वो बातें जो 2019 चुनाव के चलते सालभर होंगी...
समय बीतने के साथ ही साथ जुबानी जंग तेज होगी, जहर बुझे बयानों की तेज बारिश होगी, गड़े मुर्दे उखाड़े जाएंगे, व्यक्ति छवि धूमल करने की कोशिशें होंगी, लबोलुबाब यह है कि सत्ता के लिये सारी मर्यादाएं, आदर्श और नैतिकता खूंटी पर टांग दी जाएंगी.
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2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में एक साल का समय बाकी है. हाल ही में यूपी और बिहार में हुए उपचुनाव में विपक्ष को मिली जीत ने राजनीतिक माहौल गर्माया है. विपक्ष लगातार सरकार के खिलाफ हमलावर मुद्रा में है. देश में संसद से लेकर सड़क तक जो राजनीतिक माहौल दिख रहा है उससे साफ हो जाता है कि 2019 से पहले बहुत कुछ होगा. फिलहाल देश की राजनीति जिस दिशा में बह और बढ़ रही है उसके महीन तार कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव से ही जुड़े हैं. सरकार और विपक्ष के बीच नोक-झोंक, आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी का दौर उफान पर है. हर दिन बीतने के साथ-साथ राजनीतिक पारा ऊपर चढ़ रहा है. अगर पिछले छह महीने की राजनीति पर गौर किया जाए तो तमाम घटनाएं आपको 2019 का ट्रेलर ही लगेंगी.
माहौल गर्माने की तैयारी पिछले साल गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त ही हो गयी थी. गुजरात चुनाव में सत्तारूढ़ दल और विपक्ष ने अंतिम सिरे तक गिरकर राजनीति की. विपक्ष सत्तासीन दल को सत्ता से बेदखल तो नहीं कर पाया, लेकिन उसे नाकों चने चबवाने में कामयाब रहा. गुजरात में कांग्रेस को मिली बढ़त ने विपक्ष का उत्साह बढ़ाने काम काम किया. गुजरात के बाद राजस्थान और अन्य राज्यों में हुए उपचुनाव में मिली सफलता ने विपक्ष का मनोबल बढ़ाया. पूर्वोत्तर के चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उम्मीद से बेहतर किया. त्रिपुरा में वामपंथी गढ़ ढाहने में बीजेपी सफल रही. यूपी-बिहार में हुए उपचुनाव में भाजपा को चित्त कर विपक्ष ने हिसाब बराबर करने का काम किया.
अगर पिछले छह महीने की घटनाओं पर अगर सिलसिलेवार नजर डालें तो कहानी काफी हद तक समझ आ जाती है. सुप्रीम कोर्ट के चार जजों द्वारा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ प्रेस कांफ्रेस करना, पूर्वोत्तर में भाजपा की जीत, लेनिन की मूर्ति तोड़ना, बाबा साहब की मूर्ति तोड़ना, बैंक घोटाला, नीरव मोदी का विदेश भाग जाना, विदेश में 39 भारतीयों की मौत का मामला, डाटा लीक, सीबीएसई का पर्चा लीक, यूपी में बाबा साहब के नाम के साथ रामजी जोड़ना, पश्चिम बंगाल, बिहार व अन्य राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा, महाराष्ट्र में किसानों की प्रदर्शन, दिल्ली में अन्ना का आंदोलन, कर्नाटक में लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा, एससी-एसटी एक्ट में बदलाव के विरोध में भारत बंद के दौरान हिंसा का नंगा नाच ऐसे तमाम मामले हैं जो ये साफ कर देते हैं कि विपक्ष चुनावी माहौल तैयार करने में जुटा है. जिस तरह विपक्ष ने संसद का ठप किया उससे उसकी यह नीयत साफ हो गयी कि उसे देशहित से ज्यादा पार्टी हित सर्वोपरि है. सरकार भी अपने राजनीतिक नफे-नुकसान के हिसाब से मुद्दों और मसलों को ‘डील’ कर रही है. लेकिन जो कुछ भी हो रहा है वो देश व देशवासियों के हित में नहीं, ये पूरे यकीन से कहा जा सकता है.
2014 में यूपीए सरकार के सत्ता से बेदखल होने के बाद से बीजेपी ने अपना साम्राज्य कश्मीर से कन्याकुमारी तक बढ़ाया है. वहीं विपक्ष खासकर कांग्रेस की हालत कई क्षेत्रीय दलों से भी कम हो गयी है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश के संसदीय इतिहास में आज कांग्रेस सर्वाधिक कमजोर पार्टी है. आज कांग्रेस के पास सशक्त नेतृत्व का अभाव है. वहीं यूपीए के सहयोगी दलों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की स्वीकार्यता काफी कम है. कांग्रेस की लगातार बिगड़ती सेहत के लिये गुजरात विधानसभा चुनाव संजीवनी बना. पिछले छह महीने में कई राज्यों में हुए विधानसभा और उप चुनाव में विपक्ष का सबसे ज्यादा उत्साह यूपी में लोकसभा की दो सीटों पर हुए उपचुनाव ने बढ़ाया है. भले ही कांग्रेस दोनों सीटों पर फिसड्डी साबित हुई लेकिन सपा-बसपा की दोस्ती और चुनाव में जीत ने विपक्ष की आंखों की चमक बढ़ाने का काम किया. धुर विरोधी सपा बसपा की दोस्ती से विपक्ष को रास्ता आसान दिखने लगा. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राजनीतिक सक्रियता कई मायनों में खास है. यूपी में भाजपा को पटखनी देने के बाद विपक्ष मान रहा है कि एकजुट होकर भाजपा को रोका जा सकता है.
भाजपा को रोकने की रणनीति और राजनीति के बीच विपक्ष नकारात्मक राजनीति को अपना चुका है. विपक्ष मोदी पर जनता के भरोसे को समझ नहीं पा रहा है और मोदी से मुकाबले के लिये नकारात्मक राजनीति का सहारा ले रहा है. छोटे व स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय फलक पर फैलाया और प्रचारित किया जा रहा है. देश में ऐसे हालात बनाये जा रहे हैं मानो केंद्र सरकार हर मोर्चे पर फेल हो चुकी है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के खात्मे और आर्थिक सुधारों की दिशा में कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं जिसमें से नोटबन्दी और जीएसटी पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है. जहां तक सरकार का सवाल है, सरकार इन्हें भ्रष्टाचार को खत्म करने की दिशा में सबसे बड़ा कदम मानती है लेकिन दूसरी तरफ विपक्ष इन्हें सरकार की सबसे बड़ी विफलता साबित करने में लगा हुआ है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन निर्णयों से जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ा है और यही वजह है कि विपक्ष इन निर्णयों के सहारे गाहे-बगाहे सरकार पर हावी होने की कोशिश करता है. वास्तव में मोदी सरकार की प्रशंसा इस आधार पर होनी चाहिये कि हमेशा चुनावी मूड में रहने वाले देश में लम्बी अवधि में असर दिखाने वाले जीएसटी, नोटबन्दी और आधारभूत ढांचे में सुधार जैसे फैसले लेने की हिम्मत उसने दिखाई है. सड़कों के निर्माण में लाखों करोड़ लगाने के बावजूद जनता से अच्छी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की जा सकती है. इसी प्रकार जीएसटी का अच्छा असर दो साल से पहले दिखाई नहीं देगा और नोटबन्दी का असर दिखाया ही नहीं जा सकता.
विपक्ष 2019 के चुनाव से पूर्व माहौल तैयार करने में जुटा है. सोची समझी रणनीति के तहत उन मुद्दों को हवा दी जा रही है, जिससे मोदी सरकार की छवि को ठेस लगे. एससी-एसटी एक्ट में बदलाव के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर जिस तरह का दुष्प्रचार और भ्रम विपक्ष ने फैलाया वो हैरान करने वाला है. नतीजतन दलित संगठनों की अगुवाई में देश के कई राज्यों में हिंसात्मक प्रदर्शन हुए. मौजूदा समय में देशभर में जो भी राजनीतिक हलचल और उठापटक है उसका सीधा नाता अगले लोकसभा चुनाव से है. दलित आंदोलन, बाबा साहब के नाम में संशोधन, राहुल गांधी को हिंसा करने वालों को शाबाशी भरा टिवट, संसद का ठप होना, टीडीपी का एनडीए से अलग होना, कांग्रेस वाईएसआर सांसदों का इस्तीफा, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा विपक्ष की तुलना जीव जंतुओं से करना आखिरकर क्या दर्शाता है? क्या ये सामान्य घटनाएं हैं? पक्ष और विपक्ष का असंयमित व्यवहार, भाषणबाजी, बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप से देश का राजनीतिक मिजाज भांपा जा सकता है. दोनों ओर से खेमेबाजी से लेकर चुनावी तैयारियां युद्ध स्तर पर जारी हैं.
यह तय मान लीजिए की 2019 के लिए महागठबंधन जरूर बनेगा. धुर विरोधी एक साथ खड़े दिखाई देंगे. हालांकि हो सकता है कि यहां कुछ मजबूत क्षेत्रीय पार्टियां सीटों के समझौते और महागठबंधन के नेता पद यानि कि प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर होने वाले विवादों की वजह से महागठबंधन से दूरी बना लें. फिलवक्त विपक्ष राजनीतिक माहौल अपने पक्ष में मान रहा है. ऐसे में विपक्ष ऐसा माहौल बना रहा है कि इस साल के अंत में चुनाव हो जाएं. वैसे चुनाव में लगभग एक साल का समय शेष है. और इस एक साल में काफी कुछ होना, सुनना और देखना बाकी है. समय बीतने के साथ ही साथ जुबानी जंग तेज होगी, जहर बुझे बयानों की तेज बारिश होगी, गड़े मुर्दे उखाड़े जाएंगे, व्यक्ति छवि धूमल करने की कोशिशें होंगी, लबोलुबाब यह है कि सत्ता के लिये सारी मर्यादाएं, आदर्श और नैतिकता खूंटी पर टांग दी जाएंगी. इसमें कोई दो राय नहीं है कि 2019 का चुनाव मोदी बनाम विपक्ष की तैयारियां जोरों पर हैं. ऐसे में लोकसभा चुनाव कई मायनों में अलग, खास, दिलचस्प और ऐतिहासिक होने वाला है.
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