वो लोकतंत्र बचाने की लड़ाई थी, ये लोकपाल लाने की लड़ाई है!
सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद सीबीआई की उठापटक वैसी ही दूसरी ऐतिहासिक घटना है. जजों ने ज्युडिशियरी की खामियां बताते हुए लोकतंत्र के प्रति खतरा जताया था. अब सीबीआई भ्रष्टाचार को लेकर छापेमारी कर रही है.
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जो लोग सीबीआई के जरिये इंसाफ की आस लगाये बैठे होंगे, उन्हें देर के साथ साथ अंधेर जैसी स्थिति भी नजर आ रही हो तो अचरज वाली कोई बात नहीं है. जांच के मामले में जिस सीबीआई पर सबसे ज्यादा भरोसा किया जाता है - उसी सीबीआई के अफसर एक दूसरे पर रिश्वतखोरी और हफ्ता वसूली जैसे इल्जाम लगा रहे हैं. डिप्टी एसपी रैंक का एक जांच अधिकारी सीबीआई कस्टडी में है - एजेंसी के नंबर 1 और नंबर 2 अफसरों को सरकार ने छुट्टी पर भेज दिया है.
छुट्टी पर जबरन भेजे जाने के खिलाफ नंबर 1 अफसर ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली है और अब 26 अक्टूबर को उस पर सुनवाई होनी है.
सत्ता पक्ष द्वारा सीबीआई के इस्तेमाल होने पर सुप्रीम कोर्ट की ही टिप्पणी रही - पिंजरे का तोता. अब ये तोता पंख फड़फड़ाते हुए उड़ने लगा है - और एक को उड़ते देख दूसरों में भी उड़ने की होड़ मचने लगी है.
क्या इस लड़ाई के मूल में भी वही सारी बातें हैं जैसी सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस कांफ्रेंस करके बतायी थीं - या फिर वो सब बातें जो राहुल गांधी और प्रशांत भूषण कर रहे हैं?
ये सेल्फी-छापेमारी है
सीबीआई ने 72 घंटे में अपने ही दफ्तर पर दूसरी बार छापेमारी की है. इससे पहले सीबीआई दफ्तर के कई कमरे सील किये जा चुके हैं - और नये अंतरिम निदेशक ने चाबियां अपने कब्जे में ले ली हैं.
CBI के दफ्तर में CBI की रेड!
बाहर आ रही सीबीआई की अंदरूरी बातों और हरकतों ने जनवरी में हुई सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी एक ऐतिहासिक घटना की याद दिला दी है. न्यायपालिका के इतिहास में देश की सबसे बड़ी अदालत का झगड़ा सामने आया. सुप्रीम कोर्ट के चार जज मीडिया के सामने आये और देश के लोगों को लोकतंत्र पर मंडराते खतरे के प्रति आगाह कराया. फिर विपक्षी दलों के नेताओं ने देश के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने की कोशिश की जो नाकाम रही. बहरहाल, बाद में जो कुछ हुआ माना गया कि चलो लोकतंत्र बच गया.
दस महीने बाद देश की सबसे बड़ी और भरोसेमंद जांच एजेंसी सीबीआई में रिश्वतखोरी का मामला सामने आ रहा है. एजेंसी के नंबर 1 और नंबर दो अफसरों ने एक दूसरे के ऊपर रिश्वतखोरी का आरोप लगा चुके हैं - और दोनों में सुलह नहीं होने की हालत में सरकार ने दोनों को छुट्टी पर भेज दिया है. जबरन छुट्टी पर भेजे गये सीबीआई अफसर आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है - और देश में राजनीति सीबीआई के इर्द गिर्द घूमने लगी है.
केंद्र सरकार द्वारा एजेंसी में अंतरिम निदेशक नियुक्त होने से 24 घंटे पहले ही तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा ने अपने जूनियर और तब स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना से सारी जिम्मेदारियां छीन ली थीं. एक तरफ सीबीआई ने अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्द कराया तो दूसरी तरफ अस्थाना ने आलोक वर्मा पर रिश्वत लेने का आरोप लगा दिया.
एफआईआर के बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए अस्थाना हाई कोर्ट गये और उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गयी. अस्थाना के खिलाफ एफआईआर के बाद सीबीआई ने अपने ही दफ्तर पर छापेमारी कर अपने ही डिप्टी एसपी और मीट कारोबारी मोईन कुरैशी केस में जांच अधिकारी रहे देवेंद्र कुमार को गिरफ्तार कर लिया. फिलहाल डिप्टी एसपी को सात दिन के लिए रिमांड पर लेकर सीबीआई पूछताछ कर रही है. वैसे देवेंद्र कुमार ने भी अपनी गिरफ्तारी को हाई कोर्ट में चुनौती दे रखी है.
सरकार क्यों सफाई देने लगी
राफेल डील पर पहले से ही तीखे हमले कर रहे राहुल गांधी ने सीबीआई में मची ताजा उठापटक को भी उसी सौदे से जोड़ दिया है. जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने भी वैसा ही आरोप लगाया है. अब वो इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने की तैयारी कर रहे हैं.
अब तक फेसबुक पर ब्लॉग लिख कर सरकार का बचाव करते रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली सीबीआई बवाल पर बचाव में मोर्चा संभाले. अरुण जेटली ने बताया कि सीवीसी यानी केंद्रीय सतर्कता आयोग की सिफारिश पर सरकार ने कदम उठाया है. अरुण जेटली ने विपक्ष के सारे आरोपों को बकवास करार दिया. अरुण जेटली ने सरकार के फैसले को पूरी तरह कानून सम्मत बताया. अरुण जेटली ने समझाया कि दोनों अफसरों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं और निष्पक्ष जांच के लिए किसी तीसरे आदमी जरूरत थी - इसलिए दोनों को कार्यभार से मुक्त किया गया.
अरुण जेटली के जाते ही कांग्रेस की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रेस कांफ्रेंस बुलायी और उनके दावों पर सवाल उठाया. सिंघवी का कहना रहा कि बीजेपी नेता इस मामले में भी वैसा ही ज्ञान बांट रहे हैं जैसा नोटबंदी और आर्थिक मामलों में करते रहे हैं. सिंघवी ने आरोप लगाया कि सरकार सीवीसी का दुरुपयोग कर रही है क्योंकि ये तो उसके अधिकार क्षेत्र में आता ही नहीं. सिंघवी ने आलोक वर्मा को हटाने का तरीका असंवैधानिक और सुप्रीम कोर्ट का अपमान बताया.
CBI चीफ आलोक वर्मा राफेल घोटाले के कागजात इकट्ठा कर रहे थे। उन्हें जबरदस्ती छुट्टी पर भेज दिया गया।
प्रधानमंत्री का मैसेज एकदम साफ है जो भी राफेल के इर्द गिर्द आएगा- हटा दिया जाएगा, मिटा दिया जाएगा।
देश और संविधान खतरे में हैं।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 24, 2018
सिंघवी ने जो सबसे गंभीर आरोप लगाया वो रहा, "जिस अधिकारी पर वसूली का आरोप है, उसका सरकार ने साथ दिया... और अभियोजक को ही हटा दिया... ये गुजरात का नया मॉडल है... प्रधानमंत्री मोदी सीधा सीबीआई के अफसरों को बुलाते हैं... फौजदारी मामले में पीएम हस्तक्षेप कर रहे हैं..." सीनियर वकील प्रशांत भूषण ने एक ट्वीट कर इसे मोदी का सीबीआई गेट बताया है.
Immediately after illegally removing the Director CBI, Alok Verma & illegally appointing tainted officer Nageshwar Rao as acting Director, the entire ACB team particularly those investigating PMO's blue eyed boy Asthana, are being replaced with alacrity! It is Modi's CBI Gate pic.twitter.com/rDIRYUEw4R
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) October 24, 2018
Apart from protecting Asthana from investigation, the Rafale complaint by Shourie, Sinha & myself, entertained by the CBI Director, must be another reason for the Govt to remove him with such alacrity by this midnight order https://t.co/vKrR4a9God
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) October 24, 2018
और तो और, बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी को भी ये सब बेहद नागवार गुजर रहा है. स्वामी तो इतने गुस्से में हैं कि कह रहे हैं, "...ऐसा हुआ तो भ्रष्टाचार से लड़ने की कोई वजह नहीं है, क्योंकि मेरी ही सरकार लोगों को बचा रही है. मैंने भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जितने मुकदमे दायर किये हैं सब वापस ले लूंगा...''
The players in the CBI massacre are about to suspend ED’s Rajeshwar so that he cannot file the chargesheet against PC. If so I will have no reason to fight the corrupt since my govt is hell bent on protecting them. I shall then withdraw from all the corruption cases I have filed.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) October 24, 2018
यहां गौर करने वाली बात है कि सरकार इस तरीके से सफाई क्यों दे रही है. सफाई में भी वैसी बातें तो गले के नीचे उतरना मुश्किल है. लोकपाल एक्ट आने के बाद से सीबीआई निदेशक की नियुक्ति हाई लेवल कमेटी की सिफारिश से ही होता है. डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए व्यवस्था बनी हुई है तो हटाने के लिए नयी व्यवस्था कैसे बना ली गयी? जब नियुक्तियों में विपक्ष के नेता की भूमिका है तो उसे हटाने में क्यों नहीं हो सकती है? ये ठीक है कि देश में विपक्ष के नेता के पद पर फिलहाल कोई नहीं है. यही वजह है कि लोकपाल को लेकर मामला लगातार लटका हुआ है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को जब भी सरकार की ओर से लोकपाल की नियुक्ति के लिए बुलाया जाता है वो आपत्ति जता कर आने से मना कर देते हैं. सरकार खड़गे को विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर बुलाती है और वो उसे खारिज कर देते हैं. वैसे भी खड़गे उस मीटिंग में पहुंच कर भी मूकदर्शक से ज्यादा की भूमिका निभा भी नहीं सकते.
बीबीसी हिंदी से बातचीत में प्रशांत भूषण बताते हैं, ''सीबीआई निदेशक को हटाने के लिए 'कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग' को हाई लेवल कमेटी के पास ही मामला ले जाना पड़ेगा. इसके लिए एक बैठक बुलाई जाएगी. ये बताया जाएगा कि ये आरोप हैं. आप बताइए कि इनको हटाना है या नहीं. ये फैसला तीन सदस्यीय कमेटी ही करती है, जिसके सदस्य प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और नेता विपक्ष होते हैं. कैबिनेट कमेटी ऑफ अपॉइंटमेंट के पास भी इस बारे में कोई अधिकार नहीं है. सरकार के पास भी इस बारे में कोई अधिकार नहीं है.''
राफेल डील को लेकर विपक्ष के निशाने पर रही सरकार सीबीआई को लेकर बुरी तरह घिरी नजर आने लगी है. प्रेस कांफ्रेंस करने वाले जजों ने शक जताया था कि अगर जस्टिस रंजन गोगोई को सरकार चीफ जस्टिस नहीं बनाती तो तय मानिये लोकतंत्र खतरे में है. जस्टिस रंजन गोगोई को चीफ जस्टिस बनाकर सरकार ने लोकतंत्र के खतरे में पड़ने से बचा लिया - अब सीबीआई के झगड़े से पार पाने के लिए क्या लोकपाल की नियुक्ति करेगी? अब क्या ये माना जाये कि वो लोकतंत्र बचाने की लड़ाई थी और ये लोकपाल लाने की लड़ाई चल रही है!
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