जब मां ने कहा "बेटा! नौकरी करने वाली लड़कियां बदचलन नहीं होती!
पिछले साल न्यू ईयर की पूर्व संध्या पर बैंगलोर में हुई छेड़ छाड़ को एक साल हो गया है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या एक साल पूरा होने और तमाम दावों के बावजूद बैंगलोर में नौकरी करने वाली लड़कियां अपने को सुरक्षित महसूस कर पा रही हैं.
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शहर से दूर, बैंगलोर स्थित इलेक्ट्रॉनिक सिटी के मशहूर आईटी कंपनी के उस दफ्तर में चहल पहल है. सॉफ्टवेर इंजीनियर लड़के, लड़कियां अपनी-अपनी सीटों पर बैठे हुए हैं. काम रोज़ाना की तरह चल रहा है. जावा, सी++, पायथन, डॉटनेट पर कोडिंग जारी है. क्लाइंट का मेल क्रिसमस से पहले ही आ चुका था कि न्यू ईयर ईव से पहले सब अपना अपना काम खत्म कर लें. जिन्होंने क्लाइंट की बात मानी ठीक, जिन्होंने बात को सुनकर अनसुना किया वो बेचारी लडकियां परेशान हैं. इन लड़कियों से नई ड्रेस ली थी अब उसका क्या होगा? कितना प्लान किया था कि फेसबुक पर दूसरी टीम का वो कलीग ये कमेन्ट करेगा तो उसका ये रिप्लाई होगा. साथ वाले क्यूबिकल में बैठने वाली लड़की वो कमेन्ट करेगी तो ये कहा जाएगा. लड़कियां इसी कोशिश में हैं कि जितना जल्दी हो सके वो काम खत्म कर लें ताकि रात में दोस्तों संग पब जाने और पार्टी करने में देर न हो.
गुजरे साल जो बैंगलोर में हुआ उसने पूरी मानवता को शर्मसार किया था
एक तो ऑफिस की उधेड़ बुन और काम का प्रेशर ऊपर से मां की सलाह कि "बेटा, देख तू पार्टी में जा तो रही है मगर अपना ख्याल रखना."शायद बेटी ने इस बात को भुला दिया हो और वो उन बातों से आगे बढ़ गयी हो, मगर मां उस बात को अपने जहान से नहीं निकाल पाई है. मां के दिमाग में शायद अब भी गुजरे साल की वो बदनुमा यादें हैं जब रात 12 बजे मनचलों ने कई माओं की बेटियों के साथ बदसलूकी की थी, उनके कपड़े फाड़े थे, उन्हें अपने वहशीपन का एहसास कराया था.
अभी दोपहर की बात है. वो लंच पर निकली थी और कैफेटेरिया में बैठी थी. अच्छा चूंकि आज काम बहुत था तो किसी ने उसे ज्वाइन नहीं किया और उसे अकेले ही आना पड़ा. फूड जॉइंट से खाना लाने के बाद उसने खाने को टेबल पर रखा और आदतन मोबाइल पर फेसबुक की न्यूज़ फीड और व्हाट्स ऐप के मैसेज चेक करने लग गयी. उसने अपडेट रहने के लिए कुछ वेबसाइटों के फेसबुक पेजे लाइक कर रखे थे. उन्हीं पेजों में से किसी पेज पर खबर थी कि इस साल न्यू ईयर पर सुरक्षा के मद्देनजर बैंगलोर की "कर्मठ" पुलिस ने न्यू ईयर की रात सुरक्षित महसूस कराने और बेफिक्र होकर पार्टी करने के लिए उम्दा इन्तेजाम किये हैं.
उसने खबर का लिंक खोला तो उसे मिला कि पहले के मुकाबले पुलिस इस बार ज्यादा गंभीर है. उसने जहां एक तरफ शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों पर कठोर कार्यवाही का प्लान बनाया है. तो वहीं पुलिस पेट्रोल की 500 गाड़ियों के अलावा 250 बाइकसवार पुलिस कर्मियों को पेट्रोलिंग के आदेश देकर तकरीबन 500 महिला पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है.
पिछले साल के मुकाबले बैंगलोर की पुलिस महिलाओं की सुरक्षा के लिए ज्यादा गंभीर दिख रही है
वो खबर पढ़ रही थी, खबर पढ़ते पढ़ते उसके रौंगटे खड़े और आंखें नम हो गयीं. उसे अपने साथ हुई घटना याद आ गयी कि कैसे उस रात उसे कुछ लड़कों ने घेरा था और कैसे उसे यहां वहां छूकर उन्होंने पूरी मानवता को शर्मसार किया था. उसे तो वो भी याद आ गया कि कैसे लोगों ने उल्टा दोष लड़कियों पर मड़ते हुए कहा था कि लड़कियों ने शराब पी होगी और छोटे कपड़े पहने होंगे. भले ही इस साल वो न्यू ईयर के लिए क्रॉप टॉप और मिनी स्कर्ट लाई हो मगर उसे अच्छे से याद है गुजरे साल उसने जींस और एक डेनिम की शर्ट पहनी थी और उसपर भी जैकेट डाला था. उसके दिमाग में लगातार यही ख्याल आ रहा था कि "भला ऐसे कपड़े भी किसी को छेड़छाड़ के लिए उकसाते हैं?"
उसका खाना ठंडा हो रहा था. उसे काम भी खत्म करना था उसने जल्दी-जल्दी खाना शुरू किया अभी उसने थोड़ा सा ही खाया था कि फोन बजा. उसे लगा शायद मैनेजर का फोन हो और वो जल्दी से सीट पर आने के लिए कहे मगर जब उसने फोन पर निगाह डाली तो पता चला फोन घर से था और कॉल मां की है.
गत वर्ष जो बैंगलोर में हुआ वो हमारे संस्कारों पर प्रश्नचिह्न लगाता है
उसने अपने को संभाला और हेल्लो माँ बोला, मां सब जानती है, उससे कुछ छुपा नहीं है. मां समझ गयी कि बिटिया परेशान है तो उससे बड़े प्यार से कारण पूछा. पहले तो उसने ना नुकुर की मगर फिर फूट पड़ी और कहने लगी कि, मां क्या मेरा लड़की होना गुनाह है? क्या मुझे कहीं आने जाने की आजादी नहीं है? क्या हर बार ये समाज मुझे या मेरे जैसी ही अन्य लड़कियों को बदचलन कहेगा? क्या पूरे कपड़े पहनने के बावजूद हमेशा ही हमारे साथ छेड़ छाड़ यूं ही होती रहेगी?
उसने मां से सवालों की झड़ी लगा दी. मां आंखों में आंसू लिए उसकी बातें सुनती रही और बस इतना कहकर अपनी बात खत्म की और फोन काट दिया. मां ने उससे बस इतना कहा, "बेटा! नौकरी करने वाली लडकियां बदचलन नहीं होती". मां अपनी बात पूरी कर चुकी थी अब उसका भी खाना खाने का मन नहीं था वो ये सोचते हुए क्यूबिकल जाकर अपनी सीट में बैठ गयी कि, काश! देश के लोग बचपन से ही अपने बेटों को बहनों विशेषकर महिलाओं की इज्जत करना सिखाते.
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