बचपन से लेकर आज तक एक ऐसी लड़की को मैं देखती आई हूं जो हमेशा हंसती मुस्कुराती रहती है. वो लड़की जिसने किसी भी माहौल में हमें हंसने की सीख दी.. वो लड़की जो व्यंग्य भी बहुत प्यार से करती है.... आज वो लड़की भी रो दी है. उसे मैंने गुस्से में भी सिर्फ एक बार देखा था निर्भया के समय, लेकिन अब-अब तो वो लड़की गुस्सा भी नहीं दिखा पा रही.
मैं बात कर रही हूं अमूल की उस लड़की की जिसके विज्ञापन देखते-देखते मैं बड़ी हुई हैं. वो लड़की जिसे हिंदुस्तान के आधे से ज्यादा लोग जानते हैं. वो लड़की जो इस साल 52 की हो जाएगी, लेकिन इतने सालों में पहली बार रोई है. जहां तक मेरी याद्दाश्त जाती है अमूल की वो लड़की हमेशा अपने बिंदास अंदाज़ और बेहतरीन विज्ञापन के लिए चर्चा में रही है, लेकिन अब वो लड़की रो रही है. वो रो रही है उस 8 साल की बच्ची के लिए जिसका रेप कर उसे मार डाला गया. वो रो रही है उन सभी लड़कियों के लिए जो हमारे आस-पास हैं, लेकिन सुरक्षित महसूस नहीं कर रहीं.
अमूल ने बड़े ही मार्मिक ढंग से उस लड़की के जरिए ये बताया है कि हिंदुस्तान अब हंसता खेलता नहीं रहा.
अमूल के इस विज्ञापन के बाद से ही सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं देना शुरू कर दिया.
ये किस देश में जी रहे हैं हम? अभी भी सोशल मीडिया पर न जाने कितने लोग बहस कर रहे हैं. रेप पीड़िता हिंदु है, मुस्लिम है, दलित है, ईसाई है इसपर बात चल रही है. रेप मंदिर में होता है और लोग इंसाफ की बात करते हैं तो सोशल मीडियाई सिपाही कहते हैं कि मदरसों और मस्जिदों में भी रेप होते हैं, मुसलमान भी रेप करते हैं आखिर उन्हें क्यों नहीं कुछ कहा जाता. हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है. तो क्या यही सच्चाई है? क्या हमारा देश इतना गिर चुका है कि उस छोटी सी बच्ची का रेप और हत्या भी धर्म के तराजू में तौला जा रहा है. बच्चियों और महिलाओं के खिलाफ जुर्म चाहें मंदिर में हो, मस्जिद पर हो, जंगल में हो, सड़क पर हो और उसे करने वाला भले ही किसी भी धर्म का हो वो एक रेपिस्ट है और उसे सज़ा मिलनी चाहिए.
जिस तरह से उस 8 साल की बच्ची की हत्या की गई और जैसे उसकी हत्या पर राजनीति और नफरत फैलाई जा रही है, शायद ये इस अमूल वाली लड़की के पास रोने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था.
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