'बाबा का ढाबा' वाले कांता प्रसाद पर एक पौराणिक कहानी फिट बैठती है
एक यूट्यूबर द्वारा बनाए गए वीडियो के बाद इंटरनेट पर सुर्खियां बटोरने वाले दिल्ली स्थित मालवीय नगर (Malviya Nagar) के बाबा का ढाबा (Baba Ka Dhaba) के मालिक कांता प्रसाद (Kanta Prasad) का जैसा रवैया अब है, वो दुःख देने वाला है.
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बचपन में नानी एक कहानी सुनाती थीं... शिव जी बैठे कैलाश पर्वत पर अपनी आंखें मूंदे, पार्वती जी पृथ्वी पर हर साधारण-महत्वपूर्ण जन को विचरते देख रही थीं. उसी समय उनकी दृष्टि एक निर्धन पर पड़ी. उसकी पत्नी मर चुकी थी और एक बच्ची थी जो अभी बोल सकने में भी समर्थ नहीं थी. एक कमरा था जिसमें वो आदमी रह रहा था. कमरे की दीवारें बाती के धुएं से काली हो चुकी थीं. वो आदमी सिर पर हाथ रखे बैठा चिंतित प्रतीत हो रहा था. पार्वती जी ने आग्रह किया 'स्वामी, आप तो क्या देव क्या दानव, किसी को भी वरदान दे देते हो, इस बिचारे अभागे के जीवन में धन का बहुत अभाव है, इसे अपना आशीर्वाद दे दो न ताकि ये भी अपने बच्चे का लालन पालन कर सके.'
और कोई होता तो भोलेनाथ 'चल निकल, बाप को मत सिखा' स्टाइल में कुछ कहते, भगा देते, पर पत्नी के सवाल पर मुस्कुराकर बोले 'प्रिय, इस व्यक्ति के जीवन में अभी संघर्ष लिखा है, इस व्यक्ति को धन दौलत प्राप्त करने में अभी समय लगेगा, ये विधि का विधान है देवी, इसमें हम आप कुछ नहीं कर सकते.'
इंटरनेट पर वीडियो आने के बाद रातों रात सुर्ख़ियों में आए बाबा का ढाबा के मालिक कांता प्रसाद
पार्वती जी ने फिर आग्रह किया 'अरे प्रभु, आप तो न कहो कि कुछ नहीं कर सकते! इस ब्रह्मांड में जो सबसे शक्तिशाली है, वो जब कुछ नहीं कर सकने की स्थिति में होता है तो आपके पास आता है कि प्रभु कुछ करो, आप कैसे कुछ नहीं कर सकते? आप कुछ भी कर सकते है.'
'पर प्रिय पार्वती, मेरी बात समझो...'
पार्वती जी का सब्र छलक गया 'देखिए, प्रभु! आप दानवों तक को उनका मनचाहा वर दे देते हैं, मैं एक साधारण व्यक्ति के लिए आपसे सहायता की विनती कर रही हूं तो आप मुझे तर्क दे रहे हैं. मेरा इतना कहा नहीं मान सकते?'
प्रभु की आवाज़ क्षीण हो गयी, धीरे से बोले 'हे देवी, वो दानव भी मेरा वरदान पाने के लिए पहले जप-तप करते हैं, कर्मकांड करते हैं, उसमें समय व्यतीत होता है, लम्बी तपस्या के बाद ही मैं... आपसे और तर्क मैं क्या करूं! आप बताइए इन सज्जन की क्या समस्या है, आप जैसे चाहेंगी वैसे समाधान कर देंगे.'
पार्वती जी प्रसन्न हुईं, उन्होंने कहा 'देखिए प्रभु, ये व्यक्ति रोती हुई पुत्री को चुप कराने का प्रयास कर रहा है पर वो चुप नहीं हो रही, ये अवश्य ही अभी घर से बाहर पुत्री के लिए दुग्ध व अन्य सामग्री लाने का विचार कर रहा है, पर ला नहीं रहा क्योंकि उसके पास धन नहीं है. आप बस इतना कीजिए कि किसी तरह इसके घर के समीप ही कहीं स्वर्ण मुद्राओं की पोटली रख दीजिए, वो उत्सुकतावश उसे देखेगा, फिर उसे पा लेगा.'
शंकर जी फिर प्रतिवाद करने को हुए 'परंतु देवी... अभी इसका समय...'
'अब आप हमें...' पार्वती जी इतना बोली ही थीं कि प्रभु ने अपने शब्द वापस लिए और जल्दी से बोले 'अच्छा जैसा आप उचित समझें' और उन्होंने तुरंत सोने से भरी चमकीली लाल पोटली उसके किवाड़ के ठीक सामने फेंक दी. पार्वती जी उसके घर से बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगीं. बहुत देर बाद वो निकला. उसकी आंखों में हल्के आंसू थे जिससे उसे धुंधला दिखाई दे रहा था. उसने अपनी बाजू से आंसू पोछे और पैर आगे बढ़ाया। पैर पोटली पर पड़ा और वो औंधे मुंह गिर पड़ा.
पीड़ा से उसकी चींख निकल गयी. उसने भरी आंखों से देखा कि कोई लाल ईंट पत्थर सा उसके घर के बाहर पड़ा है, उसने खिलजिला के उसपर लात मारी और वो पोटली नाली में जा गिरी. वो उठा और किसी से उधार मांगने चल दिया.
कुछ समय पहले जैसे रानू जी को एक अनायास चांस मिला था, वैसे ही हाल ही में बाबा को भी मिला. कोई तकलीफ में हो तो भारतीय सभ्यता यही सिखाती है कि उसकी मदद करो. मदद किस तरह करनी है ये हममें से अधिकतर को नहीं पता होता. सफलता कोई लॉटरी नहीं है, सिर्फ धन की पोटली नहीं है जो एक बार मिल गयी तो टारगेट अचीव हो गया. सफलता निरंतर चलने और बढ़ते रहने वाला जीवन है जो बिना संघर्ष के अधूरा है.
आप एक दिन के लिए लखपति बन भी जाओ, अगर आप उस 1 रुपये से 100 और सौ से हज़ार के प्रॉसेस से नहीं गुज़रे हो तो आपको उसकी वैल्यू ही न रहेगी. एक जनाब 'कौन बनेगा करोड़पति' से करोड़ रुपये जीत गए, आते ही पार्टी की, यहां-वहां बांटे, शिक्षक की छोटी सी नौकरी छोड़ दी, आज दो या ढाई साल हुए हैं, माथा पकड़कर बैठे हैं कि क्या करें क्योंकि सारा पैसा, आई रिपीट, सारा करोड़ रुपिया ख़त्म कर चुके हैं. अब जॉब भी नहीं है.
पैसा 1 रुपये हो या 1 लाख, उसका मिलना सफलता का पैमाना नहीं है, सफलता निरंतर संभाले जाने वाला यश है. ये देर से समझ आता है लेकिन जब आ जाए, तब चीज़ों का खोना विचलित नहीं करता और पाना अहंकार नहीं लाता.
मेरी नज़र में बाबा को किसी ने दो बोल मीठे बोले थे, उनकी तारीफ़ की थी, उनसे एक प्लेट मटर पनीर 'ख़रीदकर' खा लिया था, यही बहुत था. इसी में उनके हाथ आशीर्वाद को उठने चाहिए थे. 2 लाख तो दूर की बात, ऐसे मदद करके कोई 2000 हज़ार भी दे दे और बाकी 20 लाख ख़ुद रख ले (हालांकि गौरव ने ऐसा कोई गबन न किया) तो भी वो बोनस है.
क्यों?
क्योंकि उसने हौसला तो दिया, उसने हाथ हो बढ़ाया, ये तो यकीन दिलाया कि हुनर में कोई कमी नहीं, आज एक गौरव मिला है, कल सौ मिलेंगे, 80 वर्ष की उम्र में क्या करना है लाखों का जब इज़्ज़त बिना कुछ ख़र्चे मिल रही है. लेकिन नहीं, बताया था न, समय इज़्ज़त कमाने का मौका सबको नहीं देता. ऐसे इज़्ज़त की पोटली को ठोकर मारते देख देख पार्वती जी कुछ न बोल पातीं, भोलेनाथ भी मुस्कुराते हुए आंखें मूंद लेते हैं और फिर से ध्यान लगाना शुरु कर देते हैं.
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