राहुल की 'भारत जोड़ो यात्रा' में राज्यों के चयन के पीछे का गणित ये है
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का जो रोडमैप बनाया गया है, उसके तहत ये यात्रा तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर से होकर गुजरेगी. हालांकि इस यात्रा में बिहार, बंगाल, उड़ीशा और झारखंड जैसे पूर्वी भारत के राज्यों और पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को शामिल नहीं किया गया है.
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लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस को एकजुट करने और पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने के लिए राहुल गांधी बुधवार से 'भारत जोड़ो यात्रा' शुरू कर रहे हैं. यह यात्रा कन्याकुमारी से शुरू होकर कश्मीर में समाप्त होगी. 150 दिनों तक चलने वाली कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' देश के 12 राज्यों से होते हुए गुजरेगी और 3570 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. 3570 किलोमीटर की 'भारत जोड़ो यात्रा ' के दौरान राहुल गांधी का आशियाना कंटेनर होगा, जो चलता फिरता होगा. वो 150 दिनों तक इसी कंटेनर में रहेंगे. कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का जो रोडमैप बनाया गया है, उसके तहत ये यात्रा तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर से होकर गुजरेगी. हालांकि इस यात्रा में बिहार, बंगाल, ओड़िशा और झारखंड जैसे पूर्वी भारत के राज्यों और पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को शामिल नहीं किया गया है, जबकि उत्तर प्रदेश में भी यात्रा सिर्फ बुलंदशहर से ही गुजरेगी. आश्चर्यजनक रूप से हिमाचल प्रदेश और गुजरात जहां साल के अंत में चुनाव होने है, कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ जहां अगले साल चुनाव होने है, उसे भी यात्रा के रूट में शामिल नहीं किया गया है.
कांग्रेस में नयी ऊर्जा भरने के उद्देश्य से राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत कर दी है
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यात्रा को ज्यादातर हिंदी बेल्ट वाले राज्य, जो लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी बेहद अहम माने जाते हैं से दूर क्यों रखा गया है? हालांकि पदयात्रा के रूट में पड़ने वाले राज्यों में कांग्रेस के पिछले कुछ सालों के प्रदर्शन पर नजर डाले तो सहज ही इस बात का अंदाजा हो जाता है कि कांग्रेस उन राज्यों पर ज्यादा फोकस करना चाहती है. जहां कांग्रेस ने या तो पिछले लोकसभा चुनावों या विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया है.
मसलन तमिलनाडु और केरल दो ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया था, कांग्रेस के 2019 के लोकसभा चुनावों में जीते गए कुल 52 सीटों में से 23 इन्ही दो राज्यों से आये थे साथ ही राहुल गांधी ने भी केरल के वायनाड से ही लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की थी. आंध्र प्रदेश और और तेलंगाना दो ऐसे राज्य हैं जहां अधिकतर सीटों पर ऐसी पार्टियों का कब्ज़ा है जो ना तो खुलकर NDA के साथ और नाही कांग्रेस के साथ हैं.
ऐसे में कांग्रेस इन दो राज्यों में अपने प्रदर्शन को बेहतर करने के साथ ही नए राजनैतिक सहयोगियों तलाशने की भी कोशिश में होगी. कांग्रेस के लिए इन चारो ही राज्यों को ज्यादा तवज्जो देने के पीछे यह भी बड़ा कारण हो सकता है कि इन चारो ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी अब तक अपनी जड़ें नहीं जमा सकी है, साथ ही तेलंगाना छोड़ बाकि के तीन राज्यों में बीजेपी के लिए खाता खोलना भी मुश्किल होता है.
अभी हालांकि कर्नाटक में भाजपा की सरकार है मगर कर्नाटक में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल के रूप में मजबूत दिख रही है, कई जानकार मानते हैं कि अगर कांग्रेस अपनी पार्टी के अंदुरनी कलह को ठीक कर पाए तो पार्टी आगामी कर्नाटक चुनावों में भी बेहतर कर सकती है. कुछ ऐसा ही हाल महाराष्ट्र का भी है जहां कुछ समय पहले ही भाजपा और बागी शिवसैनिकों की सरकार बनी है, मगर इससे पिछली सरकार में कांग्रेस सरकार में शामिल थी ऐसे में कांग्रेस उसका फायदा उठाना चाहेगी.
इसके अलावा कांग्रेस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और पंजाब के रूप में उन राज्यों का चयन किया। जहां की जनता ने कांग्रेस नेतृत्व पर 2014 के ख़राब प्रदर्शन के बाद भी भरोसा दिखाया है. वर्तमान में राजस्थान और छत्तीसगढ़ ही दो ऐसे राज्य हैं, जहां कांग्रेस अपने बलबूते सत्ता में कायम है, हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों में राजस्थान में कांग्रेस ने 25 में से एक भी लोकसभा सीट जीत पाने में नाकाम रही थी.
बावजूद इसके राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के लिए काफी संभावनाएं हैं. मध्यप्रदेश भी वो राज्य है जहां कांग्रेस में पिछले विधानसभा चुनावों के बाद सरकार बनाने में कामयाबी पायी थी हालांकि यह सरकार साल भर ही चल सकी, मगर बावजूद इसके यहां कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है.
पंजाब में अभी कुछ महीने पहले तक कांग्रेस की सरकार थी और इस राज्य में कांग्रेस पार्टी का अच्छा खासा जनाधार है, ऐसे में इस यात्रा के जरिये कांग्रेस अपने काडर को मजबूत करने का प्रयास करेगी. हरियाणा में भी हुड्डा परिवार का अभी तक काफी दबदबा है और साथ ही मनोहर लाल खट्टर दूसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता में हैं तो कांग्रेस उनसे उपजे असंतोष को भी कैश करने का प्रयास करेगी.
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