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Updated: 30 अक्टूबर, 2017 10:21 PM
अमित अरोड़ा
अमित अरोड़ा
  @amit.arora.986
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सुप्रीम कोर्ट एससी-एसटी वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण का विषय संविधानपीठ को भेजे जाने पर सुनवाई कर रहा है. इस विषय पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट का ध्यान एससी-एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की व्यवस्था न होने पर गया. सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि एससी-एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की व्यवस्था क्यों नहीं है? कोर्ट ने पूछा कि एससी-एसटी समाज के वह लोग जो वर्तमान की आरक्षण नीति के कारण सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक क्षेत्र में तरक्की पा चुके है क्या वह अपने समाज के अविकसित लोगों का हक नहीं मार रहे है? आरक्षण के द्वारा वर्तमान में सक्षम हुआ लोगों को इसका फायदा भविष्य में क्यों मिलना चाहिए? एससी-एसटी वर्ग के विकसित समाज को आरक्षण के फायदे से बाहर क्यों नहीं किया जाना चाहिए?

आरक्षण, दलित, सुप्रीम कोर्ट   सुप्रीम कोर्ट ने एसटी-एससी आरक्षण पर जो बात उठाई है उस पर हमें गौर करना चाहिए

आजादी के इतने सालों बाद भी एससी-एसटी आरक्षण की व्यवस्था का लाभ उस समाज के केवल कुछ लोगों को ही मिल सका है. ऐसे कई लोग है जिनकी पीढियां दशकों से आरक्षण का लाभ ले रही हैं. सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक क्षेत्र में वह विकसित हो चुके हैं. विश्वविद्यालयों में दाखिले हों या सरकारी नौकरी, वह पीढ़ी दर पीढ़ी इनका लाभ ले रहे हैं. इसके बावज़ूद उन्हे लगातार आरक्षण मिल रहा है. दूसरी ओर एससी-एसटी समाज में कुछ ऐसे भी लोग है जिन्हे इतने वर्षों बाद भी अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं है. गरीबी, अशिक्षा, अज्ञानता, दूर-दराज गांवों में रहने के कारण इन लोगों को यह ज्ञात ही नहीं की वह किसी आरक्षण व्यवस्था के अधिकारी हैं.

दशक बीत गए लेकिन इस विसंगति को किसी ने ठीक करने का प्रयास नहीं किया. चार प्रकार के समूह ही एससी-एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की व्यवस्था ला सकते है. वह है :

सरकार/राजनीतिक दल 

हमारी सरकार और राजनीतिक दलों के पास एससी-एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की व्यवस्था आरंभ करने की कानूनी ताकत है पर हर राजनीतिक दल इस मुद्दे को छूने से डरता है. मालूम होने के बावजूद राजनीतिक दल इस विषय पर चुप्पी साधे बैठे हैं. उन्हें पता है की यदि उन्होंने इस विषय को उठाया तो उन्हे 'दलित विरोधी' करार कर दिया जाएगा. कोई भी दल 'दलित विरोधी' का तमगा अपने सर पर नहीं लगाना चाहेगा. जिन लोगों के पास से आरक्षण की सुविधा हटा ली जाएगी वही अगले चुनावों में उस दल को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ेगे.

हरियाणा का जाट आरक्षण हो, राजस्थान का गुर्जर आरक्षण आंदोलन, या गुजरात में पाटीदार समाज की आरक्षण की मांग- देश की सरकारें साफ शब्दों में अन्य पिछड़ा वर्ग में नई जातियों की आरक्षण की मांग को मना नहीं कर पा रही है. ऐसे स्थिति में उनसे एससी-एसटी आरक्षण व्यवस्था में सुधार की अपेक्षा करना बेवकूफी होगा. आरएसएस ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सिर्फ यह कहा था कि वर्तमान अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण नीति की समीक्षा होनी चाहिए. आरक्षण कितना ज्वलनशील मुद्दा है यह इस बात से पता चलता है कि सिर्फ इस वाक्य ने भाजपा को पिछड़ा वर्ग विरोधी करार कर दिया था. बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे सब को पता है. अतः सरकार और राजनीतिक दलों से उम्मीद लगाना अर्थहीन है.

आरक्षण, दलित, सुप्रीम कोर्ट   सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि एससी - एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की व्यवस्था क्यों नहीं है

सभ्य समाज

प्राय: सभ्य समाज किसी विषय को तभी उठाता है जब परेशानी की हद पार हो जाती है. 2013-2014 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन हो या 2012 का निर्भया कांड हो, जब तक अति नहीं हो गई तब तक सभ्य समाज चुप रहा| इसलिए जब तक एससी-एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर, बहस का मुद्दा न बने, तब तक कथित बुद्धिजीवी कोई कष्ट नहीं उठाएंगे.

पत्रकार समूह

आज की तारीख में पत्रकार और उनकी पत्रकारिता पर प्रश्न चिन्ह लगे हुए हैं. सोशल मीडिया के जमाने में पत्रकार के प्रत्येक शब्द का जनता बारीकी से विश्लेषण करने लगी है. कुछ पत्रकारों पर पक्षपात के आरोप भी लग रहे हैं कि वह एक विशेष राजनीतिक दल या नेताओं का समर्थन करते हैं. वर्तमान में पत्रकार वर्ग किसी संवेदनशील विषय को उठाने से बचते हैं. यह बात तय है कि आरक्षण, वह भी एससी-एसटी आरक्षण जैसे ज्वलनशील प्रसंग पर कोई पहल नहीं करेगा.

स्वयं एससी-एसटी वर्ग के नागरिक

यदि एससी-एसटी वर्ग स्वयं आरक्षण व्यवस्था में सुधार पर बात करेगा तो उसका कोई विरोध नहीं करेगा, लेकिन आदर्शवादिता और व्यावहारिकता में बहुत अंतर है. यदि किसी व्यक्ति को कोई सुविधा मुफ्त में मिल रही हो तो वह उसका त्याग क्यों करेगा? जिन्हे आरक्षण मिल रहा है वह उसे क्यों छोड़ें? एससी - एसटी वर्ग के वह लोग जिन्हें आज तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला वह भी बदलाव के लिए कोशिश नहीं कर रहे हैं. यह लोग आरक्षण का लाभ उठाने वाले लोगों के कहे पर ही चल रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि स्वयं अशिक्षित होने के कारण यह समूह, आरक्षण का लाभ उठा रहे एससी-एसटी वर्ग पर ही भरोसा करता है.

वर्तमान परिस्थिति में यह चारों समूह सक्षम होने के बावज़ूद, इस विसंगति को ठीक नहीं करना चाहते हैं. अनारक्षित समाज कितना ही रोना रो ले, निकट भविष्य में कोई सुधार नजर नहीं आता है. अब तो सारी उम्मीद केवल सुप्रीम कोर्ट पर ही है. यदि कोर्ट कोई पहल करे तो शायद व्यवस्था परिवर्तन हो सके.

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लेखक

अमित अरोड़ा अमित अरोड़ा @amit.arora.986

लेखक पत्रकार हैं और राजनीति की खबरों पर पैनी नजर रखते हैं.

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