प्रियंका गांधी अमेठी वालों को धमका रही हैं या धिक्कार रही हैं
प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) के लिए तो पूरा यूपी चुनाव महत्वपूर्ण है, लेकिन राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ होने पर अमेठी की अहमियत ज्यादा बढ़ जाती है - शायद इसलिए भी क्योंकि स्मृति ईरानी (Smriti Irani) से भी दो-दो हाथ करने होते हैं.
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अमेठी में 27 फरवरी को मतदान होना है - और हफ्ते भर के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अखिलेश यादव के साथ साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) भी अमेठी का दौरा कर चुके हैं.
स्मृति ईरानी (Smriti Irani) तो जैसे डेरा ही डाले हुए हैं. अमेठी का सांसद होने के नाते तो कर्तव्य भी बनता है और जिम्मेदारी भी. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेठी में रैली किये तब भी और जब राहुल और प्रियंका गांधी पहुंचे तब भी.
अब तो योगी आदित्यनाथ के पांच साल के शासन के बाद काफी कुछ बदला बदला है. 2017 के पहले 2014 के आम चुनाव में स्मृति ईरानी हार गयी थीं, लेकिन विधान सभा चुनाव में अमेठी की पांच में से चार सीटें बीजेपी की झोली में भर दी थीं. एक सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में जरूर गयी थी, लेकिन वे चार सीटें ही 2019 में स्मृति ईरानी को अमेठी से लोक सभा पहुंचाने में मददगार साबित हुईं.
आम चुनाव की हार के बाद से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अमेठी से दूरी बना चुके थे. बीच बीच में रस्मअदायगी होती रही, लेकिन लंबे गैप के बाद. वोटिंग के पहले प्रचार का आखिरी दौर होने के चलते फिर से अमेठी के लोगों से मुखातिब हुए. पिछले दौरे की तरह लोगों के बीच पहुंचे तो बताया कि मिल कर परिवार जैसा महसूस होता है - साथ ही, राहुल गांधी ने अपनी स्टाइल में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को टारगेट किया. बेरोजगारी और किसानों के मुद्दों से लेकर अंबानी-अडानी भी हमेशा की तरह राहुल गांधी के भाषण का हिस्सा बने.
प्रियंका गांधी के लिए साख का सवाल यूपी चुनाव नहीं, अमेठी है!
यूपी में चार दौर की वोटिंग हो जाने के बाद अमेठी पहुंचे राहुल गांधी आम चुनाव की तरह ही भाषण दे रहे थे, न कि ऐसा लगा जैसे वो कांग्रेस के विधानसभा उम्मीदवारों के लिए वोट मांग रहे हों - 2019 के चुनाव प्रचार से अगर कोई फर्क दिखा तो बस इतना ही कि लोगों से वो 'चौकीदार चोर है' जैसे नारे नहीं लगवा रहे थे.
अमेठी की लड़ाई अलग है
गोरखपुर की सदर सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बीजेपी ने चुनाव मैदान में उतार कर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की. मायावती ने पहले ही बोल दिया कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है, न ही कोई संवैधानिक बाध्यता ही है, लेकिन अखिलेश यादव प्रेशर में आ गये.
लेकिन मुलायम सिंह यादव के मैनपुरी में करहल सीट से अखिलेश यादव के चुनाव मैदान में उतरने के बाद भी प्रियंका गांधी वाड्रा पर कोई असर नहीं हुआ. कांग्रेस को तो वैसे भी मालूम है कि मौजूदा चुनाव में उसके हिस्से में बहुत कुछ आने से रहा. प्रियंका गांधी ये भी कह ही चुकी हैं कि हालात बने तो बीजेपी को सत्ता हासिल करने से रोकने के लिए वो संभावित गठबंधन को सपोर्ट जरूर करेंगी.
सबका अपना अपना एजेंडा है: अमेठी को लेकर सबका अपना अपना एजेंडा है और उसी हिसाब से कैंपेन में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाये जा रहे हैं. बाकी जगह की तरह बीएसपी ने भी उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन इस बार भी खाता खुलने की कोई खास उम्मीद से नहीं.
अमेठी विधानसभा सीट से मायावती ने प्रियंका गांधी वाड्रा के महिला कार्ड को ध्यान में रखते हुए महिला उम्मीदवार खड़ा किया है - रागिनी तिवारी. बदलाव की मांग कर रहीं रागिनी तिवारी बीबीसी से कहती हैं, 'शायद किसी को याद नहीं कि अमेठी को जिले का दर्जा तभी मिला था जब उत्तर प्रदेश में मायावती की बसपा सरकार थी... इस क्षेत्र ने कांग्रेस, भाजपा और सपा को मौका दिया अब देख लीजिएगा... बारी बसपा की ही है.'
बीजेपी और कांग्रेस ख्वाहिशें तो अपनी जगह हैं ही, अखिलेश यादव भी चाहते हैं कि संसदीय क्षेत्र चाहे जिसके हिस्से में रहे, किसी न किसी विधानसभा में समाजवादी पार्टी का झंडा जरूर फहराया जाता रहे. मुश्किल ये है कि अमेठी में उनका सबसे बड़े नेता गायत्री प्रजापति बलात्कार का अपराधी बन कर जेल में है और उसकी पत्नी बेकसूर बताकर इलाके में लोगों से वोट मांग रही है.
अमेठी के मैदान से अखिलेश यादव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर उसी अंदाज में हमला बोल देते हैं, जैसे बाकी जगह करते हैं. कहते हैं, 'काका तो चले गये अब बाबा का नंबर है.'
'काका', दरअसल, अखिलेश यादव तीनों कृषि कानूनों के लिए कह रहे हैं जिसे लंबे किसान आंदोलन के बाद मोदी सरकार ने वापस ले लिया - 'काका' से अखिलेश यादव का आशय 'काले कानून' से है और बाबा तो वो योगी आदित्यनाथ को कहते ही हैं.
अखिलेश यादव समझाते हैं, 'बाबा का बुलडोजर खराब हो गया है... बाबा प्रदेश में विकास के नाम पर नाम बदलने का काम करते थे... अब उनका ही एक नया नाम सामने आया है बुलडोजर बाबा... बुलडोजर बाबा ने अपने बुलडोजर को मरम्मत के लिए भेजा है - क्योंकि उनको पता चल गया है कि उनकी सरकार जा रही है.'
बाबा और बुलडोजर - जब तक अखिलेश यादव अलग अलग समझाते रहे, ठीक था. लेकिन योगी आदित्यनाथ को बुलडोजर बाबा बोल कर तो लगता है जैसे वो बीजेपी के मुख्यमंत्री चेहरे को ही प्रमोट कर रहे हों.
हो सकता है अखिलेश यादव को लगता हो कि उनका वोटर बाबा बुलडोजर को अलग तरीके से लेगा, लेकिन अखिलेश यादव को ये नहीं भूलना चाहिये कि सिर्फ योगी आदित्यनाथ ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह का भी चुनाव प्रचार में बुलडोजर पर ही जोर होता है - और UPYOGI बताते वक्त भी यही कि योगी आदित्यनाथ का माफिया तत्वों के खिलाफ सख्त रवैया रहा है. जब योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि 10 मार्च के बाद गर्मी शांत कर देंगे तो भी मतलब यही होता है.
अखिलेश यादव से इतर स्मृति ईरानी पर अमेठी में प्रदर्शन दोहराने का दबाव है, जबकि प्रियंका गांधी वाड्रा 2019 के बदले की आग में धधक रही हैं - अमेठी में कांग्रेस की हार राहुल गांधी से भी ज्यादा प्रियंका गांधी के लिए दर्दनाक है क्योंकि वो पहला मौका था जब प्रियंका गांधी अमेठी में बतौर कांग्रेस महासचिव चुनाव प्रचार कर रही थीं.
प्रियंका गांधी बनाम स्मृति ईरानी
यूपी चुनाव स्मृति ईरानी और प्रियंका गांधी वाड्रा के बीच टकराव का बिंदु अमेठी क्षेत्र ही होता है. ध्यान देने वाली बात ये होती है कि दोनों ही नेताओं में एक दूसरे के खिलाफ सीधे सीधे टकराने से बचने की कोशिश होती है.
यूपी का प्रभारी होने के नाते प्रियंका गांधी के निशाने पर योगी आदित्यनाथ तो होते ही हैं, लेकिन बात जब अमेठी की आती है तो वो सीधे प्रधानमंत्री मोदी को टारगेट करती हैं. ठीक वैसे ही स्मृति ईरानी, प्रियंका गांधी को टारगेट करने में भी राहुल गांधी का ही नाम लेती हैं.
प्रियंका गांधी के चुनावी स्लोगन 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं' पर रिएक्शन में भी स्मृति ईरानी की जबान पर राहुल गांधी का ही नाम सुना गया था - 'घर में लड़का है, पर लड़ नहीं सकता.' ये सिलसिला जारी है और ऐसा लगता है जैसे 2024 के आम चुनाव में भी लड़ाई इर्द गिर्द ही घूमती रहने वाली है.
लेकिन जिस तरीके से स्मृति ईरानी और प्रियंका गांधी दोनों ही अमेठी के लोगों से पेश आ रही हैं, वो हैरान करने वाला है.
जैसे जान पर खेल कर कुछ किया हो: हाल ही के एक इंटरव्यू में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी कोविड काल में अमेठी के लोगों की मदद के बारे में ऐसे बता रही थीं जैसे जान पर खेल कर लोगों की मदद की हो - और अगर किया भी है तो ये कोई एहसान जैसी बात तो है नहीं. आखिर यूपी में बीजेपी की सरकार रही, स्मृति ईरानी अमेठी की सांसद होने के साथ साथ केंद्र की बीजेपी सरकार में मंत्री भी हैं - जो कुछ भी स्मृति ईरानी ने किया होगा वो उनकी ड्यूटी का ही हिस्सा तो रहा.
अगर अमेठी में अपनी तरफ से की गयी मदद को स्मृति ईरानी ने ऐसे ही आगे भी पेश किया, फिर तो ऐसा ही लगेगा जैसे योगी आदित्यनाथ की सरकार तो कुछ कर ही नहीं रही थी - और ये बात बहुत हद तक गलत भी नहीं है.
स्मृति ईरानी बताये जा रही थीं, कोरोना के दौरान हमने एक एक गांव जाकर मास्क और सैनिटाइजर बांटे... ऐसा नहीं है कि हमारे सिर पर मौत नहीं मंडरा रही थी, लेकिन हम लोगों ने फिर भी जनता की मदद की... मैंने खुद ही कोरोना काल में बाहर फंसे अमेठी के लोगों से बातचीत की और उनको वापस लाने का काम किया.'
अगर स्मृति ईरानी अपने काम को योगी सरकार से अलग पेश कर रही हैं तो राहुल गांधी की टीम भी यही कर रही थी. कोराना संकट के दौरान अगर स्मृति ईरानी ने 15 हजार लोगों की मदद की तो राहुल गांधी ने भी 10 हजार लोगों के लिए राशन, मास्क और सैनिटाइजर भिजवाया था.
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान ऐसा कई बार किया गया होगा, लेकिन स्मृति ईरानी सिर्फ इसी आधार पर राहुल गांधी को चुनावी जीव करार दे रही हैं. मुश्किल ये है कि स्मृति ईरानी को लेकर भी लोगों में अलग धारणा बनने लगी है.
बीबीसी से बातचीत में अमेठी की नीलकमल पटेल की नाराजगी फूट पड़ती है और पूछती हैं कि वादे करने से पहले राजनेता ये क्यों नहीं सोचते कि उसे पूरा कैसे करेंगे?
अमेठी निवासी पटेल याद दिलाती हैं, 'सांसद स्मृति ईरानी ने कहा था 490 रुपये में गैस सिलेंडर दिलवाएंगी... उसका क्या हुआ? एक हजार रुपये में मिल रहा है... चीनी का दाम 15 रुपये किलो करवाने को कहा था... अभी 40 की किलो मिल रही है.'
प्रियंका सलाह दे रही हैं या कुछ और: जैसे स्मृति ईरानी अमेठी में अब भी राहुल गांधी को ही निशाना बनाती हैं, प्रियंका गांधी के टारगेट पर प्रधानमंत्री मोदी ही होते हैं.
अमेठी में प्रियंका गांधी कहती हैं, 'प्रधानमंत्री मोदी को जब चुनाव आये, तब पता चला कि छुट्टा जानवरों से किसान परेशान हैं... पांच साल तक कुछ पता नहीं चला... यूक्रेन में क्या चल रहा था, पता था... अमेरिकी राष्ट्रपति को खांसी आने की जानकारी थी पर किसानों की दिक्कतों के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता था... जब चुनाव आये तो किसानों की याद आई.
असल में उन्नाव की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि यूपी में सरकार बनते ही 10 मार्च के बाद छुट्टा पशुओं की समस्या का प्रबंध हमारी सरकार करेगी. मोदी का कहना था कि आचार संहिता के कारण हमारे हाथ बंधे हुए हैं - और प्रियंका गांधी इसी बात को लेकर बीजेपी नेता को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही थीं.
लेकिन प्रियंका गांधी ने अमेठी के लोगों को जो सलाहियत दी है, वो भी गौर फरमाने वाली है, 'वोट देना आपका अधिकार है... समझदारी से वोट करें जिससे कि बाद में पछताना न पड़े... आपके वोट से ही अगले पांच साल के विकास का रास्ता तय होता है... समझदारी से अपने अधिकार का इस्तेमाल करें.'
देखा जाये तो प्रियंका गांधी भी अपने तरीके से अमेठी के वोटर को वैसे ही आगाह करने की कोशिश कर रही हैं जैसे बीजेपी नेता अमित शाह और योगी आदित्यनाथ कैराना और मुजफ्फरनगर के लोगों को अलर्ट कर रहे थे, लेकिन ये सिर्फ धमकाने जैसा नहीं लगता.
अमित शाह और योगी आदित्यनाथ का अंदाज तो साफ साफ धमकाने वाला था, लेकिन प्रियंका गांधी की बातें सुन कर ऐसा लगता है जैसे धिक्कार रही हों - जैसे यूपी की सड़कों पर रफ्तार भरते ट्रकों के पीछे लिखे स्लोगन के जरिये लोगों को सावधान किया गया जाता है - 'सटला त गइला बेटा'. मतलब, दूरी बनाकर चलो वरना, जान चली जाएगी.
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