राहुल गांधी ने चीन पर कांग्रेस के स्टैंड को संदेहास्पद क्यों बना दिया है?
चीन को लेकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बैकफुट पर चले जाने से उनके अब तक के दावों पर संदेह होने लगा है - ऐसा लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को टारगेट करने के लिए चीन (Indo-China Dispute) का नाम तो बस बहाना होता है.
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की पंजाब में रैली का रद्द होना कोई बड़ी बात नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की फिरोजपुर रैली से दो दिन पहले राहुल गांधी का भी कार्यक्रम बना था. हालांकि, तेज बारिश और सुरक्षा कारणों से प्रधानमंत्री की रैली भी रद्द हो गयी. दिसंबर में प्रधानमंत्री के वाराणसी दौरे से हफ्ता भर पहले राहुल गांधी भी एक रात के लिए वाराणसी में थे. राहुल गांधी निजी दौरे पर थे, इसलिए हर तरह की राजनीतिक गतिविधि से दूर रहे - ये सवाल जरूर उठा कि राहुल गांधी यूपी चुनाव से दूरी क्यों बना रहे हैं, लेकिन उससे ज्यादा तूल नहीं दिया गया. हालांकि, कुछ दिन बाद ही अमेठी में पैदल मार्च कर राहुल गांधी अपने बारे में बनती धारणाओं को दूर करने की कोशिश भी की.
शायद ही किसी को ऐसी बातों को लेकर राहुल गांधी से शिकायत हो - लेकिन शक तो हरगिज नहीं होना चाहिये. असल में पंजाब के मोगा में 3 जनवरी को राहुल गांधी की चुनावी रैली होनी थी, लेकिन उनके विदेश दौरे के चलते रद्द करनी पड़ी. पहले भी ऐसा होता रहा है. वैसे राहुल गांधी को अपना कैप्टन मानने वाले पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू का दावा है कि ये सब अफवाह है. सिद्धू का कहना है, 'पंजाब रैली को लेकर अफवाह फैलाई जा रही है... लोग छुट्टी पर जाते हैं... पंजाब में हमने उन्हें कभी चुनाव प्रचार के लिए तारीख नहीं दी थी.' सिद्धू का ये भी दावा है, 'एक दिन आप देखेंगे कि राहुल गांधी इस देश को बदल देंगे.'
ये सब कांग्रेस पार्टी का निजी मामला है, लिहाजा आखिर में वही माना जाएगा जो आधिकारिक तौर पर बताया जाएगा. सिद्धू की कितनी भी बड़बोले नेता की छवि क्यों न हो, कांग्रेस पदाधिकारी होने के नाते उनकी बातों पर भी राहुल गांधी जितना ही महत्व दिया जाना चाहिये - लेकिन कई मसले ऐसे हैं जिन पर राहुल गांधी अपनी बातों से खुद ही सवालों के घेरे में आ जाते हैं.
ताज्जुब की बात तो ये है कि भारत-चीन विवाद (Indo-China Dispute) जैसे बेहद नाजुक मामले पर भी राहुल गांधी को तीसरे दिन ही बैकफुट पर आना पड़ा है - और ये कोई जबान फिसल जाने जैसा मामला भी नहीं है.
विश्वसनीयता की फिक्र क्यों नहीं: नये साल के मौके पर चीन की तरफ से झंडा फहराने वाले वीडियो को लेकर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नये सिरे से हमला बोला था, लेकिन हकीकत मालूम होते ही नया बयान जारी करना पड़ा. नया ट्वीट नये रिएक्शन के तौर पर किया गया है, लेकिन लगता तो सफाई जैसा ही है. भले ही न पुराने बयान का खंडन किया गया हो, न माफी मांगी गयी हो.
गलवान घाटी में फौजी संघर्ष के बाद से ही राहुल गांधी लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ हमले को धारदार बनाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी आगे आकर सलाह दी है - और ऐसा भी हुआ है कि विपक्षी खेमे में कांग्रेस के फिलहाल सबसे मजबूत सहयोगी की भूमिका में नजर आ रहे एनसीपी नेता शरद पवार तक कांग्रेस के स्टैंड की आलोचना कर चुके हैं. शरद पवार के पूर्व रक्षा मंत्री होने के नाते उनकी बातों को काफी महत्वपूर्ण माना गया.
अभी अभी तो राहुल गांधी को एक कदम आगे बढ़ाने के बाद दो कदम पीछे हटते देखा गया है, चीनी राजदूत से गुपचुप मुलाकात को लेकर हमेशा ही केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के निशाने पर रहे राहुल गांधी ने हड़बड़ी में बहुत बड़ी गलती कर डाली है.
अब तो चीन को लेकर राहुल गांधी के स्टैंड पर ही संदेह होने लगा है - क्या राहुल गांधी को अपनी विश्वसनीयता की भी फिक्र नहीं रही?
ये कांग्रेस का प्रोपेगैंडा क्यों लगता है
जून, 2020 में गलवान घाटी के हिंसक संघर्ष में देश के 20 सैनिक शहीद हो गये थे - और खबर आयी कि कम से कम उतने ही चीन के भी फौजी मारे गये हैं. कई रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि संख्या ज्यादा भी हो सकती है. पहले तो चीन ऐसी रिपोर्ट को पूरी तरह खारिज करता रहा, लेकिन बाद में चीन ने माना कि उसके चार सैनिकों की मौत हुई थी.
कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की तोहमत क्या कम थी कि राहुल गांधी खुद को ही कठघरे में खड़ा करने लगे हैं!
तभी से राहुल गांधी हमेशा ही मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये रहते हैं. नवंबर, 2021 में तो राहुल गांधी ने केंद्र की मोदी सरकार पर चीन को लेकर झूठ बोलने का इल्जाम लगाया था. राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘मेरी संवेदनाएं उन जवानों के साथ हैं जो अपनी जान पर खेलकर हमारे बॉर्डर की रक्षा कर रहे हैं जबकि केंद्र सरकार झूठ पे झूठ बोल रही है.’
चीन का प्रोपेगैंडा चालू है: साल के आखिरी दिन राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा, 'अभी कुछ दिनों पहले हम 1971 में भारत की गौरवपूर्ण जीत को याद कर रहे थे... देश की सुरक्षा और विजय के लिए सूझबूझ व मजबूत फ़ैसलों की जरूरत होती है... खोखले जुमलों से जीत नहीं मिलती!'
अगले ही दिन, नये साल के मौके पर चीन के सरकारी मीडिया ने ट्विटर एक वीडियो शेयर करते हुए दावा किया, 'नये साल 2022 को गलवान घाटी में चीन का राष्ट्रीय झंडा लहराया... राष्ट्रीय झंडा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये एक बार बीजिंग के थियानमेन चौक पर भी लहराया था.'
एक दिन बाद राहुल गांधी भी गुस्से में लाल हो गये, लेकिन चीन पर नहीं - प्रधानमंत्री मोदी को निशाने बनाते हुए ट्विटर पर लिखा, 'मोदी जी, चुप्पी तोड़ो!'
गलवान पर हमारा तिरंगा ही अच्छा लगता है।
चीन को जवाब देना होगा। मोदी जी, चुप्पी तोड़ो!
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 2, 2022
बैकफुट पर आ गये राहुल गांधी: दो दिन बाद भारतीय सैनिकों की तस्वीर भी ट्विटर पर शेयर की गयी. बर्फ की चादर में ढकी पहाड़ी के बीच तिरंगा लहरा रहा था और सैनिकों के हाथों में भी अलग से देखा गया.
करते भी क्या - तस्वीर शेयर करते हुए राहुल गांधी ने नये सिरे से ट्विटर पर लिखा, 'भारत की पवित्र भूमि पर हमारा तिरंगा ही फहराता अच्छा लगता है.'
भारत की पवित्र भूमि पर हमारा तिरंगा ही फहराता अच्छा लगता है।#JaiHind #Galwan pic.twitter.com/NljDZiYLJx
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 5, 2022
Brave Indian Army soldiers in Galwan Valley on the occasion of #NewYear2022 pic.twitter.com/5IyQaC9bfz
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) January 4, 2022
ये समझना भी कई बार मुश्किल हो जाता है कि आखिर राहुल गांधी चीनी प्रोपेगैंडा में फंस जाते हैं, या उनकी टीम सही जानकारी नहीं दे पाती - या फिर वो हवा में ही हमला बोल देते हैं - निशाने पर तो उनके प्रधानमंत्री मोदी स्थायी भाव में रहते ही हैं.
शक पैदा होने की वजह भी तो राहुल गांधी ही हैं
अगर सौ बार झूठ बोलने पर एक बार उसके सच होने का भ्रम हो सकता है, तो एक बार का झूठ, सौ सच पर भी शक पैदा कर सकता है - चीन पर राहुल गांधी की हालिया बयानबाजी के बाद ऐसे सवाल उठने लगे हैं.
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चीन मसले को लेकर राहुल गांधी के बयान और कांग्रेस से जुड़े ऐसे कई मसले हैं जो संदेह की स्थिति पैदा करते हैं. ऐसे कई वाकये हैं जब लगता है कि कांग्रेस राजनीतिक दुश्मनी की वजह से बहाना खोज कर सिर्फ अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है - और फिर मामला ऐसे मोड़ पर पहुंच जाता है जब बचाव के बहाने भी ढूंढने पड़ते हैं.
1. जब सोनिया को झेलना पड़ा पवार का विरोध: गलवान घाटी हिंसा के बाद भारतीय सैनिकों के बगैर हथियार के ही चीनी फौज से भिड़ जाने की खबर आयी तो राहुल गांधी ने सरकार से पूछा कि आखिर सैनिकों को निहत्थे क्यों भेज दिया गया?
कुछ दिन बाद जब सर्वदलीय बैठक बुलायी गयी तो कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी पहुंचीं. सोनिया गांधी के पास सवालों की एक लंबी सूची थी - और अपनी बारी आते ही बौछार करने लगीं. संघर्ष से जुड़े डिटेल्स के साथ सोनिया गांधी ने जानना चाहा कि आखिर ये सब कैसे हुआ और क्यों हुआ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक में ही पहली बार अपनी तरफ से स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की थी. बोले, "भारतीय क्षेत्र में कोई न ही घुसा है - और न ही किसी सैन्य चौकी पर कब्जा हुआ है." प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान पर काफी बवाल भी हुआ और प्रधानमंत्री कार्यालय को सफाई तक देनी पड़ी थी.
बैठक में सोनिया के सवालों पर एनसीपी नेता शरद पवार ने मोर्चा संभाला और कांग्रेस नेतृत्व को संवेदनशील मुद्दों पर ध्यान रखने की नसीहद दी थी. राहुल गांधी के बयान की तरफ इशारा करते हुए शरद पवार ने कहा था, 'चीन सीमा पर सैनिक हथियार लेकर गये या नहीं, ये अंतरराष्ट्रीय समझौतों के आधार पर तय होता है - हम सभी को संवेदनशील मुद्दों का ध्यान रखना चाहिये.'
सोनिया गांधी के लिए शरद पवार की तरफ से ऐसी नसीहत सुनना भी दुर्लभ घटना थी. ये ठीक है कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार को कांग्रेस से निकाले जाने पर वो नयी पार्टी बना लिये, लेकिन फिर यूपीए में शामिल भी हुए और मनमोहन सरकार में मंत्री भी बने. यूपीए की चेयरपर्सन होने की वजह से एक तरीके से पवार ने सोनिया गांधी नेतृत्व स्वीकार ही किया था - और अभी की ही तो बात है, ममता बनर्जी के यूपीए के अस्तित्व पर सवाल उठाये जाने के बाद शरद पवार, सोनिया गांधी की बुलायी विपक्ष की मीटिंग में भी गये थे.
3. कांग्रेस पर समझौते का इल्जाम और सवाल: कांग्रेस और चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के बीच एक समझौते को लेकर भी राहुल गांधी और सोनिया गांधी को कठघरे में खड़ा किया जाता रहा है.
सीबीआई और एनआईए से जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी इस सिलसिले में एक अर्जी दाखिल की गयी थी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पहले हाई कोर्ट जाने की सलाह दी. याचिका में मीडिया रिपोर्ट के हवाले से कहा गया कि 2008 से लेकर 2013 के बीच चीन सीमा से करीब 600 बार घुसपैठ की घटनाएं हुईं, ऐसे में समझौते को सार्वजनिक किया जाये. सवाल ये भी उठाया गया कि दोनों देशों में दुश्मनी है फिर भी कांग्रेस ने दस्तखत किये?
2. चीनी राजदूत से मुलाकात: जुलाई, 2017 में दिल्ली स्थित चीनी दूतावास की तरफ से राहुल गांधी और चीन के राजदूत के मुलाकात का दावा किया गया था.
जब चीनी दूतावात ने अपनी वेबसाइट पर मीटिंग होने का दावा किया तो राहुल गांधी के दफ्तर से खंडन किया गया. कांग्रेस प्रवक्ताओं को जवाब देते नहीं बन रहा था और सोशल मीडिया पर सवाल खड़े किये जाने लगे थे. कुछ ही देर बाद दबाव महसूस होने पर कांग्रेस के मीडिया विंग की तरफ से कहा जाने लगा कि अगर मिल ही लिए तो गलत क्या किया? मजबूरन राहुल गांधी को ही आगे आकर मुलाकात की बात स्वीकार करनी पड़ी.
It is my job to be informed on critical issues. I met the Chinese Ambassador, Ex-NSA, Congress leaders from NE & the Bhutanese Ambassador
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 10, 2017
अगर राहुल गांधी के दफ्तर की तरफ से या फिर कांग्रेस के मीडिया विभाग की तरफ पहले ही सच को स्वीकार कर लिया गया होता तो क्या हो जाता? कांग्रेस प्रवक्ताओं को भी मुफ्त में फजीहत नहीं करानी पड़ती.
बार बार गले मिल कर आंख क्यों मारते हैं: चुनावी हार जीत अपनी जगह है, लेकिन हर नेता की अपनी साख होती है. चुनावों में भी लोग मैनिफेस्टो पर भरोसा करके ही वोट देते हैं - अगर नेता की बातों की वजह से ही भरोसा उठने लगा तो मैनिफेस्टो पर यकीन ही कौन करेगा. कांग्रेस के मैनिफेस्टो पर तो पहले से ही लोगों को यकीन नहीं हो रहा है. चुनाव दर चुनाव नतीजे तो यही साबित करते हैं.
बेशक अपने खिलाफ राजनीतिक दुष्प्रचार के चलते राहुल गांधी लोगों के बीच मजाक का पात्र बन जाते हैं, लेकिन कई बार तो ऐसा मौका कांग्रेस नेता खुद ही दे डालते हैं. संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नफरत पर भाषण देते देते तो उनकी सीट पर पहुंच जाते हैं और गले मिलने लगते हैं - और अपनी सीट पर लौटते ही आंख भी मार देते हैं.
क्या राहुल गांधी ने कभी सोचा है कि ऐसी हरकतों का उनकी छवि पर क्या असर पड़ता है? क्या राहुल गांधी को अपनी विश्वसनीयता की जरा भी फिक्र नहीं रही?
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