राहुल गांधी का शुक्रिया, नया कांग्रेस अध्यक्ष अब ZERO से ही शुरू करेगा
राहुल गांधी ने कांग्रेस को मझधार में छोड़ दिया है. नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने के लिए CWC की बैठक बुलाने का कोरम भी नहीं पूरा हो पा रहा है. लगता तो यही है कि नये अध्यक्ष को बिलकुल नयी शुरुआत का मौका मिलने वाला है.
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शुरू करने के लिए सबसे अच्छा शून्य होता है - क्योंकि वही शिखर का मार्ग प्रशस्त करता है. किसी प्रोजेक्ट को शून्य से शिखर तक पहुंचाने का क्रेडिट यूं ही नहीं मिल जाता.
मुमकिन है राहुल गांधी भी इसी सोच के साथ आगे बढ़ रहे हों. ये तो मालूम है कि वो कांग्रेस को शिखर पर पहुंचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उसके लिए शुरुआत भी शून्य से ही करनी होगी, ये नहीं मालूम था.
कांग्रेस फिलहाल नये अध्यक्ष की तलाश में जोरशोर से जुटी हुई है. राहुल गांधी ने प्रक्रिया से तो अपेक्षित दूरी बना रखी है, लेकिन बाकी इंतजामात से वो जरा भी पीछे नहीं हट रहे हैं. ये राहुल गांधी ही हैं जो नये कांग्रेस अध्यक्ष के लिए जीरो बेस मुहैया कराने पर तुले हुए लगते हैं.
शुरुआत तो बीच से भी हो सकती है, लेकिन तब ये नामुमकिन सा होता है जब जड़ों में कीड़े लग चुके हों.
एक दशक से ज्यादा हो गये, राहुल गांधी कांग्रेस के सिस्टम को ठीक करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन नाकाम हुए और हाथ खड़े कर दिये. अब वो चाहते हैं कि सबसे पुरानी पार्टी नये सिरे से शुरुआत करे - और अपने मिशन में वो कोई कसर भी नहीं छोड़ रहे हैं.
पहले कर्नाटक और अब गोवा से आ रही खबरें अपनेआप में इस बात की सबूत हैं कि राहुल गांधी अपने मिशन में कितनी शिद्दत से जुटे हुए हैं. बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव से पहले कांग्रेस मुक्त भारत का नारा क्या दिया, सिर्फ पांच साल में राहुल गांधी और उनके साथियों ने, ऐसा लगता है, जैसे सत्ताधारी पार्टी की मदद में पूरी कायनात ही खड़ी कर डाली है.
गोवा की सबसे बड़ी पार्टी ने बीजेपी को बहुमत में ला दिया
राहुल गांधी ने अमेठी के लोगों से किया एक वादा 24 घंटे के अंदर ही निभाया है. अमेठी के लोगों को राहुल गांधी ने साफ कर दिया था कि अब वो वायनाड के सांसद हैं और वहां के लोगों के लिए आवाज उठाना उनकी ड्यूटी है. वैसे बुलाने पर वो चार बजे भोर में भी अमेठी पहुंचने का आश्वासन दे चुके हैं.
संसद में शून्य काल में किसानों का मुद्दा उठाते हुए राहुल गांधी ने कहा कि केरल के वायनाड में मंगलवार को कर्ज में डूबे एक किसान ने खुदकुशी कर ली है. राहुल गांधी के मुताबिक वायनाड में बैंकों से कर्ज लेने वाले 8000 किसानों को नोटिस भेजा गया है और उनकी संपत्तियां जब्त की जा रही हैं. राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि पिछले पांच साल में बीजेपी सरकार ने अमीरों के ₹ 5.5 लाख करोड़ का कर्ज माफ कर दिया - लेकिन किसानों के लिए कुछ नहीं किया.
लोक सभा में राजनाथ सिंह ने राहुल गांधी को जवाब देते हुए कहा, 'किसानों की ऐसी स्थिति इन्हीं पांच सालों में नहीं हुई है, 70 साल तक इन लोगों ने सरकार चलाई है और किसानों की दयनीय स्थिति के लिए ये जिम्मेदार हैं. कांग्रेस राज में किसानों ने ज्यादा खुदकुशी की. सरकार ने 5 साल में जितना मिनिमम सपोर्ट प्राइस बढ़ाया है, उतना किसी सरकार ने नहीं बढ़ाया... किसानों की आय दोगुनी करने की कोशिश की जा रही है.'
राज्य सभा में कर्नाटक और गोवा के राजनीतिक हालात को लेकर काफी हंगामा हुआ. कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि लोकतंत्र पर खथरा बढ़ता जा रहा है - और राजनीतिक अस्थिरता का असर राज्यों में निवेश पर पड़ेगा जिससे देश की अर्थव्यवस्था नीचे जाएगी.
संसद के बाहर भी कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की अगुवाई की, जिसमें राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने भी हिस्सा लिया. गांधी प्रतिमा के सामने विरोध प्रदर्शन के दौरान सांसदों के हाथों में देखी गयीं तख्तियों पर लिखा था - ‘लोकतंत्र बचाओ’. ये विरोध प्रदर्शन कर्नाटक और गोवा में विधायकों के खरीद-फरोख्त की कोशिश को लेकर था.
गोवा और कर्नाटक को लेकर संसद में राहुल और सोनिया गांधी का विरोध प्रदर्शन
कांग्रेस नेता गौरव गोगोई का आरोप है, 'बीजेपी उन राज्यों में दखल देने की कोशिश कर रही है जहां पहले से चुनी हुई सरकार है. बीजेपी लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश कर रही है.' गौरव गोगोई की बात का आशय गोवा और कर्नाटक से लगता है, हो सकता है लगे हाथ वो मध्य प्रदेश और राजस्थान के लिए भी माहौल बना रहे हों.
दो साल पहले गोवा में सरकार न बनवा पाने के कारण दिग्विजय सिंह को किनारे लगा दिया गया और मजबूर होकर वो नर्मदा परिक्रमा करने लगे. 2017 में 40 सदस्यों वाली गोवा विधानसभा में कांग्रेस 17 विधायकों के बावजूद चूक गयी - और महज 13 विधायकों वाली बीजेपी बाजी मार ले गयी. 10 जुलाई, 2019 को गोवा में कांग्रेस के 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गये. अब कांग्रेस के पास 15 में से सिर्फ पांच विधायक ही बचे हैं.
10 विधायकों के कांग्रेस छोड़ देने से दल-बदल कानून का खतरा भी खत्म हो गया क्योंकि दो तिहाई विधायक तो छोड़ ही दिये. कांग्रेस विधायकों के इस कदम से गोवा में बीजेपी को अब किसी सहयोगी की जरूरत नहीं रही क्योंकि वो अकेले दम पर बहुमत में पहुंच चुकी है. कांग्रेस के पास बचे हुए पांच विधायकों में चार तो मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
अभी जून, 2019 में ही तो तेलंगाना में कांग्रेस के 18 में से 12 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी. कर्नाटक में कांग्रेस के 13 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं और अब फैसला स्पीकर को करना है. असल में 10 बागी विधायकों ने स्पीकर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक पुलिस को विधायकों सुरक्षा मुहैया कराने का भी आदेश दिया है.
इस बीच सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश आ चुका है. स्पीकर कह रहे थे कि इस्तीफे पर फैसले लेने में उन्हें कम से कम छह दिन का वक्त लगेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ दिन भर की ही मोहलत दी.
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पेंच
राहुल गांधी का बड़ा शगल सिस्टम को सुधारना है. किसी भी सिस्टम को दुरूस्त करने का एक शुरुआतीतरीका उसे रीसेट करने का भी होता है. राहुल गांधी कांग्रेस में सीसेट बटन तो दबा दिया, लेकिन कुछ जरूरी डाटा लेना भूल गये.
हो सकता है इसके पीछे राहुल गांधी की कोई आश्वस्ति हो और वो बगैर फॉर्मैट किये कुर्सी छोड़ दिये. लेकिन मामला फौरन ही फंस गया. कांग्रेस के सीनियर नेता जनार्दन द्विवेदी का कहना है कि राहुल गांधी को नये अध्यक्ष के चुनाव के लिए कोई कमेटी बना देनी चाहिये थी. अभी तो आलम ये है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुनने के लिए CWC की बैठक भी नहीं हो पा रही है. उच्च स्तर पर कुछ नियुक्तिया भरी नहीं जाएंगी कांग्रेस संविधान के के अनुसार 29 स्थाई आमंत्रित सदस्य, विशेष आमंत्रित सदस्य और कार्य समिति के पुराने सदस्य नए अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए CWC की बैठक में शामिल नहीं हो सकते. बल्कि, सिर्फ सिर्फ 24 पूर्णकालिक सदस्य ही अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया में CWC की बैठक में हिस्सा ले सकते हैं.
इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार 1991 में सिर्फ 24 सदस्यों ने मिल कर नरसिम्हा राव को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना था. 1996 में राव के इस्तीफे के बाद अध्यक्ष बने सीताराम केसरी का चुनाव भी ऐसे ही हुआ था. 1998 में सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने तक वही रीत चलती आई. नये कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में एक बड़ी बाधा यही है - भले ही किसी एक नाम या कुछ नामों पर सहमति क्यों न बन चुकी हो. मुश्किल ये है कि अगर पार्टी संविधान के हिसाब से प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया तो अध्यक्ष के चुनाव को चुनौती दी जा सकती है. कोई भी असंतुष्ट नेता खुद या किसी के कहने पर ऐसा कर सकता है और यही डर कांग्रेस नेताओं को परेशान कर रहा है.
ये तो ऐसा लग रहा है जैसे राहुल गांधी ने खुद को कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी खाली छोड़ी ही है, कौन बैठे और उसके चुने जाने का तरीका क्या हो, इस बात की भी गुंजाइश नहीं बनायी है.
कांग्रेस को भी राहुल गांधी की उसी सलाह से सबक लेने की जरूरत है जो वो अमेठी में समझा कर आये हैं. राहुल गांधी अब सिर्फ वायनाड के सांसद हैं, इसलिए सबको अपनी अपनी समस्याओं का हल खुद खोजना होगा - क्योंकि वो तो सिर्फ वायनाड वालों के नेता हैं. हां, किसी को भी आधी रात को जरूरत पड़ी तो राहुल गांधी एक कॉल पर दौड़े आएंगे - जैसे नर्सिंग होम वाले इमरजेंसी में एक्सपर्ट्स को बुलाया करते हैं. कई बार तो एक्सपर्ट के आने में इतनी देर हो जाती है कि कोई मतलब ही नहीं रह जाता.
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