उत्तर कोरिया की सनक का कारण महात्मा गांधी हैं!
कई विद्वान मानते हैं कि कोरियाई स्वाधीनता संग्राम गांधी जी के विचारों से प्रभावित था. गांधीजी की तरह उन्होंने भी असहयोग और स्वदेशी आंदोलन शुरू किया.
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उत्तर कोरिया के लगातार मिसाइल और परमाणु परीक्षणों के कारण पूरा कोरियाई प्रायद्वीप भारी तनाव में है. साथ ही दुनिया परमाणु संकट के संभावनाओं से डरी हुई है. दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिकी द्वीप गुआम में उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किम जोंग उन के कारण लोगों को परमाणु हमला से निपटने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है. ऐसे में उत्तर कोरिया जैसे तानाशाह देश से क्या गांधी जी का कोई संबंध हो सकता है?
उत्तर कोरिया के कारण दुनिया परमाणु युद्ध से भी खतरनाक हाइड्रोजन बम के हमले के संभावित खतरे से सहमी हुई है. वहीं दूसरी ओर महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा को जीवन का साध्य मानते थे. ऐसे में महात्मा गांधी का कोई संबंध उत्तर कोरिया से हो यह सपने से भी परे लगता है. उत्तर कोरिया ने अब राजधानी प्योंगयांग में भी मिसाइलों की तैनाती कर ली है. विश्व समुदाय के तमाम दबावों का उल्लंघन कर उत्तर कोरिया विश्व शांति के लिए खतरा बना हुआ है. वो जापान को समुद्र में डूबा देने की धमकी देता है. अमेरिका को परमाणु विस्फोट से जला देने की धमकी देता है. ऐसे में महात्मा गाँधी के वैचारिक दर्शन और वर्तमान उत्तर कोरिया में कोई भी समानता नहीं है. लेकिन महात्मा गांधी के उत्तर कोरिया से संबंध थे.
गांधी और कोरिया!
डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (डीपीआरके) अर्थात् उत्तर कोरिया को दुनिया आज सनकी तानाशाह देश के रुप में देखता है. लेकिन डीपीआरके की स्थापना करने वाले किम अल सुंग, गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन को कोरियाई स्वाधीनता संग्राम में मददगार मानते थे. किम अल सुंग मार्क्सवादी थे. साथ ही वो गांधीजी की बड़ी इज्जत करते थे.
अपनी किताब "विद अ सेंचुरी" में किम अल सुंग लिखते हैं- "मुझे इस बात का आश्चर्य हुआ कि कोरियाई प्रायद्वीप के एक पहाड़ी गांव में गांधी की पूजा करने वाले वृद्ध अनुयायी भी हैं. मुझे लगता है कि इस वृद्ध व्यक्ति को किसी कोरियाई अखबार में छपा गांधी का पत्र दिखाया है. इसके बाद से ये व्यक्ति अहिंसा से आजादी हासिल करने की बात को लोगों के बीच पहुंचा रहा है." 1926 के दौर में किम अल सुंग की गांधी जी के विचारों से सहमति नहीं थी.
कोरियाई स्वाधीनता संग्राम गांधीजी से प्रभावित-
कई विद्वान मानते हैं कि कोरियाई स्वाधीनता संग्राम गांधी जी के विचारों से प्रभावित था. गांधीजी की तरह उन्होंने भी असहयोग और स्वदेशी आंदोलन शुरू किया. इन आंदोलनों के नेता चो मन सिक को "कोरिया का गाँधी" भी कहते हैं. सिक गांधी जी से काफी प्रभावित थे.
इसके अलावा एक कोरियाई अखबार के संपादक किम संग सू ने गांधीजी को पत्र लिखकर कोरियाई लोगों को संदेश देने को कहा था. उसके जवाब में गांधीजी ने एक वाक्य में लिखा- "मैं बस ये कह सकता हूं कि कोरिया अहिंसा के रास्ते पर चलता हुआ आजादी प्राप्त करेगा." ये पत्र कोरियाई अखबार डोंगा-इल्बों में छपा था.
बीबीसी के एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर कोरिया के गांधी चो मन सिक का जन्म उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग में हुआ था. द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद कोरिया को दो हिस्से में बांटने की प्रक्रिया शुरु हुई. इस बंटवारे में तय किया गया कि अमेरिका के हिस्से दक्षिण कोरिया और सोवियत संघ के हाथ में उत्तर कोरिया जाएगा.
दक्षिण कोरिया में गांधीजी के विचार प्रमुख, लेकिन उत्तर कोरिया में गौण क्यों?
अमेरिका ने शीत युद्ध की गर्माहट के बीच 1947 में कोरियाई मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में पहुंचाया. फिर 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने कोरियाई गणतंत्र को मान्यता दी. इसके बाद 1950 में भयानक कोरियाई युद्ध शुरू हो गया, जो अंततः कोरिया के बंटवारे के बाद ही खत्म हुआ.
बंटवारे के बाद भी दक्षिण कोरिया में गांधी का महत्व बना रहा. लेकिन उत्तर कोरिया में गांधीजी का महत्व धीरे-धीरे घटता चला गया. आखिर उत्तर कोरिया में गांधी का महत्व क्यों घटा? दरअसल बंटवारे के बाद उत्तर कोरिया में वामपंथी विचारधारा का विकास हुआ तो दक्षिण कोरिया में लोकतांत्रिक विचारधारा का. उत्तर कोरिया पर साम्यवादी सोवियत संघ का प्रभाव था. ऐसे में उत्तर कोरिया के वामपंथी विचारों का गांधीवादी विचारों से तालमेल नहीं हो सका. फलत: गांधी जी का महत्व उत्तर कोरिया में घटता चला गया.
उत्तर कोरिया के महात्मा गांधी से संबंध के बारे में इतना कहा जा सकता है कि प्योंगयांग के गांधीवादी नेता चो मन सिक अहिंसा के सिद्धांत के आधार पर जापान के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे. लेकिन अब प्योंगयांग को पूरी दुनिया में परमाणु हमले के संकटदाता के रुप में देखा जा रहा है. कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव चरम पर है. काश उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन अपने गांधीवादी नेता चो मन सिक के सिद्धांतों का अनुपालन करें तथा महाशक्तियां भी स्वार्थरहित होकर गांधीवादी व्यापक सत्य, अहिंसा एवं विश्वशांति के मूल्यों को स्वीकार करें तो कोरियाई प्रायद्वीप से परमाणु संकट को टाला जा सकेगा.
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