरपीएन सिंह ओबीसी फेस. ये दोनों ही राहुल गांधी की उसी नजदीकी टीम का हिस्सा हुआ करते थे जिसमें सिंधिया भी शामिल थे. ये तीनों ही अब बीजेपी में हैं. सिंधिया मोदी सरकार में तो जितिन प्रसाद योगी सरकार में मंत्री हैं.
एक चेहरा नजर तो आने ही लगा है
प्रियंका गांधी वाड्रा ने यूपी में 167 चुनावी रैलियां और 42 रोड शो किये और वर्चुअल रैली में 340 विधानसभा क्षेत्रों के लोगों से संपर्क किया. यूपी चुनाव के साथ साथ प्रियंका गांधी ने गोवा और उत्तराखंड का दो-दो बार दौरा किया और पंजाब पहुंच कर तीन बार कांग्रेस के लिए वोट मांगे - और उसी दौरान खुद को पंजाबी बहू के रूप में भी प्रोजेक्ट किया.
यूपी में 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं' के नारे के साथ प्रियंका गांधी वाड्रा ने 40 फीसदी महिला उम्मीदवारों को टिकट देने के साथ कई नये आइडिया के साथ प्रयोग किया है. मैनिफेस्टो के तौर पर भी अलग अलग उन्नति विधान, भर्ती विधान और शक्ति विधान लाकर सत्ता में आने पर तमाम सुविधायें और नौकरियां देने का वादा किया है.
लेकिन ये सब करने साथ ही प्रियंका गांधी ने सोनिया गांधी की भी टेंशन बढ़ा दी है. कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर पूछे गये सवाल का जवाब प्रियंका गांधी ने जिस लहजे में दिया, राहुल गांधी भी एक पल के लिए सकपका गये थे - "कोई और चेहरा नजर आ रहा है क्या... मेरे सिवा!"
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