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Updated: 27 फरवरी, 2022 12:01 PM
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जब एक डर दूसरे डर के विरुद्ध होता है तो युद्ध होता है. यूक्रेन और रूस का युद्ध किसी देश के पराक्रम का युद्ध नहीं है बल्कि दुनिया के ताक़तवर देशों के भयभीत होने का युद्ध है. पर यह डर है क्या. कई बार या ज़्यादातर मौकों पर डर शक-सुबहो की वजह से पैदा होता है. और संशय का बीज अतीत के गर्भ से निकलता है. रूस को लेकर यूक्रेन समेत दुनिया भर के ताकतवर देशों में एक संशय बना रहता है. और रूस हारे हुए योद्धाओं की तरह अतीत के दुश्मनों के हर आहट को भी शक़ की नज़रों से देखता है. जब हालात ऐसे हो तो फिर युद्ध अपरिहार्य हो जाता है. इसके अलावा रूस का यूक्रेन के लिए प्रेम रोग की वजह है कि रूस सोचता है कि भंवरे ने खिलाया फूल, फूल को ले गए राज कंवर... प्रथम विश्व युद्ध ने यूरोप में कई देशों में राजशाही को ख़त्म कर नई शासन व्यवस्था को जन्म देना शुरू किया. रूस के जार साम्राज्य की समाप्ति से मॉस्को में लेनिन के कॉम्यूनिस्टों का उदय हुआ जिसने पूरी दुनिया में साम्यवाद स्थापित करने की चाहत बताकर यूरोप और अमेरिका में लोकतांत्रिक देशों में भय पैदा कर दिया.

Ukraine, Russia, Vladimir Putin War, America, Europe, Nato, Germany, Hitlerयूक्रेन और रूस के बीच आज जो कुछ भी हो रहा है उसका अध्याय बरसों पहले लिख दिया गया था

मॉस्को को रोकने के लिए यूरोप को एक मैदान चाहिए था और वह मैदान यूक्रेन और पोलैंड में ही यूरोप और अमेरिका ने तलाशा क्योंकि इनकी सीमाएं हीं सोवियत संघ को घेर रही थी. 1918 में जैसे हीं बोल्शेविकों ने सोवियत संघ में साम्यवादी सरकार बनाया, यूरोप और अमेरिका यूएसएसआर के पड़ोसी देशों को अपने प्रभाव में लेने लगे.

डर और अविश्वास की खाई उसी समय से खोदी जाने लगी थी. 1918 में अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने पोलैंड में सेकेंड पोलिश रिपब्लिक के रूप में अमेरिका यूरोप समर्थित लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया जिसके पास आज का मौजूदा वेस्टर्न यूक्रेन था. अमेरिका-यूरोप रूस को पोलैंड की तरफ़ से घेरने के बाद रूस को यूक्रेन की तरफ़ से भी घेरना चाह रहे थे ताकि लेनिन कम्युनिस्ट विस्तार के लिए यूरोप में न घुसें.

रूसी सम्राज्य का हिस्सा रहे पूर्वी यूक्रेन के यूक्रेनियन पीपल्स रिपब्लिक की सरकार को पोलैंड, ब्रिटेन समेत सभी मॉस्को विरोधी देशों ने मान्यता दे दी. यूक्रेन पर क़ब्ज़े को लेकर सोवियत संघ और अमेरिका-यूरोप समर्थित पोलैंड में 1919 से 1921 तक पोलिश-सोवियत युद्ध चला जिसमें सोवियत संघ की रेड आर्मी को सफलता नहीं मिली.

युद्ध में अमेरिका-यूरोप से भी पोलैंड को सीमित सहायता मिल रही थी तो 18 मार्च 1921 को पोलैंड और सोवियत रूस के बीच रीग संधि हुई. जिसमें यूक्रेन को दो भागों में बाँट कर रख लिया. एक बड़ा भाग सोवियत संघ के पास चला गया और वेस्टर्न यूक्रेन का हिस्सा पोलैंड समेत दूसरे पश्चिमी देशों में रहा.

हर्जाने के रूप में सोवियत संघ को बड़ी राशी पोलैंड को देनी पड़ी. यानी यूक्रेन को लेकर रूस और अमेरिका-यूरोप की बुनियाद रूस की लाल क्रांति के साथ हीं शुरू हो गई थी.

यूक्रेन का राष्ट्र निर्माण

1922 में सोवियत संघ ने यूक्रेन के हिस्से को यूएसएसआर यूक्रेन नाम देकर सोवियत संघ का संस्थापक सदस्य बनाया. इसके साथ हीं यूक्रेन सोवियत रूस का भाग बन गया. मगर यूक्रेन के क़िस्मत में शांति कभी लिखी नहीं थी. यूक्रेनियन रिपब्लिक आर्मी की यूक्रेन की सरकार अब हथियारबंद देशभक्तों की आतंकी आर्मी बन गई जिसे पोलैंड में शरण मिला और यूरोप और अमेरिका मदद कर रहे थे. इससे नाराज़ स्टैलिन सोवियत संघ का रूसीफिकेशन करने लगा.

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम यूक्रेनियन पर अत्याचार की घटनाएं भी सामने आई.1932 में यूएसएसआर में भयंकर सूखा पड़ा . दुनिया ने भयावह त्रासदी होलोडोमोर की यूएसएसआर यूक्रेन की भयावह तस्वीरें दिखाई. पूरी दुनिया ने इसे सोवियत संघ का यूक्रेन के उपर Genocide और सरकारी सामूहिक कत्ल बताया. कहा जाता है कि लाखों यूक्रेनियन मारे गए.

हालांकि सोवियत संघ इसे यूक्रेन को लेकर इसे अमेरिकन-यूरोपियन मीडिया का प्रोपोगंडा बताता है और कहता है कि पूरा सोवियत संघ सूखे से ग्रसित हुआ था. पुतिन और रूस को चिढ़ाने और यूक्रेन को उकसाने के लिए यूक्रेन समेत यूरोप के कई देशों ने होल्डोमोर को 2006 में सामूहिक नरसंहार की घटना के रूप में मान्यता दी. इस बीच दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया.

यहीं से यूक्रेन की क़िस्मत पलटनी शुरू हुई. 1939 मे हिटलर ने पोलैंड पर हमला किया तो सोवियत संघ ने भी पोलैंड पर हमलाकर रीग संधि में पोलैंड में चले गए यूक्रेन के इलाक़े को वेस्टर्न यूक्रेन को यूक्रेन में मिला लिया. उसके बाद हंगरी, मोल्डोवा, रोमानिया से भी यूक्रेन के इलाक़े लेकर यूएसएसआर यूक्रेन में मिला कर यूक्रेन को पहली बार एक देश की सीमा प्रदान की.

एक लाख 67 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल यूक्रेन को मिला और 11 लाख की आबादी भी साथ में मिली. अब यही बात सोवियत संघ कहता है कि हमने यूक्रेनको बनाया है और यूक्रेन हम से भाग रहा है.

रूस के लिए क़ुर्बानी

मगर तब भी यूक्रेन की आज़ादी के लिए संघर्ष विदेशों में जारी था. सोवियत सीमा पर हिटलर के साथ यूक्रेनियन लिबरेशन आर्मी ने लड़ना शुरू किया. इस दौरान जर्मन समर्थक यूक्रेनियों का सोवियत संघ ने संहार किया जिसे आज पुतिन यूक्रेन की नाजी ताक़तें कहते हैं. इसके बाद फ़ौरी तौर पर यूरोप और अमेरिका का मिशन यूक्रेन रूका था.

मगर दूसरे विश्व युद्ध में यूक्रेन के लोगों ने भी सोवियत संघ को नाजियों से बचाने में बहुत क़ुर्बानी दी. 1945 से 53 के बीच सोवियत संघ के 8.6 मिलियन सैनिक और 18 मिलियन सिविलियन मारे गए जिसमें 6.8 मिलियन यूक्रेनी थे. यूक्रेन का कीव 85 फ़ीसदी बर्बाद हो गया और दूसरा बड़ा शहर खारकोव 70 फ़ीसदी बर्बाद हो गया.

यूक्रेन के लोग कहते हैं कि हमने सोवियत संघ को बचाने के लिए बड़ी क़ुर्बानी दी है. सोवियत संघ से जो हमें मिला है उससे ज़्यादा हम लोगों ने सोवियत संघ की वजह से गंवाया है.

यूक्रेन -रूस दोस्ती दिखाने का दौर

मार्च 1953 में स्टैलिन के मरने के बाद यूक्रेन यूएसएसआर सरकार के कम्युनिस्ट सेक्रेटरी निकिता ख्रुश्चेव पूरे सोवियत संघ के हेड बने तो यूक्रेन के घाव पर मरहम लगाने का काम शुरू हुआ. यूक्रेन पर अत्याचार और रूसीफिकेशन को पहली बार ग़लत बताया गया. 1654 में कोसाक हेतमांते सम्राज्य के दौरान 300 सौ साल पहले यूक्रेन और रूस के एकीकरण की पेरिसास्लाव संधि की तीन सौवीं वर्षगांठ पूरे जश्न के साथ कीव और लेनिनग्राद में मनाई गई.

इसे ऐतिहासिक मौक़ा बनाने के लिए 1954 में रूस ने क्रीमिया को यूक्रेन को गिफ़्ट कर दिया जबकि केवल 22 फ़ीसदी क्रीमियन यूक्रेनी है. इसके बाद यूक्रेन के रहने वाले लियोनेड ब्रेझनेव सोवियत संघ के कम्युनिस्ट सेक्रेटरी बने. यूक्रेनियन के सोवियत संघ के मुखिया बनने पर दोनों इलाकों में जमकर जश्न मना. सोवियत संघ को अमेरिका-यूरोप के यूक्रेनी प्रोपोगांडा से निबटने और यूक्रेन का दिल जितने की कोशिश के तौर पर इसे देखा गया.

स्टालिन के बाद का यह सोवियत संघ का ज़माना था जब यूक्रेन में प्रगति अपने चरम पर पहुँची. आज जो मौजूदा यूक्रेन है वह उसी दौरान इतनी विकास की ऊंचाइयां पाया था. हथियार, परमाणु रिएक्टर से लेकर जमकर औद्योगिकीकरण हुआ.

यूरोप-अमेरिका समर्थित राष्ट्रवाद और रूसी डर

इस विकास के साथ ही जब सोवियत संघ ढलान पर आया तो यूक्रेन के लोगों को अपनी आज़ादी का ख्याल भी आने लगा. यूक्रेन यूरोपसे लगती हुई सोवियत संघ की सीमा पर था इसलिए अमेरिका और यूरोप को आसानी से यूक्रेन में आज़ादी और देश भक्ति का जज़्बाभरने का मौक़ा मिला और सोवियत संघ के विघटन के लिए अमेरिका और रूस ने यूक्रेन के लोगों की भावनाएं खूब भड़काई.

राष्ट्रवादी कहानियां और कविताएं इस दौर में यूक्रेन में लिखी और पढ़ी जाने लगी. यूरोप के फ़्रान्स, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे चकाचौंध दुनिया वाला देश बनाने का सपना यूक्रेन के लोगों की आंखों में जगाया जाने लगा. इधर सोवियत संघ के कम्युनिस्ट सरकार में आपस में संघर्ष शुरू हुआ और उधर यूक्रेन ने आज़ादी का ऐलान कर दिया. अगस्त 1991 में कम्युनिस्टों के निखारे गोर्बाचोव के असफल तख्ता पलट के दौरा नहीं यूक्रेन के संसद ने आज़ादी का ऐलान कर दिया.

रूस को आज भी लगता है कि यूक्रेन की वजह से और फिर यूक्रेन को जिस तरह से अमेरिका और यूरोप ने बढ़ावा दिया उसकी वजह से सोवियत संघ का विघटन हुआ. जब मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ को संभालने में लगे थे तब यूक्रेन अपनी आज़ादी की घोषणा करने वाला पहला देश बना उसके बाद तो सोवियत संघ ताश के पत्ते की तरह बिखर गया. फिर तो बाक़ी के 14 देश सोवियत संघ से टूटकर अलग हो गए.

रूस के दिलोदिमाग़ में आज भी डर बैठा हुआ है कि अगर यूक्रेन हमारे साथ नहीं रहा तो फिर हमारे साथ अमेरिका और यूरोप धोखा कर सकते हैं. जबकि यूरोप और अमेरिका को लगता है कि अगर यूक्रेन हमारे साथ नहीं रहा तो रूस की धौंस दुनिया में बढ़ जाएगी .रूस को हम यूक्रेन के ज़रिये ही घेर सकते हैं.

रूस भूला नहीं है कि किस तरह से नाटो के ख़िलाफ़ पोलैंड में सोवियत संघ ने अपने बचाव के लिए वर्सोवा पैक्ट किया था मगर रूस के दरवाज़े में उसीवर्सोवा में आज नाटो की सेना खड़ी है. रूस यूक्रेन को एक बफ़र एस्टेट के रूप में चाहता है. अमेरिका और यूरोप ने रूस को डराने और उकसाने का कोई भी मौक़ा छोड़ा नहीं है.

स्टालिन के दौरान यूक्रेन के लोगों पर हुए अत्याचार पर यूक्रेन के पार्लियामेंट में प्रस्ताव पारित'किया गया. यह सब रूस को डराता भी है. रूस को लगता है कि पोलैंड के बाद अगर यूक्रेन में भी नाटो की सेना खड़ी रहेगी तो फिर चारों तरफ़ से रूस घिरा रहेगा. यह रूस होने नहीं देगा और यूरोप और अमेरिका यूक्रेन को एक आज़ाद लोकतांत्रिक मुल्क बनाने पर लगे हुए हैं इसलिए वह यूक्रेन को न्यूट्रल या रूसी झुकाव वाला देश बनने नहीं देंगे. इसीलिए कहा जा रहा है कि यूक्रेन अफ़ग़ानिस्तान की तरह ग्रेट गेम में फंसा हुआ है जिसे निकालने का रास्ता कोई दिख नहीं रहा है.

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