बुलंदशहर दंगा: 'मौत' पर मुआवजा तय कैसे होता है?
बुलंदशहर दंगे में मारे गए इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और भीड़ का हिस्सा बने सुमित के परिजनों को मुआवजा मिल गया है. ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर सरकार मौत के बाद मुआवजा तय कैसे करती है ?
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उत्तर प्रदेश का बुलंदशहर दंगों की भेंट चढ़ चुका है. हादसे में एक पुलिस इंस्पेक्टर समेत एक स्थानीय नागरिक की मौत हुई है. घटना बीते लंबा वक्त हो गया है मगर अब भी इलाके में तनाव है. मुख्य आरोपियों के फरार होने के चलते, पुलिस अंधेरे में तीर चला रही है और लगातार छापेमारी को अंजाम दिया जा रहा है. इन सारी बातों के बीच दंगे में मरने वाले लोगों के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा मुआवजे का ऐलान कर दिया है. दंगे में जिस पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की मौत हुई. सरकार ने उसके परिवार को 40 लाख और उसके माता पिता को 10 लाख का मुआवजा दिया है. इसके अलावा घटना में भीड़ का हिस्सा बने जिस सुमित की मौत हुई, उसके भी परिवार के लिए सरकार ने 10 लाख के मुआवजे की घोषणा की है. ड्यूटी पर जान देने वाले पुलिस इंस्पेक्टर के परिवार के लिए 50 लाख. पुलिस पर पत्थरबाजी करने वाले सुमित के लिए 10 लाख. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का मुआवजे पर ये रवैया संदेह के घेरे में है. सवाल उठता है कि 'मौत' पर मुआवजा तय कैसे होता है?
बुलंदशहर दंगे में जैसे योगी आदित्यनाथ ने मुआवजा दिया है कई सवाल एक साथ खड़े हो गए हैं
बात की शुरुआत हम शहीद सुबोध कुमार सिंह से करते हैं. बुलंदशहर दंगे में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की निर्मम हत्या हुई है. उन्होंने ड्यूटी पर जान दी है. अब तक जिस तरह की रिपोर्ट हमारे सामने आई हैं और जैसे वीडियो हमने देखे हैं. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि यदि शहीद सुबोध कुमार सिंह ने अपनी सूझ बूझ का परिचय नहीं दिया होता तो शायद हम एक ऐसा मंजर देखते, जो इतना भयावय होता जिसको सोचने मात्र से रौंगटे खड़े हो जाते हैं. ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस इंसान ने एक बड़ी अनहोनी को अपनी जान देकर टाला, उसकी कुर्बानी की कीमत सरकार की नजर में उतनी ही है जितना दाल में नमक.
इसके विपरीत अगर हम इसी दंगे में मारे गए दंगाई सुमित को देखें तो मिलता है कि शायद सरकार को पुलिस वाले की कुर्बानी की अपेक्षा उसका पत्थरबाजी करना ज्यादा महानता का काम लगा और उसके परिवार को 10 लाख दे दिए गए. सुमित के परिजन जो भी बयान दें. जैसी भी बातें हों. जैसे-जैसे घटना के वीडियो सामने आए हैं, साफ पता चल रहा है कि मृतक सुमित, उस उग्र भीड़ का हिस्सा था जिसका उद्देश्य उपद्रव फैलाना और सौहार्द बिगाड़ना था.
सुमित के हाथ में पत्थर थे, वो पुलिस फोर्स पर पथराव कर रहा था. सुमित सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहा था. एक पुलिस वाले की हत्या में उसका हाथ था. कहा जा रहा है कि सुमित की मौत पुलिस की गोली से हुई है. यानी मौका-ए-वारदात पर पुलिस द्वारा दंगा करने वाले सुमित पर तत्काल प्रभाव में एक्शन लेकर उसका एनकाउंटर किया गया है. ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि, क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसी किसी परियोजना का श्री गणेश किया है जिसमें एनकाउंटर के दौरान मरने वाले अपराधी को सरकार की तरफ से मुआवजा दिया जाएगा?
इंस्पेक्टर सुबोध के परिवार को महज 40 लाख का मुआवजा देकर योगी सरकार ने खानापूर्ति की है
यदि ऐसा है तो फिर कोई बता नहीं. अगर इस बात को खारिज किया जाता है तो फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस सवाल का जवाब देना होगा कि आखिर किस बिनाह पर सुमित के परिवार को मुआवजा दिया गया? जैसे ये पूरा घटनाक्रम चला, कहा जा सकता है कि पत्थरबाजी के दौरान मारे गए युवक के परिवार को मुआवजा देकर योगी सरकार ने न सिर्फ न्याय की सम्पूर्ण प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा किया. बल्कि इस बात का भी आभास कराया है कि उनकी सरकार उन ताकतों को संरक्षण दे रही है जिनका उद्देश्य शांति और सौहार्द को बिगाड़ना है.
बहरहाल ये कोई पहली बार नहीं है जब राज्य सरकार ने भीड़ का हिस्सा बने किसी दंगाई को मुआवजा दिया है. इससे पहले हम ऐसा ही कुछ कासगंज मामले में भी देख चुके थे जहां भीड़ द्वारा चली गोली का शिकार बने चंदन गुप्ता के परिजनों को सरकार ने 20 लाख का मुआवजा दिया था. चंदन गुप्ता के मामले में ये बताना बेहद जरूरी है कि, भीड़ का हिस्सा होने के बावजूद न तो चंदन का कोई वीडियो ही सामने आया. न ही कहीं ऐसा दिखा कि उसने पत्थरबाजी की या अराजकता फैलाई. हां मगर वो भीड़ का हिस्सा जरूर था.
कासगंज हिंसा में मारा गया चंदन गुप्ता भी उग्र भीड़ का हिस्सा था
अराजक तत्वों पर जिस तरह का सरकार का रवैया है. कहा जा सकता है कि, चूंकि किसी भी वीडियो में चंदन घटना में शामिल नहीं दिखा इसलिए उसे मुआवजे के 20 लाख मिले. और अब जबकि सुमित खुद पत्थर चलाते हुए पाया गया तो उसके अमाउंट में कटौती की गई. यदि सुमित वीडियो में सामने न आता तो शायद उसे और मुआवजा मिल सकता था.
बात मुआवजे की चल रही है तो हमारे लिए लाजमी है कि हम एक अन्य बहुचर्चित मामले पर रोशनी डालें. बीते दिनों ही उत्तर प्रदेश पुलिस की गोली से राजधानी लखनऊ में विवेक तिवारी नाम के व्यक्ति की हत्या हुई. गाज पुलिस वालों पर गिरी थी और विपक्ष द्वारा लगातार योगी सरकार को घेरा जा रहा था तो योगी आदित्यनाथ ने भी तुरंत एक्शन लेते हुए विवेक तिवारी के परिवार को 25 लाख, उनकी मां को 5 लाख और उनकी दोनों बच्चियों के लिए 5-5 लाख की एफडी की घोषणा की थी. साथ ही लखनऊ नगर निगम में विवेक तिवारी की पत्नी को नौकरी भी दी गई. इस मुआवजे को लेकर भी सरकार की खूब आलोचना हुई.
हमने बात की शुरुआत इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और भीड़ का हिस्सा रहे सुमित को मिले मुआवजे से की थी. दोनों ही परिवारों में से एक को मुआवजा मिला जबकि अब भी दूसरा परिवार यानी ड्यूटी पर जान देने वाले इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के परिवार को न्याय नहीं मिला. हम ऐसा सिर्फ इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सही न्याय तभी माना जाता जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पूरे मामले को निष्पक्ष होकर देखा होता और इसे लेकर सही फैसला सुनाया होता.
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