Coronavirus Lockdown: चौथे दिन बंदी में पलायन और प्रेम
कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) का चौथा दिन है. सुरक्षा के तहत लोग अपने अपने घरों में बंद रहने को मजबूर हैं इस बीच हम पलायन की भी तस्वीर देख रहे हैं जिसमें लोग अपने घर वालों के पास कई सौ किलोमीटर पैदल चलकर जा रहे हैं.
-
Total Shares
मेरे प्रिय,
जब आसपास बहुत कुछ घट रहा हो जिससे अनिष्ट का भय मन में रहने लगे तो मनुष्य अपने कुकून में, अपने अपनों के पास जाने को मचलने लगता है. मैं भी इन दिनों तुम्हारे पास आने, तुम्हें देख लेने को मचलती रहती हूं. काश कि तुम मेरे भीतर कल्पनाओं में नहीं कहीं यथार्थ में बसते. इन दिनों एक कुछ आशंकाएं हवा में दुर्गन्ध घोल रही हैं. कहते हैं कि ये विषाणु महज़ एक शुरुआत है जिसे एक ढोंगी देश ने दुनिया पर राज़ करने के लिए फ़ैलाया. जो यह नहीं चाहता कि भारत या उस जैसे तरक्की करने वाले देश अपना अस्तित्व बना पाएं. सत्ता की लोलुपता में इंसान कितना गिर जाता है ना. वह नहीं सोचता कि यह भय वातावरण में कितनी नकारात्मकता घोल देगा. मैं सोच रही थी ये इक्कीस दिन यूं ही कट जाएंगे. लेकिन कल जब ऊषा आई तो मन जाने कैसा-कैसा होने लगा.
लॉकडाउन के इस वक़्त हजारों लोग पैदल ही अपने अपने घरों की तरफ जा रहे हैं
ऊषा याद है तुम्हें? कुछ वर्ष पहले किसी ख़त में बताया था शायद. वही जिसके हाथ पर जलती लकड़ी मार दी थी उसके पति ने. कल आई और बोली, 'भाभी.. मुझे तो ये बंदी भा गई. मेरे मरद ने तीन दिन से दारू नहीं पी. मारा नहीं. बच्चों को खिला रहा है. कहता है बिमारी से मर गया तो?' ऊषा की बात सुन मैं फिर तुमसे मिलने मचल उठी. इन इक्कीस दिनों के ख़त्म होते तक कौन जीवित रहेगा कौन मर जाएगा यह भविष्यवाणी तो कोई नहीं कर सकता. किन्तु हां शायद ये दिन ख़त्म होते-होते किसी खो चुकी उम्मीद को जीवित कर जाएं. जैसे ऊषा के साथ हुआ.
वहीं दूसरी ओर जब मैं देखती हूं एक पति को सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए, अपनी पत्नी को कंधे पर बिठाए हुए. ये सुनती हूं कि इन इक्कीस दिनों में ना कोई तलाक़ होगा न ही कोई किसी को घर से निकाल सकेगा. ऐसे में क्या इन टूटते-बिख़रते रिश्तों में फिर से जुड़ने की कोई उम्मीद जाग पाएगी?
मुझे पता है यह पढ़कर तुम हंसोगे, और जो साथ होते तो प्रेम से लबरेज़ एक चपत भी अब तक लगा चुके होते. फिर अपनी बाहों में मुझे घेरते, गहरी आंखों में अथाह प्रेम का समंदर लेकर मुझे देखते और कहते, 'अरे पगली, तू इतनी पुरउम्मीद क्यों है? जिन्हें अलग होना होगा हो जाएंगे, जिन्हें साथ रहना होगा रह लेंगे, इस दुनिया में यदि कोई कार्य सचमुच ही स्वेच्छा से किया जा सकता है तो वह है प्रेम.
प्रेम कभी थोपा नहीं जा सकता. वह भीतर से आता है' और मैं तब तुम्हारी बाहों में कसमसाते हुए रूठने का नाटक करती. मुंह फुलाकर कहती, 'तुम चाहते ही नहीं कि सारी दुनिया प्रेम में डूबे, साथिओं का साथ ना छूटे, कोई जोड़ा बिछड़े नहीं... तुम तो मुझे भी नहीं चाहते... मेरे साथ भी नहीं रहना चाहते' और तब, तुम तुम्हारी बलिष्ट बाहें मुझे कस लेतीं अपने आलिंगन में और तुम चूम लेते मुझे.
फिर तुम्हारे कंधे पर सर रखकर मैं देर तक उन्हीं पलायन करते मजदूरों के बारे में सोचती रहती. उस पुरुष के बारे में सोचती रहती जिसने कल दिहाड़ी से आने के बाद, नशे में अपनी पत्नी को मारा था, कोसा था, फटकारा था लेकिन आज जब मृत्यु का भय, आशंकाएँ दिखीं तो वह उसी पत्नी को काँख में दबाए, दुनिया से बचाते हुए अपने घर ले जाने लगा. मृत्यु का भय इंसान को प्रेम करना सिखा देता है. और मुझे यकीन है कि ये इक्कीस दिन जब ख़त्म होंगे तो शायद कई मजदूरन औरतें अपने पति से वह प्रेम पा जाएंगी जिसकी उम्मीद उन्होंने इस जनम में तो छोड़ ही दी थी.
यह सच में होगा या नहीं पता नहीं, लेकिन मैं ना होने के डर से उम्मीद करना तो नहीं छोड़ सकती ना. बस मैं क्या पाउंगी वह सोच रही हूँ. क्या तुम्हें पाउंगी? तुम्हारा साथ पाउंगी? फिर सोचती हूं, जो पा गई तुम्हें तो क्या करुंगी ? यह क्या करुँगी सोचना भी कितना मूर्खता पूर्ण है ना.
अरे कितना कुछ तो है करने के लिए. इतना कि वक़्त कम पड़ जाए. ज़िन्दगी की भागदौड़ में जाने कबसे तुम्हारे बाल नहीं सहलाए. जाने कबसे तुम्हारे समीप बैठकर तुम्हें जीभरकर नहीं देखा. देखूं तो ज़रा कितना बदल गए हो. उम्र ने तुम्हें बदला, और कुछ अनुभव की सफ़ेदी दी या अब भी उतने ही बुद्धू हो. देखूं तुम्हारी हथेली में मेरी हथेली अब भी वैसे ही समाती है? मुझे यकीन है जब मिलेंगी तुम्हारी और मेरी हथेलियां तो उनकी गर्माहट से तुम और मैं इतने वर्षों की शिकायतें पिघला ही लेंगे.
तुम जान लेना कि मेरे हाथ अब रसोई की रगड़ से उतने मुलायम नहीं रहे और मैं जान लूंगी कि घर चलाने के लिए धन कमाते-कमाते तुम्हारे हाथों की मुलायमियत भी खोती जा रही है. और इस तरह तुम और मैं बिता देंगे एक पूरा दिन हथेलियों की गर्माहट के साथ, खिड़की से झांकते सन्नाटे के बीच एक दूसरे की ख़ामोशी सुनते हुए. आलिंगन में भरकर मैं चूम लूंगी तुम्हें रात्री में जैसे ही चांद चमकेगा और फिर पाल लूँगी ढेर सारे सपने अगले दिन की ख्वाहिश में.
तुम्हारी
प्रेमिका
ये भी पढ़ें -
Coronavirus crisis में ट्रंप के टारगेट पर रहे शी जिनपिंग को मोदी का सपोर्ट हमेशा याद रखना होगा
Coronavirus ही कलयुग है, आदमी घरों में बंद और जंगली जानवरों का सड़कों पर राज
Coronavirus news: इंडोनेशिया-मलेशिया के दो डॉक्टरों की कहानी में सच-झूठ मत देखिए...
आपकी राय