दरअसल बिना सोचे समझे मस्क बदलाव कर रहे हैं. ऐसे में ब्रांड बनते नहीं, बिगड़ते हैं. किसी संस्था का, किसी ब्रांड का, किसी एंटिटी के नामकरण पर कोई सवाल नहीं होता, चूंकि जिसने रखा है, उसका परमाधिकार है. परंतु एक अच्छे खासे स्थापित नाम को बदलकर नया नाम दे देना कई सवालों को जन्म देता है. रखने वालों की आशंका परिलक्षित होती है, अपने ही प्रोडक्ट में, ब्रांड में उनका अविश्वास झलकता है. एक बार फिर मस्क सनक गए हैं और उन्होंने 'चिड़िया' वाले लोगो को 'X' से बदल दिया है. कुछ महीनों पहले अप्रैल में भी मस्क ने ट्विटर लोगो को डॉग कॉइन लोगो में बदलकर सभी को हैरान कर दिया था. लोगो लगभग 3 दिनों तक रहा. हालांकि, डॉग कॉइन लोगो केवल वेब वर्जन में दिखाई दे रहा था. मस्क को डॉगी भाता है, तभी तो उन्होंने इससे पहले अपने पालतू डॉगी शीबा इनु फ्लोकि को ट्विटर का CEO बना दिया था और ट्विटर के लोगो पर भी शीबा इनु ही नजर आने लगा था. परंतु लोगों को रास नहीं आई मस्क की ये कारस्तानी. नतीजन छोटी चिड़िया फिर आ गई. बतौर सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म ट्विटर इस कदर जनमानस में रच बस चुका है कि लोग ट्विटर पर पोस्ट करते हैं तो कहते हैं ट्वीट कर दिया है.
ट्वीट का मतलब होता है चिड़िया की ची ची आवाज यानि चिड़िया का चहचहाना. चिड़िया एक ठिये पर बैठकर ही चहचहाती है और ठिया कहलाया ट्विटर जहां चिड़ियां (लोगों का ट्रैफिक) आती हैं और स्वछंद चहचहाती है. चिर परिचित आइकन को अलविदा कहकर उसकी जगह लाया गया 'X' एलन मस्क के सोशल नेटवर्क की उपलब्धियों का प्रतीक मात्र है. अनेकों यूजर ट्विटर छोड़ चुके हैं, तक़रीबन पचास फीसदी एडवरटाइजर्स ने पल्ला झाड़ लिया है. अस्सी फीसदी एम्प्लाइज काम छोड़ चुके हैं और साथ ही ट्विटर ने...
दरअसल बिना सोचे समझे मस्क बदलाव कर रहे हैं. ऐसे में ब्रांड बनते नहीं, बिगड़ते हैं. किसी संस्था का, किसी ब्रांड का, किसी एंटिटी के नामकरण पर कोई सवाल नहीं होता, चूंकि जिसने रखा है, उसका परमाधिकार है. परंतु एक अच्छे खासे स्थापित नाम को बदलकर नया नाम दे देना कई सवालों को जन्म देता है. रखने वालों की आशंका परिलक्षित होती है, अपने ही प्रोडक्ट में, ब्रांड में उनका अविश्वास झलकता है. एक बार फिर मस्क सनक गए हैं और उन्होंने 'चिड़िया' वाले लोगो को 'X' से बदल दिया है. कुछ महीनों पहले अप्रैल में भी मस्क ने ट्विटर लोगो को डॉग कॉइन लोगो में बदलकर सभी को हैरान कर दिया था. लोगो लगभग 3 दिनों तक रहा. हालांकि, डॉग कॉइन लोगो केवल वेब वर्जन में दिखाई दे रहा था. मस्क को डॉगी भाता है, तभी तो उन्होंने इससे पहले अपने पालतू डॉगी शीबा इनु फ्लोकि को ट्विटर का CEO बना दिया था और ट्विटर के लोगो पर भी शीबा इनु ही नजर आने लगा था. परंतु लोगों को रास नहीं आई मस्क की ये कारस्तानी. नतीजन छोटी चिड़िया फिर आ गई. बतौर सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म ट्विटर इस कदर जनमानस में रच बस चुका है कि लोग ट्विटर पर पोस्ट करते हैं तो कहते हैं ट्वीट कर दिया है.
ट्वीट का मतलब होता है चिड़िया की ची ची आवाज यानि चिड़िया का चहचहाना. चिड़िया एक ठिये पर बैठकर ही चहचहाती है और ठिया कहलाया ट्विटर जहां चिड़ियां (लोगों का ट्रैफिक) आती हैं और स्वछंद चहचहाती है. चिर परिचित आइकन को अलविदा कहकर उसकी जगह लाया गया 'X' एलन मस्क के सोशल नेटवर्क की उपलब्धियों का प्रतीक मात्र है. अनेकों यूजर ट्विटर छोड़ चुके हैं, तक़रीबन पचास फीसदी एडवरटाइजर्स ने पल्ला झाड़ लिया है. अस्सी फीसदी एम्प्लाइज काम छोड़ चुके हैं और साथ ही ट्विटर ने अपनी ऑपरेशनल स्टेबिलिटी भी गंवा दी है.
नतीजन, ट्विटर आज ब्रेकिंग न्यूज़ की तलाश करने वालों के सबसे पसंदीदा प्लेटफार्म, एक्टिविज्म और बदलाव के फोरम और लोगों की रूचि के मामलों में जरुरी अपडेट करने वाली जगह के रूप में अर्जित साख खो चुका है. और अब जब ट्विटर नाम ही, ब्रांड ही, कुछ और कहलायेगा तो पूरी दुनिया की चहेती चिड़िया का फुर्र होना तय है. सिर्फ आम धारणा ही नहीं , मस्क ने भी माना था कि ट्विटर ब्रांड वजनदार है तभी तो 44 अरब डॉलर में डील कर ली थी.
हालांकि मस्क की टीम जस्टिफाई कर रही है कि परिकल्पना ये है कि नए नाम के साथ ट्विटर का कायाकल्प होगा और इसके नए अवतार में एप पर ऑडियो, वीडियो, मैसेजिंग, बैंकिंग से लेकर सब कुछ मिलेगा. 'X' होगा अनलिमिटेड इंटरएक्टिविटी. परंतु मान भी लें ऐसा हो जाएगा तो क्या ट्विटर डाइल्यूट नहीं होगा? स्पष्ट है रीब्रांडिंग का लॉजिक गले नहीं उतरता. जल्दबाजी में उठाया कदम लगता है.
दरअसल 'एक्स' उनकी टीस है. 1999 में उन्होंने एक्स डॉट कॉम डोमेन नेम खरीदा था इस महत्वाकांक्षा के साथ कि इसे एक सुपर ऍप बनाएंगे. एक्स फैक्टर का उन्हें इतना जुनून था कि उन्होंने अपने एक बच्चे का नाम भी एक्स रखा. शायद वही ओबसेशन ही है कि उन्होंने ट्विटर को भी एक्स से रिप्लेस करने की ठान ली है. सवाल है क्या नाम बदल देने से ट्विटर चीन के सुपर ऐप 'वीचैट' सरीखा बन जाएगा जिसने आल इन वन की तर्ज पर कई सेवाएं जोड़ी हैं ?
लेकिन फर्क है. फर्क है टेरिटरी का. दक्षिण पूर्व एशिया में उपभोक्ता ऐप का इस्तेमाल मोबाइल पर करते हुए मल्टीपल सर्विसेज चाहते हैं लेकिन अमेरिका और अन्य वेस्टर्न कन्ट्रीज के उपभोक्ता नहीं चाहते कि उनका सब कुछ एक सुपर ऍप में सिमट कर रह जाए. जब बात भुगतान व बैंकिंग सेवाओं की हो तो पश्चिमी उपभोक्ता एक एक्सक्लूसिव ऍप को तरजीह देता है.
गूगल ने खूब भांप लिया है इस सच्चाई को तभी तो गूगल मैप है, यूट्यूब है, जीमेल है, गूगल पे है और अन्य भी है. मेटा प्लैटफॉर्म पर भी अलग अलग ऍप हैं मसलन फेसबुक है, व्हाट्सप्प है, इंस्टा है और नवोदित थ्रेड्स भी है. उबर का राइड शेयर ऍप उबर ईट्स से अलग है. इसका एक कारण यह भी है कि एक साथ कई सेवाएं देने वाले अप्प की गति धीमी हो जाती है.
दरअसल मस्क ने इंटरनेट यूजर्स को फॉर ग्रांटेड ले लिया है. उनके निर्णय उल्टे पड़ रहे हैं. मसलन ट्विटर से बॉट्स को हटाकर उन्होंने समस्या को बढ़ाया ही. उन्होंने मुंगेरीलाल के हसीन सपने भी देखे थे कि उनकी ड्राइवरलेस आटोमेटिक टेस्ला कारें इस कदर धूम मचा देंगी कि उन्हें फ़टाफ़ट न्यूयॉर्क से वाशिंगटन डीसी के मध्य सुरंग बनाने की इजाजत मिल जायेगी. अब उनका ख्याल है कि अगर सब कुछ सही रहा तो 'एक्स' विश्व का आधा वित्तीय तंत्र बन जाएगा. इसी ख़याली पुलाव की रेसिपी ही है कि वे ट्विटर की अभी तक मजबूत ब्रांड वैल्यू का कबाड़ा करने की ठान बैठे हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.