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सियासत
| 7-मिनट में पढ़ें
अमरपाल सिंह वर्मा
@10228302757341381
'गूंगी गुड़ियाओं' की बदौलत अब गांवों की तस्वीर बदल रही है
पंचायती राज के विकास में महिलाओं की भूमिका पुरुषों से किसी रूप में कम नहीं है, यह आभास अब किया जा सकता है। महिला जन प्रतिनिधियों ने न केवल सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई है, वहीं भ्रगष्टाचार के खिलाफ सीना तानकर खड़ी हुईं।
समाज
| 4-मिनट में पढ़ें
रीवा सिंह
@riwadivya
क्यों समाज महिलाओं को हर समय बेहद खास बनाने पर तुला है?
समाज आज यह बताने में व्यस्त है कि महिलाएं बहुत ख़ास हैं और हमारी लड़ाई ही इसी बात की है कि हमें ख़ास नहीं बनना, सामान्य बनना है. इतना सामान्य कि हम कुछ हासिल कर लें तो मोटिवेशन के नाम पर तालियां न पीटी जाएं. इतना सामान्य कि आप हमारे लिये कुछ करके यह न गाते फिरें कि हमने अपनी बेटी के लिये ऐसा किया. इतना सामान्य कि हम अपने निर्णयों को आख़िरी मानना सीख लें और समाज का मुंह न ताकें जो हमें ट्युटोरियल दे.
सियासत
| बड़ा आर्टिकल
अशोक भाटिया
भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की अभी और जरुरत है
निश्चय ही राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से महिला एवं पुरुष दोनों के विकास का एक नया दौर शुरू हुआ है. और इसके परिणाम बेहतर ही होंगे किंतु यह तभी संभव होगा जब एक ओर पुरुष वर्ग व्यापक सामाजिक-राजनीतिक हित में महिला सहभागिता पर गंभीर हो तथा दूसरी ओर देश की महिलाएं अपने राजनीतिक अधिकारों की समता के लिए पुरज़ोर संघर्ष करें.
स्पोर्ट्स
| 5-मिनट में पढ़ें
प्रशांत प्रत्युष
@10209994546762034
आखिर परायापन क्यों झेल रही हैं महिला एथलीट?
भारतीय महिला एथलीट्स को अभी लंबा सफर तय करना है. महिला एथलिटों को देश-दुनिया की लड़कियों के लिए मिसाल ही नहीं बनना है, महिला एथलिटों को लेकर पुरुषवादी मानसिकताओं के द्वन्द को भी तोड़ना है. कुल मिलाकर अपने घर के आंगन से निकलीं और मैदान मार लेने वाली महिला एथलिटों के पक्ष में खड़ा होने की जरूरत है.
सियासत
| 2-मिनट में पढ़ें
विवेकानंद शांडिल
@vivekanand.shandil
गणतंत्र दिवस की झांकियां बदलते हुए भारत की फिल्म का ट्रेलर थीं
74वां गणतंत्र दिवस कई मायनों में यादगार रहा. परेड जहां पहली बार राजपथ के बजाए कर्तव्य पथ पर हुई. तो वहीं इस बार परेड में महिलाओं और अग्निवीरों का बोलबाला रहा. इसके अलावा राज्यों की झांकियों में भारत की धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत का प्रभाव रहा.
सिनेमा
| 6-मिनट में पढ़ें
आईचौक
@iChowk
Doctor G की तरह बॉलीवुड की ये फिल्में भी समाज की धारणा के विपरीत लेकिन मनोरंजक हैं!
हिंदी सिनेमा ने अक्सर सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने का काम किया है. हमारे समाज में कई तरह की गलत अवधारणाएं हैं, जो हमें अंदर से खोखला किए जा रहे हैं. समय समय पर सिनेमा के माध्यम से फिल्मकारों ने इन पर पर प्रकाश डालते हुए लोगों को आगाह किया है. आइए इन फिल्मों के बारे में जानते हैं.
सिनेमा
| 5-मिनट में पढ़ें
बिलाल एम जाफ़री
@bilal.jafri.7
जहां चार यार की 'पिटाई' से सबक लेकर खुद को 'सोशल मीडिया एक्टर' घोषित कर ही दें स्वरा भास्कर!
जहां चार यार के बॉक्स ऑफिस पर पीटने के बाद कह सकते हैं कि, अब वो वक़्त आ गया है जब स्वरा को खुद को सोशल मीडिया एक्टर घोषित कर देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां चार यार की असफलता ने साबित कर दिया है कि एक्टिविज्म तक तो ठीक है लेकिन एक्टिंगऔर एक्टिंग के दम पर फिल्म को हिट कराना स्वरा के बस की बात नहीं है.
सिनेमा
| 6-मिनट में पढ़ें
आईचौक
@iChowk
Siya Movie से पहले देखिए रेप केस पर आधारित 5 दिल झकझोर देने वाली फिल्में
रेप पीड़िता और इंसाफ के लिए दर-दर भटकते उसके परिवार की कहानी पर आधारित फिल्म 'सिया' 16 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है. रेप जैसे घिनौने वारदात पर आधारित कई हिंदी फिल्में बनाई गई हैं, जिनमें पीड़िता के परिवार का दर्द बयां है. इनमें 'दामिनी' से लेकर 'आर्टिकल 15' तक जैसी फिल्में शामिल हैं.
समाज
|
एक अलग नज़रिया
| 4-मिनट में पढ़ें
ज्योति गुप्ता
@jyoti.gupta.01
अनुपमा का बेटा भी वनराज की तरह धोखेबाज निकला, यह शो पुरुषों को गलत साबित करने पर तुला है?
महिला सशक्तिकरण से शुरु हुई अनुपमा की कहानी आज एक अजीबो-गरीब मोड़ पर आकर खड़ी है. पिता के बाद अब बेटे को भी निगेटिव ही दिखाया जा रहा है.