काश कोई नेता दिल्ली की जहरीली हवा के लिए भी अनशन करता!
दिल्ली की खराब हवा और प्रदूषण को देखकर ये कहना गलत नहीं है कि, वक़्त रहते अगर लोग नहीं संभले तो वाकई भविष्य में स्थिति दयनीय और बद से बदतर हो जाएगी.
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देश की राजधानी दिल्ली. प्राचीन इन्द्रप्रस्थ की राजधानी के रूप में मशहूर दिल्ली एक ऐसा शहर जिसका इतिहास बताता है कि आधुनिक दिल्ली बनने से पहले तक ये शहर सात बार उजड़ा और फिर बसा. कहना गलत नहीं है कि अगर दिल्ली आठवीं बार उजड़ी तो इसका एक अहम कारण प्रदूषण होगा. एक ऐसे वक़्त में जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने साथियों के साथ समाज को प्रभावित करने वाले तमाम मुद्दों को लेकर धरना दे रहे हैं. पीएम मोदी योग दिवस के उपलक्ष में ट्रैक सूट पहने अपने लॉन में योग करते दिखाई दे रहे हैं, और दूसरे राज्यों के नेताओं को फिटनेस चैलेन्ज दे रहे हैं. जरूरी हो जाती है एक ऐसे नेता की दरकार, जो दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण को लेकर सामने आए. गाड़ियों से निकलने वाले काले धुंए के लिए धरना दे. दिल्ली की सांस लेने में मुश्किल पैदा करने वाली हवा के लिए भूख हड़ताल करे.
दिल्ली में अचानक हुए मौसम के परिवर्तन से एक बार फिर राजधानी वासियों की दुश्वारियां बढ़ गई हैं
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को लेकर एक बार फिर स्थिति गंभीर है. बताया जा रहा है कि दिल्ली-एनसीआर में पिछले 24 घंटों में प्रदूषण का लेवल एक बार फिर खतरे के निशान से बहुत ऊपर पहुंच गया है. मौसम विशेषज्ञों का मत है कि मौसम में आए परिवर्तन के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ा है. जिससे राजधानी के आम आदमी की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं. ध्यान रहे कि दिल्ली में इन दिनों धूलभरी तेज हवाएं चल रही हैं जिन्होंने पर्यावरण की दिशा में काम करने वाले लोगों के माथे पर चिंता के बल ला दिए हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि दिल्ली-एनसीआर में अगले कुछ दिनों तक प्रदूषण के स्तर में और बढ़ोतरी हो सकती है.
आज शहर में आलम ये है कि, राजधानी दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में छाई धूल की परत,7 हजार से 15 हजार फीट तक फैल रही है. जिसकी वजह से साफ आसमान दिखाई नहीं दे रहा है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड(सीपीसीबी) से मिल रही जानकारियां और भी डराने वाली हैं. सीपीसीबी के अनुसार दिल्ली में हवा का इंडेक्स पिछले दो दिनों से 290 के पार पहुंच गया है. हालात गाजियाबाद, गुरुग्राम और नोएडा में और ज्यादा खराब हैं जहां एयर इंडेक्स 310 के पार है.
मौसम के मिजाज बदलने से सबसे ज्यादा बुजुर्ग और बच्चे परेशान हैं. इन्हें मौसम में आए बदलाव के कारण सांस लेने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. शहर की हवा खराब होने के कारण सीपीसीबी ने दोपहिया वाहन चलाने वाले लोगों के अलावा उन लोगों को भी आगाह कर दिया है जो पैदल चलते हैं. सीपीसीबी का तर्क है कि, लोग अपने-अपने घर पर ही रहें और अगर बाहर निकलना बहुत जरूरी है तो मास्क धारण कर घरों से बाहर निकलें.
कहना गलत नहीं है कि प्रदूषण मुक्त दिल्ली का सपना बस एक सपना ही है
खबर मौसम पर, पर्यावरण परिवर्तन की दिशा में काम करने वाली स्काईमेट नामक संस्था की फाइंडिंग और भी चौकाने वाली हैं. स्काईमेट की मानें तो दिल्ली एनसीआर का मौसम बदलने के पीछे की सबसे बड़ी वजह राजस्थान और राजस्थान से सटी पाकिस्तान सीमा पर चलने वाली भयानक लू है. इस लू के कारण तापमान का स्तर 3 से 5 डिग्री तक प्रभावित हुआ है और गर्मी के साथ उमस और धूल भारी आधियां बढ़ी है. स्काईमेट ने माना है कि इन तेज हवाओं के चलते धूल के कण काफी ऊपर तक पहुंच गए हैं. स्काईमेट का ये भी तर्क है कि यही वो कारण है जिसके चलते पूर्वी राजस्थान, हरियाणा और पूरे दिल्ली-एनसीआर में धूल की परत हवा में देखने को मिल रही है.
दिल्ली की स्थिति दिन-ब-दिन हो रही है दयनीय
दिल्ली का ये बदला रुख भविष्य के एक गहरे संकट को दर्शा रहा है, और बता रहा है कि भविष्य में ये शहर शायद ही रहने योग्य रह पाए. इस बड़े कथन की वजह जहां एक तरफ वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनेजेशन का शोध है, जिसके अनुसार दुनिया के दस सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली-एनसीआर है तो वहीं शहर में गाड़ियों की बढ़ती हुई संख्या और उससे निकलने वाले धुंए को दूसरी अहम वजह माना जा सकता है. ये बात अपने आप में हैरत में डालने वाली है कि जहां क्षेत्रफल के लिहाज से दिल्ली 1,484 वर्ग किलोमीटर है तो वहीं यहां रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या एक करोड़ को पार कर गई है. बात अगर गाड़ियों की संख्या पर हो तो आज दिल्ली गाड़ियों के लिहाज से नंबर 1 पर है. अब जब शहर में बेहिसाब गाड़ियां होंगी तो खराब हुई स्थिति का अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है.
दिल्ली का कोई हिस्सा हो आज सभी जगहों पर प्रदूषण का ग्राफ अपने बढ़े हुए स्तर में है
हमेशा की तरह इस बार भी संकट के जिम्मेदार हम खुद हैं
इस बात को हर बार तब दोहराया जाता है जब-जब दिल्ली का मौसम खराब होता है. खराब मौसम या प्रदूषण पर आनन फानन में कार्यवाई करते हुए हम तरह-तरह के अभियान चलाते हैं. बैनर पोस्टर लेकर जनता को जागरूक करते हैं. तमाम तरह की कसमें खाते हैं, खुद से वादे करते हैं मगर जब स्थिति थोड़ा ठीक होना शुरू करती है. हम दोबारा अपने उसी पुराने रवैये पर आ जाते हैं और दोगुनी मात्रा में उन चीजों को दोहराते हैं जो न सिर्फ वातावरण को बल्कि प्रदूषण को भी प्रभावित करता है.
मानकों के विपरीत आज जब दिल्ली और एनसीआर में ओजोन का औसतन स्तर 275 के करीब है. ऐसे में प्रदूषण की बातों पर लोगों का हाय तौबा मचाना और कुछ नहीं बस अपने खुद के साथ छलावा है. आज जब दिल्ली के अधिकांश स्थानों पर हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है, और पीएम 2.5 की मात्रा 5 से 7 गुना तक अधिक हो गई है. ऐसे में हमारा अब भी अपने पर्यावरण पर फिक्रमंद न होना खुद तस्वीर पर चढ़ी धूल की परत साफ कर देता है.
दिल्ली में ट्रैफिक हमेशा ही एक प्रमुख समस्या रहा है
बात को विराम देते हुए आपको भारत के अंतर्गत राष्ट्रीय मानकों द्वारा कही बाद याद दिला दें. मानकों के मुताबिक पीएम-2.5 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि पीएम-10 के लिए यह स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए. इतना सब जानने, बूझने और समझने के बाद भी हमारा विशेषकर हमारे राजनीतिक दलों का इस समस्या को दरकिनार करना ये साफ बता देता है कि भविष्य वर्तमान से ज्यादा दुखदाई रहेगा ऐसा इसलिए क्योंकि भूत में हमनें जो पर्यावरण का विनाश करने की पहल की थी उसके परिणाम दिल्ली के खराब मौसम के रूप में हमारे सामने हैं.
अंत में इतना ही कि दिल्ली का खराब मौसम बस शुरुआत है. या ये कहें कि पतन की फिल्म का ट्रेलर है. खुद सोचिये जब किसी फिल्म का ट्रेलर ऐसा होगा तो वो फिल्म कैसी होगी? सोचिये, क्योंकि यदि आपने अब नहीं सोचा तो फिर आने वाले वक़्त में फिर कुछ सोचने और समझने के लिए बचेगा नहीं.
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