NDA में रहकर भी Nitish Kumar इससे दूरी क्यों बना रहे हैं!
बिहार को छोड़कर चार राज्यों में JDU ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. यानी जेडीयू झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में होनेवाले आगामी विधानसभा चुनाव में NDA से गठबंधन नहीं करेगा.
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इस बार के लोकसभा चुनाव में JDU ने बिहार में NDA के साथ चुनाव लड़ा और 16 सीटें जीती. 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू एनडीए का हिस्सा नहीं था और इसे केवल 2 सीटों पर ही कामयाबी मिली थी. लेकिन इस बार मोदी कैबिनेट में केवल एक मंत्री पद मिलने से नाराज़ बिहार के मुख्यमंत्री Nitish Kumar ने इसमें शामिल होने से मना कर दिया. हालांकि बाद में उन्होंने साफ किया कि वो एनडीए में बने रहेंगे. इसके तुरंत बाद ही बिहार में नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में 8 नए मंत्री शामिल किये गए, लेकिन भाजपा के एक भी विधायक को जगह नहीं मिली. उसके बाद के घटनाक्रम से लगता है कि BJP और JDU के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं.
दोनों के रिश्तों के खटास के क्रम में ताज़ा मामला बिहार को छोड़कर चार राज्यों में जेडीयू का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला है जो राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बैठक में लिया गया. यानी जेडीयू झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में होनेवाले आगामी विधानसभा चुनाव में एनडीए से गठबंधन नहीं करेगा.
BJP और JDU के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है
नीतीश कुमार ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे और जम्मू एवं कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने पर भी भाजपा के विचारों से अलग राय ज़ाहिर की थी. बकौल नीतीश कुमार, "हमारा मानना है कि राम मंदिर का निर्माण न्यायालय के निर्णय से या आपसी सहमति से हो. हमलोग समान आचार संहिता को थोपे जाने के पक्ष में भी नहीं हैं."
इससे पहले जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर भी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिए काम करने का ऐलान कर चुके हैं. ज़ाहिर है वो बगैर नीतीश कुमार के सहमति के ऐसा नहीं कर रहे होंगे.
लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर वो कौन से कारण हैं जिसे जेडीयू को एनडीए से दूरी बनाये रखने को मजबूर कर रहा है?
बिहार विधानसभा चुनाव में सीनियर पार्टी बने रहना चाहते हैं-
अगले साल बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है ऐसे में नीतीश कुमार का लक्ष्य वहां खुद को बिग ब्रदर बनाए रखना है. इस बार के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने भाजपा से ज़्यादा से ज़्यादा सीटें अपने उम्मीदवारों के लिए ली थीं. यहां तक कि भाजपा को जीती हुए सीटों को भी जेडीयू को देना पड़ा था. ऐसे में आनेवाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नीतीश कुमार अपनी साख बचाने के लिए अभी से ही भाजपा के साथ “दबाव की राजनीति” चालू रखना चाहते हैं.
राष्ट्रीय पार्टी का दर्ज़ा पाना-
जेडीयू का बिहार छोड़कर अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में अकेला चुनाव लड़ना इस बात की तरफ भी इशारा करता है कि यह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करना चाहता है क्योंकि इसके लिए इसे कम से कम चार राज्यों में 6 फीसदी वोटों का मिलना आवश्यक होता है.
नीतीश कुमार चाहे किसी के साथ हों वो अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते
नीतीश कुमार की राजनीति अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करने की रही है-
नीतीश कुमार की खास बात यह है कि चाहे वो किसी के साथ हों वो अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते. जब वो लालू प्रसाद के राजद के साथ गठबंधन सरकार में थे तब भी मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी के फैसले को सराहा था और बाद में जब राजद से ठनी तो उससे नाता तोड़ने में देर भी नहीं की थी. इस बार भी एनडीए के सदस्य होते हुए भाजपा के राम मंदिर निर्माण और जम्मू कश्मीर में धारा 370 जैसे मुद्दों पर बेबाक अपनी बातें रखते हैं.
वैसे तो राजनीति में न कोई किसी का दोस्त होता है न ही दुश्मन, लेकिन फिलहाल तो ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार एनडीए में बने रहेंगें क्योंकि जितनी जरूरत नीतीश कुमार को भाजपा का है उतनी ही जरूरत भाजपा को नीतीश कुमार की है.
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