बोर्ड परीक्षाएं लेंगी योगी सरकार की परीक्षा
सपा के शासनकाल में नकल माफियाओं की जमकर चली. जबकि भाजपा शासन काल में नकल माफियाओं की चल नहीं पाई थी. जिसका परिणाम यह रहा था कि भाजपा शासन काल में हुई बोर्ड परीक्षाओं में महज 18 से 28 फीसदी ही परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुए थे.
-
Total Shares
यूपी बोर्ड परीक्षाओं में नकल बंद करा देना योगी सरकार की बड़ी परीक्षा साबित होने जा रहा है. सूबे में भाजपा की सरकार बनने के बाद ये दूसरी बोर्ड परीक्षाएं हैं. पिछले साल की बोर्ड परीक्षाओं की तैयारियां समाजवादी सरकार ने की थी और परीक्षाओं का आयोजन योगी सरकार ने कराया था. पिछले साल नयी-नवेली योगी सरकार ने बोर्ड परीक्षाओं की शुचिता को बरकरार रखने के लिये सख्त कदम उठाए थे. लेकिन इसके बावजूद भी पर्चा लीक होने से लेकर नकल होने तक की खबरें लगातार आती रहीं.
पिछले साल बोर्ड परीक्षाओं में करीब 60 लाख छात्रों ने परीक्षा दी थी. प्रदेश भर में दो हजार से ज्यादा नकलची भी पकड़े गए थे. परीक्षा के दौरान 600 से ज्यादा स्कूलों को ब्लैक लिस्टेड भी किया गया था. अब योगी सरकार के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने जा रहा है. नकल विहीन परीक्षाओं के लिये सरकार ने कई कड़े फैसले लिये हैं. इस वर्ष यूपी बोर्ड की परीक्षाओं के लिए कुल 8540 परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं.
योगी आदित्यनाथ की परीक्षा शुरु हो गई
96 वर्ष पुराने यूपी बोर्ड परीक्षा के इस सत्र के लिए 67 लाख दो हजार 483 बच्चों ने रजिस्ट्रेशन कराया है जो साल 2017 के मुकाबले काफी ज्यादा है. पिछले साल की तुलना में इस बार 2878 परीक्षा केंद्र कम बनाए गए हैं. पिछले वर्ष यानी 2017 की बोर्ड परीक्षा में कुल 11,418 कॉलेज परीक्षा केंद्र बनाए थे. लेकिन इस बार कई कॉलेजों को डीबार कर दिया गया है. यूपी शिक्षा विभाग के तमाम दावों और ऑनलाइन परीक्षा केंद्र निर्धारण के बावजूद कई दागी सेंटर फिर से यूपी बोर्ड परीक्षा केंद्र बना दिए गए हैं. विभागीय अधिकारी इसे मजबूरी में लिया गया फैसला बता रहे हैं. मगर इस निर्णय से परीक्षा की पारदर्शिता पर सवाल खड़े होना लाजिमी है.
यूपी में बोर्ड परीक्षाएं सीधे तौर पर सूबे की राजनीति को प्रभावित करती हैं. वहीं सरकारें बनने और बिगड़ने में भी बोर्ड परीक्षाओं की अहम भूमिका होती है. इसलिए बोर्ड परीक्षाओं को लेकर जमकर राजनीति भी होती है. इतिहास के पन्ने पलटकर देखें तो सूबे में जब-जब भाजपा की सरकार बनी तब-तब बोर्ड परीक्षाओं में काफी हद तक शुचिता बरती गई. यूपी में गैर भाजपाई सरकारों के कार्यकाल में नकल माफियाओं की पौ बारह रही. नकल को उद्योग का दर्जा हासिल हो गया.
सन् 1992 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नकल-विरोधी अध्यादेश लाकर परीक्षाओं में अनुचित तौर-तरीकों और कदाचार को गैर-जमानती आपराधिक मामलों की श्रेणी में डाल दिया था. इस कानून के अंतर्गत एक ही वर्ष परीक्षाएं आयोजित हो सकी थीं और तब स्कूलों-कॉलेजों में सफल परीक्षार्थियों की संख्या महज 12-14 फीसदी रह गयी थी. परीक्षाओं में बड़ी संख्या में छात्र गिरफ्तार कर जेल भी भेजे गये थे. अगले वर्ष के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार हुई और मुलायम सिंह के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की गंठबंधन सरकार ने इस कानून को निरस्त कर दिया.
राजनाथ सिंह ने परीक्षा में नकल करने वालों पर नकेल कसने का कड़ा कानून बनाया था
विश्लेषकों की राय है कि भाजपा की करारी हार में यह कठोर कानून भी एक बड़ा कारण था. जिस वर्ष यह कानून लागू हुआ था, नकल के कुल 25,565 मामले दर्ज किये गये थे. लेकिन इसके हटाये जाने के बाद यह संख्या घटकर 19,657 हो गयी थी. 1998 में राजनाथ सिंह के नेतृत्व में जब फिर भाजपा की सरकार बहुजन समाज पार्टी के सहयोग से बनी, तो इस कानून को फिर से लाया गया. लेकिन उसके प्रावधानों को नरम बना दिया गया. 4 नवंबर 2008 के एक फैसले में न्यायाधीश जस्टिस अल्तमस कबीर और जस्टिस मार्कण्डेय काटजू की खंडपीठ ने कहा था कि नकल करनेवालों को कठोरता से दंडित करने की जरूरत है. क्योंकि इससे देश की प्रगति और अकादमिक स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
सपा के शासनकाल में नकल माफियाओं की जमकर चली. जबकि भाजपा शासन काल में नकल माफियाओं की चल नहीं पाई थी. जिसका परिणाम यह रहा था कि भाजपा शासन काल में हुई बोर्ड परीक्षाओं में महज 18 से 28 फीसदी ही परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुए. भाजपा का शासन खत्म होने के साथ ही व्यवस्था को ताक पर रख दिया गया. नतीजतन नकल माफिया फिर से सक्रिय हुए और परीक्षा परिणाम 28 फीसदी से 80 व 90 फीसदी पहुंच गया. सपा शासनकाल में परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत रहा. आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं.
समाजवादी सरकार के पांच सालों में बोर्ड परीक्षाओं के दौरान सख्ती का नाटक शिक्षा विभाग, पुलिस और प्रशासन ने किया. बोर्ड परीक्षाओं में जमकर नकल हुई और नकल माफियाओं ने जमकर चांदी काटी. वर्ष 2012 में हाईस्कूल का रिजल्ट 83.75 फीसदी और इंटर का 89.40 फीसदी रहा. 2013 में हाईस्कूल 83.63 इंटर 92.68 फीसदी, 2014 में हाईस्कूल 86.71 व इंटर 92.21 फीसदी, 2015 में 83.74 व इंटर 88.83 फीसदी रहा. 2016 में हाईस्कूल 87.66 व इंटर 87.99 फीसदी रहा. पिछले साल 2017 में हाईस्कूल का रिजल्ट 83 फीसदी और इंटर का 88 फीसदी रहा. रिजल्ट की औसत से शिक्षा विभाग, शिक्षा माफिया और नकल के धंधे की कहानी आसानी से समझी जा सकती है.
मुलायम सिंह यादव की सरकार में नकल माफियाओं ने जमकर चांदी काटी
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की 2018 में होने वाली परीक्षा में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है. बोर्ड परीक्षा शुरू होने के आखिरी क्षणों में हजारों फर्जी अभ्यार्थियों का आवेदन पकड़ में आया है. अब तक जांच में फर्जी पाए जाने वाले आवेदन की संख्या 83 हजार 753 पहुंच चुकी है. इन सभी फर्जी आवेदनों को निरस्त कर उन्हें बोर्ड की वेबसाइट से भी डिलीट कर दिया गया है. परीक्षार्थियों को प्रवेश पत्र जारी करने से पहले चल रही आवेदन पत्रों की जांच में ऐसे आवेदक पकड़े गए, जिन्होंने गलत अभिलेख के माध्यम से आवेदन किया है और बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा करने से तैयारी चल रही थी.
यूपी बोर्ड की 2018 परीक्षा के लिए किए गए ऑनलाइन आवेदन में प्राइवेट यानी व्यक्तिगत तौर पर आवेदन करने वाले आवेदकों ने गलत अभिलेख लगाये थे. इसकी जानकारी सबसे पहले मेरठ से लीक हुई तो बोर्ड ने जांच शुरू की. जांच पूरी होने के बाद हाईस्कूल में 47,384 व इंटर में 34,369 आवेदक फर्जी मिले हैं. ये सभी व्यक्तिगत परीक्षार्थी हैं और इनमें से वाराणसी क्षेत्रीय कार्यालय में सर्वाधिक फर्जी अभ्यर्थी पकड़े गए हैं. बोर्ड ने सभी फर्जी अभ्यर्थियों के आवेदन निरस्त कर दिए हैं.
योगी सरकार ने बोर्ड परीक्षाओं की शुचिता एवं पवित्रता बरकरार रखने की नीयत से उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों का निवारण) अधिनियम-1998 को लागू कर दिया है. जिसे नकल अध्यादेश भी कहते हैं. नकल अध्यादेश को सपा और बसपा सरकार में खत्म नहीं किया गया था बल्कि इसे लागू करने में शिथिलता बरती जाती थी. योगी सरकार ने इसे फिर से लागू कर नकल माफियाओं को सबसे बड़ा झटका दिया है. यूपी सरकार नकल विहीन परीक्षा को लेकर पूरी तरह से सख्त हो चुकी है.
यूपी बोर्ड ने परीक्षा में नकल रोकने के लिए एक ओर जहां पुलिस को अलर्ट किया है, वहीं परीक्षा केंद्र के प्रबंधक व प्रिंसिपल को सख्त नियमावली से हिदायत भी जारी की है. नये नियमों के अनुसार परीक्षा केंद्र पर सामूहिक नकल हुई तो उसके जिम्मेदार प्रिंसिपल व प्रबंधक होंगे. पुलिस उन्हें तत्काल गिरफ्तार करेगी और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. जबकि नकल माफियाओं के खिलाफ इस बार कानूनी प्रक्रिया के तहत गैंगस्टर एक्ट, गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी.
पिछले साल बोर्ड परीक्षाओं में जमकर नकल हुई थी. उस समय योगी सरकार के पास कहने को यह था कि, अभी सरकार को बने जुमा-जुमा चंद दिन हुए हैं. लेकिन अब सरकार के पास कोई बहाना नहीं है. बोर्ड परीक्षाओं की शुरूआत 6 फरवरी के दो दिन बाद प्रदेश विधानमण्डल का बजट सत्र शुरू हो रहा है. बोर्ड परीक्षाओं में योगी सरकार नकल रोकने में विफल रही, तो उसे सदन के भीतर विरोधियों के हमले का सामना करना होगा. अब यह देखना अहम होगा कि नकल माफियाओं पर योगी किस हद तक लगाम लगाकर बोर्ड परीक्षाओं को नकल के दाग से मुक्त कर पाते हैं.
ये भी पढ़ें-
आखिर क्या है कासगंज हिंसा के पीछे सियासत, साजिश और सच्चाई?
कासगंज हिंसा : एक हफ्ते बाद घर से निकले कुछ बुनियादी सवालों के जवाब
आपकी राय