फैसला मुश्किल है कि ग़ालिब और मीर में से ज्यादा काबिल कौन...
अक्सर ही हम लोगों को मीर और ग़ालिब के बीच तुलना करते देखते हैं. मगर जब हम दोनों की रचनाओं की तुलना करें तो मिलता है कि दोनों का अंदाज एक दूसरे से बहुत ज्यादा जुड़ा था.
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उर्दू अदब को पसंद करने वाले या फिर उर्दू शायरी से मुहब्बत करने वाले लोगों के बीच यूं तो कई बातों को लेकर मतभेद और बहसें होती हैं .मगर जिस बात पर सबसे ज्यादा माथापच्ची होती है. वो ये कि मीर और ग़ालिब में बड़ा कौन है? दोनों शायरों में ऐसा कौन है जो एक पाठक या फिर श्रोता को ज्यादा देर तक बांधे रखता है? ग़ालिब अच्छे हैं या फिर मीर अच्छे हैं? आखिर दोनों में ज्यादा महान या फिर वो कौन है जो दूसरे से कहीं बेहतर है? साहित्य आजतक के दूसरे सत्र 'एक चांद है सर-ए-आसमान' में उर्दू की अदबी दुनिया के दो बड़े रचनाकारों कवि, आलोचक और लेखक शम्स उर रहमान फारूकी और कवि और लेखक प्रेम कुमार नज़र ने शिरकत की और इसी मुद्दे पर बात की.
आज हमारे समाज में ऐसे लोगों की भरमार है जो ग़ालिब और मीर के बीच कम्पेरिजन करते पाए जाते हैं
शम्स उर रहमान फारूकी के अनुसार, 'अभी तक मेरे सामने उर्दू की जो आलोचना है, वो मुझे जंचती नहीं है. मेरा उससे इत्मीनान नहीं होता. मसला ये है कि गालिब को मीर से कैसे अलग कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि मीर और गालिब के बारे में जो बातें की गईं, वे तो किसी के लिए भी की जा सकती हैं. आलोचना में ऐसी बातें कहना बहुत आसान है. कोई भी चार-पांच जुमले ढूंढ लीजिए.
आलोचना पर फारूखी कितना सख्त थे इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि आमतौर पर आलोचना में उन्हीं शब्दों को घुमा-फिरा कर लगभग एक जैसी चीजों किसी के बारे में कह दिया जाता है और यह आलोचना एक कारोबार बन कर रह गई है. फारूखी का मानना है कि आज उर्दू अदब में आलोचना का मामला बहुत ही सतही हो गया है. आज वो लोग मीर और ग़ालिब को लेकर बात कर रहे हैं जो न तो उर्दू के जानकार हैं और न ही जिन्होंने उर्दू को पढ़ा है.
साहित्य आजतक के मंच पर भी इस बात का जिक्र हुआ कि मीर और ग़ालिब में बेहतर कौन है
फारुकी के अनुसार, लोग ग़ालिब को नाजुक ख्याल कहते हैं. वहीं मीर और मोमिन खां मोमिन के बारे में भी यही कहा जाता है. लोग ऐसा इसलिए कह रहे रहे हैं क्योंकि न तो उन्होंने ग़ालिब को पूरा पढ़ा. न ही मीर को और न ही मोमिन को और यही हालत कुछ फिक्शन में भी है जहां लोग मीर-नजीर और प्रेमचंद को कम्पेयर कर लेते हैं. इन सभी में अंतर है और इस अंतर को हम तब ही समझ पाएंगे जब हम सबको पढ़ेंगे और पूरा पढ़ेंगे.
गौरतलब है कि आज हमारे पीछे ऐसे नए, उर्दू के चाहने वालों की भरमार है जो एक शायर के मुकाबले दूसरे शायर को कमतर आंकते हैं और उसपर अपनी राय पेश करते हैं. उर्दू में कम्पेरिजन की हालत क्या है इसको जानने के लिए हमनें तरह तरह के सवालों-जवाबों और ऑनलाइन डिबेट के लिए मशहूर वेबसाइट क्वोरा का रुख किया. वहां हमने जो भी देखा वो चौकाने वाला था. वहां न सिर्फ लोगों ने ग़ालिब और मीर से जुड़े सवाल पर अपनी राय दी बल्कि लोगों ने अपनी तरफ से अंतर भी निकालने का प्रयास किया.
बहरहाल, मीर और ग़ालिब में अंतर एक लिटरेरी डिबेट है. वाकई इस बहस के आयाम उससे कहीं ज्यादा विस्तृत हैं जितना हमने सोचा है या फिर जितने तक हमारी राय सीमित है. साथ ही साहित्यकारों का जर्नलाइजेशन भी अपने आप में एक विस्तृत विषय है. जैसे जैसे युग बीतता है कही बातों के अंतर बदलते हैं. इस बात को हम साहित्य आजतक के मंच पर हुई इसी बातचीत में समझ सकते हैं. शम्स उर रहमान फारूकी ने अपनी बात समझाने के लिए मीर के ही एक शेर को बतौर उदाहरण पेश किया. शेर कुछ यूं है कि
अमीरजादों के लड़कों से मत मिला कर मीर,
कि हम गरीब हुए हैं इन्हीं की दौलत से.
फारूकी ने कहा कि यहां लोगों ने दौलत का मतलब धन-दौलत से निकाल लिया जो कि गलत है. यहां दौलत का मतलब बदौलत से है यानी इनकी वजह से. लेकिन इसे दौलत से जोड़ दिया गया. इसके बाद फारूकी ने इसी शेर पर अली सरदार जाफरी का उदाहरण पेश किया और कहा कि उन्होंने इस शेर के बारे में कहा था कि इसमें गरीब और अमीर तबके के बारे में अंतर को बताया गया है, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है.
फारूकी ने कहा कि कोई शायर लिखते समय ये नहीं कह सकता कि ये शेर 10 साल में खत्म होगा या फिर 100 साल में या फिर ये इसी मुल्क में रह जाएगा या दूसरे मुल्क में भी चला जाएगा. अच्छे शायर का कमाल ये होता है कि वो उसमें बहुत सारी ऐसी बातें डाल देता है जिससे कई मतलब निकाले जा सकते हैं. बड़े शायर की ये बड़ी पहचान होती है कि वो हर जमाने में अपने शेर के लिए अलग मायने रखता है. उन्होंने इस बात को मीर के ही एक शेर में बतौर उदाहरण पेश किया.
जहां में मीर से काहे को होते हैं पैदा,
सुना ये वाकया, जिनने उसे तआस्सुफ था
कहने को उपरोक्त शेर एक बेहद साधारण शेर है मगर इसके अलग अलग आयाम निकाले जा सकते हैं. जैसे-जैसे युग बीतेगा इस शेर के अलग अलग मतलब हमारे सामने आएंगे. कहावत है कि हर व्यक्ति अपने स्वाद के अनुसार चीजें पसंद करता है और यही नियम वहां भी लागू होता है जब बात साहित्य की होती है. ग़ालिब और मीर में बेहतर कौन है ये अपने आप में एक पेचीदा प्रशन है ऐसा इसलिए क्योंकि ग़ालिब की रचनाएं अपनी जगह हैं मीर की शायरी अपनी जगह.
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