राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा का आदर्श स्वरूप महाराष्ट्र में दिखा पाएंगे क्या?
भारत जोड़ो यात्रा की परिकल्पना वैसी ही रही है जैसी महाराष्ट्र में विपक्षी दलों से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को अपेक्षा है, शर्त बस ये है कि शरद पवार (Sharad Pawar) और उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) वास्तव में कांग्रेस नेता के साथ कदमताल करने सड़क पर उतरे नजर आयें.
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भारत जोड़ो यात्रा शुरू होने के ठीक दो महीने बाद यानी 7 नवंबर को महाराष्ट्र में दाखिल हो रही है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने 7 सितंबर को ये यात्रा कन्याकुमारी से शुरू की थी - और फिलहाल वो तेलंगाना पहुंचे हुए हैं, जहां अगले साल के आखिर में विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं.
भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत अपेक्षाकृत अच्छी रही, कम से कम विपक्षी खेमे की राजनीतिक सपोर्ट के हिसाब से. तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने तिरंगा सौंप कर भारत जोड़ो यात्रा को आगे बढ़ाया था. कांग्रेस को अपेक्षा थी कि बीजेपी के खिलाफ खड़े विपक्षी दल भारत जोड़ो यात्रा को सपोर्ट करेंगे, लेकिन तमिलनाडु के बाद केरल, कर्नाटक और अब तेलंगाना तक ऐसा कुछ भी नहीं देखने को मिला है.
डीएमके नेता एमके स्टालिन खुल कर भारत जोड़ो यात्रा के सपोर्ट में खड़े देखे गये. वैसे भी पूरे देश में डीएमके ही ऐसी पार्टी है जो राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी का सरेआम समर्थन करती रही है. कांग्रेस के कुछ सहयोगी भी ऐसा करते हैं, लेकिन कई मौकों पर वे चुनाव जीतने के बाद इस मसले पर फैसला लिये जाने की बात करने लगते हैं.
महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथी विपक्षी दलों के नेताओं की तरफ से समर्थन मिलने की बातें राहुल गांधी को काफी राहत दे रही होंगी. करीब करीब उतनी ही राहत जितनी राहुल गांधी और सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद महसूस कर रहे हैं. हालांकि, खुल कर ये बात सिर्फ सोनिया गांधी ने ही कही है, राहुल गांधी ने नहीं.
शिवसेना में बगावत के बाद महाराष्ट्र में सत्ता बदल गयी और बीजेपी के सपोर्ट से एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गये. एकनाथ शिंदे से ठीक पहले महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के समर्थन से सरकार चला रहे थे. उद्धव ठाकरे की कुर्सी चली जाने के बाद महाराष्ट्र में सरकार चलाने के लिए बना महाविकास आघाड़ी गठबंधन भी शांत नजर आने लगा. महाराष्ट्र में क्रिकेट संघ के चुनाव के वक्त शरद पवार ने जैसी सक्रियता दिखायी, वो उद्धव ठाकरे की दशहरा रैली से काफी अलग नजर आयी.
उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) शिवाजी पार्क में हुई दशहरा रैली में एकनाथ शिंदे के खिलाफ काफी आक्रामक देखे गये थे. जवाबी हमला तो एकनाथ शिंदे ने भी किया था, लेकिन क्रिकेट संघ के चुनाव को लेकर आयोजित डिनर में एकनाथ शिंदे और शरद पवार के बीच काफी हंसी-मजाक वाले माहौल में बातचीत हुई. दोनों ही नेताओं ने एक दूसरे के प्रति आदर भाव प्रकट किया, लेकिन शरद पवार ने एकनाथ शिंदे को उनकी ही भाषा में जवाब भी दिया - और डिनर में शामिल डिप्टी सीएम और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस एक तरह से दोनों के कहे पर हां में हां मिलाते पाये गये थे.
शरद पवार (Sharad Pawar) और उद्धव ठाकरे दोनों ही ने महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं से ये वादा तो किया है कि महाराष्ट्र पहुंचने पर वे राहुल गांधी से निश्चित तौर पर मिलेंगे, लेकिन अभी ये पक्का नहीं हुआ है कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे सड़क पर उतर कर राहुल गांधी के साथ पदयात्रा में हिस्सा लेंगे या नहीं? और ये भी नहीं मालूम की यात्रा के दौरान होने वाली कांग्रेस की रैलियों में भी ये दोनों मंच शेयर करेंगे या नहीं - और कांग्रेस के सीनियर नेता बालासाहेब थोराट भी अभी बस इतना ही कह पा रहे हैं कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों ही राहुल गांधी से तो मिलेंगे, लेकिन ये पक्का नहीं है कि वे यात्रा में भी चलेंगे या नहीं?
कांग्रेस तक ही सिमटी रही है भारत जोड़ो यात्रा
भारत जोड़ो यात्रा की तैयारियों के दौरान ही परिकल्पना ये रही कि बीजेपी और उससे लगाव महसूस करने वालों को छोड़ कर बाकी साथ आ सकें. विपक्षी दलों के नेता भी भारत जोड़ो यात्रा में कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें. एहतियात भी बरते गये थे. तिरंगे के इस्तेमाल के पीछे भी मकसद यही रहा, कहीं कांग्रेस का झंडा देख कर विपक्षी दल बिदक न जायें.
जितनी जरूरत कांग्रेस को शरद पवार और उद्धव ठाकरे के सपोर्ट की है, उन्हें भी राहुल गांधी की उतनी ही जरूरत है.
एक तरीके से भारत जोड़ो यात्रा के जरिये विपक्षी एकजुटता के प्रयासों को जारी रखने की भी पूरी कोशिश रही, लेकिन चीजें पहले जैसी ही रहीं. आपसी वैचारिक दूरी बरकरार रही. और तमिलनाडु के बाद अब तक कांग्रेस के अलावा किसी और पार्टी का कोई नेता या कार्यकर्ता भारत जोड़ो यात्रा की तरफ देखा तक नहीं.
राहुल गांधी की यात्रा से विपक्षी खेमे के नेताओं के दूरी बनाने की वजह भी महत्वपूर्ण रही. भारत जोड़ो यात्रा का प्लान और रूट ही ऐसा बनाया गया जो शायद ही किसी को ठीक लगा हो. अच्छा तो डीएमके नेता स्टालिन को भी नहीं लगा होगा, केरल में तो लेफ्ट नेताओं के विरोध के स्वर ही फूट पड़े थे. वैसे भी कांग्रेस के जो साथी दल है, राहुल गांधी उनके लिए मुश्किल ही खड़ा कर रहे थे. जिस जमीन से संघ और केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी का विरोध हो रहा है, वहां क्षेत्रीय दल के खिलाफ खड़ी होकर कांग्रेस भी तो वही काम कर रही है, जैसे आरोप राष्ट्रपति चुनाव में ममता बनर्जी पर लगे, और बाकी वक्त अरविंद केजरीवाल पर लगते हैं.
कहने को तो भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक दिग्विजय सिंह ने पहले ही बोल दिया था कि राजनीतिक मकसद लिये होकर भी यात्रा का दायरा कांग्रेस पार्टी तक सीमित नहीं रहने वाला है. दिग्विजय सिंह के समझाने का तो यही मतलब रहा कि यात्रा न सिर्फ लोगों को जोड़ने और लोगों से जुड़ने की कोशिश है, बल्कि संघ और बीजेपी के विरोध में खड़े राजनीतिक दलों के लिए विरोध का मंच भी है. राहुल गांधी भी पूरे रास्ते दोहराते रहे हैं कि भारत जोड़ो यात्रा लोगों के बीच नफरत फैलाने वालों के खिलाफ यानी कांग्रेस के राजनीतिक विरोधी बीजेपी के खिलाफ ही है.
केरल में कांग्रेस की यात्रा के रूट के विरोध के स्वर तो धीमे पड़ गये, लेकिन कोई आगे नहीं आया. कांग्रेस इंतजार करती रह गयी, लेकिन पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के अलावा हर कोई यात्रा से दूरी ही बनाये रखा. कर्नाटक में सरकार तो बीजेपी की ही है, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस तो सपोर्ट में खड़ी हो ही सकती थी. वैसे भी 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी कांग्रेस के सपोर्ट से ही मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन बाद बीजेपी के ऑपरेशन लोटस के शिकार होकर सरकार गवां देने के बाद कांग्रेस से भी दूरी बना ली. अगले चुनाव में जेडीएस ने तेलंगाना में सत्ताधारी टीआरएस से बीआरएस बन चुकी मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की पार्टी से हाथ मिला रखा है - और यही वजह रही होगी कि केसीआर ने भी भारत जोड़ो यात्रा की तरफ झांकने की भी जरूरत नहीं समझी. वैसे भी राहुल गांधी का रुख तेलंगाना में केसीआर सरकार के खिलाफ बीजेपी से जरा भी अलग नहीं रहा है.
अब जबकि भारत जोड़ो यात्रा महाराष्ट्र के मुहाने पर पहुंचने वाली है, निश्चित तौर पर राहुल गांधी और उनके साथियों को काफी उम्मीदें होगीं - और जाहिर है, महाविकास आघाड़ी के बाकी साथियों को भी एकनाथ शिंदे सरकार और बीजेपी के खिलाफ विरोध का बड़ा मौका देगी.
महाराष्ट्र में दिखेगी तमिलनाडु की झलक
भारत जोड़ो यात्रा 7 नवंबर को नांदेड़ से महाराष्ट्र में एंट्री करेगी और अगले दो हफ्तों तक हिंगोली, वाशिम और बुलढाणा जिलों से होते हुए 382 किलोमीटर की दूरी तय करेगी - महाराष्ट्र में कांग्रेस ने विपक्ष के साथ मंच शेयर करने के मकसद से दो रैलियां भी प्लान की है. एक नांदेड़ में और दूसरी शेगांव, बुलढाणा में.
एनसीपी नेता शरद पवार ने भी साफ साफ ये तो नहीं बताया है कि वो भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने जा रहे हैं, लेकिन खुल कर सपोर्ट जरूर किया है. मीडिया के सवालों के जवाब में शरद पवार का कहना रहा, 'हम मानते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस की तरफ से शुरू किया गया एक कार्यक्रम है... ये समाज में समरसता बहाल करने वाली एक पहल है... एक अच्छा कदम है... भले ही हम अलग पार्टी से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन हममें से कुछ लोग जहां भी संभव हो यात्रा शामिल होंगे.'
देखा जाये तो राहुल गांधी के लिए ये बहुत बड़ा सपोर्ट है. खास कर तब जबकि क्रिकेट की राजनीति को लेकर जिस तरीके से शरद पवार ने ऐसे उम्मीदवार को सपोर्ट किया था जिसका बीजेपी से संबंध है - और जिस तरह से एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के साथ डिनर में माहौल देखा गया, कांग्रेस से ज्यादा तो उद्धव ठाकरे को चिंता हो रही होगी.
महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी और शरद पवार भले ही अलग अलग छोर पर खड़े हैं, लेकिन दोनों की सोच एक जैसी ही है. दोनों के ही निशाने पर कांग्रेस रही है. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो कांग्रेस को महाराष्ट्र में बर्बाद करने में दोनों में कोई उन्नीस-बीस नहीं लगता. और कांग्रेस के बाद अब उनके निशाने पर शिवसेना है. शिवसेना का जो हाल हो रखा है, दुनिया देख रही है.
भारत जोड़ो यात्रा से एकनाथ शिंदे सरकार की सेहत पर कोई खास फर्क पड़े न पड़े, लेकिन महाविकास आघाड़ी के घटक दलों के लिए राहुल गांधी ने एकजुट विरोध का एक मौका देने की कोशिश तो की ही है - और बदले में शरद पवार और उद्धव ठाकरे का सपोर्ट भी मिल ही रहा है.
महाराष्ट्र में ढाई साल तक सरकार चला चुका विपक्षी गठबंधन भारत जोड़ो यात्रा में एक मंच पर नजर आएगा - ऐसा प्रचारित किया जा रहा है. संभव है, शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों ही राहुल गांधी के साथ सड़क पर कदमताल न कर पायें, लेकिन सार्वजनिक तौर पर एमके स्टालिन के अलावा किसी ने सपोर्ट भी तो नहीं किया है.
ध्यान रहे, महाराष्ट्र में 2024 के आम चुनाव के ठीक बाद ही विधानसभा के लिए भी चुनाव होंगे - और उससे पहले भारत जोड़ो यात्रा का विपक्ष के लिए कॉमन प्लेटफॉर्म बनना कोई कम महत्व वाली बात भी तो नहीं है.
नाना पटोले के लिए इम्तिहान की घड़ी है: महाराष्ट्र में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले हैं - और खास बात ये है कि वो राहुल गांधी के पैमाने पर खरा उतरने वाले निडर नेताओं और पसंदीदा नेताओं की कैटेगरी में आते हैं.
समझने वाली बात ये है कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे को न्योता देने वाले प्रतिनिधिमंडल का न तो नाना पटोले नेतृत्व कर रहे थे, न ही उसमें शामिल थे. असल में, ऐसा होने की खास वजह लगती है. महाविकास आघाड़ी की सरकार के दौरान भी नाना पटोले अलग ही राग सुनाते रहते थे. कई बार तो टकराव जैसी स्थिति भी लगने लगी थी. एक बार तो नाना पटोले अपने बूते कांग्रेस की सरकार बनवाने के दावे करने लगे थे. वो बहुमत की बात तो नहीं कर रहे थे, लेकिन इतनी सीटों की उम्मीद जरूर जता रहे थे कि कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कर सके.
और यही वजह रही कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे को भारत जोड़ो यात्रा का न्योता देने बालासाहेब थोराट और अशोक चव्हाण गये थे - क्योंकि नाना पटोले के जाने पर दोनों तैयार होते, कहना मुश्किल होता. ये भी हो सकता है कि नाना पटोले ने जाने से मना कर दिया हो, और इतनी हैसियत तो रखते ही हैं कि राहुल गांधी को अशोक गहलोत और भूपेश बघेल की तरह समझा लें.
बीजेपी-शिवसेना का रिस्पॉन्स कैसा होगा
कांग्रेस ने कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा का असर तो देख लिया है, महाराष्ट्र में वैसे ही असर का इंतजार है. ये भारत जोड़ो यात्रा का असर नहीं तो क्या है कि कर्नाटक में बीजेपी ने जन-संकल्प यात्रा शुरू कर दी है.
बीजेपी की जन-संकल्प यात्रा का नेतृत्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी अकेले नहीं कर रहे हैं, उनकी मदद के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की भी बीजेपी नेतृत्व ने ड्यूटी लगा दी है. येदियुरप्पा को हाल ही में बीजेपी के संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है, जिसे 2023 में होने जा रहे कर्नाटक विधानसभा चुनाव के साथ साथ 2024 में दक्षिण भारत में बीजेपी की पैठ बढ़ाने के मकसद से उठाया गया कदम माना जा रहा है.
जन-संकल्प यात्रा के शुरू होने से पहले भी बीजेपी सरकार की एक पहल बचाव में उठाया गया कदम लगा. कर्नाटक में चालीस फीसदी कमीशन का जिक्र तो किसी न किसी बहाने से कर ही लेते हैं, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने एक दिन बोल दिया था कि SC-ST के लोगों के लिए आरक्षण बढ़ाने को लेकर जस्टिस नागमोहन दास की सिफारिशों को बीजेपी की सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. फिर क्या था मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने आनन फानन में सर्वदलीय बैठक बुला ली, और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया के साथ साथ जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी को भी मीटिंग में शामिल किया.
अब जन-संकल्प यात्रा पर निकले बसवराज बोम्मई और बीएस येदियुरप्पा के होसपेट के नजदीक एक गांव में एक दलित परिवार के घर पर नाश्ता करने की भी खबर आयी है - आखिर ये राहुल गांधी की यात्रा और मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का असर नहीं तो क्या है? अब तो राहुल गांधी को महाराष्ट्र में भी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस से ऐसी ही अपेक्षा होगी. होनी भी चाहिये.
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