सोशल मीडिया के इस क्रांतिकारी युग में आपका पाला ऐसे लोगों से जरूर पड़ा होगा जो, सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने में लाइक्स, कमेंट्स और फॉलोअर्स ही खाते हैं. हां, क्योंकि इनके बिना इनकी रोटी हजम ही नहीं होती है.
अमिताभ बच्चन के हालिया ट्वीट को देखकर भी ऐसा ही लगता है कि वो भी इसी बीमारी के मरीज हैं. अमिताभ लिखते हैं- 'प्यारे ट्विटर मैनेजमेंट, मैक्सिमम एक्टिविटी के बावजूद आप जिस तरह से फॉलोअर्स की संख्या को कॉन्सटेंट (स्थिर) रखते हैं और जरा सा हिलने-डुलने भी नहीं देते, वो बड़ा ही अद्भुत है!! ???????????????????? बहुत अच्छे !! मेरा मतलब है कि हर बॉल पर छक्का लगने के बावजूद भी आप स्कोर बोर्ड को आगे बढ़ने से कैसे रोक लेते हैं!!
जिन्हें अमिताभ की ये पहेली समझ नहीं आई उनके लिए बता दूं कि अमिताभ बच्चन असल में अपने ट्विटर फॉलोअर्स की स्थिर संख्या को लेकर चिंतित हैं. और इसी चिंता में वो ट्विटर मैनेजमेंट से शिकायत कर रहे हैं कि इतने ट्वीट्स करने के बावजूद भी अमिताभ बच्चन के फॉलोअर्स बढ़ नहीं रहे हैं.
जाहिर है, सोशल मीडिया पर हमेशा एक्टिव रहने वाले लोग इस चिंता से बच नहीं पाते. कभी लाइक्स न आने की टेंशन और कभी फॉलोअर्स कम होने की चिंता. यूं समझ लो कि जीवन के दिए दर्द में ये एक दर्द सबसे बड़ा.
एक लाइक की कीमत तुम क्या जानो...
एक प्रोग्रामर जो नया नया इंस्टाग्राम पर आया था, वो अपने दोस्तों की पोस्ट को लाइक नहीं करता था. उसे किसी से मतलब नहीं था और दोस्त ये समझते थे कि वो उनका अपमान कर रहा है. तब उस प्रोग्रामर ने ऐसा...
सोशल मीडिया के इस क्रांतिकारी युग में आपका पाला ऐसे लोगों से जरूर पड़ा होगा जो, सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने में लाइक्स, कमेंट्स और फॉलोअर्स ही खाते हैं. हां, क्योंकि इनके बिना इनकी रोटी हजम ही नहीं होती है.
अमिताभ बच्चन के हालिया ट्वीट को देखकर भी ऐसा ही लगता है कि वो भी इसी बीमारी के मरीज हैं. अमिताभ लिखते हैं- 'प्यारे ट्विटर मैनेजमेंट, मैक्सिमम एक्टिविटी के बावजूद आप जिस तरह से फॉलोअर्स की संख्या को कॉन्सटेंट (स्थिर) रखते हैं और जरा सा हिलने-डुलने भी नहीं देते, वो बड़ा ही अद्भुत है!! ???????????????????? बहुत अच्छे !! मेरा मतलब है कि हर बॉल पर छक्का लगने के बावजूद भी आप स्कोर बोर्ड को आगे बढ़ने से कैसे रोक लेते हैं!!
जिन्हें अमिताभ की ये पहेली समझ नहीं आई उनके लिए बता दूं कि अमिताभ बच्चन असल में अपने ट्विटर फॉलोअर्स की स्थिर संख्या को लेकर चिंतित हैं. और इसी चिंता में वो ट्विटर मैनेजमेंट से शिकायत कर रहे हैं कि इतने ट्वीट्स करने के बावजूद भी अमिताभ बच्चन के फॉलोअर्स बढ़ नहीं रहे हैं.
जाहिर है, सोशल मीडिया पर हमेशा एक्टिव रहने वाले लोग इस चिंता से बच नहीं पाते. कभी लाइक्स न आने की टेंशन और कभी फॉलोअर्स कम होने की चिंता. यूं समझ लो कि जीवन के दिए दर्द में ये एक दर्द सबसे बड़ा.
एक लाइक की कीमत तुम क्या जानो...
एक प्रोग्रामर जो नया नया इंस्टाग्राम पर आया था, वो अपने दोस्तों की पोस्ट को लाइक नहीं करता था. उसे किसी से मतलब नहीं था और दोस्त ये समझते थे कि वो उनका अपमान कर रहा है. तब उस प्रोग्रामर ने ऐसा बोट बनाया जिससे उसके द्वारा फॉलो हर व्यक्ति की हर पोस्ट को ऑटोमेटिक लाइक किया जा सके. और नतीजा ये निकला कि वो इंस्टाग्राम पर बेहद पॉपुलर हो गया. उसके फॉलोअर्स आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गए, और उसकी पोस्ट भी खूब लाइक की जाने लगीं. इस प्रोग्रामर ने लाइक की तुलना कोकेन से करते हुए कहा कि "मुझे लगता है कि लोगों की नजरों में लाइक की बहुत कीमत है. लोग आदी हो गए हैं. उन्हें बुरा लगता है. हम इस ड्रग से इतने प्रभावित हैं कि केवल एक हिट से असीम सुख का अनुभव होता है.'
गोलमाल तो सोशल मीडिया का ट्रेंड है-
हम सब जानते हैं कि सोशल मीडिया पर पोस्ट होने वाली चीजें सिर्फ हाइलाइट होती हैं. खास चीजें ही दिखाई जाती हैं जबकि कोई भी व्यक्ति वो नहीं दिखाता जो सांसारिक है, जो असल जिंदगी में होता है. कोई बैंक की लाइन में खड़ा होकर फोटो नहीं खिंचवाता और न ही कोई टॉयलेट साफ करने की तस्वीर सोशल मीडिया पर डालता है.
क्लीनिकल सोशल वर्कर और थेरेपिस्ट किंबरले हरसेंशन का कहना है कि- 'सोशल मीडिया पर हम असलियत छिपाते हैं और अपना वो जीवन दिखाते हैं जिसपर दूसरे लोग सोचें और रिएक्शन दे सकें. हम अक्सर घूमने फिरने की, मस्ती करने की और फोटोशॉप्ड तस्वीरें देखते हैं. इससे तुलना का भाव आता है, जो कहीं न कहीं आपके आत्मसम्मान को प्रभावित कर सकता है. और हम सोचते हैं कि 'ये लोग इतने खुश क्यों है जबकि मेरे जीवन में तो इतने संघर्ष हैं?' सच्चाई यह है कि हम जानते ही नहीं कि वास्तव में उन लोगों के जीवन में क्या चल रहा है.'
फोर्ड 2014 की कंज्यूमर ट्रेंड रिपोर्ट के अनुसार : दुनिया भर में 62 प्रतिशत वयस्क सकारात्मक सोशल मीडिया फीडबैक के जरिए ही बेहतर आत्म-सम्मान महसूस करते हैं. जिसे इस तरह समझा जा सकता है कि हमारा ऑनलाइन व्यक्तित्व हमारे असली व्यक्तित्व से ज़्यादा जरूरी है.
ये इश्क नहीं आसां...
सोशल मीडिया पर अगर आप कुछ पोस्ट करते हैं तो जाहिर है उससे उम्मीद लगाकर बैठ जाते हैं. उसे कौन लाइक कर रहा है, कितना शेयर कर रहा है, या उसपर कितने कमेंट आ रहे हैं. उसके फॉलोअर्स ज्यादा मेरे कम कैसे?
थाइलैंड के मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट ने तो ये वार्निंग भी दी कि जो युवा सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें पोस्ट करते हैं लेकिन उतना अच्छा रिस्पॉन्स नहीं पाते, वो भावनात्मक रूप से परेशान होते हैं. जिससे संतुलित नागरिकों की कमी हो रही है जिससे राष्ट्र को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.
'अगर उन्हें अपनी सेल्फी पर उम्मीद के मुताबिक लाइक्स नहीं मिलते, तो वो एक और पोस्ट करते हैं, लेकिन फिर भी एक अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिलता. ये उनके विचारों को प्रभावित कर सकता है. इससे उनका आत्मविश्वास खो सकता है और हो सकता है ति वो खुद के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखने लगें, जैसे खुद से या अपने शरीर से असंतुष्ट महसूस करना.'
अब है नींद किसे, अब है चैन कहां-
डिजिटल मीडिया में काम करने वाले एक व्यक्ति का कहना है कि "मैं लगातार अपने ट्विटर इंटरएक्शन्स देखता हूं. रात 1 बजे तक के लिए मेरे फोन में रीट्वीट और फेवरेट के लिए पुश नोटिफिकेशन ऑन रहता है. और सुबह 7 बजे तक फोन फिर से कंपन न करें इसके लिए TweetBot प्रोग्राम किया हुआ है. इसे मेरे अंदर एक पावलोवियन प्रतिक्रिया होने लगी है. अगर पावलोव का कुत्ता घंटी की आवाज सुनकर लार टपकाने लगता है, तो जब फोन आवाज करता है तो एक 'लाइक एडिक्ट' क्या करेगा? जाहिर है फोन ही उठाएगा."
स्लीप और वेलनेस एक्सपर्ट परीनाज समीमी का कहना है कि 'टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया का कॉम्बिनेशन धीरे-धीरे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं ला रहा है. शोध सोशल मीडिया के इस्तेमाल और नींद में खलल के बीच की कड़ी की खोज कर रहे हैं. हम शाम के वक्त इस कदर सोशल मीडिया से जुड़ जाते हैं कि हम अपने शरीर के प्राकृतिक चक्र के विपरीत जा रहे हैं. रिसर्च से पता चलता है कि नीले प्रकाश के संपर्क में आकर शरीर की सर्कैडियन रिदम (स्वतः नींद आने का समय) में रुकावट आती है, जिससे स्वस्थ और गहरे नींद पैटर्न प्रभावित होता है.'
क्या से क्या हो गया...
एक स्टेटस अपडेट करने में या कुछ लाइक करने में भले ही कुछ सेकंड्स लगते हों लेकिन हमारे दिमाग को फिर से अपने काम पर फोकस करने में समय लगता है. American Psychological Association के अनुसार, अपने काम के दौरान अगर आप बार-बार फोन चेक करते हैं तो आपके काम की उत्पादकता में 40% की कमी आती है.
तो देखा आपने... अब भी नहीं मानेंगे कि ये सोशल मीडिया मर्ज नहीं है? अगर अमिताभ बच्चन जैसी शख्सियत को ट्विटर फॉलोअर्स की संख्या के न बढ़ने से बेचैनी हो सकती है, तो बाकी तो बेचारे आम जन हैं. पर हां, एक बात अब भी सोचने वाली है कि कुछ एक फॉलोअर्स के लिए परेशान रहने वालों और 34.3 मिलियन फॉलोअर्स के मालिक अमिताभ बच्चन में से किसका दर्द ज्यादा है... कौन ज्यादा बेहतर स्थिति में है? आप ही फैसला करो...
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