उज्ज्वला योजना के पोस्टर पर आई महिला चूल्हे पर खाना क्यों बना रही है, जानिए...
पीएम मोदी की उज्ज्वला योजना को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब ये बात सामने आई कि जिस इस योजना के पोस्टर में जिस महिला (गुड्डी) को मुफ्त गैस सिलेंडर देते हुए दिखाया गया है, वो भी चूल्हे पर खाना बना रही है.
-
Total Shares
पीएम मोदी ने 1 मई 2016 को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी, ताकि कमजोर और गरीब वर्ग की महिलाओं को राहत मिल सके. इस योजना का मकसद था माताओं-बहनों को धुएं से मुक्ति दिलाना. योजना के तहत मुफ्त में गैस सिलेंडर बांटे गए. करीब 7 करोड़ लोगों तक इसका फायदा पहुंचाया जा चुका है, लेकिन बावजूद इसके मोदी सरकार का मकसद पूरा होता नहीं दिख रहा है. बहुत से लोग हैं जो मुफ्त में मिल सिलेंडर को इस्तेमाल करने के बाद दोबारा लौटकर सिलेंडर भरवाने नहीं आए. कइयों ने तो मुफ्त में मिला हुआ गैस सिलेंडर भी इस्तेमाल नहीं किया, क्योंकि चूल्हा खरीदने में पैसे खर्च होते.
पीएम मोदी की उज्ज्वला योजना को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब ये बात सामने आई कि जिस इस योजना के पोस्टर में जिस महिला (गुड्डी) को मुफ्त गैस सिलेंडर देते हुए दिखाया गया है, वो भी चूल्हे पर खाना बना रही है. बीबीसी ने उस महिला से बात की तो उन्होंने कहा कि उनके पास गैस भरवाने के पैसे नहीं हैं. ये तो थी पोस्टर वाली महिला की बात. सरकारी आंकड़े भी दिखा रहे हैं कि करीब 20 फीसदी लोग दोबारा गैस भरवाने जा ही नहीं रहे हैं.
पीएम मोदी ने यूपी के बलिया से उज्जवला योजना की शुरुआत करते हुए गुड्डी नाम की महिला को गैस सिलेंडर दिया था, जो अब इस योजना की विफलता की कहानी बयां कर रही हैं.
पहले बात उज्ज्वला योजना के पोस्टर वाली महिला की
जब बीबीसी ने महिला से बात की तो उन्होंने कहा कि सरकार ने उन्हें गैस सिलेंडर तो दिया, लेकिन उनके पास उसे दोबारा भरवाना का पैसा नहीं है. वह कहती हैं कि इतने पैसे कहां से लाएंगी. पहले 520 रुपए में सिलेंडर दिया अब 770 रुपए लग रहे हैं. हालांकि, वह ये भी कहती हैं कि धुएं में ही उन्हें खाना बनाना पड़ता है, जिससे परेशानी होती है.
20 फीसदी लोग नहीं भरवा रहे सिलेंडर
सरकारी आंकड़ों की ही मानें तो करीब 1.20 करोड़ यानी लगभग 20-22 फीसदी लाभार्थी अपने एलपीजी सिलेंडर को भरवाने दोबारा नहीं जाते हैं. धर्मेंद्र प्रधान के अनुसार करीब 80 फीसदी लाभार्थी सिलेंडर रीफिल करवा रहे हैं. हालांकि, बीबीसी के वीडियो में एक गैस एजेंसी के मालिक का कहना है कि उज्ज्वला योजना के तहत जितने कनेक्शन हैं, उनमें से सिर्फ 30 फीसदी की रीफिल के लिए आते हैं.
हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के साथ मिलकर एक स्टडी की. उनके अनुसार देश में घरों के अंदर होने वाले प्रदूषण में कमी आ रही है और इसके लिए उन्होंने उज्ज्वला योजना को भी क्रेडिट दिया. हालांकि, दिलचस्प ये है कि उन्हें भी इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि जिन्हें गैस मिली है वह उसे भरवा भी रहे हैं या नहीं.
मुफ्त गैस सिलेंडर की योजना 'मुफ्त' नहीं ?
उज्ज्वला योजना के तहत सरकार ने एक कनेक्शन की कीमत 3,200 रुपए निर्धारित की है. इसमें से 1600 रुपए तो सरकार वहन करेगी, जिसमें सिलेंडर का सिक्योरिटी डिपॉजिट, इंस्टॉलेशन, पाइप, रेगुलेटर आदि शामिल है. इसके अलावा बाकी के 1600 रुपए ग्राहक को देने होंगे, जिसमें दो बर्नर वाले चूल्हे की कीमत और पहली रिफिल की कीमत शामिल है.
यानी 1600 रुपए तो आपको देने ही होंगे, तभी गैस सिलेंडर मिलेगा. हालांकि, सरकार ने इससे राहत दिलाने का एक शानदार तरीका भी निकाला है, जिसमें आप 1600 रुपए की रकम को ईएमआई में बदलवा सकते हैं. ये 1600 रुपए आपको मिलने वाली सब्सिडी से एडजस्ट होंगे. यानी जब तक लोन की रकम 1600 रुपए पूरी रिवकवर नहीं हो जाती है, तब तक ग्राहकों को सब्सिडी नहीं मिलेगा और फिर उसके बाद सब्सिडी सीधे उनके खातों में जाना शुरू हो जाएगी.
मुफ्त गैस सिलेंडर लेने के लिए आपको 1600 रुपए देने होंगे. उज्ज्वला योजना के फॉर्म में भी इसे ईएमआई में बदलवाने का जिक्र किया गया है.
उज्ज्वला योजना बेशक सरकार की एक बेहतरीन पहल है, जिससे गरीब तबके के लोगों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन सरकार अपनी इस कोशिश में पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रही है, क्योंकि बहुत से लोग गैस सिलेंडर भरवाने दोबारा जाते ही नहीं. खुद गुड्डी ही कहती हैं कि महंगा होने के चलते वह तीन साल में महज 11 सिलेंडर ही भरवा पाई हैं, जबकि सरकार की ओर से हर साल 12 सब्सिडी वाले सिलेंडर दिए जाते हैं. मोदी सरकार ने इस स्कीम को काफी जल्दबाजी में शुरू किया. जिसे इस योजना के लागू करने की स्टडी करने को कहा गया था, उसके नतीजों का इंतजार भी नहीं किया. उज्ज्वला योजना पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाने की ये एक बड़ी वजह है. लेकिन बावजूद इसके, जो लोग अब तक गैस कनेक्शन से वंचित थे, कम से कम उनमें से 80 फीसदी का मुख्यधारा में आ जाना भी काफी अच्छा है.
ये भी पढ़ें-
Ramzan Mubarak: रमज़ान के मौके पर रूहअफ्ज़ा क्यों गायब है? जानिए...
Ramzan Mubarak: लेकिन ये रमज़ान है या रमादान? समझिए इन शब्दों का इतिहास...
आपकी राय