सोनिया-राहुल को मिले ED के नोटिस से बीजेपी को कोई फायदा होगा क्या?
सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को प्रवर्तन निदेशालय का नोटिस (ED Notice) ऐसे वक्त मिला है जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनावी तैयारियां चल रही हैं. आगे कोई गंभीर बात होने वाली तो नहीं लगती - लेकिन बीजेपी को कोई फायदा हो सकता है क्या?
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सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और राहुल गांधी को प्रवर्तन निदेशालय का नोटिस (ED Notice) मिलने पर कांग्रेस का गुस्सा स्वाभाविक है. कांग्रेस प्रवक्ता का रिएक्शन करीब करीब फिल्म पुष्पा वाली स्टाइल में ही आया है - ‘हम डरेंगे नहीं, झुकेंगे नहीं.’
नहीं डरने की बात तो राहुल गांधी भी अक्सर ही करते रहते हैं. वो तो रामलीला मैदान की रैली के मंच से भी ऐलान करते हैं कि किसी से नहीं डरते. ये भी कहते हैं कि कांग्रेस कार्यकर्ता किसी से भी नहीं डरता.
बातों बातों में ही कभी कभी वजह भी बता डालते हैं, "मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं... राहुल गांधी (Rahul Gandhi) है..."
राहुल गांधी ने तो कांग्रेस के भीतर भी निडर और डरपोक कैटेगरी बना रखी है. वे नेता जो संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसी भी मुद्दे पर टारगेट कर सकते हैं, निडर कैटेगरी में आते हैं. जैसे नाना पटोले, रेवंत रेड्डी, नवजोत सिंह सिद्धू, कन्हैया कुमार - और डरपोक वे हैं जो बात बात पर प्रधानमंत्री मोदी को दोषी ठहराने या निजी हमलों से परहेज करने की सलाहियत देते रहते हैं. या फिर ऐसे नेता जिनके बारे में शक होता है कि वे कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में जा सकते हैं.
सोनिया गांधी और राहुल गांधी को नोटिस ऐसे दौर में मिला है जब प्रवर्तन निदेशालय की छवि खतरनाक बनती जा रही है - और महसूस किया जाने लगा है कि अफसरों का व्यवहार खुंखार होता जा रहा है. नवाब मलिक से लेकर सत्येंद्र जैन तक, हर गिरफ्तारी में मिलता जुलता ही मैसेज समझा जा रहा है. ईडी ने सोनिया गांधी को 8 जून जबकि राहुल गांधी को 2 जून को ही पूछताछ के लिए पेश होने का नोटिस दिया है.
वैसे देश में गिनती के नेता होंगे जो ईडी रडार पर न हों. हो सकता है कुछ ऐसे भी नेता हों जो ईडी के दायरे से बाहर हों तो सीबीआई की जांच के लपेटे में घुमा फिरा कर आये हो सकते हैं - और दोनों से बच भी गये तो आयकर विभाग से बच कर नहीं ही जा सकते.
कांग्रेस भले ही केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का इल्जाम लगा रही हो, लेकिन दूध का धुला तो यूपीए के दस साल का शासन भी नहीं रहा है - मुलायम सिंह यादव और मायावती जैसे नेता तो तब भी शिकार हुआ करते थे और अब भी होते हैं. ये बात अलग है कि अब राहुल गांधी सीधे सीधे बोल देते हैं कि मायावती ने कांग्रेस की तरफ से यूपी के मुख्यमंत्री पद का ऑफर डर की वजह से ठुकरा दी थीं.
सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मुश्किल ये है कि वो शरद पवार जैसी हैसियत कायम नहीं रख पाये हैं. भले ही वे देश की सबसे पुरानी और बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता हों. भले ही कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकजुटता की कल्पना न की जा पा रही हो, लेकिन लोगों को ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता.
सवाल ये है कि ईडी के नोटिस के बाद क्या हो सकता है? अगर कांग्रेस के रिएक्शन के हिसाब से सोचें तो कुछ भी ऐसा वैसा होना सब सत्ताधारी राजनीतिक मंशा पर ही निर्भर करता है - और ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि उसे कितना फायदा लेना है या कितना मिल सकता है?
अगर अभी तक रॉबर्ट वाड्रा के साथ कुछ ऐसा वैसा नहीं हुआ तो गांधी परिवार के साथ कुछ ज्यादा हो सकता है, ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता - लेकिन एक महत्वपूर्ण सवाल ये भी है कि केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी को आने वाले चुनावों में ईडी के इस एक्शन से कोई फायदा मिल सकता है क्या?
कांग्रेस के रिएक्शन में निशाने पर संघ क्यों लगता है?
सोनिया गांधी और राहुल गांधी को मिले ईडी के नोटिस को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला के साथ सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रेस कांफ्रेंस किया है - सुरजेवाला जहां सीधे अटैक पर फोकस रहे, वहीं सिंघवी कानूनी तरीके से सफाई में दलील पेश करते रहे.
सोनिया गांधी और राहुल गांधी को मिला प्रवर्तन निदेशालय का नोटिस फिलहाल चुनावी बयार से ज्यादा क्यों नहीं लगता?
कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला अपनी लच्छेदार स्टाइल में कह रहे थे, ‘मोदी सरकार बदले की भावना में अंधी हो गई है... इस बार उन्होंने एक बार नई कायरना साजिश की है... अब प्रधानमंत्री मोदी जी ने कांग्रेस अध्यक्ष और राहुल जी को ईडी से नोटिस जारी करवाया है... साफ है कि तानाशाह डर गया है.’
फिर कांग्रेस प्रवक्ता ने नेशलन हेराल्ड केस से अखबार के आजादी के आंदोलन में भूमिका को उपलब्धियों के तौर पर पेश किया - और लगे हाथ संघ को भी टारगेट किया, 'आज फिर उस अंग्रेजी हुकूमत का समर्थन करने वाली विचारधारा...आजादी के आंदोलन की आवाज' को दबाने की साजिश कर रही है.'
रणदीप सुरजेवाला ने ज्यादातर नेशनल हेरल्ड की गाथा के बहाने ही गांधी परिवार का बचाव करने की कोशिश की, 'न तो वो आजादी के आंदोलन की आवाज नेशनल हेराल्ड को बंद करवा पाएंगे... न ही सोनिया गांधी और राहुल गांधी को डरा पाएंगे... कांग्रेस का नेतृत्व निर्भीक, निडर और अडिग है. हम ऐसे हथकंडों से डरने वाले या झुकने वाले नहीं, बल्कि सीना ठोक कर जोर से लड़ेंगे... नेशनल हेराल्ड अखबार का मूल मंत्र आज भी उतना ही प्रासंगिक है.'
गांधी परिवार के बचाव में दलील: सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ आरोपों को प्रतिशोध की भावना से ग्रसित और मनगढ़ंत करार दिया. साथ में दावा भी किया कि इस केस में ED को कुछ नहीं मिलेगा - अभिषेक मनु सिंघवी ने केस से जुड़े कुछ खास पहलुओं का जोर देकर जिक्र भी किया.
1. सात साल बाद लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ये नोटिस भेजा गया है - देश की जनता सब कुछ समझती है.
2. ईडी, CBI और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का दुरुपयोग कर विपक्षी दलों को डराया जा रहा है.
3. ये केस पिछले 7-8 साल से चल रहा है - और अब तक एजेंसी को इसमें कुछ भी नहीं मिला है.
नोटिस नहीं, कांग्रेस की मुश्किल कुछ और है
मुश्किल ये है की गांधी परिवार मौजूदा दौर में जनता की सहानुभूति पूरी तरह खो चुका है - और कांग्रेस के कार्यकर्ता भी एनसीपी नेतृत्व या राज ठाकरे के समर्थकों जैसे नहीं हैं, जो अपने नेता के लिए सड़कों पर उतर आयें और जेल भरो आंदोलन शुरू हो जाये.
चाहे वो पी. चिदंबरम की गिरफ्तारी का मामला हो, या फिर करर्नाटक वाले डीके शिवकुमार का जमीन पर भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को विरोध प्रदर्शन ऐसा ही लगता है जैसे वो बस ट्वीट करते जा रहे हों और लक्ष्य टॉपिक को ट्रेंड कराना भर ही हो.
ऐसे अभी तो नहीं लगता कि ईडी की कार्रवाई पर राजनीतिक बदले की दुहाई देकर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी को लेकर देश के लोंगों में किसी तरह की सहानुभूति बटोर सकें - और फिलहाल गांधी परिवार के लिए ईडी के नोटिस से भी बड़ी मुश्किल यही है.
कांग्रेस भले जोर जोर से कहती फिरे कि ईडी ये कार्रवाई राजनीति से प्रेरित है लेकिन महत्वपूर्ण ये नहीं है - अहम बात ये है कि लोग ईडी के ऐसे एक्शन को किस रूप में लेते हैं?
असल बात तो ये है कि जब भी ये जांच एजेंसियां बीजेपी विरोधी किसी नेता को नोटिस भेजती हैं या उनके ठिकानों पर छापेमारी करती हैं तो देश लोग मान कर चलते हैं कि सरकार चोरों और देशद्रोहियों को पकड़ रही है, जब तक कांग्रेस अपने बारे में ये धारणा नहीं बदल पाती ये सब यूं ही चलता रहेगा.
तभी तो वही प्रवर्तन निदेशालय महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों से पहले एनसीपी नेता शरद पवार को नोटिस भेज कर भी कदम पीछे खींच लेता है, लेकिन नवाब मलिक और सत्येंद्र जैन को घसीटते हुए ले जाकर गिरफ्तार कर लेता है. जरा याद कीजिये ईडी का नोटिस मिलते ही शरद पवार ने ऐलान कर दिया था कि वो खुद दफ्तर पहुंच कर पूछताछ के लिए पेश होंगे.
सड़कों पर एनसीपी कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन की गंभीरता की आशंका के मद्देनजर पुलिस के आला अफसर शरद पवार से हाथ जोड़कर गुजारिश कर रहे थे कि वे ईडी दफ्तर जाने का अपना कार्यक्रम रद्द कर दें. शरद पवार भी तब तक नहीं माने जब तक कि ईडी की तरफ से सुनिश्चित नहीं किया गया कि उनको पूछताछ के लिए पेश होने की कोई जरूरत नहीं है.
नोटिस के बाद क्या हो सकता है?
2019 में आम चुनाव से पहले सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को भी नोटिस भेजा गया था. ये तभी की बात है जब नोटिस मिलने से कुछ ही दिन पहले प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था.
कांग्रेस दफ्तर जाकर अपना कामकाज संभालने से पहले प्रियंका गांधी वाड्रा ने खुद ईडी दफ्तर तक अपने साथ गाड़ी में बिठा कर रॉबर्ट वाड्रा को छोड़ा था. बाद में बयान भी दिया कि वो अपने परिवार के साथ हैं - और आगे भी खड़ी रहेंगी.
अब सवाल ये है कि ईडी के नोटिस के आगे क्या है?
बताया गया है कि सोनिया गांधी पूछताछ के लिए पेश होने को तैयार हैं. हां, राहुल गांधी के लिए और वक्त लेने की कोशिश हो रही है. ये भी हो सकता है कि नोटिस को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने की भी तैयारी चल रही हो. सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ही इस केस में जमानत पर हैं.
अभी ऐसा कुछ तो नहीं लगता कि ईडी पूछताछ से कोई ज्यादा एक्शन लेने वाला है - और ये महज एक पॉलिटिकल ऑब्जर्वेशन भर है, कोई लीगल ओपिनियन नहीं.
2019 में पूरा गांधी परिवार ये मान कर चल रहा था कि प्रवर्तन निदेशालय रॉबर्ट वाड्रा को जेल भेज सकता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. प्रियंका गांधी के पति को ई़डी दफ्तर तक छोड़ने जाने का मतलब ही रहा कि लड़ाई के मोर्चे पर परिवार जाने का मन बना चुका है - और नतीजा जो भी लड़ाई को कानूनी तरीके के साथ साथ राजनीतिक तरीके से भी लड़ना ही है. वैसे भी, कोई चारा भी तो नहीं रहा.
तब रॉबर्ट वाड्रा के साथ साथ उनकी मां को भी नोटिस भेजा गया था. दिल्ली के साथ साथ दूसरे राज्य में भी ऐसी ही कानूनी एक्शन से रॉबर्ट वाड्रा को जूझना पड़ा था. थोड़ा और पहले का वाकया याद करें तो 2014 के आम चुनाव के बाद जब हरियाणा में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे तब भी ऐसा ही माहौल बनाया गया था जैसे बीजेपी के सत्ता में आते ही रॉबर्ट वाड्रा तो जेल में पहुंच ही जाएंगे - लेकिन पांच साल तक सब यूं ही चलता रहा. हरियाणा चुनाव के समय भी कांग्रेस के कुछ नेताओं को ऐसे ही नोटिस मिले थे.
रॉबर्ट वाड्रा के साथ अभी तक पूछताछ से ज्यादा कुछ नहीं हुआ है. लिहाजा ये तो साफ है कि जब भी कोई ऐसा वैसा एक्शन हुआ तो नंबर तो पहले रॉबर्ट वाड्रा का ही आना चाहिये. इसी केस में, इससे पहले, प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस के दो बड़े नेताओं पवन बंसल और मल्लिकार्जुन खड़्गे से अभी 12 अप्रैल को जांच में शामिल किया था.
राजनीतिक हिसाब से देखें तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी की गिरफ्तारी की नौबत तब तक नहीं आने वाली जब तक कि लोग ईडी या किसी और जांच एजेंसी के एक्शन से खुशी महसूस करने लगें- और ऐसा तब तक होगा जब तो बीजेपी को कांग्रेस से कोई बड़ा खतरा महसूस नहीं होता.
बीजेपी की तरफ शक की सूई इसलिए भी घूम रही है क्योंकि 1 नवंबर, 2012 को बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी ही ये केस लेकर अदालत में गये थे - और फिर सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित सभी आरोपियों के खिलाफ 26 जून 2014 को समन जारी हुआ था.
19 दिसंबर, 2015 तक मामला इतना गंभीर हो गया कि कोई विकल्प न बचे होने के कारण सोनिया गांधी और राहुल गांधी को दिल्ली के पटियाला कोर्ट में पेश होकर जमानत की गुहार लगानी पड़ी थी - हालांकि, अदालत ने जमानत मंजूर कर ली थी.
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