सचिन पायलट केस ही तय करेगा कि अशोक गहलोत रबर स्टांप बनेंगे या नहीं?
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का मूड भांप लेने के बाद से ही अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने पैंतरा बदल लिया है, लेकिन अब भी वो राजस्थान को पकड़ कर बैठे हुए हैं - ताकि मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़े तो भी वो सचिन पायलट (Sachin Pilot) को नहीं मिलनी चाहिये.
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अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के निर्विरोध कांग्रेस अध्यक्ष बनने की संभावना अभी तो कहीं से भी नजर नहीं आ रही है, लेकिन चुनाव होने की स्थिति में भी उनकी ही जीत पक्की मानी जा रही है. कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने एक अन्य दावेदार शशि थरूर पर हमला बोल कर तस्वीर काफी हद तक साफ कर दी है.
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के अशोक गहलोत की पीठ पर हाथ रखने की वजह से भी हर कोई मान कर चल रहा है कि कुर्सी पर तो वो ही बैठेंगे. फिर भी शशि थरूर जैसे कई नाम चर्चा में हैं जो नामांकन दाखिल कर सकते हैं.
कांग्रेस प्रवक्ता को ये कहते सुना गया कि शशि थरूर का एक ही योगदान है कि जब सोनिया गांधी बीमार थीं तो वो चिट्ठी लिखे थे. गौरव वल्लभ का इशारा शशि थरूर के खत्म हो चुके कांग्रेस के बागी गुट जी-23 का सदस्य होने को लेकर था.
अब जबकि कांग्रेस का आधिकारिक प्रवक्ता किसी संभावित उम्मीदवार के बारे में ऐसी बातें कर रहा हो तो चुनाव होने न होने का क्या मतलब रह जाता है. कहने को तो सोनिया गांधी ने भी साफ कर दिया है कि वो किसी का पक्ष नहीं लेंगी - और राहुल गांधी नामांकन शुरू होने से लेकर आखिर तक अपनी भारत जोड़ो यात्रा में ही व्यस्त रहने वाले हैं, लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता का बयान तो गांधी परिवार के दूरी बनाने के संदेश को भी इमानदार नहीं रहने देता.
अशोक गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने की घोषणा तो कर ही दी है, अपनी तरफ से ये भी जताने और बताने की कोशिश की है कि वो राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ सकते हैं - लेकिन जो चक्रव्यूह रच रहे हैं, उससे ये तो साफ है कि सचिन पायलट से मुख्यमंत्री की कुर्सी अब भी काफी दूर है.
पहले से ही ये चर्चा रही कि राहुल गांधी ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का वादा कर रखा है. ऐसा वादा तो राहुल गांधी के नाम पर प्रियंका गांधी वाड्रा की तरफ से भी किया गया बताया जा रहा है. एक बार जब राहुल गांधी ने सचिन पायलट के पेशेंस की तारीफ की थी, तो तंज के साथ साथ वादे के रिमाइंडर के तौर पर ही देखा गया था.
सचिन पायलट (Sachin Pilot) का मामला अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर पहली अग्निपरीक्षा जैसा तो है ही, राहुल गांधी के लिए भी ये ऐसा मौका है जिससे पता चलेगा कि वो वादे के कितने पक्के हैं. ऐसा ही वादा तो राहुल गांधी छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव से भी कर चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं कि हाथ ही नहीं आ रहे हैं. कभी प्रवर्तन निदेशालय की मुसीबत तो कभी कुछ और, मुश्किल ये है कि राहुल गांधी भी भूपेश बघेल पर दवाब नहीं बना पा रहे हैं.
ये तो सबने देखा ही कि कैसे भूपेश बघेल और अशोक गहलोत के कंधे पर ही प्रवर्तन निदेशालय से पूछताछ के दौरान सारा भार आ गया था. मुख्यमंत्री होने की वजह से दोनों नेताओं के लिए मोर्चे पर मजबूती के साथ खड़े होने और अपनी बात मीडिया के जरिये लोगों तक पहुंचाने का पूरा मौका मिल रहा था.
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को जिस तरह भूपेश बघेल नचा रहे हैं, अशोक गहलोत भी अपने तरीके से वैसे ही ट्रीट करते हैं. कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद तो अशोक गहलोत और भी बड़े रिंग मास्टर की भूमिका में आ जाएंगे - और ये भी तभी मालूम हो सकेगा कि अशोक गहलोत रबर स्टांप कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं या अपनी चालों से राहुल गांधी को भी घुमाते फिरते हैं?
गहलोत ने पूरा जाल ही बिछा रखा है
पहले तो अशोक गहलोत अलग ही माहौल बनाये हुए थे, लेकिन जैसे ही राहुल गांधी ने 'एक व्यक्ति, एक पद' वाले उदयपुर चिंतन शिविर में किये गये कमिटमेंट पर कायम रहने की बात कही, अशोक गहलोत के तेवर पूरी तरह नरम पड़ गये.
कहने लगे, मैं नामांकन करूंगा, फिर देखते हैं क्या माहौल बनता है... चुनाव भी हो सकता है. ऐसा लगता है जैसे पहले अशोक गहलोत को लगता हो कि सोनिया गांधी ने बोल दिया तो चुनाव प्रक्रिया तो औपचारिकता भर रह जाएगी, लेकिन अब उनकी बातों से लगता है कि चुनाव का सामना करना ही पड़ेगा. दिग्विजय सिंह ने तो अपना नाम मजाकिया लहजे में ही आगे बढ़ाया है, लेकिन शशि थरूर तो फॉर्मल तरीके से आगे आये हैं. साथ ही मनीष तिवारी, मल्लिकार्जुन खड़गे, मुकुल वासनिक और कमलनाथ जैसे नेताओं के नाम भी उम्मीवारों के तौर पर फिलहाल लिये जा रहे हैं.
सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत का झगड़ा भारत जोड़ो यात्रा तक पहुंच चुका है
जब अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने का फैसला सुनाया तो राजस्थान में उनके उत्तराधिकारी को लेकर सवाल पूछे जाने लगे. ये भी पूछा गया कि क्या नये मुख्यमंत्री के चयन में उनकी भी कोई भूमिका होगी? अशोक गहलोत का कहना रहा, 'मैं कोच्चि में खड़ा होकर ये नहीं कह सकता... राजस्थान में पार्टी मामलों के प्रभारी अजय माकन और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी राजस्थान में संबंधित घटनाक्रमों और ये कब किया जाना है... फैसला लेंगे.'
लेकिन लगे हाथ वो ये भी याद दिलाना नहीं भूले कि कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद भी राजस्थान की राजनीति वो नहीं छोड़ने वाले हैं. हालांकि, बताने का तरीका भावनात्मक ही रहा. अशोक गहलोत ने समझाया कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी वो राजस्थान से दूर नहीं जाएंगे. बोले, 'जिस राज्य से मैं आता हूं... जिस गांव में मैं पैदा हुआ, वहां के लोगों से दूर जैसे जा सकता हूं... वहां के लोगों की सेवा करता रहूंगा.'
सचिन के खिलाफ गहलोत की बाड़ाबंदी: अशोक गहलोत राजस्थान में अपनी ताकत तो समझते ही हैं, ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि सचिन पायलट कहां कहां पेंच फंसा सकते हैं - और ये भी जानते हैं कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सामने उनका कौन सा दांव असरदार होगा.
समझा जाता है कि अशोक गहलोत ने अपनी जगह राजस्थान के मुख्यमंत्री के तौर पर सोनिया गांधी को सीनियर नेता और विधानसभा में मौजूदा स्पीकर सीपी जोशी का नाम सुझाया है. एक दौर ऐसा भी रहा जब सीपी जोशी और अशोक गहलोत की आपस में नहीं बनती थी, लेकिन कॉमन दुश्मन नजर आये तो हाथ तो मिलाया ही जा सकता है. अशोक गहलोत ने बिलकुल ऐसा ही किया है.
अब ये भी जरूरी तो नहीं कि राहुल गांधी के मन में कुछ और चल रहा हो तो भी अशोक गहलोत अपनी दलीलों के दम पर सीपी जोशी के नाम पर सहमति ले लें. और यही वजह समझी जाती है कि अशोक गहलोत ने कुछ और भी नामों के साथ संभावितों की एक सूची तैयार कर ली है.
सीपी जोशी का नाम पसंद न आने की सूरत में अशोक गहलोत रघु शर्मा और बीडी कल्ला जैसे कांग्रेस नेताओं का नाम आगे कर सकते हैं. ये दोनों ही नेता सीपी जोशी वाली ब्राह्मण बिरादरी से ही आते हैं और सचिन पायलट के प्रभावों को अपने स्तर पर न्यूट्रलाइज कर लेने में सक्षम देखे गये हैं.
वैश्य समुदाय से आने वाले शांतिलाल धारीवाल के नाम की भी चर्चा है. शांतिलाल धारीवाल का भी सूबे की सियासत पर अच्छा प्रभाव है और अशोक गहलोत के करीबी नेताओं में ही गिने जाते हैं. अनुसूचित जाति से आने वाले परसादी लाल मीणा भी अशोक गहलोत की बदौलत एक मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं.
देखा जाये तो अशोक गहलोत ने राहुल गांधी को उलझाने का पूरा इंतजाम कर रखा है, ऐसे में देखना ये होगा कि राहुल गांधी वैसी ही सख्ती दिखा पाते हैं या नहीं जैसे 'एक व्यक्ति, एक पद' के कमिटमेंट के मामले में दिखायी है - हो सकता है, अशोक गहलोत ने वैसी स्थिति के लिए भी कुछ सोच रखा हो.
सचिन पायलट के समर्थकों की आशंका सही है
सचिन पायलट के राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में देखे जाने के बाद लोगों को दोनों नेताओं के पिता राजीव गांधी और राजेश पायलट की दोस्ती की याद आने लगी है. अगर कोई ये सब नहीं देख पा रहा है या देखना नहीं चाह रहा है या फिर उसे ये सब फूटी आंख भी नहीं सुहा रहा है तो वो हैं - अशोक गहलोत.
कांग्रेस के ही एक हैंडल से दोनों तस्वीरें पोस्ट किये जाने के बाद सचिन पायलट ने इसे रीट्वीट किया है. असल में सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट को राजनीति में लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ही थे.
like father, like son♥️#BharatJodoYatra pic.twitter.com/fSvFPPVhPu
— UP Congress (@INCUttarPradesh) September 21, 2022
सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने के रास्ते की बाधाएं तो अपनी जगह बनी हुई हैं, लेकिन राहुल गांधी सहित पूरे गांधी परिवार के मन में उनके प्रति पुरानी धारणा में थोड़ी तब्दीली आयी है. सचिन पायलट अपने एक्शन से गांधी परिवार को ये भरोसा दिलाने में सफल रहे हैं कि वो साजिशों के शिकार रहे हैं.
राहुल गांधी से बेहतर अशोक गहलोत को भला कौन जानता होगा. 2019 की हार के बाद अगर राहुल गांधी ने खुल कर कह दिया था कि कैसे अशोक गहलोत ने बेटे को टिकट देने के लिए दबाव बनाया था, तो ऐसा ही समझा जाना चाहिये कि उनका धैर्य जवाब दे गया था. बाद के दिनों में अजय माकन के फोन कॉल को अनसुना कर अशोक गहलोत ने अपनी भी साख में कमी करा डाली है, लेकिन कुछ पुराने एहसान और कुछ देश के मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में उनकी काबिलियत की जरूरत ने अशोक गहलोत को महत्वपूर्ण बनाया हुआ है.
सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने के लिए ये जरूरी तो है कि राहुल गांधी अपनी बात पर अड़े रहें, लेकिन ये चीज भी उतना ही जरूरी है कि कैसे अशोक गहलोत की चालों को समझा जाये?
1. जल्दी से जल्दी इस्तीफा दिलाना जरूरी है: अव्वल तो अशोक गहलोत चाहते हैं कि राजस्थान सरकार का बजट पेश करने के बाद ही कुर्सी छोड़ें. बजट अगले साल फरवरी में पेश किया जाएगा और छह महीने में अपने लिए नयी तरकीब निकाल सकते हैं. ऐसी तरकीबों में सचिन पायलट को किसी न किसी तरीके से फंसा कर उनकी घेरेबंदी भी शामिल हो सकती है.
सचिन पायलट के समर्थक चाहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व इस बात का दबाव बनाये कि अशोक गहलोत पहले नहीं तो कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल करने के फौरन बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा सौंप दें. इस्तीफा तो राज्यपाल को सौंपा जाना चाहिये, लेकिन अगर वो राहुल गांधी को भी सौंप देते हैं तो उम्मीद कायम रहेगी. वैसे तो अशोक गहलोत का दावा रहा है कि जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तभी वो अपना इस्तीफा सोनिया गांधी के पास रख दिये थे.
2. कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद हालात बेकाबू हो सकते हैं: अगर अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष के लिए होने वाले चुनाव से पहले इस्तीफा नहीं दिया तो उनको नये सिरे से सचिन पायलट की राह में मुश्किलें खड़ी करने का मौका मिल जाएगा.
एक बार कांग्रेस अध्यक्ष बन गये तो अशोक गहलोत को इग्नोर करना संभव भी नहीं होगा. जब भी मुख्यमंत्री का चुनाव होगा तो कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते अशोक गहलोत की बात सोनिया गांधी को भी सुननी होगी, और राहुल गांधी को भी सुननी ही पड़ेगी - वरना, वो किसी न किसी तरीके से पेंच फंसा सकते हैं.
ये भी नहीं भूलना चाहिये कि बीजेपी नेता वसुंधरा राजे से भी अशोक गहलोत के अच्छे संबंध रहे हैं - और सचिन पायलट तो अशोक गहलोत पर बीजेपी नेता की मदद करने जैसा आरोप भी लगा चुके हैं. जरा सोचिये, कुछ भी हो सकता है.
3. कहीं राहुल गांधी को ही रबर स्टांप न बना लें: ये भी है कि अगर अपनी बात न मानने के रिएक्शन में अशोक गहलोत कोई ऐसी राजनीतिक चाल चल देते हैं जिसके नतीजे कांग्रेस के खिलाफ आते हैं तो सवाल तो उन पर भी उठेंगे ही - लेकिन तब वो ये साबित करने की कोशिश करेंगे कि जो कुछ हुआ वो उनकी बात मान ली गयी तो नहीं होती.
फिर भी, अगर चाह कर भी राहुल गांधी सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बना पाते हैं तो मान कर चलना होगा कि अशोक गहलोत के आगे किसी की नहीं चल रही है - और उनके अध्यक्ष बन जाने के बाद तो और भी मुश्किल होगा. भले ही वो पूरी मनमानी न कर पायें, लेकिन उनके मन के खिलाफ काम हुआ तो वैसे ही पेंच फंसा सकते हैं जैसे सरकारी दफ्तरों के बाबू जब चाह लेते हैं तो काम होने ही नहीं देते.
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