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स्पोर्ट्स
| 6-मिनट में पढ़ें
बिलाल एम जाफ़री
@bilal.jafri.7
Tokyo Paralympics में अवनि के गोल्ड-ब्रॉन्ज पर नहीं, जी तोड़ मेहनत-डेडिकेशन पर गौर करिये!
पहले गोल्ड फिर ब्रॉन्ज शूटर अवनि लखेरा ने टोक्यो पैरा ओलंपिक में कमाल कर दिया है और उस कहवात को चरितार्थ कर दिया है कि जब ऊपर वाला किसी को देता है तो छप्पर फाड़ के देता है. बाकी अवनि को ये सब भाग्य के भरोसे नहीं मिला है, इसके पीछे तमाम चुनौतियां और जी तोड़ मेहनत है.
स्पोर्ट्स
| 3-मिनट में पढ़ें
अनु रॉय
@anu.roy.31
मेजर ध्यानचंद खेलरत्न पुरस्कार सम्मान के लिए तो ठीक है, जादू सुविधा से ही होगा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खिलाड़ियों के जीवन, जीवन की मूलभूत सुविधाएं और उनके प्रशिक्षण पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है. ऐसा भविष्य में न हो कि कोई मीरा बाई चानू लकड़ियों को गट्ठर ढो-ढो कर वेट-लिफ़्टिंग की प्रैक्टिस करें. कोई हॉकी का खिलाड़ी साइकिल की दुकान में काम करके दो वक़्त की रोटी जुटा पाए तो कोई एथलीट भर पेट खाना खाए बिना सो जाए.
स्पोर्ट्स
|
एक अलग नज़रिया
| 4-मिनट में पढ़ें
ज्योति गुप्ता
@jyoti.gupta.01
ओलंपिक में मेडल जीतना जरूरी है क्योंकि चौथे नंबर वाले को कोई याद नहीं रखता
अगर आज भारतीय हॉकी टीम हार जाती तो लोगों के दिल टूट जाते. हम भारत के लोग बहुत इमोशनल होते हैं. हम भले ही खेल और ओलंपिक मेडल के बारे में ज्यादा ना जानें, हमारे लिए तो बस इतना ही काफी होता है कि कहीं विदेश में हमारे खिलाड़ी अपने देश का मान बढ़ाने के लिए जी जान लगाकर खेल रहे हैं.
स्पोर्ट्स
| 6-मिनट में पढ़ें
आर.के.सिन्हा
@RKSinha.Official
ओलंपिक हॉकी में भारत की कामयाबी के पीछे है खिलाड़ियों की अनजान परी-कथा
भारत की महिला-पुरुष हॉकी टीमों ने टोक्यो ओलंपिक खेलों में अभूतपूर्व प्रदर्शन किया है. इन दोनों टीमों के लगभग सभी खिलाड़ी महानगरों या दूसरे बड़े शहरों से भी नहीं हैं. इनमें ज्यादातर खिलाड़ी अभावों में खेले और आगे बढ़े हैं. इन खिलाडियों ने तो यह सिद्ध करके दिखा दिया है कि खेलों में सफलता के लिए खिलाड़ी में जीत का जुनून होना सुविधाओं से ज्यादा जरूरी है.
स्पोर्ट्स
| 4-मिनट में पढ़ें
बिलाल एम जाफ़री
@bilal.jafri.7
लवलीना ने हार के बावजूद पूर्वोत्तर की लड़कियों के लिए उम्मीद के नए दरवाजे खोल दिये हैं!
पहले ही कांस्य पदक हासिल कर चुकी लवलीना बोरगोहेन टोक्यो ओलंपिक में मौजूदा विश्व चैंपियन तुर्की की बुसेनाज सुरमेनेली के खिलाफ खेले गए 69 किग्रा महिला मुक्केबाजी सेमीफाइनल मुकाबले में अपना मैच हार गईं हैं. कह सकते हैं कि ओलंपिक में ब्रॉन्ज जीतने वाली लवलीना ने अपनी हार के बावजूद पूर्वोत्तर की लड़कियों के लिए उम्मीद के नए दरवाजे खोल दिये हैं.
स्पोर्ट्स
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एक अलग नज़रिया
| 4-मिनट में पढ़ें
ज्योति गुप्ता
@jyoti.gupta.01
PV Sindhu ने मेडल के लिए छोड़ दिया था मोबाइल और आइसक्रीम, जानिए कैसे हांसिल होता है शिखर...
इसे कहते हैं डेडिकेशन...ओलंपिक के लिए पीवी सिंधु ने मोबाइल और आइसक्रीम दोनों ही छोड़ दिया था. एक हम हैं जो हमसे कुछ भी नहीं छूटता. आलस और हर काम को कल पर टालने वाली हमारी आदत है जो जाती ही नहीं है.
स्पोर्ट्स
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एक अलग नज़रिया
| 4-मिनट में पढ़ें
ज्योति गुप्ता
@jyoti.gupta.01
PV Sindhu के ओलंपिक कांस्य पदक जीतने पर भारतीयों ने दिल से कहा 'धन्यवाद बेटी'!
पीवी सिंधु ने सोच बदलने का काम किया है, बेटियों को जिस भी क्षेत्र में अवसर मिला वहां शानदार किया’ खेलों में भी बेटियों ने बाकियों से बेहतर ही किया है. ये प्रेरणादायक है. इन खिलाड़ियों से बेटियों के साथ युवा पीढ़ी को एक बड़ी प्रेरणा मिलती है.
स्पोर्ट्स
| 4-मिनट में पढ़ें
शुभम गुप्ता
@shubham.gupta.5667
रियो पैरालंपिक में गोल्ड मेडल को उतना प्यार नहीं जितना ओलंपिक के रजत पदक को!
जब पी.वी. सिंधू और साक्षी मलिक अपना मुकाबला लड़ रही थी तो हर कोई पल-पल ट्वीट कर रहा था. जैसे ही मेडल की खबर आई, नेताओं ने ट्वीट की बारिश कर दी. मगर यहां मामला अलग है. देश ने गोल्ड मेडल जीता है. मगर किसी में उत्साह नहीं. न मीडिया में और न नेताओं में...क्यों
स्पोर्ट्स
| 3-मिनट में पढ़ें
आलोक रंजन
@alok.ranjan.92754
रोहतक से रियो तक, बस साक्षी की मेहनत ही मेहनत
12 साल की उम्र में रेसलिंग की शुरुआत करने वाली साक्षी की उपलब्धि से भारत का सिर फख्र से ऊँचा कर रही है. रोहतक से रियो तक का सफर साक्षी की जी तोड़ मेहनत और लगन को साफ-साफ सामने रखता है.