क्या जीडी अग्रवाल की मौत के बाद भी गंगा सफाई मुद्दा बनेगा
गंगा की सफाई पर नरेंद्र मोदी सरकार की घोषणा के बावजूद कई रिपोर्ट से पता चला है कि नदी को साफ करने के लिए कोई महत्वपूर्ण कार्रवाई नहीं की गई है.
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गंगा को स्वच्छ बनाने और गंगा एक्ट की मांग करने वाले 86 वर्षीय आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर जीडी अग्रवाल का 111 दिनों का उपवास के बाद 11 अक्टूबर को निधन हो गया. वो 22 जून से ही अनशन पर बैठे थे और अपनी मांग न माने जाने पर उन्होंने जल भी त्याग दिया था. इन्हें स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के रूप में भी जाना जाता था. पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर में जन्मे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग की थी. आगे चलकर इन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ बर्कले से पीएचडी भी की थी. उसके बाद वो आईआईटी कानुपर में सिविल एंड एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग में विभागाध्यक्ष भी बने. 2011 में सन्यास लेने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन गंगा नदी को प्रदूषण से मुक्त बनाने के लिए समर्पित कर दिया था.
प्रोफेसर जी डी अग्रवाल ने गंगा की स्वच्छता के लिए अपनी जान दे दी
लेकिन अब सवाल ये कि क्या एक ऐसे पर्यावरणविद की मौत के बाद भी गंगा स्वच्छ हो पाएगी? आखिर उनकी बात को क्यों गंभीरता से नहीं लिया गया? गंगा की सफाई को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिबद्धता को देखते हुए जीडी अग्रवाल ने उन्हें पत्र भी लिखा लेकिन उसपर कोई ध्यान क्यों नहीं दिया गया? उत्तराखंड में 2013 की भयानक आपदा में 5000 से अधिक लोग मरे थे, उसके बाद कई रिपोर्ट भी आई थीं, जिनमें कहा गया था कि गंगा को बचाने के लिए कई ठोस फैसले लेने होंगे, लेकिन किसी पर अमल क्यों नहीं हुआ? आखिर गंगा के प्रति इतनी उदासीनता क्यों है?
इंडिया टुडे का खुलासा
2014 में मोदी सरकार ने गंगा नदी की सफाई के लिए महत्वाकांक्षी ‘नमामि गंगे मिशन की शुरुआत की थी. इंडिया टुडे ने इसी साल जुलाई में खुलासा किया था कि किस तरह वाराणसी के घाटों पर गंगा नदी का प्रदूषण 2014 की तुलना में घटने की जगह और बढ़ गया है. गंगा के स्वच्छता स्तर के बारे में इंडिया टुडे ने गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय को सूचना के अधिकार (RTI) के तहत याचिका भेजी थी तो जवाब में बताया गया था कि-
- इस प्रोजेक्ट के लिए 20,000 करोड़ रुपए आवंटित किए जा चुके हैं जो कि अगले पांच साल में खर्च किए जाएंगे (2015-2020).
- अब तक नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कुल 221 प्रोजेक्ट विभिन्न तरह की गतिविधियों के लिए स्वीकृत किए गए हैं. इन गतिविधियों में 22238.73 करोड़ रुपए की लागत से म्युनिसिपल सीवेज ट्रीटमेंट, औद्योगिक कचरे का ट्रीटमेंट, नदी की सतह की सफाई आदि शामिल हैं.
- इनमें से 58 प्रोजेक्ट पूरे कर लिए गए हैं.
इस जवाब के मायने थे कि प्रोजेक्ट्स पर आवंटित फंड से 2238.73 करोड़ रुपए ज्यादा स्वीकृत किए जा चुके हैं और अभी डेढ़ साल और बाकी है. लेकिन अभी तक कुल स्वीकृत प्रोजेक्ट्स में से एक चौथाई ही पूरे किए गए थे.
गंगा की सफाई के लिए 20,000 करोड़ रुपए आवंटित किए जा चुके हैं
संसदीय अनुमान समिति की रिपोर्ट
गंगा की सफाई पर नरेंद्र मोदी सरकार की घोषणा के बावजूद कई रिपोर्ट से पता चला है कि नदी को साफ करने के लिए कोई महत्वपूर्ण कार्रवाई नहीं की गई है. एक संसदीय समिति, जिसने गंगा सफाई के लिए सरकार के प्रयासों का मूल्यांकन किया था, ने बताया था कि गंगा सफाई के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा स्थिति ये बताती है कि सीवर परियोजनाओं से संबंधित कार्यक्रमों को राज्य द्वारा सही तरीके से लागू नहीं किया गया और ये सरकार का गैरजिम्मेदाराना रवैया दर्शाता है.
कैग की रिपोर्ट
संसदीय समिति के अलवा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी गंगा सफाई को लेकर सरकार की कोशिश को अपर्याप्त बताया था. कैग की रिपोर्ट के अनुसार- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ समझौता करने के साढ़े छह साल बाद भी स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) की लंबी अवधि वाली कार्य योजनाओं को पूरा नहीं किया जा सकता है. इसी वजह से राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन अथॉरिटी अधिसूचना के आठ वर्षों से अधिक के अंतराल के बाद भी स्वच्छ गंगा के राष्ट्रीय मिशन में नदी बेसिन प्रबंधन योजना नहीं है.
और अब भारत ने एक महान पर्यावरणविद खो दिया है. अब इस मौत के बाद भी क्या सरकार जागेगी? या और भी मौतों का इंतज़ार होगा? वैसे भी इससे पहले 1998 में निगमानंद के साथ स्वामी गोकुलानंद ने भी क्रशर व खनन माफिया के खिलाफ अनशन शुरू किया था और दोनों को मौत ही मिली थी.
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