सही तो कहा सुप्रीम कोर्ट ने, भला ताज महल भी कोई नमाज पढ़ने की जगह है!
ताज में नमाज को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है मगर देखा जाए तो कोर्ट का ये फैसला वीरान पड़ी मस्जिदों के लिए फायदेमंद है.
-
Total Shares
इस्लाम के अनुसार, नमाज पहले है. यानी एक मुसलमान को तब तक 'कम्प्लीट' वाली श्रेणी में नहीं रखा जाएगा जब तक वो पांच टाइम नमाज न पढ़ ले. दुनिया के मुसलमानों ने इस बात को बड़ी ही गंभीरता से लिया. बात हिंदुस्तान की हो तो यहां के मुसलमान नमाज और दीन की बातों को लेकर दुनिया के इस्लामिक और गैर इस्लामिक मुल्कों के मुकाबले ज्यादा गंभीर हैं. नतीजा ये कि रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आप कहीं भी देख लीजिये नमाज के वक़्त आपको ऐसे लोगों की बहुतायत दिखेगी जो इन स्थानों पर नमाज पढ़ते हुए आपको दिख जाएंगे.
ऐसे लोगों की बहतायत थी जो ताजमहल आकर नमाज पढ़ते थे
लोग ताजमहल घूमने जाते और वहां भी नमाज के वक्त नमाज पढ़ना शुरू कर देते हैं. पहले ऐसा होता था. अब ऐसा नहीं होगा. जी हां सही सुन रहे हैं आप. सुप्रीम कोर्ट ने ताज महल परिसर में आगरा के बाहर के लोगों पर नमाज अदा करने पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा है कि स्मारक का संरक्षण सबसे पहले है. ज्ञात हो कि डीएम आगरा ने 24 जनवरी को ताजमहल में आगरा के बाहर के लोगों पर नमाज अदा करने पर रोक लगा दी थी. डीएम के इस फैसले से आहत एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
Supreme Court refuses to allow offering of Namaz at Taj Mahal. The Court says the historic Taj Mahal is one of the seven wonders of the world, so it should be kept in mind that no Namaz will be offered there. There are other places where one can do that. pic.twitter.com/vYQ3xHNiwy
— ANI (@ANI) July 9, 2018
मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट का तर्क था कि ताज महल दुनिया के सात अजूबों में से एक है और इसका संरक्षण जरूर होना चाहिए. ताजमहल में नमाज अदा करने की कोई जरूरत नहीं है. नमाज अदा करने के लिए और भी जगह हैं. डीएम ने ये फैसला ताजमहल की सुरक्षा के मद्देनजर उठाया गया है. आपको बताते चलें कि इस मुद्दे पर डीएम का ये भी तर्क था कि शुक्रवार को नमाज पढ़ने के लिए सिर्फ स्थानीय लोगों को ताजमहल परिसर में आने की अनुमति होगी. इसके अलावा डीएम का ये भी कहना था कि जिसे ताज परिसर में नमाज पढ़नी है उसे अपने साथ एक वैध आईडी भी रखनी होगी.
प्रशासन का तर्क है कि बांग्लादेशी और गैर-भारतीय बड़ी संख्या में ताज में नमाज पढ़ रहे थे
गौरतलब है कि प्रायः अवकाश के चलते शुक्रवार को ताजमहल आम पर्यटकों के लिए बंद रहता है. इस दौरान यहां शुक्रवार की नमाज का आयोजन किया जाता है. ऐसे कदम क्यों उठाए गए यदि इस पर प्रशासन का रुख देखें तो मिलता है कि इसमें कुछ बाहरी लोग, जिनमें बांग्लादेशी और गैर-भारतीय शामिल हैं, वो शुक्रवार को ताजमहल में नमाज अदा कर रहे थे, जिसकी गंभीरता को देखते हुए ये कदम उठाया गया है.
चूंकि मामले में अब कोर्ट ने हिस्सा ले लिया है, और हम भारतीयों की एक बड़ी संख्या आलोचक है. तो लाजमी है लोग कोर्ट के इस फैसले से नाखुश होंगे और इसकी आलोचना करेंगे. अब जिसे आलोचना करनी है उसे इस खबर के पॉजिटिव पक्ष चाह कर भी नहीं दिखेंगे. लेकिन जब इस खबर का अवलोकन ठंडे दिमाग से किया जाए तो मिलेगा कि, ये एक स्वागत योग्य पहल है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस खबर के बाद कम से कम उन मस्जिदों के अच्छे दिन तो ज़रूर आ गए जो बरसों से नमाजियों के इंतजार कर रही थीं और अब तक विरान थीं.
बात को विराम देते हुए यहां ये बताना बहुत जरूरी है कि आज भारत का चाहे कोई भी शहर हो मगर वहां ऐसी मस्जिदों की भरमार है जिनमें इक्का दुक्का नमाजी आते हैं. यहां हम कोर्ट की बात का पूरा समर्थन करते हैं. जब लोग रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड तक में नमाज पढ़ सकते हैं तब उन्हें कहीं और नमाज पढ़ने में दिक्कत नहीं आनी चाहिए.
ये भी पढ़ें -
कोई माई का लाल है तो ताजमहल के बारे में आगरा जाकर उल्टा-सीधा बोले
मुगलकालीन मुगालते में रहने की जरूरत नहीं, आखिरकार बोलना ही पड़ेगा - वाह ताज!
ताजमहल की ये हकीकत आपको उससे नफरत करने पर मजबूर कर देगी !
आपकी राय