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Updated: 02 जनवरी, 2020 06:12 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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नागरिकता संशोधन कानून के विरोध (CAA Protest in UP) में राजधानी लखनऊ समेत पूरे उत्तर प्रदेश में हुई हिंसा (CAA violence) पर यूपी की योगी आदित्यनाथ (UP CM Yogi Adityanath On CAA Potest) सरकार बड़ा निर्णय लेने जा रही है. योगी सरकार ने हिंसा के मुख्य साजिशकर्ता इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI)  पर नकेल कसने (PFI ban in UP) की तैयारी शुरू कर दी है. सरकार के इस फैसले का खुलासा खुद सूबे के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य (Deputy CM of UP on PFI) ने किया है. मीडिया को दिए अपने बयान में यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इस बात के स्पष्ट संकेत दिए हैं कि हालिया दिनों में CAA के विरोध के नाम पर जो हिंसा उत्तर प्रदेश में हुई उसका सूत्रधार पीएफआई था. साथ ही डिप्टी सीएम का ये भी मानना है कि बीते दिनों हुई हिंसा में यही लोग शामिल हैं जो बैन किये जाने से पहले सिमी में शामिल थे. मौर्य ने सख्त लहजे में इस बात को भी दोहराया है कि अगर पीएफआई, सिमी की तर्ज पर उभरने की कोशिश करेगा तो उसे कुचल दिया जाएगा. ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जगह जगह हिंसक प्रदर्शन हुए और पुलिस को भी शांति स्थापित करने में तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ा. मामले में अब तक जो भी जांच हुई है उसमें यही निकल कर आया है कि हिंसा की साजिश पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने रची है. हिंसा पर पीएफआई की संलिप्तता पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बार बार इसी बात को दोहराया जा रहा है कि यदि आज पीएफआई को बैन नहीं किया गया तो आने वाले समय में हालात बद से बदतर हो जाएंगे. बात संगठन के बैन की है तो आपको बता दें कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के ऐलान के बाद यूपी के डीजीपी ओ पी सिंह ने गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखा है जिसमें पीएफआई को बैन करने की मांग की गई है.

 पीएफआई, नागरिकता संशोधन कानून,उत्तर प्रदेश, बैन, हिंसा , PFI   यूपी पुलिस का मानना है कि CAA प्रोटेस्ट में हिंसा उस साजिश का हिस्सा है जिसे PFI ने अंजाम दिया

हिंसा के बाद से ही पीएफआई चर्चा में है तो हमारे लिए भी ये जरूरी है की हम इस संगठन और इसकी कार्यप्रणाली को समझें और जानें कि आखिर ऐसा कौन सा खतरा यूपी सरकार को दिख गया है जिसके बाद पूरा महकमा यही प्रयास कर रहा है कि जल्द से जल्द इस संगठन को बैन कर दिया जाए.

क्या है पीएफआई? क्या कहते हैं इनके दावे

पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया या पीएफआई एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन है जो अपने को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला सगठन बताता है. बताया ये भी जाता है कि संगठन की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF)के उत्तराधिकारी के रूप में हुई. संगठन की जड़े केरल के कालीकट से हुई और इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में स्थित है.

एक मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों के इर्द गिर्द ही घूमती हैं और पूर्व में तमाम मौके ऐसे भी आए हैं जब ये मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर आए हैं. संगठन 2006 में उस वक़्त सुर्ख़ियों में आया था जब दिल्ली के राम लीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था. तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी.

बात वर्तमान की हो तो आज देश में 23 राज्य ऐसे हैं जहां पीएफआई पहुंच चुका है और अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है. बात अगर इनकी कार्यप्रणाली के सन्दर्भ में हो तो ये बताना हमारे लिए भी खासा दिलचस्प है कि संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का पैरोकार बताता है और मुस्लिमों के अलावा देश भर के दलितों, आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के लिए समय समय पर मोर्चा खोलता है.

पीएफआई का विवादों से है पुराना नाता

ऐसा बिलकुल नहीं है कि पीएफआई में सब अच्छा ही अच्छा है. तमाम विवाद हैं जिन्होंने समय समय पर पीएफआई के दरवाजे पर दस्तक दी है. बात अगर एक संगठन के तौर पर पीएफआई की हो तो इसे सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) का बी विंग कहा जाता है.

माना जाता है कि अप्रैल 1977 में निर्मित संगठन सिमी पर जब 2006 में बैन लगा उसके फ़ौरन बाद ही शोषित मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों के अधिकार के नाम पर पीएफआई का निर्माण कर लिया गया था. संगठन की कार्यप्रणाली सिमी से मिलती जुलती थी. आज उत्तर प्रदेश में पीएफआई के बैन की मांग तेज है मगर ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब संगठन को बैन करने की बात हुई है.

संगठन को बैन किये जाने की मांग 2012 में भी हुई थी. दिलचस्प बात ये है कि तब खुद केरल की सरकार ने पीएफआई का बचाव करते हुए अजीब ओ गरीब दल्लेल दी थी. केरल हाई कोर्ट को बताया था कि ये सिमी से अलग हुए सदस्यों का संगठन है जो कुछ मुद्दों पर सरकार का विरोध करता है. ध्यान रहे कि ये सवाल जवाब केरल की सरकार से तब हुए थे जब उसके पास संगठन द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर आजादी मार्च किये जाने की शिकायतें आई थीं.

हाई कोर्ट ने सरकार के दावों को खारिज कर दिया था मगर बैन को बरक़रार रखा था. बात विवादों की चल रही है तो बता दें कि केरल पुलिस ने पीएफआई कार्यकर्ताओं के पास से बम, हथियार, सीडी और तमाम ऐसे दस्तावेज बरामद किये थे जिनमें पीएफआई अल कायदा और तालिबान का समर्थन करती नजर आ रही थी.

पीएफआई कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लव जिहाद से लेकर दंगा भड़काने, शांति को प्रभावित करने, लूटपाट करने और हत्या में इसके कार्यकर्ताओं का नाम आ चुका है. माना जाता है कि संगठन एक आतंकवादी संगठन है जिसके तार कई अलग अलग संगठनों से जुड़े हैं.

पीएफआई बैन पर राजनीति

इस बात में कोई शक नहीं है कि पीएफआई एक ऐसा संगठन है जो कट्टरपंथ को प्रमोट करता है. मगर बात क्योंकि यूपी के सन्दर्भ में हुई है तो बता दें कि पीएफआई बैन भाजपा कांग्रेस समेत लगभग सभी दलों के लिए राजनीति का एक बड़ा मुद्दा बनेगा.

तमाम दल होंगे जो तुष्टिकरण की आग में घी डालते हुए भाजपा की इस पहल का विरोध करेंगे. जैसा इस देश में राजनीति पर अलग अलग दलों का रुख है साफ़ हो जाता है आगे आने वाले दिनों में PFI पर बैन राजनीतिक दलों का ध्यान आकर्षित करेगा और इसपर जमकर रोटी सेंकी जाएगी. PFI को बैन किये जाने को लेकर जैसा उत्तर प्रदेश सरकार का रुख है, कह सकते हैं कि इसे लाया ही इसलिए गया है ताकि CAA और NRC से लोगों का ध्यान भटकाया जा सके.

कुल मिलाकर बात का सार बस इतना है कि आगे आने वाले वक़्त में पीएफआई पर बैन ही बड़ा मुद्दा रहेगा और NRC और CAA जैसे मुद्दे दूर कहीं बहुत दूर छूट जाएंगे.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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