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Updated: 16 अगस्त, 2017 11:03 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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भारत के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को मेरा प्रणाम,

अब तो काफी समय हो गया भारत की महिलाओं को आपसे गिला करते-करते कि पीरियड में इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी पैड्स लग्जरी नहीं है, ये महिलाओं की वो जरूरत है जो हर महीने नियत समय पर मुंह बाए खड़ी हो ही जाती है. पर आपने अभी भी महिलाओं की बिंदी, चूड़ी और सिंदूर को उनकी इस स्वास्थ्य संबंधी जरूरत से ऊपर रखा. तभी तो सिंदूर बिंदी जैसी चीजों को टैक्स के फेर से बाहर रखा और सैनिटरी नेपकिन्स पर 12% जीएसटी लगाया.

शायद आप ये नहीं जानते हैं कि भारत की महिलाएं सिंदूर, बिंदी, चूड़ी के बिना तो एक महीना बिता सकती हैं लेकिन महीने के वो दिन पैड्स के बिना नहीं.

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अपनी सफाई में आप भले ही कहें कि आपने तो सैनिटरी पैड्स से टैक्स कम किया है- पहले तो इसपर 14.5% टैक्स देना पड़ रहा था, जिसे घटाकर 12% कर दिया गया है. भले ही आपका ये कहना हो कि जीएसटी आने वाले समय में कम ज्यादा हो सकती है, तो हो सकता है कि आगे चलकर सैनिटरी पैड्स पर टैक्स न देना पड़े, हो सकता है आप ये भी कहें कि सैनिटरी पैड्स के बिजनेस में विदेशी कंपनिया जुड़ी हैं तो हमें ये टैक्स देना ही होगा, लेकिन आपकी ये सारी बातें बेमानी लगती हैं. क्योंकि आपके जीएसटी के दायरे में वो ब्रांड भी आ गए हैं जो विदेशी नहीं हैं, और इसलिए सस्ते सैनिटरी नैपकिन भी गरीब महिलाओं की पहुंच से दूर हैं.

एक बात और, विदेशी कंपनियां क्या कंडोम के बिजनेस से नहीं जुड़ी हैं, फिर क्यों कंडोम को टैक्स फ्री रखा गया और सैनिटरी पैड्स पर जीएसटी लगाया गया? काश आपने उन 88% महिलाओं के बारे में सोचा होता जो सैनिटरी पैड्स खरीद भी नहीं सकतीं. ये वो महिलाएं हैं जो आपके शाइनिंग इंडिया में आज भी उन दिनों में केवल कपड़ा, लकड़ी का बुरादा, मिट्टी, अखबार जैसे अस्वस्थ साधनों का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं.

आंकड़ों पर यकीन रखने वाली हमारी सरकार ये जान ले कि भारत में 70% प्रजनन संबंधी रोग माहवारी के दौरान अस्वच्छता के कारण ही होते हैं.

मुझे कभी कभी सोचकर हैरानी होती है कि क्या हम वाकई प्रगतिशील भारत में रह रहे हैं. यहां 'बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ' के नारे लगते हैं लेकिन फिर जब वही बेटियां अपने हक के लिए आवाज उठाती हैं तो उन्हें अनसुना कर दिया जाता है. मुझे याद है टैक्स पर विरोध दर्ज कराने के लिए जब तमिलनाडू के छात्र-छात्राओं ने आपको और जेटली जी को सैनिटरी नैप्किन पार्सल किए तो उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

पीरियड को लेकर लोगों की मानसिकता कहीं भी अलग नहीं है. चाहे वो भारत हो या फिर कोई भी पश्चिमी देश, जो सच है वो ये कि दुनिया की आधी आबादी को माहवारी होती है. और 'पीरियड पॉवर्टी' यानी माहवारी से जुड़ी गरीबी पूरे संसार की समस्या है. लेकिन फिर भी एक देश ऐसा है जिससे आपको सबक लेने की जरूरत है. वो है स्कॉटलैंड.

स्कॉटलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश बनने जा रहा है जो अपने देश की महिलाओं को मुफ्त सैनिटरी उत्पाद उपलब्ध कराएगा. जी हां और वो भी बिना किसी टैक्स के. इसके लिए स्कॉटलैंड पार्लियामेंट की एमपी मोनिका लेनन ने एक बिल की पेशकश की है. और अगर ये सफल रहा तो स्कॉटलैंड में तो पीरियड से जुड़ी असमानता खत्म हो सकेगी. इसके तहत सारे स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में भी ये सुविधा दी जानी अनिवार्य होगी.

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मोनिका लेनन का कहना है कि 'स्वास्थ्य समस्याएं और सामाजिक बाधाएं जिनका सामना महिलाएं करती हैं अब उनपर सरकार के जिम्मेदारी लेने का वक्त है.'

मोदी जी, ये भी एक सरकार है, जो अपने देश की महिलाओं के बारे में अगर सोच रही है तो उसपर काम भी कर रही है. सिर्फ नारे देने और मन की बात कह देने से समस्याओं का समाधान नहीं होता. उसके लिए प्रयास करने पड़ते हैं, जो महिलाओं से जुड़े मामलों में तो अब तक दिखाई नहीं दिए. आप सिरे से महिलाओं की मांग, प्रार्थना, और याचिकाओं को अनसुना करते आ रहे हैं, पर एक बार उन महिलाओं के बारे में तो सोचा होता जिन्हें 'मांग' या अधिकार जैसे शब्दों का मतलब भी पता नहीं है. पर अगर आप सोचते हैं कि सिर्फ मातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम 2017 देकर आप महिलाओं को चुप करा देंगे और मूलभूत जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाएंगे, तो आप वाकई गलत सोचते हैं.

आपके लिए एक सुझाव और, जाइए स्कॉटलैंड होकर भी आ जाइए, शायद अपने देश की महिलाओं का कुछ भला कर पाएं आप.

बेहतरी की उम्मीद में,

मैं और मेरे जैसी भारत की करोड़ों महिलाएं और लड़कियां.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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