'नकली' दलित हितैशी, बुलंदशहर की इस घटना को बहुत आसानी से नजरअंदाज़ कर देंगे
इस मामले में यदि मुस्लिम समाज की भूमिका नहीं होती तो अब तक अनगिनत राजनेता उस दलित से मिलने पहुंच गए होते. कई विश्लेषकों ने देश में असहिष्णुता का रोना शुरू कर दिया होता.
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उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से दलित प्रताड़ना का एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे 'नकली' दलित हितैशी बड़ी आसानी से नजरअंदाज़ कर देंगे. पीड़ित दलित, श्री कृष्णा का आरोप है कि कथित पंचायत सभा में उसे थूक कर चाटने के लिए कहा गया. उसकी गलती इतनी थी कि उसके बेटे शिव कुमार (21) ने एक मुस्लिम लड़की रज़िया (18) के साथ शादी की थी. न्यायालय में रज़िया ने शिव कुमार के साथ रहने की इच्छा ज़ाहिर की थी. न्यायालय की अनुमति के बाद दोनों ने शादी की थी.
पंचायत सभा के नाम पर पीड़ित को बुलाया गया, वहां पहुंचने पर उसे पता चला कि वहां पंचायत बुलाई ही नहीं गई थी. उस सभा में केवल क्षेत्र के दबंग और लड़की के परिवार के लोग मौजूद थे. सभा में श्री कृष्णा का कान पकड़कर उसे जमीन पर बैठने के लिए कहा गया. उसे अपनी थूक चाटने के लिए मजबूर किया गया. जब उसने ऐसा करने को माना कर दिया तो उसे बुरी तरह पीटा गया. कथित पंचायत ने श्री कृष्णा की पत्नी और बेटी को नग्न घुमने की बात कही. पीड़ित को परिवार समेत गांव छोड़कर जाने की धमकी दी गई. जब श्री कृष्णा ने गांव छोड़ने से माना किया तो उसे फिर मारा गया. पीड़ित का पूरा परिवार डर के माहौल में जीने को मजबूर है.
सांकेतिक तस्वीर
इस मामले में यदि मुस्लिम समाज की भूमिका नहीं होती तो अब तक अनगिनत राजनेता श्री कृष्णा से मिलने पहुंच गए होते. कई विश्लेषकों ने देश में असहिष्णुता का रोना शुरू कर दिया होता. अखबारों में यह विषय छाया होता और अब तक देश को अलोकतांत्रिक और तानाशाही से चलने वाला घोषित कर दिया गया होता. कथित 'धर्म निरपेक्ष' राजनेता बहुत आसानी से इस घटना को नजरअंदाज़ कर देंगे.
#Bulandshahr: Dalit man says, "During a Panchayat meeting I was asked to spit &lick my own spit because my son married a Muslim girl. Panchayat also asked me to leave the village. They said that my wife & daughter should be paraded naked. I have filed a complained with police."
— ANI UP (@ANINewsUP) July 1, 2018
ऐसी घटनाएं यदि गलती से बहस का मुद्दा बन जाएं तो उनकी राजनीति कमज़ोर पड़ती है. उनके अनुसार दलितों के अधिकारों की चिंता करते हुए, मनु और मनुवाद को गाली देना आवश्यक है. इस घटना में मनुवाद को कोसने का कोई मौका नहीं है. इसलिए कोई ट्वीट नहीं नजर आता, कोई प्रदर्शन नहीं निकाला गया, न कोई मोमबत्ती मार्च निकाला. दलित समाज को भी इन कथित 'धर्म निरपेक्ष' राजनेताओं की राजनीति को समझना चाहिए. दलित समाज को यह ध्यान रखना होगा कि वह किसी नेता की राजनीति का मोहरा बन कर न रह जाएं. यदि दलित समाज जागरूक हो जाएगा तो उन्हें कोई भ्रमित नहीं कर सकता.
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