योगी सरकार ने अब इलाहबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया है. ये उसी तरह से हुआ है जैसे मुगल सराय स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया था. इलाहबाद का नाम बदलने के बारे में खबरें तो पहले ही आने लगी थीं, लेकिन अब आधिकारिक तौर पर योगी सरकार ने नाम बदलने की घोषणा कर दी है. ये बहुत लंबे समय से मांग चल रही थी कि इलाहबाद का नाम बदल दिया जाए. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कुंभ 2019 के लिए जो बैनर बनाए जा रहे हैं उसमें आयोजन स्थल का नाम इलाहाबाद की जगह प्रयागराज लिखा जा रहा है. कुंभ मेला 15 जनवरी से शुरू होने जा रहा है और 2019 में लोकसभा चुनाव भी होने वाले हैं और इसे चुनाव से जोड़कर ज्यादा देखा जा रहा है.
अगर बात सोशल मीडिया की हो तो वहां प्रयागराज नाम को सराहने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है और ये कहा जा रहा है कि नाम बदला नहीं गया बल्कि पुराना नाम रख दिया गया है. वजह चाहें जो भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि इसपर चुनावी रोटियां सेंकने का काम जरूर होगा. प्रयागराज नाम पर सोशल मीडिया पर अपनी-अपनी राय दे रहे हैं. इस कदम की तारीफ कर रहे लोग एक बार फिर ये साबित कर रहे हैं कि भारत में धर्म और धार्मिक जगहों की राजनीति होती रहेगी और इसका विरोध करने की जगह लोग इसके साथ ही रहेंगे.
किसी भी शहर का नाम बदलने में भले ही कितनी भी लोगों की भावनाएं जुड़ी हों, लेकिन ऐसा करने में बहुत सारा पैसा खर्च होता है जिसके बारे में लोग सोचते नहीं हैं. खैर, अब ये तो बात तय हो गई है कि इलाहबाद प्रयागराज कहलाएगा. बार-बार शहरों, गलियों,...
योगी सरकार ने अब इलाहबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया है. ये उसी तरह से हुआ है जैसे मुगल सराय स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया था. इलाहबाद का नाम बदलने के बारे में खबरें तो पहले ही आने लगी थीं, लेकिन अब आधिकारिक तौर पर योगी सरकार ने नाम बदलने की घोषणा कर दी है. ये बहुत लंबे समय से मांग चल रही थी कि इलाहबाद का नाम बदल दिया जाए. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कुंभ 2019 के लिए जो बैनर बनाए जा रहे हैं उसमें आयोजन स्थल का नाम इलाहाबाद की जगह प्रयागराज लिखा जा रहा है. कुंभ मेला 15 जनवरी से शुरू होने जा रहा है और 2019 में लोकसभा चुनाव भी होने वाले हैं और इसे चुनाव से जोड़कर ज्यादा देखा जा रहा है.
अगर बात सोशल मीडिया की हो तो वहां प्रयागराज नाम को सराहने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है और ये कहा जा रहा है कि नाम बदला नहीं गया बल्कि पुराना नाम रख दिया गया है. वजह चाहें जो भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि इसपर चुनावी रोटियां सेंकने का काम जरूर होगा. प्रयागराज नाम पर सोशल मीडिया पर अपनी-अपनी राय दे रहे हैं. इस कदम की तारीफ कर रहे लोग एक बार फिर ये साबित कर रहे हैं कि भारत में धर्म और धार्मिक जगहों की राजनीति होती रहेगी और इसका विरोध करने की जगह लोग इसके साथ ही रहेंगे.
किसी भी शहर का नाम बदलने में भले ही कितनी भी लोगों की भावनाएं जुड़ी हों, लेकिन ऐसा करने में बहुत सारा पैसा खर्च होता है जिसके बारे में लोग सोचते नहीं हैं. खैर, अब ये तो बात तय हो गई है कि इलाहबाद प्रयागराज कहलाएगा. बार-बार शहरों, गलियों, रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने को लेकर पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज मार्कंडेय काटजू ने सोशल मीडिया पर भाजपा की चुटकी ली है.
काटजू ने यूपी सरकार को ताना मारते हुए 18 ऐसे यूपी के शहरों के नाम लिए हैं जिनके नाम मुगल सल्तनत के दौर में रखे गए थे और नाम मुस्लिम हैं. इस पोस्ट में काटजू ने कहा कि फैजाबाद का नाम नरेंद्रमोदीपुर, फतेहपुर का नाम अमितशाह नगर और मोरादाबाद का नाम बदलकर मनकीबात नगर कर देना चाहिए.
काटजू ने जो लिस्ट दी है उसपर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया भी आने लगी है और कुछ लोग काटजू के साथ दिख रहे हैं तो कुछ ने कहा कि काटजू को खुद अपना नाम बदल देना चाहिए.
ट्विटर की इस जंग में लोग उन ट्विटर यूजर्स को भी खरी-खोटी सुना रहे हैं जो काटजू के साथ दिख रहे हैं.
ये ट्विटर वॉर असल में सिर्फ नाम बदलने को लेकर नहीं बल्कि कट्टर हिंदू और अन्य लोगों के बीच है जो ये सोचते हैं कि नाम बदलना सिर्फ टैक्स के पैसों की बर्बादी है और असल में इससे अन्य लोगों को कोई फायदा नहीं होता हां धार्मिक भावनाएं बस कुछ बेहतर हो जाती हैं. मैं दूसरे लोगों में से हूं जिन्हें लगता है कि यकीनन नाम बदलने से बेहतर है कि वो पैसा लोगों की भलाई में लगाया जाए, अस्पताल, रोड, पानी का टैंकर, स्कूल आदि बहुत बुनियादी सुविधाएं ही हैं जो यूपी के कई दूर दराज गावों में बेहद खराब हालत में हैं. एक शहर का नाम बदलने के लिए वहां मौजूद हर सरकारी दफ्तर, उसमें मौजूद हर कागज, ऑर्डर, सील के साथ-साथ स्टेशनों पर हो रहे अनाउंस्मेंट तक सब कुछ बदलना होता है. शहरों में लगे बैनर बदलते हैं, सड़कों के नाम, हाईवे पर मील के पत्थर आदि सब कुछ बदलता है. क्या आप सोच सकते हैं कि इसमें कितना पैसा लगता है? ये सारा पैसा यकीनन कई मामलों में सिर्फ राजनीति के काम आ रहा है और शायद आम लोग इसे समझने में भूल कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें-
मायावती-अखिलेश की चुनावी भाग दौड़ का फायदा उठाने में जुटे शिवपाल यादव
या तो हम पुलिस वालों का मज़ाक़ उड़ाते हैं या फिर उन्हें गालियां देते हैं!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.