उद्धव-कोश्यारी विवाद में शरद पवार की दिलचस्पी भी दिलचस्प लगती है!
उद्धव ठाकरे को लिखे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) के पत्र की भाषा पर अमित शाह (Amit Shah) के सपोर्ट न करने के बाद शरद पवार (Sharad Pawar) खासे एक्टिव नजर आ रहे हैं - आखिर पवार क्यों चाहते हैं कि कोश्यारी इस्तीफा दे दें?
-
Total Shares
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने एक ही टीवी इंटरव्यू में कई सारे सवालों के जवाब दे दिये हैं. बिहार चुनाव में चिराग पासवान की सक्रियता के बीच नीतीश कुमार को लेकर बीजेपी के रुख पर भी - और यूपी के हाथरस गैंगरेप से लेकर महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) की चिट्ठी से पैदा हुए विवाद पर भी. अमित शाह के बयान पर चिराग पासवान ने भी रिएक्ट किया है और शिवसेना ने भी, लेकिन एनसीपी नेता शरद पवार (Sharad Pawar) का रिएक्शन थोड़ा अलग इशारे कर रहा है.
राज्यपाल की चिट्ठी पर अमित शाह की प्रतिक्रिया के बाद भगत सिंह कोश्यारी को शरद पवार कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं - और लगे हाथ इस्तीफा देने के लिए तंज और नसीहतभरी चुनौती भी. वो भी तब जबकि शिवसेना ने अमित शाह की बातों से ही संतोष कर लिया है. सवाल है कि उद्धव-कोश्यारी विवाद में शरद पवार की क्या दिलचस्पी हो सकती है - जो भी हो शरद पवार की दिलचस्पी लगती तो काफी दिलचस्प है.
शरद पवार राज्यपाल का इस्तीफा क्यों चाहते हैं
महाराष्ट्र में धर्म स्थलों को खोले जाने को लेकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बड़ा ही दिलचस्प पत्र लिखा था. पत्र में लिखे शब्दों को लेकर खासा विवाद हुआ और राजभवन की मर्यादा पर सवाल खड़े किये गये. चूंकि राज्यपाल के पत्र का जवाब देना जरूरी था इसलिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने जवाब तो दिया ही उसे सोशल मीडिया पर शेयर भी किया गया. राज्यपाल का पत्र तो पहले ही सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका था.
बतौर बीजेपी नेता भगत सिंह कोश्यारी अगर वो पत्र लिखे होते तो शायद ही किसी को ऐतराज होता. भगत सिंह कोश्यारी बीजेपी के सीनियर नेता रहे हैं और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. भगत सिंह कोश्यारी का पत्र राजभवन से मुख्यमंत्री को पहुंचा था और पत्र में जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया था उस पर उद्धव ठाकरे क्या संविधान और लोक तंत्र में आस्था रखने वाले किसी को भी आपत्ति होती ही.
भगत सिंह कोश्यारी के पत्र को लेकर पूछे गये सवाल पर अमित शाह ने कहा कि पत्र में कुछ शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये था. उनसे बेहतर शब्द इस्तेमाल किये जा सकते थे.
अगर गवर्नर बहाना हैं तो शरद पवार का निशाना कहां है?
दरअसल, लॉकडाउन और कोरोना संकट के बाद महाराष्ट्र में मंदिर न खोले जाने को लेकर बीजेपी के कुछ नेताओं ने राज्यपाल के पत्र के पहले ही आपत्ति जतायी थी. राज्यपाल ने उसी बात को आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिख डाला. पत्र में भगत सिंह कोश्यारी ने व्यंग्यात्मक लहजे में उद्धव ठाकरे को 'हिंदुत्व के मजबूत समर्थक' होते हुए भी मंदिर न खोलने पर हैरानी जतायी थी. राज्यपाल ने लिखा है, 'पूजा स्थलों को फिर से खोले जाने के कदम को स्थगित करने के लिए कोई दैवीय आदेश मिल रहा है - या फिर आप स्वयं को 'धर्मनिरपेक्ष' बना चुके हैं?
राज्यपाल के पत्र में सबसे ज्यादा आपत्तिजनक बात थी - किसी मुख्यमंत्री के 'धर्मनिरपेक्ष' होने पर सवाल खड़े करना. भला संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति को संविधान की प्रस्तावना में शामिल धर्मनिरपेक्ष शब्द पर आपत्ति कैसे हो सकती है?
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तो अपना जवाब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को भेजा था, लेकिन महाराष्ट्र सरकार में गठबंधन सहयोगी एनसीपी के नेता शरद पवार ने पत्र को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख डाला है. इसी बीच राज्यपाल के पत्र पर अमित शाह का बयान आ गया - और उसमें अमित शाह ने भी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भाषा और लहजे का सपोर्ट नहीं किया, लिहाजा शरद पवार को भी मुद्दे को आगे बढ़ाने का मौका मिल गया है.
शरद पवार का कहना है कि भगत सिंह कोश्यारी की जगह कोई भी स्वाभिमानी शख्स होता तो पद पर बना नहीं रहता. शरद पवार ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी गवर्नर की भाषा को लेकर निराशा व्यक्ति की है, जिसके बाद कोई भी आत्मसम्मान वाला व्यक्ति पद पर नहीं बना रहेगा.
उस्मानाबाद में एक प्रेस कांफ्रेंस में शरद पवार ने कहा कि राज्यपाल का पद भी देश के कई महत्वपूर्ण पदों में से एक है. जिस तरह राज्यपाल की गरिमा है उसी तरह मुख्यमंत्री पद की भी गरिमा होती है - 'अगर आत्म सम्मान बचा हो तो वो ये तय करें कि पद पर बने रहना है या नहीं!'
देखा जाये तो अमित शाह के बयान के बाद शरद पवार एक तरीके से राज्यपाल का इस्तीफा ही मांग रहे हैं. मगर वो इस बात से साफ तौर पर इंकार भी करते हैं - 'अगर कोई आत्म सम्मान वाला व्यक्ति होता तो पद पर नहीं बना रहता - हम मांग करने वाले कौन होते हैं?'
अब सवाल ये है कि शरद पवार आखिर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को ऐसी नसीहत क्यों दे रहे है? शरद पवार क्यों चाहते हैं कि उनके तानों से आजिज आकर भगत सिंह कोश्यारी इस्तीफा दे दें?
शरद पवार की राजनीतिक आशंका स्वाभाविक है
उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को भेजे जवाब में बाकी चीजों के बीच एक बात का खास तौर पर जिक्र किया था - उद्धव ठाकरे को तू-तड़ाक की भाषा में संबोधित करने वाली कंगना रनौत और भगत सिंह कोश्यारी की राजभवन में मुलाकात को लेकर. अपने जवाबी पत्र में उद्धव ठाकरे ने लिखा था - "मेरे राज्य की राजधानी को PoK कहने वालों का हंसते हुए घर में स्वागत करना मेरे हिंदुत्व में नहीं बैठता है."
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बयान को अमित शाह के सपोर्ट न करने को महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के बदलते रिश्तों के संकेत के तौर पर देखा जाने लगा है. ऐसी अटकलों को हवा भी शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने ही दे डाली है, ये कह कर कि अमित शाह के बयान के बाद शिवसेना ने इस मुद्दे को छोड़ दिया है. विवादों से तो शिवसेना का बरसों का नाता रहा है, इसलिए विवाद से पीछा तो छूटने से रहा - हां, शिवसेना ने लगता है नया नुस्खा जरूर खोज लिया है.
क्या शिवसेना को विवादों से आगे बढ़ने की आदत सी होने लगी है - पहले कंगना रनौत मामले में और अब गवर्नर कोश्यारी मामले में. शिवसेना का एक जैसा ही जवाब आया है - मुद्दे को छोड़ कर आगे बढ़ जाना.
भगत सिंह कोश्यारी को लेकर शरद पवार का बयान थोड़ा अजीब लगता है. खासकर शिवसेना प्रवक्ता के ये बोल देने के बाद कि वो मुद्दे को छोड़ कर आगे बढ़ चुकी है.
संजय राउत का कहना है, ‘मुख्यमंत्री के जवाब के बाद राज्यपाल का पत्र अनावश्यक विवाद था और हमने इसे शुरू नहीं किया था. हम केंद्रीय गृह मंत्री के रुख से संतुष्ट हैं और हमारी नाराजगी की वजह समझने के लिए उनका शुक्रिया अदा करते हैं.’
जब शिवसेना को राज्यपाल के पत्र की भाषा में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी और उसे अमित शाह के बयान से संतोष है, फिर शरद पवार के सख्त रिएक्शन का क्या मतलब हो सकता है?
कहीं शरद पवार राज्यपाल के बहाने अमित शाह को ही तो नहीं निशाना बना रहे हैं. ऐसा तो नहीं कि शरद पवार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मैसेज देना चाहते हों कि केंद्र की बीजेपी सरकार भगत सिंह कोश्यारी के गलत व्यवहार के लिए महाराष्ट्र से वापस बुला ले?
ये तो संभव नहीं लगता कि केंद्र की मोदी सरकार राज्यपाल के एक पत्र के लिए वापस बुला लेगी या कहीं ट्रांसफर कर देगी, शायद इसी उम्मीद के साथ शरद पवार बीजेपी को घेरने के लिए मौके की तलाश में हैं.
शरद पवार के लिए फायदे वाली राजनीतिक लाइन तो यही है कि एनसीपी और बीजेपी के बीच सत्ता समीकरणों को लेकर कोई समझौता हो जाये और अगर ऐसा न हो सके तो कम से कम बीजेपी और शिवसेना फिर एक दूसरे के साथ न हो लें. अगर ऐसा हुआ तो शरद पवार की राजनीतिक संघर्ष के दिन फिर से शुरू हो जाएंगे.
लगता तो ऐसा है कि राज्यपाल के पत्र को लेकर अमित शाह के बयान को शरद पवार बीजेपी और शिवसेना के आपसी रिश्तों से जोड़ कर देखने लगे हैं - वैसे भी बीते कुछ वाकयो को जोड़ें तो गठबंधन टूट जाने के बावजूद बीजेपी और शिवसेना के रिश्तों में बदलाव और नरमी के संकेत तो मिले ही हैं. भला ये सब शरद पवार कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं?
वैसे शिवसेना ने ऐसी अटकलों को भी खारिज कर दिया है. संजय राउत कहते हैं, ‘इसमें कुछ राजनीतिक नहीं है. शाह ने जो बोला, वह संविधान के अनुरूप है.’
शरद पवार की आशंका स्वाभाविक लगती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उद्धव ठाकरे के किये एक फोन पर महाराष्ट्र में विधान परिषद के चुनाव हो जाते हैं. सुशांत सिंह राजपूत केस की सीबीआई जांच के आदेश और बीजेपी नेताओं के शिवसेना नेतृत्व पर 'पेंग्विन अटैक' के बावजूद बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस और संजय राउत होटल में चुपके चुपके मुलाकात करते हैं - और अमित शाह भी गवर्नर का सपोर्ट नहीं करते! जब सारी बातें बीजेपी और शिवसेना के रिश्तों में बदलाव के संकेत दे रही हों - शरद पवार का एक्शन में आना स्वाभाविक भी है और खासा दिलचस्प भी.
इन्हें भी पढ़ें :
देवेंद्र फडणवीस और संजय राउत की गुपचुप मुलाकात के मायने क्या हैं?
कंगना रनौत से महाराष्ट्र बीजेपी नेताओं ने दूरी बना रखी है, लेकिन क्यों?
जया बच्चन की बात के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना एक दूसरे से घिर गईं
आपकी राय